काठमांडू । नेपाल में 2022 के केंद्रीय चुनाव के बाद ये तीसरी बार सरकार बदली है, हर बार प्रचंड खुद को प्रधानमंत्री बनाए रखने में सफल हुए हैं। अब फिर से कम्युनिस्ट पार्टियां एक साथ आई हैं, बताया जा रहा हैं कि नेपाल की राजनीति में आया बदलाव भारत और चीन के लिए समीकरण बदलेगा। 
नए समीकरणों में माओवादी नेता और प्रधानमंत्री पुष्प दहाल कमल प्रचंड की पार्टी माओवादी सेंटर ने पूर्व पीएम केपी ओली की पार्टी एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (यूएमएल) के साथ हाथ मिला लिया है। इसके साथ ही नेपाल की राजनीति में एक बार फिर कम्युनिस्ट पार्टियां एक साथ आ गई हैं। इसके पहले बीते साल फरवरी में प्रचंड और ओली की पार्टी ने गठबंधन तोड़ लिया था। नेपाल में इस नई राजनीतिक करवट को चीन के हित में देखा जा रहा है। वहीं भारत के लिए चिंता जाहिर की जा रही है। आखिर नेपाल की इस नई हलचल का भारत पर क्या असर होगा, दरअसल नेपाल की राजनीति में हुए बदलाव का मतलब है कि नेपाली संसद में सबसे बड़ी पार्टी नेपाली कांग्रेस अब विपक्ष में बैठेगी। इसका भारत पर क्या असर होगा, यह समझने से पहले जरा नेपाल की राजनीति को समझना होगा। नेपाली कांग्रेस नेपाल की पुरानी राजनीतिक पार्टी है। नेपाल की सत्ता में इसका होना भारत के लिए अच्छा समझा जाता रहा है। वहीं, नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टियों का एक साथ आना चीन के लिए अच्छा माना जाता है। चीन की कोशिश होती है कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों में एकजुटता बनी रहे। सूत्रों ने बताया कि प्रचंड और ओली के बीच मेक-अप कराने के पीछे चीन काफी दिनों से लगा हुआ था।
खबरों से पता चलता है कि शेर बहादुर देउबा की नेपाली कांग्रेस और प्रचंड की माओवादी सेंटर के बीच पिछले कुछ हफ्तों से ठीक नहीं चल रहा था। हालांकि, इतनी जल्दी दोनों अलग हो जाएंगे ये उम्मीद नहीं थी। बीते सप्ताह नेपाली कांग्रेस की जनरल कमेटी की बैठक हुई थी, जिसमें पार्टी सदस्यों ने अकेले चुनाव लड़ने की बात कही थी। यही नहीं, बैठक में माओवादी युद्ध अत्याचारों की याद भी दिलाई गई। नेपाली कांग्रेस के कई नेताओं का ये भी मानना है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के चलते उसे माओवादियों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। 
विश्लेषकों का मानना है कि कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ आने से नेपाल की विदेश नीति नहीं बदलेगी लेकिन नई दिल्ली और बीजिंग में उसके प्रति धारणा जरूर बदलेगी। नेपाली कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने और कम्युनिस्टों के वर्चस्व से भारत का चिंतित होना लाजमी है। कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ आने से चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) नेपाल की प्राथमिकता में आ सकता है। इसके पहले नेपाली कांग्रेस और माओवादी सेंटर के साथ वाली सरकार पर ये आरोप लगता रहा था कि वे चीन के प्रोजेक्ट को जानबूझकर आगे नहीं बढ़ने दे रही है।