मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकतेहैं।YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है।                              नम्बरवन बनने के लिए गुण मूर्त बन गुणों का दान करने वाले महादानी बनो

आज बेहद के मात-पिता चारों ओर के विशेष बच्चों को देख रहे थे। क्या विशेषता देखी? कौन से बच्चे अखुट ज्ञानी, अटल स्वराज्य अधिकारी, अखण्ड निर्विघ्न, अखण्ड योगी, अखण्ड महादानी हैं ऐसे विशेष आत्मायें कोटों में कोई बने हुए हैं। ज्ञानी, योगी, महादानी सभी बने हैं लेकिन अखण्ड कोई-कोई बने हैं। जो अखुट, अटल और अखण्ड हैं वही विजय माला के विजयी मणके हैं। बापदादा ने संगमयुग पर सभी बच्चों को ‘अटल-अखण्ड भव' का वरदान दिया है लेकिन वरदान को जीवन में सदा धारण करने में नम्बरवार बन गये हैं। नम्बरवन बनने के लिये सबसे सहज विधि है अखण्ड महादानी बनो। अखण्ड महादानी अर्थात् निरन्तर सहज सेवाधारी क्योंकि सहज ही निरन्तर हो सकता है। तो अखण्ड सेवाधारी अर्थात् अखण्ड महादानी। दाता के बच्चे हो, सर्व खज़ानों से सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मायें हो। सम्पन्न की निशानी है अखण्ड महादानी। एक सेकेण्ड भी दान देने के बिना रह नहीं सकते। द्वापर से दानी आत्मायें अनेक भक्त भी बने हैं लेकिन कितने भी बड़े दानी हों, अखुट ख़ज़ाने के दानी नहीं बने हैं। विनाशी ख़ज़ाने वा वस्तु के दानी बनते हैं। आप श्रेष्ठ आत्मायें अब संगम पर अखुट और अखण्ड महादानी बनते हो। अपने आपसे पूछो कि अखण्ड महादानी हो? वा समय प्रमाण दानी हो? वा चांस प्रमाण दानी हो?

अखण्ड महादानी सदा तीन प्रकार से दान करने में बिज़ी रहते हैं। पहला मनसा द्वारा शक्तियां देने का दान, दूसरा वाणी द्वारा ज्ञान का दान, तीसरा कर्म द्वारा गुणों का दान। इन तीनों प्रकार के दान देने वाले सहज महादानी बन सकते हैं। रिजल्ट में देखा वाणी द्वारा ज्ञान दान मैजारिटी करते रहते हो। मनसा द्वारा शक्तियों का दान यथा शक्ति करते हो और कर्म द्वारा गुण दान ये बहुत कम करने वाले हैं और वर्तमान समय चाहे अज्ञानी आत्मायें हैं, चाहे ब्राह्मण आत्मायें हैं दोनों को आवश्यकता गुणदान की है। वर्तमान समय विशेष स्वयं में वा ब्राह्मण परिवार में इस विधि को तीव्र बनाओ।

ये दिव्य गुण सबसे श्रेष्ठ प्रभु प्रसाद है। इस प्रसाद को खूब बांटो। जैसे जब कोई से भी मिलते हो तो एक-दो में भी स्नेह की निशानी स्थूल टोली खिलाते हो ना, ऐसे एक-दो में ये गुणों की टोली खिलाओ। इस विधि से जो संगमयुग का लक्ष्य है -“फरिश्ता सो देवता'' यह सहज सर्व में प्रत्यक्ष दिखाई देगा। यह प्रैक्टिस निरन्तर स्मृति में रखो कि मैं दाता का बच्चा अखण्ड महादानी आत्मा हूँ। कोई भी आत्मा चाहे अज्ञानी हो, चाहे ब्राह्मण हो लेकिन देना है। ब्राह्मण आत्माओं को ज्ञान तो पहले ही है लेकिन दो प्रकार से दाता बन सकते हो।

1- जिस आत्मा को, जिस शक्ति की आवश्यकता है उस आत्मा को मन्सा द्वारा अर्थात् शुद्ध वृत्ति, वायब्रेशन्स द्वारा शक्तियों का दान अर्थात् सहयोग दो।

2- कर्म द्वारा सदा स्वयं जीवन में गुण मूर्त बन, प्रत्यक्ष सैम्पल बन औरों को सहज गुण धारण करने का सहयोग दो। इसको कहा जाता है गुण दान। दान का अर्थ है सहयोग देना। आजकल ब्राह्मण आत्मायें भी सुनने के बजाय प्रत्यक्ष प्रमाण देखना चाहती हैं। किसी को भी शक्ति धारण करने की वा गुण धारण करने की शिक्षा देना चाहते हो तो कोई दिल में सोचते, कोई कहते कि ऐसे धारणा मूर्त कौन बने हैं? तो देखना चाहते हैं लेकिन सुनना नहीं चाहते। ऐसे एक-दो में कहते हो ना - कौन बना है, सबको देख लिया...। जब कोई बात आती है तो कहते हैं कोई नहीं बना है, सब चलता है। लेकिन यह अलबेलेपन के बोल हैं, यथार्थ नहीं हैं। यथार्थ क्या है? फालो ब्रह्मा बाप। जैसे ब्रह्मा बाप ने स्वयं, सदा अपने को निमित्त एग्जाम्पल बनाया, सदा यह लक्ष्य लक्षण में लाया - जो ओटे सो अर्जुन अर्थात् जो स्वयं को निमित्त प्रत्यक्ष प्रमाण बनाता है वही अर्जुन अर्थात् अव्वल नम्बर का बनता है। अगर फालो फादर करना है तो दूसरे को देख बनने में नम्बरवन नहीं बन सकेंगे। नम्बरवार बन जायेंगे।

नम्बरवन आत्मा की निशानी है हर श्रेष्ठ कार्य में मुझे निमित्त बन औरों को सिम्पल करने के लिये सैम्पल बनना है। दूसरे को देखना, चाहे बड़ों को, चाहे छोटों को, चाहे समान वालों को लेकिन दूसरों को देख बनना कि पहले यह-यह बनें तो मैं बनूँ, तो नम्बरवन तो वह हो गया ना जो बनेगा। तो स्वयं स्वत: ही नम्बरवार में आ जाते हैं। तो अखण्ड महा-दानी आत्मा सदा अपने को हर सेकेण्ड तीनों ही महादान में से कोई न कोई दान करने में बिज़ी रखता है। जैसा समय वैसी सेवा में सदा लगा हुआ रहता है। उनको व्यर्थ देखने, सुनने वा करने की फुर्सत ही नहीं। तो महादानी बने हो? अभी अण्डरलाइन करो अखण्ड बने हैं। अगर बीच-बीच में दातापन में खण्डन पड़ता है तो खण्डित को सम्पूर्ण नहीं कहा जाता। वर्तमान समय आपस में विशेष कर्म द्वारा गुणदाता बनने की आवश्यकता है। हर एक संकल्प करो कि मुझे सदा गुण मूर्त बन सबको गुण मूर्त बनाने का विशेष कर्तव्य करना ही है। तो स्वयं की और सर्व की कमजोरियां समाप्त करने की इस विधि में हर एक अपने को निमित्त अव्वल नम्बर समझ आगे बढ़ते चलो। ज्ञान तो बहुत है, अभी गुणों को इमर्ज करो, सर्वगुण सम्पन्न बनने और बनाने का एग्जाम्पल बनो। अच्छा!

सर्व अखण्ड योगी तू आत्मायें, सर्व सदा गुण मूर्त आत्माओं को, सर्व हर संकल्प हर सेकेण्ड महादानी वा महासहयोगी विशेष आत्माओं को, सदा स्वयं को श्रेष्ठता में सैम्पल बन सर्व आत्माओं को सिम्पल सहज प्रेरणा देने वाले, सदा स्वयं को निमित्त नम्बरवन समझ प्रत्यक्ष प्रमाण देने वाले बाप समान आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

दादी जानकी से मुलाकात- (आस्ट्रेलिया, सिंगापुर आदि के चक्कर का समाचार सुनाया और सबकी याद दी) सबकी याद पहुँच गई। चारों ओर के बच्चे सदा बाप के सामने हैं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है जब भी याद करते तो समीप और साथ का अनुभव करते हैं। बाबा कहा दिल से और दिलाराम हाज़िर। इसीलिये ही कहते हैं हज़ूर हाज़िर है, हाज़िरा हज़ूर है। जहाँ भी हैं, जो भी हैं लेकिन हर स्थान पर हरेक के पास हाज़िर हो जाते हैं इसीलिये हाज़िरा हज़ूर हो गया। इस स्नेह की विधि को लोग नहीं जान सकते। यह ब्राह्मण आत्मायें ही जानती हैं। अनुभवी इस अनुभव को जानते हैं। आप विशेष आत्मायें तो हैं ही कम्बाइण्ड ना। अलग हो ही नहीं सकते। लोग कहते हैं जिधर देखते हैं उधर तू ही तू है और आप कहते हो जो करते हैं, जहाँ जाते हैं बाप साथ ही है अर्थात् तू ही तू है। जैसे कर्तव्य साथ है तो हर कर्तव्य कराने वाला भी सदा साथ है इसलिये गाया हुआ है करनक-रावनहार। तो कम्बाइण्ड हो गया ना - करनहार और करावनहार। तो आप सबकी स्थिति क्या है? कम्बाइण्ड है ना। करनकरावनहार, करनहार के साथ है ही, करावनहार अलग नहीं है। इसको ही कम्बाइण्ड स्थिति कहा जाता है। सभी अपना-अपना अच्छा पार्ट बजा रहे हो। अनेक आत्माओं के आगे सैम्पल हो, सिम्पल करने के। ऐसे लगता है ना। मुश्किल को सहज बनाना यही फालो फादर है। ऐसे है ना। अच्छा पार्ट बजाया ना। जहाँ भी हैं, विशेष पार्टधारी विशेष पार्ट बजाने के सिवाए रह नहीं सकते। यह ड्रामा की नूँध है। अच्छा। चक्कर लगाना बहुत अच्छा है। चक्कर लगाया फिर स्वीट होम में आ गये। सेवा का चक्कर अनेक आत्माओं के प्रति विशेष उमंग-उत्साह का चक्कर है। सब ठीक है ना? अच्छा ही अच्छा है। ड्रामा की भावी खींचती ज़रूर है। आप रहना चाहो लेकिन ड्रामा में नहीं है तो क्या करेंगे। सोचते भी जाना पड़ेगा क्योंकि सेवा की भावी है तो सेवा की भावी अपना कार्य कराती है। आना और जाना यही तो विधि है। अच्छा। संगठन अच्छा है।

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

1) परमात्म प्यार का अनुभव करने के लिए दु:ख की लहर से न्यारे बनो

बापदादा ने संगम पर अनेक ख़ज़ाने दिये हैं उन सभी खज़ानों में से श्रेष्ठ से श्रेष्ठ ख़ज़ाना है सदा खुशी का ख़ज़ाना। तो यह खुशी का ख़ज़ाना सदा साथ रहता है? कैसी भी परिस्थिति आ जाये लेकिन खुशी नहीं जा सकती। जब परिस्थिति कोई दु:ख की लहर वाली आती है तो भी खुश रहते हो कि थोड़ी-थोड़ी लहर आ जाती है? क्योंकि संगम पर हो ना। तो एक तरफ है दु:खधाम, दूसरे तरफ है सुखधाम। तो दु:ख के लहर की कई बातें सामने आयेंगी लेकिन अपने अन्दर वो दु:ख की लहर दु:खी नहीं करे। जैसे गर्मी के मौसम में गर्मी तो होगी ना लेकिन स्वयं को बचाना वो अपने ऊपर है। तो दु:ख की बातें सुनने में आयेंगी लेकिन दिल में प्रभाव नहीं पड़े। इसलिये कहा जाता है न्यारा और प्रभु का प्यारा। तो दु:ख की लहर से न्यारा तब प्रभु का प्यारा बनेंगे। जितना न्यारा उतना प्यारा। अपने आपको देखो कि कितने न्यारे बने हैं? जितना न्यारा बनते जाते हो उतना ही सहज परमात्म प्यार का अनुभव करते हो। तो हर रोज़ चेक करो कि कितने न्यारे रहे, कितने प्यारे रहे। क्योंकि ये प्यार परमात्म प्यार है जो और कोई भी युग में प्राप्त हो नहीं सकता। जितना प्राप्त करना है उतना अभी करना है। अभी नहीं तो कभी भी नहीं हो सकता। और कितना थोड़ा सा समय यह परमात्म प्यार की प्राप्ति का है। तो थोड़े समय में बहुत अनुभव करना है। तो कर रहे हो? दुनिया वाले खुशी के लिये कितना समय, सम्पत्ति खर्च करते हैं और आपको सहज अविनाशी खुशी का ख़ज़ाना मिल गया। कुछ खर्चा किया क्या? खुशी के आगे खर्च करने की वस्तु है ही क्या जो देंगे। तो यही खुशी के गीत गाते रहो कि जो पाना था वो पा लिया। पा लिया ना? तो जब कोई चीज़ मिल जाती है तो खुशी में नाचते रहते हैं। दूसरों को भी यह खुशी बांटते जाओ। जितना बांटते जाते हो उतना बढ़ती जाती है क्योंकि बांटना माना बढ़ना। तो जो भी सम्बन्ध में आये वह अनुभव करे कि इनको कोई श्रेष्ठ प्राप्ति हुई है, जिसकी खुशी है क्योंकि दुनिया में तो हर समय का दु:ख है और आपके पास हर समय की खुशी है। तो दु:खी को खुशी देना, यह सबसे बड़े से बड़ा पुण्य है। तो सभी निर्विघ्न बन आगे उड़ रहे हो या छोटे-छोटे विघ्न रोकते हैं? विघ्नों का काम है आना और आपका काम है विजय प्राप्त करना। जब विघ्न अपना कार्य अच्छी तरह से कर रहे हैं तो आप मास्टर सर्वशक्तिमान् अपने विजय के कार्य में सदा सफल रहो। सदा यह याद रखो कि हम विघ्न-विनाशक आत्मायें हैं। विघ्न-विनाशक का जो यादगार है उसका प्रैक्टिकल में अनुभव कर रहे हो ना। अच्छा।

2) अचल स्थिति बनाने के लिए मास्टर सर्वशक्तिमान् का टाइटल स्मृति में रखो

स्वयं को सदा सर्व खज़ानों से भरपूर अर्थात् सम्पन्न आत्मा अनुभव करते हो? क्योंकि जो सम्पन्न होता है तो सम्पन्नता की निशानी है कि वो अचल होगा, हलचल में नहीं आयेगा। जितना खाली होता है उतनी हलचल होती है। तो किसी भी प्रकार की हलचल, चाहे संकल्प द्वारा, चाहे वाणी द्वारा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा, किसी भी प्रकार की हलचल अगर होती है तो सिद्ध है कि ख़ज़ाने से सम्पन्न नहीं हैं। संकल्प में भी, स्वप्न में भी अचल। क्योंकि जितना-जितना मास्टर सर्वशक्तिमान् स्वरूप की स्मृति इमर्ज होगी उतना ये हलचल मर्ज होती जायेगी। तो मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्मृति प्रत्यक्ष रूप में इमर्ज हो। जैसे शरीर का आक्यूपेशन इमर्ज रहता है, मर्ज नहीं होता, ऐसे यह ब्राह्मण जीवन का आक्यूपेशन इमर्ज रूप में रहे। तो यह चेक करो इमर्ज रहता है या मर्ज रहता है? इमर्ज रहता है तो उसकी निशानी है हर कर्म में वह नशा होगा और दूसरों को भी अनुभव होगा कि यह शक्तिशाली आत्मा है। तो कहा जाता है हलचल से परे अचल। अचलघर आपका यादगार है। तो अपना आक्यूपेशन सदा याद रखो कि हम मास्टर सर्व-शक्तिमान् हैं क्योंकि आजकल सर्व आत्मायें अति कमजोर हैं तो कमजोर आत्माओं को शक्ति चाहिये। शक्ति कौन देगा? जो स्वयं मास्टर सर्वशक्तिमान् होगा। किसी भी आत्मा से मिलेंगे तो वो क्या अपनी बातें सुनायेंगे? कमजोरी की बातें सुनाते हैं ना? जो करना चाहते हैं वो कर नहीं सकते तो इसका प्रमाण है कि कमजोर हैं और आप जो संकल्प करते हो वो कर्म में ला सकते हो। तो मास्टर सर्वशक्तिमान् की निशानी है कि संकल्प और कर्म दोनों समान होगा। ऐसे नहीं कि संकल्प बहुत श्रेष्ठ हो और कर्म करने में वो श्रेष्ठ संकल्प नहीं कर सको, इसको मास्टर सर्वशक्तिमान् नहीं कहेंगे। तो चेक करो कि जो श्रेष्ठ संकल्प होते हैं वो कर्म तक आते हैं या नहीं आ सकते? मास्टर सर्वशक्तिमान् की निशानी है कि जो शक्ति जिस समय आवश्यक हो उस समय वो शक्ति कार्य में आये। तो ऐसे है या आह्वान करते हो, थोड़ा देरी से आती है? जब कोई बात पूरी हो जाती है, पीछे स्मृति में आये कि ऐसा नहीं, ऐसा करते, तो इसको कहा जाता है समय पर काम में नहीं आई। जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियां ऑर्डर पर चल सकती हैं ना, हाथ को जब चाहो, जहाँ चाहो वहाँ चला सकते हो, ऐसे यह सूक्ष्म शक्तियां इतने कन्ट्रोल में हों जिस समय जो शक्ति चाहो काम में लगा सको। तो ऐसी कन्ट्रोलिंग पॉवर है? ऐसे तो नहीं सोचते कि चाहते तो नहीं थे लेकिन हो गया। तो सदा अपनी कन्ट्रोलिंग पॉवर को चेक करते हुए शक्तिशाली बनते चलो। सब उड़ती कला वाले हो कि कोई चढ़ती कला वाला, कोई उड़ती कला वाला? वा कभी उड़ती, कभी चढ़ती, कभी चलती कला हो जाती है? बदली होता है वा एकरस आगे बढ़ते रहते हो? कोई विघ्न आता है तो कितने समय में विजयी बनते हो? टाइम लगता है? क्योंकि नॉलेजफुल हो ना। तो विघ्नों की भी नॉलेज है। नॉलेज की शक्ति से विघ्न वार नहीं करेंगे लेकिन हार खा लेंगे। इसी को ही मास्टर सर्वशक्तिमान् कहा जाता है। तो अमृतवेले से इस आक्यूपेशन को इमर्ज करो और फिर सारा दिन चेक करो। अच्छा।

वरदान:- सहनशक्ति का कवच पहन, सम्पूर्ण स्टेज को वरने वाले विघ्न जीत भव
अपनी सम्पूर्ण स्टेज को वरने अर्थात् प्राप्त करने के लिए अलबेलेपन के नाज़ नखरों को छोड़ सहनशक्ति में मजबूत बनो। सहनशक्ति ही सर्व विघ्नों से बचने का कवच है। जो यह कवच नहीं पहनते वह नाजुक बन जाते हैं। फिर बाप की बातें बाप को ही सुनाते हैं, कभी बहुत उमंग-उत्साह में रहते, कभी दिलशिकस्त हो जाते। अब इस उतरने चढ़ने की सीढ़ी को छोड़ सदा उमंग-उत्साह में रहो तो सम्पूर्ण स्टेज समीप आ जायेगी।
स्लोगन:-याद और सेवा की शक्ति से अनेक आत्माओं पर रहम करना ही रहमदिल बनना है।                                                        ब्रह्माकुमारीज क्षेत्रीय कार्यालय: राजयोग भवन, ई-5,अरेरा कॉलोनी, मेन रोड नंबर3,भोपल मध्यप्रदेश।                                         सम्पर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/hPiwLu4wFkc