भोपाल 5जनवरी/ब्रह्मकुमारीज सुख शांति भवन का छठवां वार्षिकोत्सव स्वास्थ को समर्पित

"परमचिकित्सक वैद्यनाथ द्वारा सफल चिकित्सा" राजयोग द्वारा असाध्य बीमारी पर विजय का एक चमत्कारिक अनुभव,प्रतिदिन वह मौत को हथेली पर लेकर चलते हैं और मौत उनसे हारती है,राजयोग का चमत्कार, मौत की हार,100 से ज्यादा ट्यूमर मस्तिष्क में होते हुए अभी भी वह खुशहाल जिंदगी जी रहे है।
प्रजापिता ब्रह्मकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय की स्थानीय शाखा सुख शांति भवन मेडिटेशन रिट्रीट सेंटर नीलबड़ भोपाल की छठवीं वर्षगांठ के उपलक्ष पर एक सुंदर कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें वरिष्ठ राजयोगी ब्रह्मा कुमार सुरेश सुरेंद्र भाई जी का आगमन हुआ साथ ही साथ विशेष रूप से श्री भगवान दास सबनानी विधायक भोपाल दक्षिण पश्चिम कार्यक्रम में पधारे तथा शहर के कई गणमान्य व्यक्तियों जैसे श्री तेजकुलपाल सिंह,अध्यक्ष, भोपाल चेंबर ऑफ कॉमर्स, श्री बी आर नायडू जी पूर्व ऐसीऐस म प्र, श्रीमती प्रीति सलूजा चांसलर sam यूनिवर्सिटी, डॉ राजेश गौर डीन,पीपल्स मेडिकल कॉलेज, श्री पुरुषोत्तम धीमान पी सी सी एफ, श्री जी पी माली पूर्व एडिशनल कलेक्टर भोपाल, श्रीमती सविता दीक्षित सीनियर प्रोफेसर मेनिट कार्यक्रम का हिस्सा बने। साथ ही राजयोगिनी नीता दीदी जी, रजोगिनी सविता दीदी जी, ब्रह्माकुमारी मेघा दीदी जी, डॉक्टर दिलीप नलगे जी आदि सभी ने मिलकर दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में भूमिका स्पष्ट करते हुए आदरणीय वरिष्ठ राज्यों की भरता रामकुमार जी ने बताया आज बीमारियां दिनों दिन तेजी से बढ़ती जा रही है। अनेक तरह के उपचार उपलब्ध होते हुए भी लोग किसी न किसी छोटी या बड़ी बीमारी से ग्रसित है। ऐसे समय में अक्सर देखा गया है चिकित्सक भी अपनी पूरी क्षमता अनुसार चिकित्सा देने के उपरांत यही कहते हैं मैं उपचार करता हूं, ठीक करना ऊपर वाले के हाथ में है ( We Treat,He Cures) जहां दवा काम नहीं करती वहां दुआएं काम आती है।
किसी का ज्वलंत उदाहरण इसका ज्वलंत उदाहरण राजयोगी भरता सुरेंद्र जैन जी है। आपने मल्टीपल ब्रेन ट्यूमर जैसी असाध्य बीमारी के ऊपर विजय प्राप्त की। जिनको सभी चिकित्सकों ने सितंबर 93 में ही "अवश्य मृत्यु हो जाएगी" ऐसा कहा था,वह आज भी मस्तिष्क में 100 ट्यूमर लिए जिंदा है। चिकित्सा विज्ञान के लिए यह एक बहुत बड़ा अचंभा है। यह बात हो रही है ब्रह्मा कुमार राजयोगी सुरेंद्र जी की। 1992 में उनको सर दर्द और आंखों के सामने अचानक अंधेरा आने से, उन्हें नीमच में डॉक्टर के पास ले जाया गया। वहां से उनको उदयपुर तथा अहमदाबाद जांच के लिए भेजा गया। उस समय उनके ब्रेन में 9 ट्यूमर पाए गए। इस परिस्थिति में ऑपरेशन संभव नहीं था। इसीलिए 2 महीने तक चिकित्सकों ने अलग-अलग प्रकार का इलाज किया और जवाब दिया अब कोई इलाज नहीं हो सकता। फिर ब्रह्माकुमारी संस्थान की तत्कालीन मुख्य प्रशासिका दादी प्रकाशमणि जी के कहने पर मुम्बई के सुप्रसिद्ध कैंसर विशेषज्ञ डॉ अशोक मेहता द्वारा अमेरिका के चिकित्सकों की सलाह ली गई। उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए। दर्द बढ़ता ही जा रहा था। 21 अगस्त 1993 को सीटी स्कैन किया गया जिसमें 22 ट्यूमर पाए गए। चिकित्सकों के अनुसार 1 वर्ष पूर्व ही जीवन समाप्त हो जाना था। डॉक्टर्स के द्वारा कहा गया ज्यादा से ज्यादा सितंबर 1993 तक जीवित रहेंगे। उनको रेडियोथैरेपी की सलाह दी गई जिससे उनके जीवित रहने की संभावना 6 मास तक बढ़ सकती थी। लेकिन सुरेंद्र जी ने यह सलाह नहीं मानी। उनकी आंखों से दिखना बंद हो गया, गर्दन टेढ़ी होने लगी, हाथ पांव मुड़ गए, आवाज भी निकलना बंद हो गई। लेफ्ट साइड पैरालिसिस हो गई। दो लोगों के सहारे से ही चल पाते थे। अंतिम घड़ियां गुजारने के लिए ब्रह्मा कुमारीज की मुख्य प्रशासिका दादी प्रकाशमणि जी ने ब्रह्मा कुमारीज के मुख्यालय आबू रोड स्थित शांतिवन में बुलाया। 1 फरवरी 1994 का वह दिन था जिस दिन चमत्कार हो गया। उन्होंने ब्रह्मकुमारीज के मुख्यालय माउंट आबू में रहकर ध्यान की गहन अनुभूति की एवं योग का प्रयोग कर स्वयं को ठीक करना प्रारंभ किया।उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ जैसे ब्रेन से पिघल कर कुछ निकल रहा है। उनके अंदर ईश्वरीय शक्ति का संचार हुआ और वह स्वस्थ होकर ईश्वरीय सेवाओं में संलग्न हो गए। उसके बाद ईश्वरीय शक्ति ही उनको चलाने लगी। 17 वर्षों तक उन्होंने स्वस्थ रहकर सेवाएं की।
जुलाई 2013 में ब्रेन स्ट्रोक का अटैक आया। जब सीटी स्कैन किया गया तो पाया गया बाई ओर अनगिनत ट्यूमर के गुच्छे और दाएं ओर बड़ा ट्यूमर था। डॉक्टर्स ने कहा इनका मस्तिष्क कभी भी फट सकता है। यह सुनकर भी वह घबराए नहीं।अपना आत्मविश्वास और मनोबल उन्होंने बनाए रखा।इसके बाद परमात्मा की शक्ति से रोज ढाई बजे उठकर उन्होंने राजयोग मेडिटेशन करना प्रारंभ किया तथा होम्योपैथी की दवाई और प्राकृतिक चिकित्सा लेने लगे। आज भी उनके मस्तिष्क में 100 से ज्यादा ट्यूमर है। प्रतिदिन वह मौत को हथेली पर लेकर चलते हैं और मौत उनसे हारती है। बैद्यनाथ परमात्मा शिव को ही उन्होंने अपना चिकित्सक बना लिया है।उन्होंने कई रोगियों का आत्मविश्वास बढ़ाया,मनोबल बढ़ाया।
राजयोगी जीवन शैली जिसमें प्रातः ढाई से 5:00 तक नियमित रूप से ध्यान अभ्यास करना, संतुलित आहार, सकारात्मक विचार और सेवा यही आपके स्वस्थ रहने का आधार आप अनुभव करते हैं। और अनेक रोगियों को भी प्राण दान देने का काम करते रहते हैं। उनका आत्मविश्वास एवं मनोबल बढ़ाते रहते हैं। कार्यक्रम के अंत में नीता दीदी जी ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। एवं सभी को राजयोग सीखने के लिए प्रोत्साहित किया। सभी ने ब्रह्मा भोजन स्वीकार कर, प्रस्थान किया। बीके इंजी नरेश बाथम