आप शिव बाबा की मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं।YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है।                                                                                                                                                                   सत्य और असत्य का विशेष अन्तर

आज दिलाराम बाप अपने सर्व बच्चों के दिल की आश पूर्ण करने के लिए मिलन मनाने आये हैं। अव्यक्त रूप में तो सदा सर्व बच्चे मिलन मनाते रहते हैं। फिर भी व्यक्त शरीर द्वारा अव्यक्त मिलन मनाने की शुभ आश रखते हैं इसलिए बाप को भी अव्यक्त से व्यक्त में आना पड़ता है। बापदादा इस समय चारों ओर देश-विदेश के बच्चों को देख रहे हैं - मन से मधुबन में हैं। आप साकार में हो और अनेक बच्चे अव्यक्त रूप से मिलन मना रहे हैं। बापदादा भी सर्व बच्चों के स्नेह का रिटर्न दे रहे हैं। जहाँ भी हैं लेकिन याद द्वारा बाप के समीप दिल में हैं। सबके स्नेह के साज़ बापदादा सुन रहे हैं। बाप जानते हैं कि बच्चों के लिए सिवाए बाप के और कोई याद करने वाला है नहीं और बाप को भी सिवाए बच्चों के और कोई है नहीं। सदा इसी स्मृति में रहते हैं कि मैं बाबा का और बाबा मेरा। यही स्मृति सहज भी है और समर्थ बनाने वाली है। ऐसा स्मृति-स्वरूप स्नेही बच्चा साकार में तो क्या लेकिन स्वप्न में भी कभी असमर्थ हो नहीं सकता। असमर्थ होना अर्थात् ‘मेरा बाबा' के बजाए कोई और ‘मेरापन' आता है। एक मेरा बाबा - यह है मिलन मनाना। अगर ‘एक' के बजाए ‘दो' मेरा हुआ तो क्या हो जाता? वह है मिलना और वह है झमेला।

कई बच्चे समझते हैं - बाबा तो मेरा है ही लेकिन और भी एक-दो को मेरा करना ही पड़ता है। कहते हैं और कोई नहीं, सिर्फ एक आधार चाहिए। लेकिन वायदा क्या है, एक बाप दूसरा न कोई या एक बाप एक और? भोले बन जाते हो। उस एक में अनेक समाये हुए होते हैं, इसलिए झमेला हो जाता है। इस पुरानी दुनिया में भी ऐसे खिलौने मिलते हैं जो बाहर से एक दिखाई देता है लेकिन एक में एक होता है। एक खोलते जाओ तो दूसरा निकलेगा, दूसरा खोलेंगे तो तीसरा निकलेगा। यह भी ऐसा ही खिलौना है। दिखाई एक देता लेकिन अन्दर समाये हुए अनेक हैं। और जब झमेले में चले गये तो मिलन मनाना कैसे हो सकता? झमेले में ही लगे रहेंगे या मिलन मनायेंगे? सिर्फ दो नहीं सोचो। सिवाए एक बाप के संकल्प में भी अगर कोई आत्मा को वा प्रकृति के साधन को मेरा सहारा स्वीकार किया तो यह आटोमेटिक ईश्वरीय मशीनरी बहुत फास्ट गति से कार्य करती है। जिस सेकेण्ड अन्य को सहारा बनाया, उसी सेकेण्ड मन-बुद्धि का बाप से किनारा हो जाता है। सत्य बाप से किनारा होने के कारण बुद्धि असत्य को सत्य, रांग को राइट मानने लगती है, उल्टी जजमेंट देने लगती है। कितना भी कोई समझायेगा कि यह राइट नहीं है, लेकिन वह यथार्थ को, सत्य को भी असत्य की शक्ति से समझाने वाले को रांग सिद्ध करेगा। यह सदा याद रखो कि आजकल ड्रामा अनुसार असत्य का राज्य है और असत्य के राज्य-अधिकारी प्रेजीडेंट रावण है। उसके कितने शीश हैं अर्थात् असत्य की शक्ति कितनी महान् है! उसके मंत्री-महामंत्री भी बड़े महान् हैं। उसके जज और वकील भी बड़े होशियार हैं इसलिए उल्टी जजमेन्ट की प्वॉइन्ट्स बहुत वैराइटी और बाहर से मधुर रूप की देते हैं इसलिए सत्य को असत्य सिद्ध करने में बहुत होशियार होते हैं।

लेकिन असत्य और सत्य में विशेष अन्तर क्या है? असत्य की जीत अल्पकाल की होती है क्योंकि असत्य का राज्य ही अल्पकाल का है। सत्यता की हार अल्पकाल की और जीत सदाकाल की है। असत्य के अल्पकाल के विजयी उस समय खुश होते हैं। जितना थोड़ा समय खुशी मनाते वा अपने को राइट सिद्ध करते, तो समय आने पर असत्य के अल्पकाल का समय समाप्त होने पर जितनी असत्यता के वश मौज मनाई, उतना ही सौ गुणा सत्यता की विजय प्रत्यक्ष होने पर पश्चाताप करना ही पड़ता है क्योंकि बाप से किनारा, स्थूल में किनारा नहीं होता, स्थूल में तो स्वयं को ज्ञानी समझते हैं लेकिन मन और बुद्धि से किनारा होता। और बाप से किनारा होना अर्थात् सदाकाल की सर्व प्राप्तियों के अधिकार से सम्पन्न के बजाए अधूरा अधिकार प्राप्त होना। कई बच्चे समझते हैं कि असत्य के बल से असत्य के राज्य में विजय की खुशी वा मौज इस समय तो मना लें, भविष्य किसने देखा। कौन देखेगा - हम भी भूल जायेंगे, सब भूल जायेंगे। लेकिन यह असत्य की जजमेंट है। भविष्य वर्तमान की परछाई है। बिना वर्तमान के भविष्य नहीं बनता। असत्य के वशीभूत आत्मा वर्तमान समय भी अल्प-काल के सुख के नाम, मान, शान के सुखों के झूले में झूल सकती है और झूलती भी है, लेकिन अतीन्द्रिय अविनाशी सुख के झूले में नहीं झूल सकती। अल्पकाल के शान, मान और नाम की मौज मना सकते हैं लेकिन सर्व आत्माओं के दिल के स्नेह का, दिल की दुआओं का मान नहीं प्राप्त कर सकते। दिखावा-मात्र मान पा सकते हैं लेकिन दिल से मान नहीं पा सकते। अल्पकाल का शान मिलता है लेकिन बाप से सदा दिलतख्तनशीन का शान अनुभव नहीं कर सकते। असत्य के साथियों द्वारा नाम प्राप्त कर सकते हैं लेकिन बापदादा के दिल पर नाम नहीं प्राप्त कर सकते क्योंकि बापदादा से किनारा है। भविष्य की बात तो छोड़ो, वह तो अण्डरस्टुड है। लेकिन वर्तमान सत्यता और असत्यता की प्राप्ति में कितना अन्तर है? एक दूसरा मेरा बनाया अर्थात् असत्य का सहारा लिया। कितना झमेला हुआ! कहने में तो कहेंगे - और कुछ नहीं, सिर्फ कभी-कभी थोड़ा सहारा चाहिए। लेकिन वायदा तोड़ना अर्थात् झमेले में पड़ना। क्या ऐसा वायदा किया है - एक मेरा बाबा और कभी-कभी दूसरा? दूसरा भी एलाउ है? यह लिखा था क्या? चाहे अल्पकाल के नाम-मान-शान का सहारा लो, चाहे व्यक्ति का लो, चाहे वैभव का लो, जब दूसरा न कोई तो फिर दूसरा कहाँ से आया? यह असत्य के राज्य के झमेले में फंसाने की चतुराइयां हैं। जैसे बाप कहते हैं ना मैं जो हूँ, जैसा हूँ, वैसा मुझे नम्बरवार जानते हैं। ऐसे असत्य के राज्य-अधिकारी ‘रावण' को भी जो है, जैसा है, वैसे सदा नहीं जानते हो। कभी भूल जाते हो, कभी जानते हो। राज्य-अधिकारी है तो यह ताकत कम होगी! चाहे झूठा हो, चाहे सच्चा हो लेकिन राज्य तो है ना इसलिए अपने को चेक करो, दूसरे को नहीं।

आजकल दूसरों को चेक करने में सब होशियार हो गये हैं। बापदादा कहते हैं - अपना चेकर बनो और दूसरे का मेकर बनो। लेकिन करते क्या हो? दूसरे का चेकर बन जाते हो और बातें बनाने में मेकर बन जाते हो। बापदादा रोज़ की हर एक बच्चे की कौनसी कहानियाँ सुनते हैं? बहुत बड़ा किताब है कहानियों का। तो अपने को चेक करो। दूसरे को चेक करने लगते हो तो लम्बी कथायें बन जाती हैं और अपने को चेक करेंगे तो सब कथायें समाप्त हो एक सत्य जीवन की कथा प्रैक्टिकल में चलेगी। सभी कहते हैं बाबा, आप से बहुत प्यार है! सिर्फ कहते हो वा करते भी हो, क्या कहेंगे? कभी कहते हो, कभी करते हो। बाप के प्यार का प्रत्यक्ष सबूत बाप ने दे दिया। जो हो, जैसे हो मेरे हो। लेकिन अभी बच्चों को सबूत देना है। क्या सबूत देना है? बाप कहते हैं जो हो, जैसे हो मेरे हो। और आप क्या कहेंगे? जो है वह सब आप हो। ऐसे नहीं थोड़ा-थोड़ा और भी है। बाप से प्यार है लेकिन कभी-कभी असत्य के राज्य के प्रभाव में आ जाते हैं। अच्छा!

चारों ओर के यथार्थ सत्य को परखने वाले, सच्चे बाप के सच्चे बच्चों को, सर्व स्नेह में समाए हुए श्रेष्ठ आत्माओं को, सर्व सदा वायदे को निभाने वाली समर्थ आत्माओं को, सर्व यथार्थ परखने वाली शक्तिशाली आत्माओं को, सर्व याद और सेवा में निर्विघ्न रहने वाले, सदा साथ और समीप रहने वाले बच्चों को याद, प्यार और नमस्ते।

मधुबन निवासियों प्रति अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य

मधुबन निवासियों को कितने प्रत्यक्षफल मिलते हैं? मधुबन की विशेषता क्या है जो और कहाँ नहीं मिलती? श्रेष्ठ कर्मभूमि पर रहने वाले सदा फॉलो फादर करते हैं। मधुबन की श्रेष्ठता तो यह है कि ब्रह्मा बाप की विशेष कर्मभूमि है। तो मधुबन निवासी जो भी कर्म करते हैं वो फॉलो फादर करते हैं। कर्मभूमि में विशेषता कर्म की है। तो कर्म में फॉलो है? जो भी अमृतवेले से लेकर रात तक कर्म करते हो उसमें फॉलो फादर है? मधुबन निवासियों को और एक्स्ट्रा कर्मभूमि की याद का बल है। वह कर्म में दिखाई देता है वा देना है, क्या कहेंगे? आप अपने में देखते हो? एक-एक कदम सामने लाओ - उठना-बैठना, चलना, बोलना, सम्बन्ध-सम्पर्क में आना सबमें ब्रह्मा बाप के कर्म को फॉलो है? कर्मभूमि का फायदा तो यही है ना। तो इतना लाभ ले रहे हो? शक्तियां क्या समझती हैं? कर्मभूमि का लाभ जितना मधुबन ले सकता है, उतना औरों को लेने आना पड़ता है और आपको मिला हुआ है। वरदान-भूमि है, कर्मभूमि है। तो हर कर्म वरदान योग्य है जो कोई भी देखे तो मुख से वरदान निकले? इसको कहेंगे वरदान-भूमि का वरदान लेना। चाहे साधारण कर्म कर रहे हो लेकिन साधारण कर्म में विशेषता दिखाई दे। यही मधुबन की विशेषता है ना।

विशेष ब्रह्मा बाप की अपने कर्मभूमि में रहने वालों के प्रति यह विशेष श्रेष्ठ आश है कि मधुबन का एक-एक ब्राह्मण आत्मा, श्रेष्ठ आत्मा हर कर्म में ब्रह्मा बाप के कर्म का दर्पण हो। तो दर्पण में क्या दिखाई देता है? यही दिखाई देता है ना। अगर आप दर्पण में खड़े होंगे तो हू-ब-हू आप ही दिखाई देंगे या दूसरा? तो ब्रह्मा बाप के कर्म आपके कर्म के दर्पण में दिखाई दें। भाग्यवान हो - यह तो सदा सभी कहते भी हैं और हैं भी। लेकिन हर कर्म में ब्रह्मा बाप के कर्म दिखाई दें। यह सर्टीफिकेट कौन लेगा और कब लेंगे? लेना तो है ना। या ले लिया है? जिसने यह सर्टीफिकेट ले लिया है कि हर कर्म में ब्रह्मा बाप के कर्म दिखाई दे रहे हैं, उनका बोल, ब्रह्मा का बोल समान, उठना-बैठना, देखना, चलना - सब समान। ऐसा सर्टीफिकेट लिया है? जिसको लेना है वो हाथ उठाओ। यह भी अच्छा है। कहने से पहले करके दिखायेंगे। लेकिन यह लक्ष्य रखो कि हर कर्म बाप समान हो। ब्रह्मा बाप को फालो करना तो सहज है ना। निराकारी बनना अर्थात् सदा निराकारी स्थिति में स्थित होना। उसके बजाय कर्म में फॉलो करना उससे सहज है। तो ब्रह्मा बाप तो सहज काम दे रहा है, मुश्किल नहीं। तो सभी लक्ष्य रखो कि मधुबन में जहाँ देखें, जिसको देखें - ब्रह्मा बाप के कर्म दिखाई दें। कर्म में सर्वव्यापी ब्रह्मा कर सकते हो। जहाँ देखें ब्रह्मा समान! हो सकता है ना।

मधुबन की महिमा अर्थात् मधुबन निवासियों की महिमा। मधुबन की दीवारों की महिमा नहीं है, मधुबन निवासियों की महिमा है। मधुबन की महिमा चारों ओर से रोज़ सुनते हो ना। मधुबन निवासियों की महिमा जो होती है वह किसकी है? आप सबकी है ना। नशा तो रहता है कि हम मधुबन निवासी हैं। जैसे यह नशा है वैसे यह नशा भी प्रत्यक्ष दिखाई दे कि यह ब्रह्मा बाप के समान फालो फादर करने वाले हैं। अच्छा! सभी सन्तुष्ट हो? कुछ सैलवेशन चाहिये? सैलवेशन की भूमि में बैठे हो। कितने बेफिक्र बैठे हो! शरीर की मेहनत करते हो, और तो सब बना बनाया मिलता है। जो शरीर की मेहनत नहीं करते हैं उनको एक्सरसाइज की मेहनत कराते हैं। आप तो लक्की हो ना जो एक्सरसाइज नहीं करना पड़े। हाथ-पांव चलते रहते हैं। जितना जो हार्ड वर्क (कठिन परिश्रम) करता है उतना वह सेफ है - माया से भी और शरीर की व्याधियों से भी। बुद्धि तो बिजी रहती है ना। और फालतू तो कुछ नहीं चलेगा। तो जो सदा बिज़ी रहते हैं वे बहुत लक्की हैं इसलिए अपने को फ्री नहीं करना। चलो, बहुत समय कर लिया, अब फ्री हो जायें। बिज़ी रहना खुशनसीब की निशानी है। खुशनसीब हो ना। अपने को सदा बिज़ी रखना। अच्छा! अभी बापदादा को करके दिखाना। समझा!

ब्रह्मा बाप की विशेषता सूरत में क्या देखी? गम्भीरता के चिन्ह भी और मुस्कराहट भी। गम्भीरता अर्थात् अन्तर्मुखता और साथ-साथ रमणीकता। अन्तर्मुखी की निशानी सदा सागर के तले में खोये हुए गम्भीरमूर्त। मनन-चिंतन करने वाला चेहरा और फिर रमणीक अर्थात् मुस्कराता हुआ चेहरा। तो दोनों ही लक्षण सूरत में देखे ना। ऐसे आपकी सूरत भी ब्रह्मा बाप के कापी स्वरूप हो। सूरत और सीरत से ब्रह्मा बाप दिखाई दे क्योंकि ब्रह्मा बाप का सेवा-स्थान, कर्मभूमि तो मधुबन है ना। तो इस भूमि के रहने वालों द्वारा वही कर्म, सेवा प्रत्यक्ष होनी चाहिए। इसी आशा के दीपक को सदा जगाओ। ब्रह्मा बाप की आप बच्चों प्रति यही आश है। अब ऐसी दीपावली मनाओ। बापदादा की इस एक आशा का दीपक जगाओ। जब हरेक यह दीपक जगायेगा तो दीपमाला तो हो ही जायेगी ना। दीपमाला में भी देखो अगर बीच में एक दो दीपक बुझे हुए हों तो अच्छा लगेगा? अगर बीच-बीच में एक दो दीपक भी टिमटिमाता है तो अच्छा नहीं लगता इसलिए सर्व जगे हुए दीपकों की माला।

मधुबन निवासी सब जस्टिस होने चाहिए, सेल्फ जस्टिस। कोई भी बात करने के पहले स्वयं जज करो तो न स्वयं का समय जायेगा और न दूसरों का। मधुबन तो पीसपैलेस है। मन की भी पीस, मुख की भी पीस, तब मधुबन पीसपैलेस से पीस की किरणें फैलेंगी। आप पीसपैलेस वालों से सभी पीस की भिक्षा मांगते हैं, क्योंकि वे स्वयं ही स्वयं से तंग हो रहे हैं। विनाशकारियों के पास अभी तक आपके पीस की किरणें पहुँचती नहीं हैं इसीलिए कशमकश में हैं। कभी शान्त, कभी अशान्त। तो उन्हों को शान्त करने के लिए पीसपैलेस से पीस की किरणें जानी चाहिए, तब उन्हों की बुद्धि में एक ही फाइनल फैंसला होगा, खत्म करेंगे और शान्त हो शान्तिधाम में चले जायेंगे। तो ऐसे भिखारियों को अब महादानी बन महादान वा वरदान देने वाले बनो। बापदादा तो सदा समझते हैं कि मधुबन वाले विश्व को बापदादा के समीप लाने वाले समीप रत्न हैं। तो अब ऐसा सबूत दिखाओ। जब ब्रह्मा बाप समान सब कापियाँ तैयार हो जायेंगी तब बेहद का बारूद चलेगा, पटाके छूटेंगे और ताज-पोशी होगी। तो अब यह डेट फिक्स करो, जब आप सब ब्रह्मा बाप की बिल्कुल फोटो कापी होंगे तब ही यह डेट आयेगी। मधुबन निवासी जो चाहें वह कर सकते हैं। अच्छा - तो अभी सब क्या सोच रहे हो।

बापदादा के पास मन के संकल्पों की ही कैमरा नहीं लेकिन हरेक के मन में क्या चलता है, वह भी बापदादा स्पष्ट देख सकते हैं। साइंस वाले तो अभी तक कोशिश ही कर रहे हैं कि ऐसी कैमरा निकालें जो अन्दर के संकल्प की रेखायें मालूम हो जाएं। वे बिचारे मेहनत बहुत कर रहे हैं। यह सब इन्वेन्शन करते-करते रह जायेंगे और आप तैयार हुए साधन कार्य में लायेंगे। अच्छा!

वरदान:-परखने की शक्ति द्वारा कुसंग व व्यर्थ संग से बचने वाले शक्तिशाली आत्मा भव
कई बच्चे कुसंग अर्थात् बुरे संग से तो बच जाते हैं लेकिन व्यर्थ संग से प्रभावित हो जाते हैं, क्योंकि व्यर्थ बातें रमणीक और बाहर से आकर्षित करने वाली होती हैं इसलिए बापदादा की शिक्षा है - न व्यर्थ सुनो, न व्यर्थ बोलो, न व्यर्थ करो, न व्यर्थ देखो, न व्यर्थ सोचो। ऐसे शक्तिशाली बनो जो बाप के सिवाए और कोई भी संग का रंग प्रभावित न करे। परखने की शक्ति द्वारा खराब वा व्यर्थ संग को पहले से ही परखकर परिवर्तन कर दो-तब कहेंगे शक्तिशाली आत्मा।
स्लोगन:-सदा हल्केपन का अनुभव करना है तो बालक और मालिकपन का बैलेन्स रखो।                                                      ब्रह्माकुमारीज क्षेत्रीय कार्यालय: राजयोग भवन, ई-5,अरेरा कॉलोनी, मेन रोड नंबर 3,भोपाल मध्य प्रदेश।                             सम्पर्क: 9691454063,9406564449,https://youtu.be/IM3CiBBJ8U0