लखनऊ| भले ही परिवार की एकता के नाम पर शिवपाल यादव, अखिलेश यादव के साथ हो गए हों। लेकिन शिवपाल का सियासी भविष्य मैनपुरी के चुनाव नतीजे पर काफी हद तक टिका है। अगर परिणाम सपा के पक्ष आता है तो शिवपाल को बड़े इनाम के संकेत भी मिल रहे हैं। पार्टी सूत्रों की मानें तो उन्हें नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी मिल सकती है।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो अगर चुनाव परिणाम सपा के पक्ष में आता है तो कार्यकर्ताओं के टूटे हौसले को उड़ान मिलेगी।

साथ ही सपा यह संदेश देने की कोशिश भी करेगी कि उसकी मुस्लिम व यादव मतदाताओं में पकड़ बरकरार है।

मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि रही मैनपुरी सीट को बचाने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने किसी तरह की कोई भी गुंजाइश नहीं छोड़ी। डिंपल यादव के नामांकन के बाद से अखिलेश मैनपुरी में डेरा डाले रहे और चाचा शिवपाल यादव के साथ भी अपने सारे गिले-शिकवे दूर कर लिए। बीते चुनाव में एक-दो सभाएं करने वाले सैफई परिवार ने इस बार गांव-गांव की दौड़ लगाई है और घर-घर जाकर वोट मांगे।

जानकारों की मानें तो अपना सियासी गढ़ बचाने के लिए अखिलेश को शिवपाल की शरण में जाना पड़ा है। कई बार उनके रिश्ते नरम गरम होते रहे हैं। 2022 के पहले चाचा भजीते एकता की डोर में बंधे थे। लेकिन परिणाम के बाद वह डोर ज्यादा दिनों तक मजबूत नहीं रह सकी। मुलायम के निधन के बाद से परिवार में एका होते देखा गया। फिर चुनाव की घोषणा के बाद अखिलेश चाचा को साधने में कामयाब होते दिखे अब परिणाम बहुत कुछ तय करेंगे।

सपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि मुलायम के निधन के बाद परिवार में एकता बहुत जरूरी थी। अगर भाजपा से 2024 में कायदे से लड़ना है तो एकता का संदेश देना भी जरूरी था। इसीलिए उपचुनाव से ठीक पहले परिवार के बुजुर्गों, नाते रिश्तेदारों ने चाचा भतीजे को एक करने के लिए पूरी ताकत लगा दी। उधर सपा अपने गढ़ रामपुर और आजमगढ़ में चुनाव हार चुकी है। ऐसे कार्यकर्ताओ में चुनाव जीत कर संदेश देना होगा। यही सोच कर दोनों करीब आ गए हैं।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो यूपी के नगर निकाय और लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले होने वाले मैनपुरी उपचुनाव पर पूरे देशभर की निगाहें लगी हुई है। सपा मुखिया अखिलेश यादव यह जानते हैं कि मैनपुरी उपचुनाव भी हारने पर उनके लिए आगे की राह आसान नहीं है। इसलिए उन्होंने नाराज चाचा शिवपाल को भी मनाया है। शिवपाल भी पुराने गिले शिकवे भुला कर डिंपल के पक्ष में ताबड़तोड़ सभाएं की और उन्हें जीताने की अपील भी की।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि मैनपुरी का चुनाव अखिलेश के सामने विरासत बचाने और उनके चाचा के लिए अपनी राजनीतिक भविष्य बचाने की चुनौती के रूप में हैं। अखिलेश जानते थे कि डिंपल को मैनपुरी में जिताना चाचा शिवपाल के बगैर संभव नहीं है।

आजमगढ़ व रामपुर लोकसभा उपचुनाव भाजपा से हारने के पीछे कहीं न कहीं शिवपाल का साथ न होना भी माना ही जाता है। मैनपुरी में सपा की जीत में जसवंतनगर विधानसभा सीट की अहम भूमिका होती है। शिवपाल 1996 से लगातार यहीं से विधायक हैं।

उन्होंने बताया कि शिवपाल भी अपने बेटे का राजनीतिक भविष्य देख रहे हैं। अब अपने बेटे आदित्य के साथ ही अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रमुख नेताओं का भी सपा में सम्मान चाहते हैं, इसलिए वह अखिलेश की ओर से पहल का इंतजार कर रहे थे। अगर परिणाम पक्ष में रहा तो शिवपाल का कद बढ़ना तय माना जा रहा है। द्विवेदी कहते हैं कि निश्चित तौर से मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव का परिणाम शिवपाल के लिए उनका सियासी भविष्य तय करेगा।

दशकों से यूपी की राजनीति में नजर रखने वाले राजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि मैनपुरी के परिणाम के बाद अखिलेश शिवपाल के रिश्ते कसौटी पर कितने खरे उतरते यह देखना होगा। सपा के सामने मैनपुरी गढ़ बचाने की अग्निपरीक्षा है। अगर परिणाम पक्ष में नहीं आते तो पूरा समाजवाद खतरे में पड़ जाएगा। अगर नतीजे सकारात्मक होते हैं तो 2024 के लिए एक प्रकार की ऑक्सीजन होगी।

सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डाक्टर आशुतोष वर्मा कहते हैं कि सपा और शिवपाल जी की विचारधारा समान है। वे राजनीतिक रूप से एक साथ आ चुके हैं। भविष्य में एक दूसरे के पूरक के रूप में काम करते दिखाई देंगे। 2024 में सपा एक नई इबारत लिखता दिखाई देगा।