मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है।                                सेवा के साथ देह में रहते विदेही अवस्था का अनुभव बढ़ाओ

आज बापदादा अपने चारों ओर के बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं क्योंकि बाप जानते हैं कि मेरा एक-एक बच्चा चाहे लास्ट पुरुषार्थी भी है फिर भी विश्व में सबसे बड़े ते बड़े भाग्यवान है क्योंकि भाग्य विधाता बाप को जान, पहचान भाग्य विधाता के डायरेक्ट बच्चे बन गये। ऐसा भाग्य सारे कल्प में किसी आत्मा का न है, न हो सकता है। साथ-साथ सारे विश्व में सबसे सम्पत्तिवान वा धनवान और कोई हो नहीं सकता। चाहे कितना भी पदमपति हो लेकिन आप बच्चों के खजानों से कोई की भी तुलना नहीं है क्योंकि बच्चों के हर कदम में पदमों की कमाई है। सारे दिन में हर रोज़ चाहे एक दो कदम भी बाप की याद में रहे वा कदम उठाया, तो हर कदम में पदम... तो सारे दिन में कितने पदम जमा हुए? ऐसा कोई होगा जो एक दिन में पदमों की कमाई करे! इसलिए बापदादा कहते हैं अगर भाग्यवान देखना हो वा रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड आत्मा देखनी हो तो बाप के बच्चों को देखो।

आप बच्चों के पास सिर्फ एक स्थूल धन का खजाना नहीं, वो तो सिर्फ धन के साहूकार हैं और आप बच्चे कितने खजानों से भरपूर हैं! खजानों की लिस्ट जानते हो ना? यह स्थूल धन तो कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन आपके पास जो ज्ञान का खजाना, शक्तियों का खजाना, सर्व गुणों का खजाना, खुशी का खजाना और सर्व को सुख-शान्ति का रास्ता बताने से जो दुआओं का खजाना मिलता है, यह अविनाशी खजाने सिवाए परमात्म बच्चों के अविनाशी किसके पास नहीं हैं। तो बापदादा को ऐसे खजानों के मालिक बच्चों पर कितना रूहानी नाज़ है। बापदादा सदा बच्चों को ऐसे सम्पन्न देख यही गीत गाते वाह बच्चे वाह! आपको भी अपने पर इतना रूहानी नाज़ अर्थात् नशा है ना! हाथ की ताली बजा सकते हो। (सभी ने तालियाँ बजाई) दोनों हाथ को क्यों तकलीफ देते हो, एक हाथ की बजाओ। एक हाथ की ताली बजाना आता है ना! ब्राह्मणों का सब कुछ निराला है। ब्राह्मण शान्त पसन्द हैं इसलिए ताली भी शान्ति की ठीक है। तो नशा तो सभी को सदा है भी और आगे भी रहेगा। निश्चित है।

बापदादा समय के परिवर्तन की तीव्र रफ्तार को देख बच्चों के पुरुषार्थ की रफ्तार को भी देखते रहते हैं। बापदादा हर एक बच्चे को जीवनमुक्त स्थिति में सदा देखने चाहते हैं। आप सबका यह चैलेन्ज है कि बाप से मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा आकर लो। लेकिन आपको तो मुक्ति वा जीवनमुक्ति का वर्सा मिल गया है ना? या नहीं मिला है? (मिला है) सतयुग में या मुक्तिधाम में मुक्ति व जीवनमुक्ति का अनुभव नहीं कर सकेंगे। मुक्ति-जीवनमुक्ति के वर्से का अनुभव अभी संगम पर ही करना है। जीवन में रहते, समय नाज़ुक होते, परिस्थितियाँ, समस्यायें, वायुमण्डल डबल दूषित होते हुए भी इन सब प्रभाव से मुक्त, जीवन में रहते इन सर्व भिन्न-भिन्न बन्धनों से मुक्त एक भी सूक्ष्म बन्धन नहीं हो। ऐसे जीवन मुक्त बने हो? वा अन्त में बनेंगे? अब बनेंगे या अन्त में बनेंगे? जो समझते हैं अन्त में बनने के बजाए अभी बनना है, वा बने हैं या बनना ही है, वह हाथ उठाओ। (सभी ने हाथ उठाया) दोनों में मिक्स हाथ उठा रहे हैं, चतुर हैं। भले चतुराई करो। लेकिन बापदादा अभी से स्पष्ट सुना रहे हैं, अटेन्शन प्लीज़। बाप को हर एक ब्राह्मण बच्चे को बन्धनमुक्त, जीवनमुक्त बनाना ही है। चाहे किसी भी विधि से लेकिन बनाना जरूर है। जानते हो ना कि विधियाँ क्या हैं! इतने तो चतुर हो ना! तो बनना तो आपको पड़ेगा ही। चाहे चाहो चाहे नहीं चाहो, बनना तो पड़ेगा ही। फिर क्या करेंगे? (अभी से बनेंगे) आपके मुख में गुलाबजामुन। सबके मुख में गुलाबजामुन आ गया ना। लेकिन यह गुलाबजामुन है - अभी बन्धनमुक्त बनने का। ऐसे नहीं गुलाबजामुन खा जाओ।

हॉल की शोभा बहुत अच्छी है। एकदम माला लगती है। यहाँ से आकर देखो तो ऐसे माला लगती है। यह कुर्सिर्यों वालों की माला तैयार हो गई है। अच्छा है। कारणे-अकारणें जैसे अभी कुर्सी ली है ना, ऐसे ही जब बापदादा फाइनल समय प्रमाण सीटी बजायेंगे कि जीवनमुक्ति की कुर्सी पर बैठ जाओ तो भी बैठेंगे या अभी कुर्सी पर बैठे हैं? ऐसे नहीं कि धरनी पर बैठे हुए कुर्सी नहीं लेंगे, पहले आप। धरनी पर बैठना - यह है तपस्या की निशानी। तन्दुरूस्ती की निशानी है। हेल्थ भी है, तपस्या द्वारा खजानों की वेल्थ भी है तो जहाँ हेल्थ है, वेल्थ है वहाँ हैपी तो है ही। तो अच्छा है - हेल्दी हो, वेल्दी हो।

तो बापदादा आज देख रहे थे कि बच्चों की तीन प्रकार की स्टेजेस हैं। एक हैं - पुरुषार्थी, उसमें पुरुषार्थी भी हैं और तीव्र पुरुषार्थी भी हैं। दूसरे हैं - जो पुरुषार्थ की प्रालब्ध जीवनमुक्त अवस्था की स्टेज में अनुभव कर रहे हैं। लेकिन लास्ट की सम्पूर्ण स्टेज है - देह में होते भी विदेही अवस्था का अनुभव। तो तीन स्टेज देखी। पुरुषार्थ की स्टेज में ज्यादा देखे। प्रालब्ध जीवनमुक्त की, प्रालब्ध यह नहीं कि सेन्टर के निमित्त बनने की वा स्पीकर अच्छे बनने की वा ड्रामा अनुसार अलग-अलग विशेष सेवा के निमित्त बनने की... यह प्रालब्ध नहीं है, यह तो लिफ्ट है और आगे बढ़ने की, सर्व द्वारा दुआयें लेने की लेकिन प्रालब्ध है जीवनमुक्त की। कोई बन्धन नहीं हो। आप लोग एक चित्र दिखाते हो ना! साधारण अज्ञानी आत्मा को कितनी रस्सियों से बंधा हुआ दिखाते हो। वह है अज्ञानी आत्मा के लिए लोहे की जंजीर। मोटे-मोटे बंधन हैं। लेकिन ज्ञानी तू आत्मा बच्चों के बहुत महीन और आकर्षण करने वाले धागे हैं। लोहे की जंजीर अभी नहीं है, जो दिखाई दे देवे। बहुत महीन भी है, रॉयल भी है। पर्सनाल्टी फील करने वाले भी हैं, लेकिन वह धागे देखने में नहीं आते, अपनी अच्छाई महसूस होती है। अच्छाई है नहीं लेकिन महसूस ऐसे होती है कि हम बहुत अच्छे हैं। हम बहुत आगे बढ़ रहे हैं। तो बापदादा देख रहे थे - यह जीवन-बन्ध के धागे मैजारिटी में हैं। चाहे एक हो, चाहे आधा हो लेकिन जीवनमुक्त बहुत-बहुत थोड़े देखे। तो बापदादा देख रहे थे कि हिसाब के अनुसार यह सेकेण्ड स्टेज है जीवनमुक्त, लास्ट स्टेज तो है - देह से न्यारे विदेही पन की। उस स्टेज और जो स्टेज सुनाई उसके लिए और बहुत-बहुत-बहुत अटेन्शन चाहिए। सभी बच्चे पूछते हैं 99 आयेगा क्या होगा? क्या करें? क्या करें, क्या नहीं करें?

बापदादा कहते हैं 99 के चक्कर को छोड़ो। अभी से विदेही स्थिति का बहुत अनुभव चाहिए। जो भी परिस्थितियां आ रही हैं और आने वाली हैं उसमें विदेही स्थिति का अभ्यास बहुत चाहिए इसलिए और सभी बातों को छोड़ यह तो नहीं होगा, यह तो नहीं होगा। क्या होगा, इस क्वेश्चन को छोड़ दो। विदेही अभ्यास वाले बच्चों को कोई भी परिस्थिति वा कोई भी हलचल प्रभाव नहीं डाल सकती। चाहे प्रकृति के पांचों ही तत्व अच्छी तरह से हिलाने की कोशिश करेंगे परन्तु विदेही अवस्था की अभ्यासी आत्मा बिल्कुल ऐसा अचल-अडोल पास विद ऑनर होगा जो सब बातें पास हो जायेंगी लेकिन वह ब्रह्मा बाप के समान पास विद ऑनर का सबूत रहेगा। बापदादा समय प्रति समय इशारे देते भी हैं और देते रहेंगे। आप सोचते भी हो, प्लैन बनाते भी हो, बनाओ। भले सोचो लेकिन क्या होगा!... उस आश्चर्यवत होकर नहीं। विदेही, साक्षी बन सोचो लेकिन सोचा, प्लैन बनाया और सेकेण्ड में प्लेन स्थिति बनाते चलो। अभी आवश्यकता स्थिति की है। यह विदेही स्थिति परिस्थिति को बहुत सहज पार कर लेगी। जैसे बादल आये, चले गये। और विदेही, अचल-अडोल हो खेल देख रहे हैं। अभी लास्ट समय को सोचते हो लेकिन लास्ट स्थिति को सोचो।

चारों ओर की सेवाओं के समाचार बापदादा सुनते रहते हैं और दिल से सभी अथक सेवाधारियों को मुबारक भी देते हैं, सेवा बहुत अच्छे उमंग-उत्साह से कर रहे हैं और आगे भी करते रहो लेकिन सेवा और स्थिति का बैलेन्स थोड़ा सा कभी इस तरफ झुक जाता है, कभी उस तरफ इसलिए सेवा खूब करो, बापदादा सेवा के लिए मना नहीं करते और जोर-शोर से करो लेकिन सेवा और स्थिति का सदा बैलेन्स रखते चलो। स्थिति बनाने में थोड़ी मेहनत लगती है और सेवा तो सहज हो जाती है इसलिए सेवा का बल थोड़ा स्थिति से ऊंचा हो जाता है। बैलेन्स रखो और बापदादा की, सर्व सेवा करने वाले आत्माओं की, संबंध-सम्पर्क में आने वाले ब्राह्मण परिवार की ब्लैसिंग लेते चलो। यह दुआओं का खाता बहुत जमा करो। अभी की दुआओं का खाता आप आत्माओं में इतना सम्पन्न हो जाए जो द्वापर से आपके चित्रों द्वारा सभी को दुआयें मिलती रहेंगी। अनेक जन्म में दुआयें देनी हैं लेकिन जमा एक जन्म में करनी हैं इसलिए क्या करेंगे? स्थिति को सदा आगे रख सेवा में आगे बढ़ते चलो। क्या होगा, यह नहीं सोचो। ब्राह्मण आत्माओं के लिए अच्छा है, अच्छा ही होना है। लेकिन बैलेन्स वालों के लिए सदा अच्छा है। बैलेन्स कम तो कभी अच्छा, कभी थोड़ा अच्छा। सुना क्या करना है? क्वेश्चन मार्क सोचने के हिसाब से आश्चर्यवत होके सोचने को फिनिश करो, यह तो नहीं होगा, यह तो नहीं होगा...। वह स्थिति को नीचे ऊपर करता है। समझा।

अच्छा - विदेश का ग्रुप उठो। विदेश में भी एक विशेषता बापदादा को बहुत अच्छी लगती है। कौन सी? सभी को उमंग-उत्साह बहुत है कि विदेश के कोने-कोने में बाप का स्थान बनायें और बनाया भी है। इस वर्ष कितने नये स्थान बनाये हैं? (12-15) अच्छा उमंग है कि सन्देश चारों ओर मिल जाए। यह लक्ष्य बहुत अच्छा है। जहाँ जाते हैं वहाँ कोई न कोई को निमित्त बनाने की सेवा का लक्ष्य अच्छा रखते हैं। यह विशेषता है। हर एक जितना हो सकता है उतना अपने आपको सेवा के निमित्त बनाने की ऑफर भी करते हैं और प्रैक्टिकल में भी करते हैं। यही सोचते हैं कि घर-घर में बाबा का घर हो, यह उमंग-उत्साह बहुत अच्छा है इसलिए इस उमंग-उत्साह के लिए बापदादा और एडवांस में आगे बढ़ने की मुबारक दे रहे हैं। बापदादा विदेशी अर्थात् विश्व कल्याण करने के निमित्त बनने वाले बच्चों को यही कहते हैं कि अब सेवा और विदेही अवस्था में नम्बरवन विदेशी बच्चों को बनना ही है। बनना है? कब? 99 में या 2 हजार में बनना है? कब नहीं, अब। अव्यक्त बाप की पालना का प्रत्यक्ष सबूत देना है। जैसे ब्रह्मा बाप अव्यक्त बन विदेही स्थिति द्वारा कर्मातीत बनें, तो अव्यक्त ब्रह्मा की विशेष पालना के पात्र हो इसलिए अव्यक्त पालना का बाप को रेसपाण्ड देना - विदेही बनने का। सेवा और स्थिति के बैलेन्स का। ठीक है, मंजूर है? करना ही है। बापदादा यह नहीं सोचते - देखेंगे, सोचेंगे। नहीं। करना ही है। अपनी भाषा में बोलो - करना ही है। जो भी सभी टी.वी. में भी देख रहे हैं वह सभी भी ऐसे बोल रहे हैं ना? बापदादा देख रहे हैं। चाहे भारत में देख रहे हैं, चाहे फारेन में देख रहे हैं लेकिन सभी को उमंग आ रहा है हम करेंगे, हम करेंगे। हमें करना ही है। एडवांस में मुबारक हो। अच्छा।

(विदेश के बहुत से भाई बहिनें पहली बार आये हैं, रिट्रीट में आये हुए गेस्ट भी बैठे हैं)

बहुत अच्छा - सब नम्बरवन लेने वाले हैं। बहुत अच्छा, मेहमान बनकर आये और बाप के बच्चे अधिकारी बन गये। अधिकारी हो गये ना? अधिकारी हैं? बहुत अच्छा, अभी आगे बढ़ते रहना।

हॉस्पिटल के ट्रस्टियों से:- सभी डबल ट्रस्टी हो। एक प्रवृत्ति में रहते ट्रस्टी और दूसरा हॉस्पिटल में रहते ट्रस्टी। हॉस्पिटल के भी ट्रस्टी तो जीवन में भी ट्रस्टी। अच्छा है। हॉस्पिटल आत्माओं की भी सेवा कर रही है और शरीर की भी सेवा कर रही है। तो डबल सेवा हो रही है इसलिए जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हो उन्हों को भी डबल दुआयें मिलती रहती हैं। बहुत अच्छे प्लैन बनाये हैं ना। सेवा का चांस लेना यह है चांसलर बनना। वह चांसलर नहीं, रूहानी युनिवर्सिटी के चांसलर। अच्छा है।

(आस्ट्रेलिया वाले ओलम्पिक गेम के समय बड़ा प्रोग्राम करने का प्लैन बना रहे हैं, बापदादा को प्लैन दिखाया) जहाँ उमंग-उत्साह है और सबकी एकमत है। तो जहाँ एकमत है और उमंग-उत्साह है तो सफलता है ही है। अच्छा है भले करो। फारेन में नाम बाला करो। बहुत अच्छा।

जो भी सभी भारत से आये हैं, तो भारत वालों को तो विशेष नशा है कि बापदादा अवतरित भी भारत में होते हैं और साथ-साथ अगर मिलने आते हैं तो भी भारत में ही आते हैं। तो डबल नशा है ना! भारत ने ही विदेश में सन्देश दिया, तो भारत ने विदेश में भी अपने परिवार को ढूंढ एक परिवार बना दियाइसलिए भारतवासी बच्चों का सदा महत्व है और भारत का महत्व बढ़ना है तो भारतवासियों का महत्व तो है ही इसीलिए जो भी नये पुराने बच्चे आये हैं वह बहुत प्यार से पहुंचे हैं, बापदादा सभी बच्चों का स्नेह और चारों ओर सेवा के सहयोग को देख खुश हैं और बच्चे भी सदा खुश हैं। खुश रहते हो ना? कभी खुशी कम नहीं करना। यह स्पेशल बाप का खजाना है इसलिए खुशी कभी नहीं छोड़ना। सदा खुश। अच्छा।

चारों ओर के सर्व श्रेष्ठ भाग्यवान, सर्व श्रेष्ठ खजानों के मालिक, सदा सेवा और स्थिति का बैलेन्स रखने वाले ज्ञानी तू आत्मा, सर्व शक्ति सम्पन्न आत्मायें, सदा बंधनमुक्त जीवनमुक्त आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

वरदान:-परमात्म कार्य में सहयोगी बन सर्व का सहयोग प्राप्त करने वाले सफलता स्वरूप भव
जहाँ सर्व का उमंग-उत्साह है, वहाँ सफलता स्वयं समीप आकर गले की माला बन जाती है। कोई भी विशाल कार्य में हर एक के सहयोग की अंगुली चाहिए। सेवा का चांस हर एक को है, कोई भी बहाना नहीं दे सकता कि मैं नहीं कर सकता, समय नहीं है। उठते-बैठते 10-10 मिनट भी सेवा करो। तबियत ठीक नहीं है तो घर बैठे करो। मन्सा से, सुख की वृत्ति, सुखमय स्थिति से सुखमय संसार बनाओ। परमात्म कार्य में सहयोगी बनो तो सर्व का सहयोग मिलेगा।
स्लोगन:-प्रकृतिपति की सीट पर सेट होकर रहो तो परिस्थितियों में अपसेट नहीं होंगे।                                                     कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश।                                                   संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/akhnuBq6tgw?

न्यूज़ सोर्स : madhuban/ mp1news Bhopal