भोपाल 24फरवरी/150 कलाकारों ने मंच पर जीवंत की देश के दिल मध्यप्रदेश की लोक परंपरा

ग्लोबल इन्वेस्टर्स सब्मिट के पहले दिन गाला डिनर के दौरान संस्कृति विभाग की ओर से आयोजित 5 सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का आयोजन किया गया। करीब दो घंटे की प्रस्तुति में 150 कलाकारों ने देश-दुनिया से आए मेहमानों के समक्ष मध्यप्रदेश की लोक कला एवं लोक संस्कृति को मंच पर जीवंत कर दिया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव एवं मुख्य सचिव श्री अनुराग जैन भी मौजूद रहे।
पहली प्रस्तुति शिखर सम्मान से सम्मानित कैलाश सिसोदिया, जिला धार के मार्गदर्शन में भील जनजातीय के लोकनृत्य भगोरिया की हुई। भगोरिया भील समुदाय का एक पारंपरिक नृत्य है। प्रेम, परिणय और आदिवासी संस्कृति को दर्शाती लोक परंपरा से जुड़ा यह नृत्य त्योहार के दौरान किया जाता है, जो होली के समय होता है। भगोरिया नृत्य में पुरुष और महिलाएं दोनों भाग लेते हैं। पुरुष अपने पारंपरिक परिधानों में सजे होते हैं, जिनमें एक विशेष प्रकार की टोपी और एक लंबा कोट शामिल होता है। महिलाओं के पारंपरिक परिधानों में साड़ी और एक लंबा ब्लाउज होता है। नृत्य के दौरान, पुरुष और महिलाएं एक-दूसरे के साथ नृत्य करते हैं। वे अपने हाथों में डंडे और तलवारें लेकर नृत्य करते हैं। नृत्य के दौरान वे पारंपरिक गीतों को गाते हैं और अपने पारंपरिक वाद्यों को बजाते हैं। भगोरिया नृत्य का मुख्य उद्देश्य होली के त्योहार की शुरुआत करना है। यह नृत्य आदिवासी समुदाय की संस्कृति और परंपराओं को प्रदर्शित करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।
अगली प्रस्तुति बैगा जनजाति के लोकनृत्य कर्मा की हुई। इसे पद्मश्री श्री अर्जुन सिंह धुर्वे ने संयोजित किया। कर्मा नृत्य मध्यप्रदेश डिंडोरी जिले के बैगाचक क्षेत्र का एक पारंपरिक नृत्य है। इसमें जिस कड़ी को पुरुष गाता है उसे महिला को भी गाना होता है। यह नृत्य कर्मा त्योहार के दौरान किया जाता है, जिसमें की कर्म/कार्य के सफल होने की प्रसन्नता व्यक्त की जाती है। नृत्य में पुरुष और महिलाएं दोनों भाग लेते हैं। महिलाएं अपने पारंपरिक परिधानों में सजी होती हैं, जिनमें एक विशेष प्रकार की साड़ी और एक लंबा ब्लाउज शामिल होता है। नृत्य के दौरान, पुरुष और महिलाएं एक-दूसरे के साथ नृत्य करते हैं, जिसमें वे अपने हाथों में डंडे और तलवारें लेकर नृत्य करते हैं। नृत्य में मांदल, टिमकी एवं बांसुरी का उपयोग प्रमुखता से किया जाता है।
लोक धुनों से सजी इस सुरीली शाम को विस्तार देते हुए डिंडोरी के दिनेश भारवे के निर्देशन में गुदुमबाजा लोकनृत्य की प्रस्तुति हुई। इसमें विशेष प्रकार के वाद्य जैसे शहनाई, डफला, टिमकी और मजीरा का प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है, जिसमें कौड़ी जड़े हुए परिधानों का उपयोग किया जाता है। गुदुमबाजा का उपयोग शादी विवाह, तीज त्यौहार, मेला मड़ई आदि मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। अगली कड़ी में मैत्रीय पहाड़ी के निर्देशन में नृत्य नाटिका अमृतस्य मध्यप्रदेश की प्रस्तुति हुई। कलाकारों ने प्रस्तुति के माध्यम से दिखाया कि मध्यप्रदेश में भीमबैठका, खजुराहो और सांची जैसी विश्व धरोहर हैं, तो जबलपुर में भेड़ाघाट में मां नर्मदा का अनुपम सौंदर्य देखने को मिलता है। भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों के साथ मध्यप्रदेश की लोक और जनजातीय नृत्य शैलियों को पिराते हुए दिखाया गया कि मध्यप्रदेश अपने में पर्यटन की असीम संभावनाओं को समेटे हुए है। अंतिम प्रस्तुति पंचनाद समूह की हुई। श्रुति अधिकारी के कुशल संयोजन में कलाकारों ने पांच वाद्ययंत्रों की सुरीली प्रस्तुति देकर मानव संग्रहालय की फिजा में मध्यप्रदेश के सौंदर्य के रस घोल दिये। श्रुति अधिकारी ने संतूर, स्मिता वाजपेई ने सितार, संगीता अग्निहोत्री ने तबला, देयासिनी मुखर्जी ने वायलिन, विजेता हेगड़े ने तबला पर अपने सधे हाथों से अपने घरानों की परंपराओं को मंच पर जीवंत कर दिया। अनुराग उइके/बीके इंजी नरेश बाथम