मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं।YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है                                                                  ब्राह्मण जीवन का श्वांस - सदा उमंग और उत्साह

आज त्रिमूर्ति शिव बाप सर्व बच्चों को विशेष त्रि-सम्बन्ध से देख रहे हैं। सबसे पहला प्यारा सम्बन्ध है सर्व प्राप्तियों के मालिक वारिस हो, वारिस के साथ ईश्वरीय विद्यार्थी हो, साथ-साथ हर कदम में फालो करने वाले सतगुरू के प्यारे हो। त्रिमूर्ति शिव बाप बच्चों के भी यह तीन सम्बन्ध विशेष रूप में देख रहे हैं। वैसे तो सर्व सम्बन्ध निभाने की अनुभवी आत्मायें हो लेकिन आज विशेष तीन सम्बन्ध देख रहे हैं। यह तीन सम्बन्ध सभी को प्यारे हैं। आज विशेष त्रिमूर्ति शिव जयन्ती मनाने के उमंग से सभी भाग-भागकर पहुँच गये हैं। बाप को मुबारक देने आये हो वा बाप से मुबारक लेने आये हो? दोनों काम करने आये हो। जब नाम ही है शिव जयन्ती वा शिवरात्रि, तो त्रिमूर्ति क्या सिद्ध करता है? प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा क्या करते हैं? आप ब्राह्मणों की रचना रचते हैं ना। उन्हों की फिर पालना होती है। तो त्रिमूर्ति शब्द सिद्ध करता है कि बाप के साथ-साथ आप ब्राह्मण बच्चे भी साथ हैं। अकेला बाप क्या करेगा! इसलिए बाप की जयन्ती सो आप ब्राह्मण बच्चों की भी जयन्ती। तो बाप बच्चों को इस अलौकिक दिव्य जन्म की वा इस डायमण्ड जयन्ती की पद्मापद्म गुणा मुबारक दे रहे हैं। आप सबके मुबारक के पत्र, कार्ड बाप के पास पहुँच ही गये और अभी भी कई बच्चे दिल से मुबारक के गीत गा रहे हैं चाहे दूर हैं, चाहे सम्मुख हैं। दूर वालों के भी मुबारक के गीत कानों में सुनाई दे रहे हैं। रिटर्न में बापदादा भी देश-विदेश के सर्व बच्चों को पद्म-पद्म बधाइयां दे रहे हैं।

यह तो सभी बच्चे जानते ही हो कि ब्राह्मण जीवन में कोई भी उत्सव मनाना अर्थात् सदा उमंग-उत्साह भरी जीवन बनाना। ब्राह्मणों की अलौकिक डिक्शनरी में मनाने का अर्थ है बनना। तो सिर्फ आज उत्सव मनायेंगे वा सदा उत्साह भरी जीवन बनायेंगे? जैसे इस स्थूल शरीर में श्वाँस है तो जीवन है। अगर श्वाँस खत्म हो गया तो जीवन क्या होगी? खत्म। ऐसे ब्राह्मण जीवन का श्वांस है सदा उमंग और उत्साह। ब्राह्मण जीवन में हर सेकेण्ड उमंग-उत्साह नहीं तो ब्राह्मण जीवन नहीं। श्वाँस की गति भी नार्मल (सामान्य) होनी चाहिए। अगर श्वाँस की गति बहुत तेज हो जाए तो भी जीवन यथार्थ नहीं और स्लो हो जाए तो भी यथार्थ जीवन नहीं कही जायेगी। हाई प्रेशर या लो प्रेशर हो जाता है ना। तो इसको नार्मल जीवन नहीं कहा जाता। तो यहाँ भी चेक करो कि “मुझ ब्राह्मण जीवन के उमंग-उत्साह की गति नार्मल है? या कभी बहुत फास्ट, कभी बहुत स्लो हो जाती? एकरस रहती है?'' एकरस होना चाहिए ना। कभी बहुत, कभी कम यह तो अच्छा नहीं है ना, इसलिए संगमयुग की हर घड़ी उत्सव है। यह तो विशेष मनोरंजन के लिए मनाते हैं क्योंकि ब्राह्मण जीवन में और कहाँ जाकर मनोरंजन मनायेंगे! यहाँ ही तो मनायेंगे ना! कहाँ विशेष सागर के किनारे पर या बगीचे में या क्लब में तो नहीं जायेंगे ना। यहाँ ही सागर का किनारा भी है, बगीचा भी है तो क्लब भी है। यह ब्राह्मण क्लब अच्छी है ना! तो ब्राह्मण जीवन का श्वांस है उमंग-उत्साह। श्वांस की गति ठीक है ना कि कभी नीचे-ऊपर हो जाती है? बापदादा हर एक बच्चे को चेक करते रहते हैं। ये कान में लगाकर चेक नहीं करना पड़ता। आजकल तो साइन्स ने भी सब आटोमेटिक निकाले हैं।

तो शिव जयन्ती वा शिवरात्रि दोनों के रहस्य को अच्छी तरह से जान गये हो ना! दोनों ही रहस्य स्वयं भी जान गये हो और दूसरों को भी स्पष्ट सुना सकते हैं क्योंकि बाप की जयन्ती के साथ आपकी भी है। अपने बर्थ-डे (जन्म-दिन) का रहस्य तो सुना सकते हो ना! यादगार तो भक्त लोग भी बड़ी भावना से मनाते हैं। लेकिन अन्तर यह है कि वह शिवरात्रि पर हर साल व्रत रखते हैं और आप तो पिकनिक करते हो क्योंकि आप सब ने जन्मते ही सदाकाल के लिए अर्थात् सम्पूर्ण ब्राह्मण जीवन के लिए एक बार व्रत धारण कर लिया, इसलिए बार-बार नहीं करना पड़ता। उन्हों को हर साल व्रत रखना पड़ता है। आप सभी ब्राह्मण आत्माओं ने जन्म लेते ही यह व्रत ले लिया कि हम सदा बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण रहेंगे। यह पक्का व्रत लिया है या थोड़ा कच्चा...? जब आत्मा और परम-आत्मा का सम्बन्ध अविनाशी है तो व्रत भी अविनाशी है ना। दुनिया वाले सिर्फ खान-पान का व्रत रखते हैं। इससे भी क्या सिद्ध होता है? आपने ब्राह्मण जीवन में सदा के लिए खान-पान का भी व्रत लिया है ना। कि यह फ्री है खाना-पीना जो भी चाहे खा लो? पक्का व्रत है वा “कभी-कभी थक जाओ तो व्रत तोड़ दो? कभी टाइम नहीं मिलता तो क्या बनायें, कुछ भी मंगाकर खा लेवें?'' थोड़ा-थोड़ा ढीला करते हो? देखो, आपके भक्त व्रत रख रहे हैं। चाहे साल में एक बार भी रखते हैं लेकिन मर्यादा को पालन तो कर रहे हैं ना। तो जब आपके भक्त व्रत में पक्के हैं, तो आप कितने पक्के हो? पक्के हो? कभी-कभी थोड़ा ढीला कर देते हो चलो, कल भोग लगा देंगे, आज नहीं लगाते। यह भी आप ब्राह्मण आत्माओं की जीवन के बेहद के व्रत के यादगार बने हुए हैं।

विशेष इस दिन पवित्रता का भी व्रत रखते हैं। एक पवित्रता का व्रत रखते; दूसरा खान-पान का व्रत रखते; तीसरा सारा दिन किसी को भी किसी प्रकार का दु:ख या धोखा नहीं देंगे, यह भी व्रत रखते हैं। लेकिन आप का इस ब्राह्मण जीवन का व्रत बेहद का है, उन्हों का एक दिन का है। पवित्रता का व्रत तो ब्राह्मण जन्म से ही धारण कर लिया है ना! सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन पांचों ही विकारों पर विजय हो इसको कहते हैं पवित्रता का व्रत। तो सोचो कि पवित्रता के व्रत में कहाँ तक सफल हुए हैं? जैसे ब्रह्मचर्य अर्थात् काम महाशत्रु को जीतने के लिये विशेष अटेन्शन में रहते हो, ऐसे ही और भी चार साथी जो काम महाशत्रु के हैं, उनका भी इतना ही अटेन्शन रहता है? कि उसके लिए छुट्टी है थोड़ा-थोड़ा क्रोध भल कर लो? छुट्टी है नहीं, लेकिन अपने आपको छुट्टी दे देते हो। देखा गया है कि क्रोध के बाल-बच्चे जो हैं उनको छुट्टी दे दी है। क्रोध महाभूत को तो भगाया है लेकिन उसके जो बाल-बच्चे हैं उनसे थोड़ी प्रीत अभी भी रखी है। जैसे छोटे बच्चे अच्छे लगते हैं ना। तो यह क्रोध के छोटे बच्चे कभी-कभी प्यारे लगते हैं! व्रत अर्थात् सम्पूर्ण पवित्रता का व्रत। कई बच्चे बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं। कहते हैं “क्रोध आया नहीं लेकिन क्रोध दिलाया गया, तो क्या करें? मेरे को नहीं आया लेकिन दूसरा दिलाता है।'' बहुत मज़े की बातें करते हैं। कहते हैं आप भी उस समय होते तो आपको भी आ जाता। तो बापदादा क्या कहेंगे? बापदादा भी कहते अच्छा, तुमको माफ कर दिया, लेकिन आगे फिर नहीं करना।

शिवरात्रि का अर्थ ही है अंधकार मिटाए प्रकाश लाने वाली रात्रि। मास्टर ज्ञान-सूर्य प्रकट होना यह है शिवरात्रि। आप भी मास्टर ज्ञान-सूर्य बन विश्व में अंधकार को मिटाए रोशनी देने वाले हो। जो विश्व को रोशनी देने वाला है वह स्वयं क्या होगा? स्वयं अंधकार में तो नहीं होगा ना। दीपक के माफिक तो नहीं हो? दीपक के नीचे अंधियारा होता है, ऊपर रोशनी होती है। आप मास्टर ज्ञान-सूर्य हो। तो मास्टर ज्ञान-सूर्य स्वयं भी प्रकाश-स्वरूप है, लाइट-माइट रूप है और दूसरों को भी लाइट-माइट देने वाले हैं। जहाँ सदा रोशनी होती है वहाँ अंधकार का सवाल ही नहीं, अंधकार हो ही नहीं सकता। तो सम्पूर्ण पवित्रता अर्थात् रोशनी। अंधकार मिटाने वाली आत्माओं के पास अंधकार रह नहीं सकता। रह सकता है? आ सकता है? चलो, रहे नहीं लेकिन आकर चला जाए यह हो सकता है? अगर किसी भी विकार का अंश है तो उसको रोशनी कहेंगे या अंधकार कहेंगे? अंधकार खत्म हो गया ना। शिव-रात्रि का चित्र भी दिखाते हो ना। उसमें क्या दिखाते हो? अंधकार भाग रहा है कि थोड़ा-थोड़ा रह गया? इस शिवरात्रि पर विशेष क्या करेंगे? कुछ करेंगे या सिर्फ झण्डा लहरायेंगे? जैसे सदा प्रतिज्ञा करते हो कि हम यह नहीं करेंगे, यह नहीं करेंगे... और फिर करेंगे भी, ऐसे तो नहीं? पहले भी सुनाया है कि प्रतिज्ञा का अर्थ ही है कि जान चली जाए लेकिन प्रतिज्ञा न जाये। कुछ भी त्याग करना पड़े, कुछ भी सुनना पड़े लेकिन प्रतिज्ञा न जाये। ऐसे नहीं जब कोई समस्या नहीं तब तो प्रतिज्ञा ठीक है, अगर कोई समस्या आ गई तो समस्या शक्तिशाली हो जाए और प्रतिज्ञा उसके आगे कमजोर हो जाए। इसको प्रतिज्ञा नहीं कहा जाता। वचन अर्थात् वचन। तो ऐसे प्रतिज्ञा मन से करें, कहने से नहीं। कहने से करने वाले उस समय तो शक्तिशाली संकल्प करते हैं। कहने से करने वाले में शक्ति तो रहती है लेकिन सर्व शक्तियां नहीं रहतीं। जब मन से प्रतिज्ञा करते हो और किससे प्रतिज्ञा की? बाप से। तो बाप से मन से प्रतिज्ञा करना अर्थात् मन को ‘मनमनाभव' भी बनाना और मनमनाभव का मंत्र सदा किसी भी परिस्थिति में यत्र बन जाता है। लेकिन मन से करने से यह होगा। मन में आये कि मुझे यह करना नहीं है। अगर मन में यह संकल्प होता है कि कोशिश करेंगे; करना तो है ही; बनना तो है ही; ऐसे नहीं करेंगे तो क्या होगा; क्या करेंगे, इसलिए कर लो... इसको कहा जायेगा थोड़ी-थोड़ी मजबूरी। जो मन से करने वाला होगा वह यह नहीं सोचेगा कि करना ही पड़ेगा...। वह यह सोचगा कि बाप ने कहा और हुआ ही पड़ा है। निश्चय और सफलता में निश्चित होगा। यह है फर्स्ट नम्बर की प्रतिज्ञा। सेकेण्ड नम्बर की प्रतिज्ञा है बनना तो है, करना तो है ही, पता नहीं कब हो जाये। यह ‘तो', ‘तो'... करना अर्थात् तोता हो गया ना। बापदादा के पास हर एक ने कितनी बार प्रतिज्ञा की है, वह सारा फाइल है। फाइल बहुत बड़े हो गये हैं। अभी फाइल नहीं भरना है, फाइनल करना है। जब कोई बापदादा को कहते हैं कि प्रतिज्ञा की चिटकी लिखायें, तो बापदादा के सामने सारी फाइल आ जाती है। अभी भी ऐसे करेंगे? फाइल में कागज एड करेंगे कि फाइनल प्रतिज्ञा करेंगे?

प्रतिज्ञा कमजोर होने का एक ही कारण बापदादा ने देखा है। वह एक शब्द भिन्न-भिन्न रॉयल रूप में आता है और कमजोर करता है। वह एक ही शब्द है बाडी-कॉनसेस का ‘मैं'। यह ‘मैं' शब्द ही धोखा देता है। ‘मैं' यह समझता हूँ, ‘मैं' ही यह कर सकता हूँ, ‘मैंने' जो कहा वही ठीक है, ‘मैंने' जो सोचा वही ठीक है। तो ‘भिन्न-भिन्न' रॉयल रूप में यह मैं-पन प्रतिज्ञा को कमजोर करता है। आखिर कमजोर होकर के दिलशिकस्त के शब्द सोचते हैं मैं इतना सहन नहीं कर सकता; अपने को इतना एकदम निर्मान कर दूँ, इतना नहीं कर सकता; इतनी समस्यायें पार नहीं कर सकते, मुश्किल है। यह ‘मैं-पन' कमजोर करता है। बहुत अच्छे रॉयल रूप हैं। अपनी लाइफ में देखो यही ‘मैं-पन' संस्कार के रूप में, स्वभाव के रूप में, भाव के रूप में, भावना के रूप में, बोल के रूप में, सम्बन्ध-सम्पर्क के रूप में और बहुत मीठे रूप में आता है? शिवरात्रि पर यह ‘मैं'-‘मैं' की बलि चढ़ती है। भक्त बेचारों ने तो बकरी के ‘मैं-मैं...' करने वाले को बलि चढ़ाया। लेकिन है यह ‘मैं-मैं', इसकी बलि चढ़ाओ। यादगार तो आप लोगों का और रूप में मना रहे हैं। बलि चढ़ चुके हैं या अभी थोड़ी ‘मैं-पन' की बलि रही हुई है? क्या रिजल्ट है? प्रतिज्ञा करनी है तो सम्पूर्ण प्रतिज्ञा करो। जब बाप से प्यार है, प्यार में तो सब पास हैं। कोई कहेगा बाप से 75 प्रतिशत प्यार है, 50 प्रतिशत प्यार है? प्यार के लिए सब कहेंगे 100 प्रतिशत से भी ज्यादा प्यार है! बाप भी कहते हैं कि सभी प्यार करने वाले हैं, इसमें पास हैं। प्यार में त्याग क्या चीज़ है! तो प्रतिज्ञा मन से करो और दृढ़ करो। बार-बार अपने आपको चेक करो कि प्रतिज्ञा पॉवरफुल है या परीक्षा पॉवरफुल है? कोई न कोई परीक्षा प्रतिज्ञा को कमजोर कर देती है।

डबल विदेशी तो वायदा करने में होशियार हैं ना। तोड़ने में नहीं, जोड़ने में होशियार हो। बापदादा सभी डबल विदेशी बच्चों का भाग्य देख हर्षित होते हैं। बाप को पहचान लिया यही सबसे बड़े ते बड़ी कमाल की है! दूसरी कमाल - वैरायटी वृक्ष की डालियां होते हुए भी एक बाप के चन्दन के वृक्ष की डालियां बन गये! अब एक ही वृक्ष की डालियां हो। भिन्नता में एकता लाई। देश भिन्न है, भाषा भिन्न-भिन्न है, कल्चर भिन्न-भिन्न है लेकिन आप लोगों ने भिन्नता को एकता में लाया। अभी सबका कल्चर कौनसा है? ब्राह्मण कल्चर है। यह कभी नहीं कहना कि हमारा विदेश का कल्चर ऐसे कहता है; या भारत-वासी कहें कि हमारे भारत का कल्चर ऐसे होता है। न भारत, न विदेश - ब्राह्मण कल्चर। तो भिन्नता में एकता यही तो कमाल है! और कमाल क्या की है? बाप के बने तो सब प्रकार की अलग-अलग रस्म-रिवाज, दिनचर्या आदि सब मिलाकर एक कर दी। चाहे अमेरिका में हों, चाहे लण्डन में हों, कहाँ भी हों लेकिन ब्राह्मणों की दिनचर्या एक ही है। या अलग है? विदेश की दिनचर्या अलग हो, भारत की अलग हो नहीं। सबकी एक है। तो यह भिन्नता का त्याग यह कमाल है। समझा, क्या-क्या कमाल की है? जैसे आप बाप के लिए गाते हो ना कि बाप ने कमाल कर दी! बाप फिर गाते हैं बच्चों ने कमाल कर दी। बाप-दादा देख-देख हर्षित होते हैं। बाप हर्षित होते हैं और बच्चे खुशी में नाचते हैं।

सेवा भी चारों ओर विदेश की, देश की सुनते रहते हैं। दोनों ही सेवा में रेस कर रहे हैं। प्रोग्राम्स सभी अच्छे हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे। यह दृढ़ संकल्प यूज़ किया अर्थात् सफल किया। जितना दृढ़ संकल्प को सफल करते जायेंगे उतनी सहज सफलता अनुभव करते जायेंगे। कभी भी यह नहीं सोचो कि यह कैसे होगा। ‘कैसे' के बजाए सोचो कि ‘ऐसे' होगा। संगम पर विशेष वरदान ही है असम्भव को सम्भव करना। तो ‘कैसे' शब्द आ ही नहीं सकता। यह होना मुश्किल है, नहीं। निश्चय रख-कर चलो कि यह हुआ पड़ा है, सिर्फ प्रैक्टिकल में लाना है। यह रिपीट होना है। बना हुआ है, बने हुए को बनाना अर्थात् रिपीट करना। इसको कहा जाता है सहज सफलता का आधार दृढ़ संकल्प के खजाने को सफल करो। समझा, क्या होगा, कैसे होगा, नहीं। होगा और सहज होगा! संकल्प की हलचल है तो वह सफलता को हलचल में ले आयेगी। अच्छा!

चारों ओर के सदा उत्सव मनाने वाले, सदा उमंग-उत्साह से उड़ने वाले, सदा सम्पूर्ण प्रतिज्ञा के पात्र अधिकारी आत्मायें, सदा असम्भव को सहज सम्भव करने वाले, सदा हर प्रकार की परीक्षा को कमजोर कर प्रतिज्ञा को पॉवरफुल बनाने वाले, सदा बाप के प्यार के रिटर्न में कुछ भी त्याग करने की हिम्मत वाले, ऐसे त्रिमूर्ति शिव बाप के जन्म-साथी, ब्राह्मण आत्माओं को अलौकिक जन्मदिन की यादप्यार और मुबारक। बापदादा की विशेष श्रेष्ठ आत्माओं को नमस्ते।

वरदान:-    ज्ञान, गुण और शक्तियों रूपी खजाने द्वारा सम्पन्नता का अनुभव करने वाले सम्पत्तिवान भव
जिन बच्चों के पास ज्ञान, गुण और शक्तियों का खजाना है वे सदा सम्पन्न अर्थात् सन्तुष्ट रहते हैं, उनके पास अप्राप्ति का नाम-निशान नहीं रहता। हद के इच्छाओं की अविद्या हो जाती है। वह दाता होते हैं। उनके पास हद की इच्छा वा प्राप्ति की उत्पत्ति नहीं होती। वह कभी मांगने वाले मंगता नहीं बन सकते। ऐसे सदा सम्पन्न और सन्तुष्ट बच्चों को ही सम्पत्तिवान कहा जाता है।
स्लोगन:-मोहब्बत में सदा लवलीन रहो तो मेहनत का अनुभव नहीं होगा।                                                                                      ब्रह्माकुमारीज क्षेत्रीय कार्यालय: राजयोग भवन, ई-5,अरेरा कॉलोनी, मेन रोड नंबर 3,भोपाल मध्यप्रदेश।                                 सम्पर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/tvpB7wALVUI