मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है। होली शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित होना अर्थात् बाप समान बनना

आज बापदादा अपने होलीएस्ट, हाइएस्ट और रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड बच्चों को चारों तरफ देख रहे हैं। चाहे साकार में सम्मुख हैं, चाहे दूर बैठे दिल से समीप हैं - चारों ओर के बच्चों को देख हर्षित होते रहते हैं। हर एक बच्चा ऐसा होलीएस्ट बनता है जो सारे कल्प में और कोई भी ऐसा महान पवित्र आत्मा न बना है, न बन सकते हैं। समय प्रति समय धर्म आत्मायें, महान आत्मायें, पवित्र रहे हैं लेकिन उन्हों की पवित्रता और आपकी पवित्रता में अन्तर है। इस समय आप पवित्र बनते हो, इसी पवित्रता की प्राप्ति वा प्रालब्ध भविष्य अनेक जन्म तक तन-मन-धन, सम्बन्ध, सम्पर्क और साथ में आत्मा भी पवित्र है। शरीर भी पवित्र हो और आत्मा भी पवित्र हो - ऐसी पवित्रता आप आत्मायें प्राप्त करती हो। मन-वचन-कर्म तीनों ही पवित्र बनने से ऐसी प्रालब्ध प्राप्त होती है। तो ऐसे होलीएस्ट आत्मायें हो। अपने को ऐसे श्रेष्ठ होलीएस्ट आत्मायें समझते हो? अभी बने हैं वा बन रहे हैं? बनना सहज है या थोड़ा-थोड़ा मुश्किल है? लेकिन कल्प पहले भी बने हैं और अब भी बनना ही है। पक्का या थोड़ा-थोड़ा चलता है? नहीं। स्वप्न मात्र भी अपवित्रता समाप्त होनी ही है, इतना निश्चय है ना कि आज बन रहे हैं और कल बन ही जायेंगे। तो होलीएस्ट भी हैं और हाइएस्ट भी हैं।

ऊंचे ते ऊंचे बाप के बच्चे ऊंचे ते ऊंचे हैं। हाइएस्ट बनते हो तब पूजे जाते हो। चाहे आजकल की हाइएस्ट आत्मायें, सकामी राजे थे, अब तो नहीं हैं। चाहे प्रेजीडेंट हो, चाहे प्राइम मिनिस्टर हो लेकिन वह पूज्य नहीं बनते हैं। आप पूज्य बनने वाली आत्माओं के आगे पुजारी बन नमन और पूजन करते हैं। अभी भी स्व-राज्य अधिकारी बनते हो और भविष्य में भी राजाओं के राजे बनते हो। तो ऐसा हाइएस्ट पद प्राप्त करते हो। साथ में रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड हो। आपका टाइटल ही है पदमापदमपति। और ऐसा खजाना है जो अरबपति, खरबपति, अरब-खरब से भी ऐसा खजाना प्राप्त नहीं कर सकते। आप श्रेष्ठ आत्मायें बाप द्वारा ऐसा भाग्य बना रहे हो जो अनुभव करते हो और वर्णन भी करते हो कि हमारे कदम में पदम हैं। कदम में पदम हैं या सौ हैं, हजार हैं? ऐसा कोई बड़े से बड़ा मिल्यूनर भी इतनी कमाई नहीं कर सकता। कदम में कितना टाइम लगेगा? कदम उठाओ, कितना समय लगता है? सेकेण्ड। चलो दो सेकेण्ड कह दो। अगर दो सेकेण्ड भी कहो तो दो सेकेण्ड में पदम, तो सारे दिन में कितने पदम हुए? हिसाब करो। ऐसा कोई मिल्यूनर है जो एक दिन में इतनी कमाई करे? ऐसा कोई होगा? तो रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड हो ना! और आपका ऐसा खजाना है जो आग भी नहीं जला सकती, पानी डुबो नहीं सकता, चोर लूट नहीं सकता, राजा भी खा नहीं सकते। ऐसा खजाना इस पुरुषोत्तम संगमयुग में ही प्राप्त करते हो। तो अपना ऐसा स्वमान स्मृति में रहता है? हाँ या ना? पीछे वाले हाथ हिला रहे हैं। पीछे वाले आराम से बैठे हो ना? रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड हो तो आराम ही आराम है। बड़े से बड़ी युनिवर्सिटी में भी ऐसे कोचों पर पढ़ाई पढ़ने के लिए नहीं बैठते हैं, लेकिन आप बेगर टू प्रिन्स हो। बेगर भी हो और प्रिन्स भी हो। सर्व त्याग माना बेगर। सर्व प्राप्तियां अर्थात् प्रिन्स। बिना त्याग के इतना बड़ा भाग्य नहीं मिलता है। त्याग का ही भाग्य मिला है। तन-मन-धन, सम्बन्ध सभी त्याग किया अर्थात् परिवर्तन किया। तन मेरा के बजाए तेरा किया। मन, धन, सम्बन्ध एक शब्द परिवर्तन होने से मेरे के बजाए तेरा किया, है एक शब्द का परिवर्तन लेकिन इसी त्याग से भाग्य के अधिकारी बन गये। तो भाग्य के आगे यह त्याग क्या है? छोटी बात है या थोड़ी बड़ी भी है? कभी-कभी बड़ी हो जाती है। तेरा कहना माना बड़ी बात को छोटा करना और मेरा कहना माना छोटी बात को बड़ी करना। क्या भी हो जाए, 100 हिमालय से भी बड़ी समस्या आ जाए लेकिन तेरा कहना और पहाड़ को रूई बनाना, राई भी नहीं, रुई। जो रूई सेकेण्ड में उड़ जाए। सिर्फ तेरा कहना नहीं मानना, सिर्फ मानना भी नहीं चलना। एक शब्द का परिवर्तन सहज ही है ना! और फ़ायदा ही है, नुकसान तो है नहीं। तेरा कहने से सारा बोझ बाप को दे दिया। तेरा तुम ही जानों। आप सिर्फ निमित्त-मात्र हो। इसमें फ़ायदा है ना? न्यारे और परमात्मा के प्यारे बन गये। जो परमात्मा के प्यारे बनते हैं वह विश्व के प्यारे बनते हैं। सिर्फ भविष्य प्राप्ति नहीं है, वर्तमान भी है। एक सेकेण्ड में अनुभव किया भी है और करके देखो। कोई भी बात आ जाए तेरा कह दो, मान जाओ और तेरा समझकर करो तो देखो बोझ हल्का होता है या नहीं होता है। अनुभव है ना? सभी अनुभवी बैठे हो ना! सिर्फ क्या होता है, मेरा मेरा कहने की बहुत आदत है ना, 63 जन्मों की आदत है तो तेरा तेरा कहकर फिर मेरा कह देते हो और मेरा माना गये, फिर वह बात तो एक घण्टे में, दो घण्टे में, एक दिन में खत्म हो जाती है लेकिन जो तेरे से मेरा किया उसका फल लम्बा चलता है। बात आधे घण्टे की होगी लेकिन चाहे पश्चाताप के रूप में, चाहे परिवर्तन करने के लक्ष्य से, वह बात बार-बार स्मृति में आती रहती है इसलिए बाप सभी बच्चों को कहते हैं अगर “मेरा शब्द'' से प्यार है, आदत है, संस्कार है, कहना ही है तो मेरा बाबा कहो। आदत से मजबूर होते हैं ना। तो जब भी मेरा-मेरा आवे तो मेरा बाबा कहकर खत्म कर दो। अनेक मेरे को एक मेरा बाबा में समा दो।

रशिया वाले एक डॉल लाते हैं ना, तो डॉल में डॉल... एक डॉल हो जाती है। ऐसे आप भी एक मेरा बाबा में अनेक मेरा समा दो, खत्म। यह कर सकते हो? करते हो लेकिन कभी-कभी मेरे के विस्तार में चले जाते हो। अभी कभी-कभी है, सदा मेरा, तेरा हो जाए उसमें नम्बरवार हैं। नम्बरवन भी हैं, ए वन भी हैं लेकिन फिर भी पीछे के नम्बर भी हैं। तो होली मनाने आये हो ना? तो यही मंत्र याद करो मैं बाप की हो ली, बन गये। परमात्म परिवार की हो ली अर्थात् हो गई। तो ऐसी होली मनाई? अभी क्या करना है? अभी जलाना है या जला दिया? इसमें हाँ नहीं कहते, सोच रहे हैं?

देखो, भक्ति मार्ग में जो भी उत्सव मनाते हैं, यादगार हैं लेकिन कुछ-कुछ अर्थ से बने हुए हैं। पहले जलाना है फिर मनाना है। पहले मनाना फिर जलाना नहीं। पहले भस्म करो, अशुद्धि को, कमजोरी को, बुराई को जलाओ फिर मनाओ। तो आपने तो बहुत पहले जला दिया ना या अभी भी थोड़ा सा दुपट्टे का कोना रह गया है? पाण्डवों के बुशर्ट या जो चोला पहनते हैं उसका कुछ कोना रह गया हो? साड़ी का कोना तो नहीं रह गया? वास्तव में देखो आत्मिक मनाना और उस मनाने से शक्ति, अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना, वह तभी कर सकते हैं जब पहले जलाया है। मनोरंजन के रूप से मनाना वह अलग चीज़ है। वह तो संगमयुग है मौजों का युग, इसलिए मनोरंजन की रीति से भी मनाते हो और मनाओ, खूब मनाओ। लेकिन परमात्म रंग में रंग जाना अर्थात् बाप समान बन जाना। यह है रंग में रंग जाना। जैसे बाप अशरीरी है, अव्यक्त है वैसे अशरीरी पन का अनुभव करना वा अव्यक्त फरिश्ते पन का अनुभव करना - यह है रंग में रंग जाना। कर्म करो लेकिन अव्यक्त फरिश्ता बनके काम करो। अशरीरीपन की स्थिति का जब चाहो तब अनुभव करो। ऐसे मन और बुद्धि आपके कन्ट्रोल में हो। आर्डर करो - अशरीरी बन जाओ। आर्डर किया और हुआ। फरिश्ते बन जायें। जैसे मन को जहाँ जिस स्थिति में स्थित करने चाहो वहाँ सेकेण्ड में स्थित हो जाओ। ऐसे नहीं ज्यादा टाइम नहीं लगा, 5 सेकेण्ड लग गये, 2 सेकेण्ड लग गये। आर्डर में तो नहीं हुआ, कन्ट्रोल में तो नहीं रहा। कैसी भी परिस्थिति हो, हलचल हो लेकिन हलचल में अचल हो जाओ। ऐसे कन्ट्रोलिंग पावर है? या सोचते-सोचते अशरीरी हो जाऊं, अशरीरी हो जाऊं, उसमें ही टाइम चला जायेगा? कई बच्चे बहुत भिन्न-भिन्न पोज़ बदलते रहते, बाप देखते रहते। सोचते हैं अशरीरी बनें फिर सोचते हैं अशरीरी माना आत्मा रूप में स्थित होना, हाँ मैं हूँ तो आत्मा, शरीर तो हूँ ही नहीं, आत्मा ही हूँ। मैं आई ही आत्मा थी, बनना भी आत्मा है... अभी इस सोच में अशरीरी हुए या अशरीरी बनने की युद्ध की? आपने मन को आर्डर किया सेकेण्ड में अशरीरी हो जाओ, यह तो नहीं कहा सोचो - अशरीरी क्या है? कब बनेंगे, कैसे बनेंगे? आर्डर तो नहीं माना ना! कन्ट्रोलिंग पावर तो नहीं हुई ना! अभी समय प्रमाण इसी प्रैक्टिस की आवश्यकता है। अगर कन्ट्रोलिंग पावर नहीं है तो कई परिस्थितियां हलचल में ले आ सकती हैं इसलिए एक होली शब्द ही याद करो तो भी ठीक है। होली - बीती सो बीती और हो ली बाप की बन गई। और क्या बन गई? होली अर्थात् पवित्र आत्मा बन गई। एक शब्द होली याद करो तो एक होली शब्द के तीन अर्थ यूज़ करो, वर्णन नहीं करो, हाँ होली माना बीती सो बीती। हाँ बीती सो बीती है - ऐसे नहीं सोचते रहो, वर्णन करते रहो, नहीं। अर्थ स्वरूप में स्थित हो जाओ। सोचा और हुआ। ऐसे नहीं सोचा तो सोच में ही पड़े रहो। नहीं। जो सोचा वह हो गया, बन गये, स्थित हो गये।

(बापदादा ने ड्रिल कराई)

अभी समय के प्रमाण आप हर निमित्त बनी हुई, सदा याद और सेवा में रहने वाली आत्माओं को स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन का वायब्रेशन पॉवरफुल और तीव्रगति का बढ़ाना है। चारों ओर मन का दु:ख और अशान्ति, मन की परेशानियां बहुत तीव्रगति से बढ़ रही हैं। बापदादा को विश्व की आत्माओं के ऊपर रहम आता है। तो जितना तीव्रगति से दु:ख ही लहर बढ़ रही है उतना ही आप सुख दाता के बच्चे अपने मन्सा शक्ति से, मन्सा सेवा व सकाश की सेवा से, वृत्ति से चारों ओर सुख की अंचली का अनुभव कराओ। बाप को तो पुकारते ही हैं लेकिन आप पूज्य देव आत्माओं को भी किसी न किसी रूप से पुकारते रहते हैं। तो हे देव आत्मायें, पूज्य आत्मायें अपने भक्त आत्माओं को सकाश दो। साइन्स वाले भी सोचते हैं ऐसी इन्वेन्शन निकालें जो दु:ख समाप्त हो जाए, साधन सुख के साथ दु:ख भी देता है लेकिन दु:ख न हो, सिर्फ सुख की प्राप्ति हो उसका सोचते जरूर हैं। लेकिन स्वयं की आत्मा में अविनाशी सुख का अनुभव नहीं है तो दूसरों को कैसे दे सकते हैं। लेकिन आप सबके पास सुख का, शान्ति का, नि:स्वार्थ सच्चे प्यार का स्टॉक जमा है। जमा है या जितना इकट्ठा करते हो उतना खर्च हो जाता है? यह भी चेक करो जमा तो होता है लेकिन जमा के साथ-साथ खर्च भी तो नहीं हो जाता? ज्ञान के खजाने तो खर्च करने से बढ़ते हैं, कम नहीं होते। अगर बार-बार अपने ही स्वभाव-संस्कार वा माया की तरफ से आई हुई समस्याओं में अपनी शक्तियां यूज़ करते हो तो जमा का खाता कम होता है। तो चेक करो - जमा किया लेकिन खर्च भी किया बाकी एकाउण्ट कितना रहा? कमाया और खाया, ऐसा तो नहीं है? दो दिन कमाया और एक दिन इतना ही गँवाया जो जमा किया हुआ भी खर्च करना पड़ा। ऐसा एकाउण्ट तो नहीं है? ऐसे ही कमाया और खाया वा अपने प्रति ही लगाकर खत्म किया तो 21 जन्म के लिए जमा क्या किया? जमा की तो खुशी होती है लेकिन खर्च का हिसाब नहीं निकाला तो समय पर धोखा मिल जायेगा। जमा का खाता भी देखो लेकिन साथ-साथ अपने प्रति खर्च कितना किया। दूसरे को कोई गुण दिया, शक्ति दी, ज्ञान का खजाना दिया वह खर्च नहीं है, वह जमा के खाते में जमा होता है लेकिन अपने प्रति समय प्रति समय खर्च किया तो खाता खाली हो जाता है, इसीलिए अच्छे विशाल बुद्धि से चेकिंग करो। जमा का खाता बहुत लम्बा चौड़ा चाहिए। है सहज अगर हर कदम में पदम जमा करते जाओ तो जमा का एकाउण्ट बहुत बड़ा हो जायेगा। तो चेक करो कि हर कर्म व कदम ब्रह्मा बाप समान रहा? अनुभवी हो, जब कोई अच्छा कर्म करते हो तो कर्म का फल उसी समय प्रत्यक्ष रूप में खुशी, शक्ति और सफलता के कारण डबल लाइट रहते हो क्योंकि याद रहता है बाप के साथ से कर्म किया। और अगर अभी कोई विकर्म होता है तो उसका पश्चाताप बहुत लम्बा है। वैसे अभी विकर्म तो कोई होना नहीं चाहिए, वह तो टाइम अभी बीत गया, लेकिन अभी कोई व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ कर्म, व्यर्थ बोल, व्यर्थ संबंध-सम्पर्क भी न हो क्योंकि व्यर्थ संबंध-सम्पर्क भी बहुत धोखा देता है। जैसा संग वैसा रंग लग जाता है। कई बच्चे बड़े चतुर हैं कहते हैं हम तो संग नहीं करते, लेकिन वह मेरे को नहीं छोड़ते, मैं नहीं करती, वह नहीं छोड़ते। तो क्या किनारा करना नहीं आता? अगर कोई बुरी चीज़ दे तो आप लेते क्यों हो! लेने वाला नहीं लेगा तो देने वाला क्या करेगा? इसीलिए व्यर्थ सम्बन्ध और सम्पर्क भी एकाउण्ट खाली कर देता है। और उसी समय अन्दर दिल में आता भी है, दिल खाता है - यह करना नहीं चाहिए। करना नहीं चाहिए फिर भी कर लेते हैं। सुनना नहीं चाहिए लेकिन सुना दिया तो क्या करूं! लेकिन अगर पुरुषार्थी हो तो व्यर्थ कर्म भी न हो। अलबेले हो तो बात ही छोड़ो, फिर तो आराम से सो जाओ, त्रेता में आ जाना। लेकिन अगर पुरुषार्थ है तो उसी समय दिल में आता है, दिल खाता है कि यह नहीं करना चाहिए फिर भी करते हैं तो बापदादा तो कहेंगे कि ऐसे बच्चों की भी कमाल है। न चाहते भी करते रहते हैं, दिल खाता रहता है और सुनते भी रहते, करते भी रहते, तो बहुत पावरफुल आत्मायें हैं! इसलिए व्यर्थ के ऊपर भी चेकिंग अटेन्शन से करो। अच्छा।

चारों ओर की होलीएस्ट आत्मायें, सदा हाइएस्ट स्थिति में स्थित रहने वाली हाइएस्ट आत्मायें, सदा सर्व खजानों से सम्पन्न रिचेस्ट आत्मायें, सदा हर कदम में पदम जमा करने वाली, बाप समान बनने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सदा रहमदिल, क्षमा के सागर बच्चे मास्टर क्षमा करने वाली आत्मायें, विश्व के दु:खी आत्माओं को सकाश द्वारा सुख-शान्ति की अंचली देने वाली आत्मायें, हर समय अपने जमा के खाते में भरपूर रहने वाले अति तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

वरदान:-होली शब्द के अर्थ को जीवन में लाकर पुरुषार्थ की स्पीड को तेज करने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव
हो ली अर्थात् जो बात हो गई, बीत गई उसको बिल्कुल खत्म कर देना। बीती को बीती कर आगे बढ़ना यही है होली मनाना। बीती हुई बात ऐसे महसूस हो जैसे बहुत पुरानी कोई जन्म की बात है, जब ऐसी स्थिति हो जाती है तब पुरुषार्थ की स्पीड तेज होती है। तो अपनी या दूसरों की बीती हुई बातों को कभी चिन्तन में नहीं लाना, चित्त पर नहीं रखना और वर्णन तो कभी नहीं करना, तब ही तीव्र पुरुषार्थी बन सकेंगे।
स्लोगन:-मेरे पन के अनेक रिश्तों को समाप्त करना ही फरिश्ता बनना है।                                                                      कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश।                                                   संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/DbrsTLKbO30?

न्यूज़ सोर्स : madhuban/ mp1news Bhopal