नारी को शक्ति बनाने का ऐसा संकल्प जमीन जायजाद बेचकर बनाया ट्रस्ट संचालन की जिम्मेदारी सौैंपी नारी शक्ति को खुद हो गए पीछे
18 जनवरी 1969 को 93 वर्ष की आयु में अव्यक्त हुए थे ब्रह्मा बाबा,ब्रह्मा बाबा की 56वीं पुण्य तिथि आज,विश्वभर में विश्व शांति दिवस के रूप में मनाई जाएगी पुण्य तिथि,मुख्यालय शांतिवन में देश-विदेश से पहुंचे 20 हजार से अधिक लोग,स्थानीय शाखा सुख शांति भवन नीलबड़ सहित भोपाल के अन्य सेवा केंद्रो पर भी कार्यक्रम का आयोजन।
आबू रोड, राजस्थान। नारी शक्ति का विश्व का सबसे बड़ा और विशाल संगठन की नींव रखने वाले ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के साकार संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की 18 जनवरी को 56वीं पुण्य तिथि मनाई जाएगी। इसे लेकर संस्थान के मुख्यालय माउंट आबू सहित विश्व के 8000 से भी अधिक सेवाकेंद्रो को विशेष फूलों से सजाया गया है। ब्रह्मा बाबा की याद में 1 जनवरी से सभी स्थानों में विशेष योग-तपस्या जारी है। वहीं पुण्य तिथि पर इस बार माउंट आबू मुख्यालय में पंजाब से 20000 हजार से अधिक लोग पहुंचे हैं। जो कल मौन योग साधना से बाबा को अपनी पुष्पांजली अर्पित करेंगे।बता दें कि 18 जनवरी 1969 को 93 वर्ष की आयु में ब्रह्माकुमारीज़ के साकार संस्थापक पिताश्री ब्रह्मा बाबा संपूर्णता की स्थिति को प्राप्त कर अव्यक्त हो गए थे। उन्होंने खुद पीछे रहकर नारी शक्ति को आगे बढ़ाया और आज पूरे विश्व में नारी शक्ति भारतीय संस्कृति और आध्यात्म का परचम फहरा रहीं है।उनके अव्यक्त होने के बाद संस्थान की बागडोर पूर्व मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि जी ने संभाली।
नारी शिव की शक्ति है, वह नरक का द्वार नहीं सिर का ताज है, नारी अबला नहीं सबला है, वह तो शक्ति स्वरूपा है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ और नारी के उत्थान के संकल्प के साथ उसे समाज में खोया सम्मान दिलाने, भारत माता, वंदे मातरम् की गाथा को सही अर्थों में चरितार्थ करने वर्ष 1937 में, हीरे-जवाहरात के प्रसिद्ध व्यापारी दादा लेखराज कृपलानी ने परिवर्तन की नींव रखी। नारी उत्थान को लेकर उनका दृढ़ संकल्प ही था जो उन्होंने अपनी सारी जमीन-जायजाद बेचकर एक ट्रस्ट बनाया और उसमें संचालन की जिम्मेदारी नारियों को सौंप दी। इतने बड़े त्याग के बाद भी खुद को कभी आगे नहीं रखा। लोगों में परिवारवाद का संदेश न जाए इसलिए बेटी तक को संचालन समिति में नहीं रखा। उन्होंने अपने जीवन में जो मिसाल पेश की उसे आज भी लाखों लोग अनुसरण करते हुए राजयोग के पथ पर आगे बढ़ते जा रहे हैं। संस्थान की मुख्य शिक्षा और नारा है- स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन और समाज में नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना।
60 वर्ष की उम्र में रखी बदलाव की नींव-
15 दिसंबर 1876 में जन्मे दादा लेखराज (ब्रह्मा बाबा) बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और ईमानदार थे। उन्हों परमात्म मिलन की इतनी लगन थी कि अपने जीवन काल में 12 गुरु बनाए थे। वह कहते थे कि गुरु का बुलावा मतलब काल का बुलावा। 60 वर्ष की आयु में वर्ष 1936 में आपको पुरानी दुनिया के महाविनाश और आनेवाली नई सतयुगी सृष्टि का साक्षात्कार हुआ। इसके बाद आपने परमात्मा शिव के निर्देशन अनुसार अपनी सारी चल-अचल संपत्ति को बेचकर माताओं-बहनों के नाम एक ट्रस्ट बनाया, उस समय संस्थान का नाम ओम मंडली था। वर्ष 1950 में संस्थान के माउंट आबू स्थानांतरण के बाद इसका नाम प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय पड़ा। आपने इसकी प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती को नियुक्त किया था। ब्रह्मा बाबा ने माताओं-बहनों को संस्थान के संचालन की जिम्मेदारी सौंपकर खुद कभी पैसों को हाथ नहीं लगाया। यहां तक कि उनमें इतना निर्माण भाव था कि खुद के लिए भी कभी पैसे की जरूरत पड़ती तो निमित बहनों से मांगते थे। बाबा कहते थे कि नारी ही एक दिन दुनिया के उद्धार और सृष्टि परिवर्तन के कार्य में अग्रणी भूमिका निभाएगी।
ब्रह्माकुमारी संस्थान नारी शक्ति द्वारा संचालित विश्व का सबसे बड़ा और एकमात्र संगठन है। यहां मुख्य प्रशासिका से लेकर प्रमुख पदों पर महिलाएं ही हैं। नारी सशक्तिकरण का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि यहां के भोजनालय में भाई भोजन बनाते हैं। संगठन की सारी प्रशासनिक जिम्मेदारियों को बहनें संभालती हैं और भाई उनके सहयोगी के रूप में साथ निभाते हैं। हाल ही में एक कार्यक्रम में पहुंचीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु जी ने भी इस संगठन की सफलता और विशालता को देखते हुए कहा था कि यहां नारी शक्ति ने यह साबित कर दिखाया है कि यदि नारी को मौका मिले तो वह पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती है।संस्थान के विश्व में 140 देशों में आठ हजार से अधिक सेवाकेंद्र संचालित हैं। साथ ही 46 हजार ब्रह्माकुमारी बहनें पूर्णकालिक समर्पित रूप से तन-मन-धन के साथ अपनी सेवाएं दे रही हैं। 20 लाख से अधिक लोग इसके नियमित विद्यार्थी हैं जो संस्थान के नियमित सत्संग मुरली क्लास को अटेंड करते हैं। साथ ही दो लाख से अधिक ऐसे युवा जुड़े हुए हैं जो बालब्रह्मचारी रहकर संस्थान से जुड़कर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। लाखों लोगों ने व्यसनों को छोड़कर सात्विक जीवन शैली अपनाई है । समाज के सभी वर्गों तक इसका लाभ पहुंचाने हेतु संस्था के एक सहयोगी निकाय राजयोग एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की गई जिसके अंतर्गत 20 विभिन्न प्रभाग जैसे राजनीति, प्रशासनिक, चिकित्सा, ग्रामीण, महिला, शिक्षा, युवा इत्यादि का विकास किया गया जिसके द्वारा समाज के हर व्यक्ति तक पहुंचने का प्रयास जारी है। संस्थान के भोपाल स्थित सुख शांति भवन मेडिटेशन रिट्रीट सेंटर नीलबड़ एवं अन्य सभी सेवा केंद्रो पर 18 जनवरी को विशेष विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। बीके इंजी नरेश बाथम