भोपाल । भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री की जमीन में दफन कई टन जहरीले कचरे का मुद्दा एक बार फिर दिल्ली में उठा है। शनिवार को दिल्ली में हुए मानवाधिकार दिवस कार्यक्रम में इस मुद्दे पर बात की गई। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा ने कहा कि भोपाल गैस त्रासदी के स्थल पर कई टन खतरनाक और जहरीला कचरा पड़ा हुआ है। इसके खात्मे में हो रही देरी से भूजल और मिट्टी दूषित होती है जो स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के अधिकार का सीधा दुरुपयोग है।
भोपाल गैस त्रासदी ठीक 37 साल पहले हुई थी। 2-3 दिसंबर 1984 की वो रात जब यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के एक टैंक से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस रिस गई। चारों ओर भगदड़ मच गई। फैक्ट्री के आसपास के इलाके में लाशें बिछ गईं। चारों ओर लाशें ही लाशें थीं जिन्हें ढोने के लिए गाडिय़ां कम पड़ गईं। चीखें इतनी कि लोगों को आपस में बातें करना मुश्किल हो रहा था। हजारों मौतें हुईं और अब भी लोग कई बीमारियों से पीडि़त हैं। मुआवजे के मुद्दे पर भोपाल से लेकर दिल्ली तक प्रदर्शन हो रहा है। उधर फैक्टरी में दफन कई टन जहरीले कचरे के खात्मे को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। इसे लेकर मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष ने सवाल उठाए हैं।
जिम्मेदारियां तय की जाना चाहिए
कार्यक्रम में अध्यक्ष मिश्रा ने कहा कि वैश्वीकरण का एक परिणाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कुछ देशों में धन का संकेंद्रण है। एनएचआरसी प्रमुख ने जोर देकर कहा कि औद्योगिक आपदाओं के कारण होने वाली आपदाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय उद्यमों की जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से परिभाषित किया जाना चाहिए। उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी का हवाला दिया जो 1984 में भोपाल में एक वैश्विक कंपनी के संयंत्र में हुई थी। जिसे दुनिया की सबसे खराब औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है। त्रासदी के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड को वैश्विक आलोचना का सामना करना पड़ा था।
लोगों के स्वास्थ्य की चिंता करना होगी
अध्यक्ष मिश्रा ने कहा कि लगभग 336 टन खतरनाक कचरा अभी भी परिसर में पड़ा हुआ है। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा इस तरह के खतरनाक कचरे के निपटान में देरी से भूजल और मिट्टी दूषित होती है। यह बचे लोगों और क्षेत्र के निवासियों के स्वास्थ्य के अधिकार का सीधा दुरुपयोग है।