28 Aug, 2022/ शिव बाबा की मुरली (परमात्मा की वाणी) आज की प्रातः मुरली मधुबन से
आप शिव बाबा की मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं। साथ ही YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है। होली मनाना अर्थात् दृढ़ संकल्प की अग्नि में कमजोरियों को जलाना और मिलन की मौज मनाना
आज रूहानी बगीचे के मालिक बापदादा डबल बगीचा देख रहे हैं। (आज स्टेज पर बहुत सुन्दर बगीचा सजाया हुआ है) एक तरफ है प्रकृति की सुन्दरता और दूसरे तरफ है रूहानी रूहे गुलाब बगीचे की शोभा। ड्रामा में आदि काल सतयुग में प्रकृति की सतोप्रधान सुन्दरता आप मास्टर आदि देव, आदि श्रेष्ठ आत्माओं को ही प्राप्त होती है। इस समय अन्तिम काल में भी प्रकृति की सुन्दरता देख रहे हो। लेकिन आदि काल और अन्तिम काल में कितना अन्तर है! आपके सतयुगी राज्य में प्रकृति का स्वरूप कितना श्रेष्ठ सतोप्रधान सुन्दर होगा! वहाँ के बगीचे और यहाँ आपके बगीचे में कितना अन्तर है! वह रीयल खुशबू अनुभव की है ना? फिर भी प्रकृति-पति आप श्रेष्ठ आत्मायें हो। प्रकृति-पति हो, इस प्रकृति के खेल को देख हर्षित होते हो। चाहे प्रकृति हलचल करे, चाहे प्रकृति सुन्दर खेल दिखाए - दोनों में प्रकृतिपति आत्मायें साक्षी हो खेल देखते हैं। खेल में मज़ा लेते हैं, घबराते नहीं हैं इसलिए बापदादा तपस्या द्वारा साक्षीपन की स्थिति के आसन पर अचल अडोल स्थित रहने का विशेष अभ्यास करा रहे हैं। तो यह स्थिति का आसन सबको अच्छा लगता है या हलचल का आसन अच्छा लगता है? अचल आसन अच्छा लगता है ना। कोई भी बात हो जाए चाहे प्रकृति की, चाहे व्यक्ति की, दोनों अचल स्थिति के आसन को ज़रा भी हिला नहीं सकते हैं। इतने पक्के हो ना या अभी होना है?
प्रकृति के भी पांच खिलाड़ी हैं और माया के भी पांच खिलाड़ी हैं। इन दस खिलाड़ियों को अच्छी तरह से जानते हो ना? खिलाड़ी खेल के बिना रहेंगे क्या? कभी कोई खिलाड़ी सामने आ जाता है, कभी कोई सामने आ जाता है। आजकल भी पुरानी दुनिया में खेल देखने के बहुत शौकीन है ना? कितना प्यार से खेल देखते हैं। वो हैं पुरानी दुनिया वाले और आप हो संगमयुगी ब्राह्मण आत्माएं तो खेल देखना एन्जॉय करना है या घबराना है? कोई गिरता है, कोई गिराता है, लेकिन खेल देखने वाले को गिरता हुआ देख भी मजा आता और विजय प्राप्त करता हुआ देख भी मजा आता है। तो यह भी बहुत बड़ा खेल है। सिर्फ आसन को नहीं छोड़ो बस। कितना भी कोई हिलाए लेकिन आप शक्तिशाली आत्माएं हिल नहीं सकती हो। तो बापदादा आज हर एक रूहानी गुलाब को देख रहे हैं। जब बगीचे में बुलाया है तो बगीचे में पत्ते देखेंगे या फूलों को देखेंगे? यह भी अच्छा सजाया है। मेहनत करने वालों की कमाल अच्छी है। लेकिन बापदादा रूहानी फूलों को देख रहे हैं। वैरायटी तो हैं ना। कोई बहुत सुन्दर रंग रूप वाले हैं। रंग भी है, रूप भी है। और कोई रंग, रूप और खुशबू वाले होंगे, कोई सिर्फ रंग रूप वाले। रंग और रूप तो सभी बच्चों में आ गया है क्योंकि बाप के संग का रंग तो सबको लग गया है। कोई व्यवहार की बातों में, पुरूषार्थ की बातों में सम्पूर्ण सन्तुष्टता नहीं भी हो लेकिन बाप के संग का रंग सबको अति प्यारा लगता है इसलिए रंग सभी में आ गया है और रूप भी परिवर्तन हो गया है क्योंकि ब्राह्मण आत्माएं बन गयी। भल कैसी भी पुरुषार्थी आत्मा है लेकिन ब्राह्मण आत्मा बनने से रूप ज़रूर बदलता है। ब्राह्मण आत्मा की चमक सुन्दरता हर एक ब्राह्मण आत्मा में आ जाती है इसलिए रंग और रूप सबमें दिखाई दे रहा है। खुशबू नम्बरवार है। खुशबू है सम्पूर्ण पवित्रता। वैसे तो जो भी ब्राह्मण बनते हैं, ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी कहलाते हैं। कुमार और कुमारी बनना अर्थात् पवित्र बनना। पवित्रता की परिभाषा अति सूक्ष्म है। सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं। तन से ब्रह्मचारी बनना इसको सम्पूर्ण पवित्रता नहीं कहते। मन से भी ब्रह्मचारी हो अर्थात् मन भी सिवाए बाप के और किसी भी प्रकार के लगाव में नहीं आए। तन से भी ब्रह्मचारी, सम्बन्ध में भी ब्रह्मचारी, संस्कार में भी ब्रह्मचारी। इसकी परिभाषा अति प्यारी और अति गुह्य है। इसका विस्तार फिर सुनायेंगे। आज तो होली मनानी है ना, गुह्य पढ़ाई नहीं हैं, आज मनाना है।
होली मनाने वाले कौन हो? होली हंस हो। होली हंस कितने प्यारे है! हंस सदा पानी में तैरने वाले होते हैं। होली हंस भी सदा ज्ञान जल में तैरने वाले हो। उड़ने वाले और तैरने वाले। आप सभी भी उड़ना और तैरना जानते हो ना, ज्ञान मनन करना इसको कहेंगे ज्ञान अमृत में तैरना और उड़ना अर्थात् सदा ऊंची स्थिति में रहना। दोनों जानते हो ना? सभी के मन में बाप से प्यार तो 100 प्रतिशत से भी आगे है और बाप का प्यार भी हर एक बच्चे से, चाहे वह गिरता है, चाहे चढ़ता भी है, खेल करता है फिर भी बाप का प्यार है। बाप खेल देखकर समझते हैं कि यह थोड़ा नटखट बच्चा है। सब बच्चे एक जैसे तो नहीं होते ना। कोई नटखट, कोई गंभीर, कोई रमणीक होते हैं, कोई बहुत फास्ट नेचर के होते हैं। फिर भी हैं तो बच्चे ना। बच्चे शब्द ही अति प्यारा है। जैसे आप सबके लिए बाप शब्द प्यारा है, तो बाप के लिए बच्चे प्यारे हैं। बाप कभी भी कोई बच्चे से दिलशिकस्त नहीं होते हैं। सदा शुभ उम्मीदें रखते हैं। अगर कोई किनारा भी कर लेते हैं फिर भी बापदादा उसमें भी उम्मीद रखते हैं कि आज नहीं तो कल आ जायेंगे। कहाँ जायेंगे? जैसे शारीरिक हिसाब-किताब में कोई ज्यादा बीमार भी हो जाता है, उनको ठीक होने में भी ज्यादा समय लगता है। और जो थोड़ा समय बीमार होता है तो वह जल्दी ठीक हो जाता है। लेकिन है तो बीमार। कैसा भी बीमार हो स्थूल रीति प्रमाण भी बीमार से कभी उम्मीद उतारी नहीं जाती है। सदा उम्मीद रखी जाती है - आज नहीं तो कल ठीक हो जायेगा इसलिए बापदादा कोई भी बच्चे से नाउम्मीद नहीं होते हैं। सदा शुभ आशायें रखते हैं कि आज थोड़ा सा ढीला है, कल होशियार हो जायेगा। जब मंज़िल एक है, बाप एक है तो कहाँ जायेंगे सिवाए बाप के? फिर भी वर्सा हर आत्मा को बाप से ही मिलना है। चाहे बाप को गाली भी दे तो भी बाप मुक्ति का वर्सा तो दे ही देंगे। सारे विश्व की सर्व आत्माओं को चाहे मुक्ति, चाहे जीवनमुक्ति का वर्सा ज़रूर मिलना है क्योंकि बाप सृष्टि पर अवतरित हो बच्चों को वर्से से वंचित नहीं कर सकते हैं। बाप को वर्सा देना ही है। चाहे लेवे, चाहे नहीं लेवे, बाप को देना ही है। और सर्व आत्माओं को बाप द्वारा वर्सा मिला है तब तो बाप कहकर पुकारते हैं ना। बाप का अर्थ ही है वर्सा देने वाला। चाहे किसी भी धर्म में चले गये हैं फिर भी फादर कह याद तो करते हैं ना। एक आत्मा भी वर्से के सिवाए रह नहीं सकती। तो साकार सृष्टि पर पार्ट बजाते बच्चों को वर्सा न दे तो बाप कैसे कहेंगे? लेकिन आप डायरेक्ट वर्सा लेते हो, पहचान से लेते हो। आपका डायरेक्ट कनेक्शन है। चाहे निमित्त साकार माध्यम ब्रह्मा बना लेकिन ब्रह्मा से योग नहीं लगाते, योग बाप से लगाते हैं। ब्रह्मा बाप भी कहते - बाप को याद करो। यह नहीं कहते - मुझे याद करो। कभी भी सिवाए बाप के फुल वर्सा और कोई सम्बन्ध में मिल नहीं सकता। आप डायरेक्ट बाप से सम्बन्ध जोड़ वर्से का अधिकार तीनों कालों में प्राप्त करते हो। अभी भी वर्सा मिल रहा है ना! शक्तियों का, गुणों का वर्सा मिल रहा है। मिल गया है? और मुक्तिधाम में भी कहाँ रहेंगे? समीप रहेंगे ना! तो अभी भी वर्सा है, मुक्तिधाम में भी है और फिर 21 जन्म का भी वर्सा है। तो तीनों कालों में वर्से के अधिकारी बनते हो। लोग कहते हैं ना आप सबको कि आपकी जीवनमुक्ति से हमारी मुक्ति अच्छी है। आप तो चक्कर में आयेंगे, हम तो चक्कर से छूट जायेंगे। आप फलक से कह सकते हो कि मुक्ति का वर्सा तो हमें भी मिलेगा लेकिन हम मुक्ति के बाद फिर जीवनमुक्ति का वर्सा लेंगे। डबल मिलता है! मुक्तिधाम से वाया तो करेंगे ना, तो डायरेक्ट कनेक्शन होने के कारण वर्तमान और फिर मृत्यु के बाद और फिर नया शरीर लेते तीनों ही काल वर्से के अधिकारी बनते हो। इतना नशा है?
आज होली मना रहे हो ना। होली जलाई भी जाती है और मनाई भी जाती है। पहले जलाई जाती है फिर मनाई जाती है। होली मनाना अर्थात् कुछ जलाना और कुछ मनाना। जलाने के बिना मनाई नहीं जाती। तो दृढ़ संकल्प की अग्नि द्वारा पहले अपनी कमजोरी को जलाना है तब मनाने की मौज अनुभव कर सकेंगे। अगर जलाया नहीं तो मनाने की मौज का अनुभव सदा काल नहीं रहेगा। होली शब्द में जलाना भी है, मनाना भी है। दोनों ही अर्थ हैं। होली शब्द तो पक्का है ना? तो होली अर्थात् हो ली, बीती सो बीती। जो बात गुज़र गई उसको कहते हैं हो ली। जो होना था वह हो ली। तो बीती को बीती करना माना होली जलाना। और जब बाप के सामने आते हो तो कहते हो मैं बाप की हो ली, हो गई। तो मनाया भी और हो ली बीती सो बीती। बीती को भूल जाना, यह है जलाना। तो एक ही होली शब्द में जलाना और मनाना है। गीत गाते हो ना मैं तो बाप की हो ली। पक्के हो ना? क्योंकि बापदादा ने सबका तपस्या का पोतामेल देखा। तपस्या अगर कभी भी कम हुई तो उसका कारण क्या बना है? बीती को बीती करने में बिन्दी के बजाए क्वेश्चन मार्क लगा दिया। और छोटी सी गलती करते हो, है छोटी लेकिन नुकसान बहुत बड़ा होता है। वह क्या गलती करते हो? जिसको भुलाना है उसको याद करते हो और जिसको याद करना है उसको भुला देते हो। तो भुलाना आता है ना? बाप को भूलने नहीं चाहते हो तो भी भूल जाते हो और जिस समय भूलना चाहिए उस समय क्या कहते हो - भूलना चाहते हैं लेकिन भूलते नहीं, बार-बार याद आ जाता है। तो याद करना और भूलना दोनों ही बाते आती हैं। लेकिन क्या याद करना है और क्या भूलना है? जिस समय भूलना है उस समय याद करते हो और जिस समय याद करना है उस समय भूल जाते हो। छोटी सी गलती है ना? तो इसको हो ली कर दो, जला दो। अंश से खत्म कर दो। ज्ञानी तू आत्मा हो ना? ज्ञानी का अर्थ ही है समझदार। और आप तो तीनों कालों के समझदार हो इसलिए होली मनाना अर्थात् इस गलती को जलाना। जो भूलना है वह सेकेण्ड में भूल जाये और जो याद करना है वह सेकेण्ड में याद आए। कारण सिर्फ बिन्दी के बजाए क्वेश्चन मार्क है। क्यों सोचा और क्यू शुरू हो जाती है। ऐसा वैसा, क्यों क्या बड़ी क्यू शुरू हो जाती है। सिर्फ क्वेश्चन मार्क लगाने से। और बिन्दी लगा दो तो क्या होगा? आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और व्यर्थ को भी बिन्दी, फुल स्टॉप। स्टॉप भी नहीं, फुल स्टॉप। इसको कहा जाता है होली। और इस होली से सदा बाप के संग के रंग की होली, मिलन होली मनाते रहेंगे। सबसे पक्का रंग कौन सा है? यह स्थूल रंग भल कितने भी पक्के हों लेकिन सबसे श्रेष्ठ और सबसे पक्का रंग है बाप के संग का रंग। तो इस रंग से मनाओ। आपका यादगार गोप गोपियों के होली मनाने का है। उस चित्र में क्या दिखाते हैं? बाप और आप दोनों संग संग होली खेलते हैं। एक एक गोप वा गोपी के साथ गोपी वल्लभ दिखाते हैं। तो यह संग हो गया ना! साथ वा संग अविनाशी होली है बाप के संग के रंग की यादगार होली रास के साथ के रूप में दिखाई है। तो होली मनाने आती है ना? यह हो गया, क्या करुँ, चाहते नहीं है लेकिन हो जाता है... आज से इसकी होली जलाओ, समाप्त करो। मास्टर सर्वशक्तिवान कभी संकल्प में भी यह सोच नहीं सकते। अच्छा।
डबल विदेशी भी अच्छी सेवा की वृद्धि में आगे बढ़ रहे हैं। बाप से भी प्यार है, तो सेवा से भी प्यार है। सेवा अर्थात् स्व और सर्व आत्माओं की साथ-साथ सेवा। पहले स्व क्योंकि स्व-स्थिति वाले ही अन्य आत्माओं को परिस्थितियों से निकाल सकते हैं। सेवा की सफलता ही है - स्व और सर्व के बैलेन्स की स्थिति। ऐसे कभी भी नहीं कहो कि सेवा में बहुत बिज़ी थे ना इसीलिए स्व के स्थिति का चार्ट ढीला हो गया। एक तरफ कमाया, दूसरे तरफ गँवाया तो बाकी बचा क्या? इसलिए जैसे बाप और आप कम्बाइण्ड हो, शरीर और आत्मा कम्बाइण्ड है, आपका भविष्य विष्णु स्वरूप कम्बाइण्ड है, ऐसे स्व-सेवा और सर्व की सेवा कम्बाइण्ड हो। इसको अलग नहीं करो, नहीं तो मेहनत ज्यादा और सफलता कम मिलती है। अधूरा हो गया ना!
इस ग्रुप के चार्ट में भी सेकेण्ड नम्बर ज्यादा है। फर्स्ट भी कम है तो चौथा पांचवा भी कम है, सेकेण्ड तक गये हैं तो सेकेण्ड के बाद आगे क्या है? फर्स्ट है ना। सेकेण्ड तक कदम रख लिया है बाकी अभी एक कदम फर्स्ट में रखना है। उसकी विधि है - कम्बाइण्ड स्वरूप की सेवा। बच्चे सेवा का भी प्लैन बना रहे हैं ना। बापदादा ने तो इशारा दिया ही था कि अभी समय प्रमाण सेवा जो की वो बहुत अच्छी की। इससे बाप को, अपने को प्रत्यक्ष किया, वायुमण्डल और वायब्रेशन परिवर्तन हुआ। स्नेही और सहयोगी आत्माएं चारों ओर काफी संख्या में नजदीक आई। अभी ऐसी सेवा करो जो एक द्वारा अनेकों की सेवा हो। सारे विश्व को सन्देश देना है। एक एक को सन्देश देते जो राजधानी में आने वाली आत्माएं हैं वो अपना भाग्य बनाकर आगे आ गई हैं। लेकिन अभी तो सन्देश देने की संख्या निकले हुए राज्य अधिकारी बच्चों से ज्यादा है। राज्य फैमिली में आने वाले वा राज्य तख्त पर बैठने वाले दोनों ही अच्छे निकाले हैं। राज्य अधिकारी भी आप लोग ही बनेंगे ना। आप बनेंगे या औरों को बनायेंगे? औरों को राज्य अधिकारी बनायेंगे और आप क्या बनेंगे? अच्छा।
कल्प पहले का वर्सा लेने के लिए नये नये बच्चे भी पहुँच गये हैं इसके लिए बापदादा वेलकम कर रहे हैं, और नये बर्थ के बर्थ डे की मुबारक दे रहे हैं। अच्छा!
चारों ओर के सर्व कम्बाइण्ड स्थिति में स्थिति रहने वाले, सदा कम्बाइण्ड सेवा में अथक सेवा से निमित्त बनने वाले, सदा बीती को बीती कर बाप के संग के रंग की होली मनाने वाले होलीहंस आत्माएं, सदा तीनों काल के वर्से के खुशी में रहने वाले, सदा साक्षी बन प्रकृति और माया का खेल देखने वाले - ऐसे सदा विजयी, सदा उड़ती कला वाले, सदा फरिश्ता स्वरूप सामने अनुभव करने वाले, श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:- दृढ़ संकल्प रूपी व्रत द्वारा अपनी वृत्तियों को परिवर्तन करने वाले महान आत्मा भव
महान आत्मा बनने का आधार है -“पवित्रता के व्रत को प्रतिज्ञा के रूप में धारण करना'' किसी भी प्रकार का दृढ़ संकल्प रूपी व्रत लेना अर्थात् अपनी वृत्ति को परिवर्तन करना। दृढ़ व्रत वृत्ति को बदल देता है। व्रत का अर्थ है मन में संकल्प लेना और स्थूल रीति से परहेज करना। आप सबने पवित्रता का व्रत लिया और वृत्ति श्रेष्ठ बनाई। सर्व आत्माओं के प्रति आत्मा भाई-भाई की वृत्ति बनने से ही महान आत्मा बन गये।
स्लोगन:- अपने पवित्र श्रेष्ठ वायब्रेशन की चमक विश्व में फैलाना ही रीयल डायमण्ड बनना है। ब्रह्माकुमारीज क्षेत्रीय कार्यालय: राजयोग भवन, ई-5,अरेरा कॉलोनी, मेन रोड नंबर 3,भोपाल मध्य प्रदेश। सम्पर्क: 9691454063,9406564449,https://youtu.be/H2nq5rL8tNc