मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है।                                           “मीठे बच्चे - बाबा को प्यार से याद करते रहो, श्रीमत पर सदा चलो, पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन दो तो तुम्हें सब रिगॉर्ड देंगे।''
प्रश्नः-अतीन्द्रिय सुख का अनुभव किन बच्चों को हो सकता है?
उत्तर:-1- जो देही-अभिमानी हैं, इसके लिए जब किसी से बात करते हो या समझाते हो तो समझो मैं आत्मा भाई से बात करता हूँ। भाई-भाई की दृष्टि पक्की करने से देही-अभिमानी बनते जायेंगे। 2- जिन्हें नशा है कि हम भगवान के स्टूडेन्ट हैं उन्हें ही अतीन्द्रिय सुख का अनुभव होगा।
गीत:-कौन आया मेरे मन के द्वारे...
ओम् शान्ति। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। दूसरी कोई संस्था में ऐसे नहीं कहते कि बाप बच्चों को समझाते हैं। बच्चे जानते हैं बरोबर सब बच्चों का बाप एक ही है। सब ब्रदर्स हैं। उस बाप से जरूर बच्चों को वर्सा मिलता है। चक्र पर भी तुम अच्छी रीति समझा सकते हो कि यह है संगम जबकि मुक्ति और जीवनमुक्ति मिलती है। तुम बच्चे जीवनमुक्ति में जायेंगे तो बाकी सब मुक्ति में जायेंगे। सद्गति दाता, लिबरेटर, गाइड, उनको ही कहा जाता है। रावण राज्य में कितने ढेर मनुष्य हैं। रामराज्य में एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। उनको आर्य और अनआर्य कहते हैं। आर्य सुधरे हुए, अनआर्य न सुधरे हुए को कहा जाता है। इसका अर्थ भी कोई नहीं जानते कि सुधरे हुए से अनसुधरे कैसे बने। आर्य कोई धर्म नहीं था। सुधरे हुए यह देवतायें थे फिर 84 जन्म के बाद अनसुधरे बनते हैं। जो ऊंचे ते ऊंच पूज्य थे वही पुजारी बन पड़े। हम सो का अर्थ भी बाप ही समझाते हैं। सीढ़ी पर समझाना बहुत अच्छा है। ऐसे नहीं कि आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा। नहीं। यह तो विराट नाटक है। तुम जानते हो हम सो पूज्य थे फिर पुजारी बनें अर्थात् हम सो देवता फिर सो क्षत्रिय.. बनते हैं। सीढ़ी तो जरूर उतरेंगे ना। यह भी हिसाब है, 84 जन्म कौन लेते हैं। बाप कहते हैं तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं तुमको बताता हूँ। यह चक्र है, उसमें हम ही सो देवता, क्षत्रिय आदि बनते हैं। 21 जन्म तो नामीग्रामी हैं। मनुष्य तो इन बातों को जानते ही नहीं, तमोप्रधान हैं। अब तुम बच्चों को ही सारी नॉलेज मिलती है, परन्तु समझते कोई मुश्किल हैं, तब कहते हैं कोटों में कोई ही ज्ञान को आकर लेंगे और देवता धर्म वाले बनेंगे, इसमें आश्चर्य नहीं खाना चाहिए। चक्र पर समझाना सहज है। यह सतयुग, यह कलियुग ...... क्योंकि सतयुग में होते ही बहुत थोड़े हैं। झाड़ छोटा होता है फिर वृद्धि को पाता है। इस झाड़ का किसको पता नहीं है। और ब्रह्मा की बात भी मुश्किल समझते हैं। बोलो, ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण तो जरूर चाहिए ना। यह एडाप्टेड बच्चे हैं। वह ब्राह्मण हैं कुख वंशावली, यह ब्राह्मण हैं मुख वंशावली। यह है पराया रावण राज्य। बाप को आकर राम राज्य स्थापन करना होता है, तो किसमें तो प्रवेश करेंगे ना। देखो, यह झाड के एकदम पिछाड़ी में खड़ा है, इनकी ज़ड़जड़ीभूत अवस्था है। बाप कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में प्रवेश करता हूँ। यह अन्तिम 84 वाँ जन्म है। तपस्या कर रहे हैं। हम इनको भगवान नहीं कहते हैं। दुनिया वालों ने तो भगवान को सर्वव्यापी कह ठिक्कर भित्तर में कह दिया है इसलिए खुद भी पूरे ठिक्कर बन पड़े हैं। देवताओं की तो बात ही न्यारी है। अब तुम पढ़कर यह पद पाते हो, कितनी ऊंची पढ़ाई है। इन देवताओं को भगवान भगवती भी कहते हैं क्योंकि पवित्र हैं और स्वयं भगवान द्वारा ही इस धर्म की स्थापना हुई है। तो जरूर भगवान भगवती होने चाहिए। परन्तु उनको कहा जाता है महारानी महाराजा। बाकी श्री लक्ष्मी-नारायण को भगवती भगवान कहना भी अन्धश्रद्धा है क्योंकि भगवान तो एक ही है ना। तुम शिव और शंकर को भी अलग कर बताते हो। इस पर वो लोग कहते हैं यह देवताओं को भी उड़ा देते हैं। तुम्हारी बुद्धि में तो सारा चक्र है। परन्तु जो महारथी हैं, वही अच्छी तरह समझा सकते हैं। बहुत हैं जो भल सुनते हैं परन्तु बुद्धि में ठहरता नहीं, तो वह क्या बनेंगे? पाई पैसे के दास दासियाँ बनेंगे। आगे चलकर तुमको साक्षात्कार होंगे परन्तु उस समय कुछ कर नहीं सकते। टाइम पूरा हो गया फिर क्या कर सकेंगे इसलिए बाबा सावधान करते रहते हैं। परन्तु सब ऊंच चढ़ जायें यह तो हो नहीं सकता। बर्तन स़ाफ नहीं है, बुद्धि में किचड़-पट्टी भरी हुई है। इसमें पुरुषार्थ बहुत अच्छा चाहिए। चित्रों पर समझाने की बहुत प्रैक्टिस करनी चाहिए। नहीं तो पिछाड़ी में पछताना पड़ेगा। यह आत्मा को फूड़ (भोजन) मिल रहा है। यह तो सबको समझाने की बातें हैं। डरने की कोई बात नहीं। बड़े-बड़े स्थानों पर प्रदर्शनी, म्युज़ियम होने से नाम होता है। बाबा ने कहा था सबसे ओपीनियन लिखाओ, वह भी छपानी चाहिए। बच्चों को बहुत सर्विस करनी है। इसमें जाँच भी बहुत करनी है, समझने वाले हैं या नहीं। यह है नई दुनिया, यह है पुरानी दुनिया। यह तो कोई भी समझ सकते हैं सिर्फ टाइम लम्बा कर दिया है, इसलिए मनुष्य मूँझ पड़े हैं। पहले-पहले बाप का परिचय देना है। जो देही-अभिमानी होकर रहते हैं, अतीन्द्रिय सुख उनको ही रह सकता है। सिर्फ भाषण से काम नहीं होगा। जब भाषण करते हो तो भी समझना है कि मैं आत्मा भाई, भाई को समझाता हूँ। आत्म-अभिमानी बनना - इसमें बड़ी मेहनत चाहिए परन्तु बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। बाप ही आकर बच्चों को समझाते हैं, गायन भी है आत्मा परमात्मा अलग रहे.. इसका अर्थ भी तुम ही जान सकते हो। जो महारथी हैं उनको अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने की बहुत प्रैक्टिस करनी है, तब तो अपने को पावरफुल समझेंगे। जो अपने को आत्मा ही नहीं समझते वह क्या धारणा करेंगे। याद से ही तुम्हारे में जौहर भरेगा। ज्ञान को बल नहीं कहा जाता है। योगबल कहा जाता है। योगबल से ही तुम विश्व के मालिक बनते हो। अब तुमको बहुतों को आप समान बनाना है। जब तक बहुतों को आप समान नहीं बनाया है तब तक विनाश हो न सके। भल बड़ी लड़ाई लग जाए परन्तु फिर बन्द होती रहती है। अभी तो बहुतों के पास बाम्बस हैं, परन्तु यह रखने की चीज़ नहीं है। पुरानी दुनिया का विनाश और एक आदि सनातन धर्म की स्थापना होनी है जरूर। थोड़े समय के बाद सब कहेंगे बरोबर यह वही महाभारी लड़ाई है। भगवान भी है जरूर। जब तुम्हारे पास बहुत लोग आयेंगे तब सब मानने लगेंगे, कहेंगे यह तो वृद्धि को पाते रहते हैं, इनमें बहुत माइट है। तुम जितना याद में रहेंगे उतनी तुम्हारे में ताकत भरेगी। बाप की याद से ही तुम औरों को लाइट देते हो। यह दादा (ब्रह्मा) भी कहते हैं मेरे से भी यह बच्चे बहुत अच्छी सर्विस करते हैं। अभी थोड़ी देरी है, योग में यथार्थ रीति कोई रह नहीं सकता। खुद भी फील करते हैं कि योग में हम कम हैं इसलिए बराबर तीर नहीं लगता है। भगवान कुमारियों में ज्ञान बाण भरते हैं। तुम प्रजापिता ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारियाँ हो ना। यह है ब्रह्मा। तुम हो एडाप्टेड बच्चे। क्रियेटर तो एक ही है, बाकी सब पढ़ रहे हैं। उसमें यह ब्रह्मा भी आ गया। फिर यह रचना हो गई ना। तुम देवता बनने वाले हो। दैवी गुण धारण कर रहे हो। कहाँ-कहाँ दोनों पहिये चल नहीं सकते। जैसेकि रेती पर खड़े हैं। बाबा नाम नहीं लेते हैं। नहीं तो समझना चाहिए बाबा सच कहते हैं। बच्चे भी एक दो के स्वभाव को जान सकते हैं, जिनका आपस में काम रहता है।

बच्चे समझते हैं हम ही सिरताज थे। अब फिर बनते हैं। पहले तुम किसको समझाते हो तो मानने लिए तैयार नहीं होते। फिर धीरे-धीरे समझते हैं, इसमें बुद्धि बहुत चाहिए। आत्मा में बुद्धि है। आत्मा सत् चित, आनंद स्वरूप है। अब तुम बच्चों को देही-अभिमानी बनाया जाता है। जब तक बाप न आये तब तक कोई देही-अभिमानी बन न सके। अब बाप कहते हैं आत्म-अभिमानी भव। मामेकम् याद करो तो मेरे से शक्ति मिलेगी। यह धर्म बहुत ताकत वाला है। सारे विश्व पर राज्य करते हैं, कम बात है क्या? तुमको ताकत मिलती है - बाप के साथ योग लगाने से। यह है नई बात, जो अच्छी रीति समझाना पड़ता है। आत्माओं का बेहद का बाप वही है। वही नई दुनिया का रचयिता है। तो शिव का आक्यूपेशन समझाओ कि वह आकर क्या करते हैं। श्रीकृष्ण जयन्ती और शिव जयन्ती दोनों की मनाते हैं। अब दोनों में बड़ा कौन? ऊंच ते ऊंच निराकार। उसने क्या किया जो शिव जयन्ती मनाई जाती है, कृष्ण ने क्या किया? लिखा हुआ है कि परमपिता परमात्मा साधारण बूढ़े तन में आकर स्थापना करते हैं। अनेक प्रकार के मत मतान्तर हैं। श्रीमत तो एक ही है, जिससे तुम श्रेष्ठ बनते हो। मानव मत से श्रेष्ठ कैसे बनेंगे। यह ईश्वरीय मत जो तुमको एक ही बार संगम पर मिलती है। देवतायें तो मत देते नहीं। मनुष्य से देवता बन गये बस, खलास। वहाँ गुरू आदि भी नहीं करते। यहाँ मनुष्य मत लेते हैं गुरू की। तो युक्ति से समझाना है हम हैं राजयोगी। हठयोगी कभी राजयोग सिखला न सकें। वे हैं ही निवृत्ति मार्ग वाले। तीर्थों पर प्रवृत्ति मार्ग वालों को ही जाना है।

तुम बच्चों को कोई भी बात में मूँझना नहीं है। यह ड्रामा बना बनाया है जो रिपीट होता रहता है। तुम्हारी सर्विस भी कल्प पहले मिसल होती है। ड्रामा ही तुमको पुरुषार्थ कराते हैं। वह भी तुम करते हो कल्प पहले मिसल। पुरुषार्थ वालों की चलन से तुम समझ सकते हो, तब तो प्रदर्शनी में ग्रुप देखकर गाइड दिया जाता है ताकि अच्छी रीति समझा सके। पढ़ाने वाला बाप तो अच्छी रीति जानते हैं। कितनी विशाल बेहद की बुद्धि बनाते हैं। तुमको नशा रहना चाहिए कि हम किसके बच्चे हैं। भगवान हमको पढ़ाते हैं। कोई नहीं पढ़ सकते तो भाग जाते हैं। भगवान भी समझते हैं यह हमारा बच्चा नहीं है। तुम देखते हो भगवान के बच्चे पढ़ते थे फिर भाग गये फिर कुछ समझ में आ जाता है तो फिर भी पढ़ने लग जाते हैं। फिर योग में अच्छी रीति रहें तो ऊंच पद पा सकते हैं। समझेंगे बरोबर हमने टाइम बहुत वेस्ट किया जो ऐसा स्कूल छोड़ दिया। अब तो जरूर बाप से वर्सा लेंगे। बाप को याद करते-करते अथवा बाबा-बाबा कह रोमांच खड़े हो जाने चाहिए। बाबा हमको ऊंच पद प्राप्त कराते हैं। हम कितने भाग्यशाली हैं। घड़ी-घड़ी बाबा की याद रहे, डायरेक्शन पर चलता रहे तो बहुत उन्नति हो सकती है। फिर उनको सभी बहुत रिगॉर्ड देंगे। बाबा कहते - पढ़े आगे अनपढ़े भरी ढोयेंगे। देह-अभिमान वाले को दैवी गुणों की धारणा हो न सके। तुम्हारा चेहरा फर्स्ट-क्लास होना चाहिए। कहते हैं अतीन्द्रिय सुख उन्हों से पूछो जिन्हों को भगवान पढ़ाते हैं। कितना पढ़ाई पर अटेन्शन देना चाहिए और श्रीमत पर चलना चाहिए। तुम्हारे योग की ताकत से विश्व भी पवित्र बन जाता है। तुम योग से विश्व को पवित्र बनाते हो। कमाल है। गोवरधन पहाड़ को अंगुली पर उठाना है। इस छी-छी दुनिया को जिन्होंने पवित्र बनाया - यह उनकी निशानी है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सत्य ज्ञान को बुद्धि में धारण करने के लिए बुद्धि रूपी बर्तन को स़ाफ स्वच्छ बनाना है। व्यर्थ बातों को बुद्धि से निकाल देना है।

2) दैवी गुणों की धारणा और पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन दे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है। सदा इसी नशे में रहना है कि हम भगवान के बच्चे हैं, वही हमको पढ़ाते हैं।

वरदान:-निश्चय के फाउन्डेशन द्वारा सम्पूर्णता तक पहुंचने वाले निश्चयबुद्धि, निश्चिंत भव
निश्चय इस ब्राह्मण जीवन की सम्पन्नता का फाउन्डेशन है और यह फाउन्डेशन मजबूत है तो सहज और तीव्रगति से सम्पूर्णता तक पहुंचना निश्चित है। जो यथार्थ निश्चयबुद्धि हैं वह सदा निश्चिंत रहते हैं। यथार्थ निश्चय है अपने आत्म-स्वरूप को जानना, मानना और उसी प्रमाण चलना और बाप जो है जैसा है, जिस रूप में पार्ट बजा रहे हैं उसे यथार्थ जानना। ऐसे निश्चयबुद्धि विजयी होते हैं।
स्लोगन:-अपने समय को, सुखों को, प्राप्ति की इच्छा को सर्व के प्रति दान करने वाले ही महादानी हैं।
अव्यक्ति साइलेन्स द्वारा डबल लाइट फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो

जैसे शुरू-शुरू में अभ्यास करते थे - चल रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसे जो दूसरे समझते कि यह कोई लाइट जा रही है, उनको शरीर दिखाई नहीं देता था, इसी अभ्यास से हर प्रकार के पेपर में पास हुए। तो अभी जबकि समय बहुत खराब आ रहा है तो डबल लाइट रहने का अभ्यास बढ़ाओ। दूसरों को सदैव आपका लाइट रूप दिखाई दे - यही सेफ्टी है। अन्दर आवे और लाइट का किला देखे।                                                                                                                                                                           कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश।                                                                         संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/xolZHnQRBWQ?

न्यूज़ सोर्स : madhuban