मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं।YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है।                                                         संगमयुग के राजदुलारे सो भविष्य के राज्य अधिकारी

आज सर्व बच्चों के दिलाराम बाप अपने चारों ओर के सर्व राजदुलारे बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा दिलाराम के दुलार का पात्र है। यह दिव्य दुलार, परमात्म दुलार कोटों में कोई भाग्यवान आत्माओं को ही प्राप्त होता है। अनेक जन्म आत्माओं वा महान् आत्माओं द्वारा दुलार अनुभव किया। अब इस एक अलौकिक जन्म में परमात्म प्यार वा दुलार अनुभव कर रहे हो। इस दिव्य दुलार द्वारा राज दुलारे बन गये हो, इसलिये दिलाराम बाप को भी अलौकिक फ़खर है कि मेरा हर एक बच्चा राजा बच्चा है। राजा हो ना? प्रजा तो नहीं? सभी अपना टाइटल क्या बताते हो? राजयोगी। सभी राजयोगी हो वा कोई प्रजायोगी भी है? सब राजयोगी हो तो प्रजा कहाँ से आयेगी? राज्य किस पर करेंगे? प्रजा तो चाहिये ना? तो वो प्रजायोगी कब आयेंगे? राजदुलारे अर्थात् अब के भी राजे और भविष्य के भी राजे। डबल राज्य है। स़िर्फ भविष्य का राज्य नहीं। भविष्य से पहले अब स्वराज्य अधिकारी बने हो। अपने स्वराज्य के राज्य कारोबार को चेक करते हो? जैसे भविष्य राज्य की महिमा करते हो - एक राज्य, एक धर्म, सुख, शान्ति, सम्पत्ति सम्पन्न राज्य है, ऐसे हे स्वराज्य अधिकारी राजे, स्वराज्य के राज कारोबार में यह सब बातें सदा हैं?

एक राज्य है अर्थात् सदा मुझ आत्मा का राज्य इन सर्व राज्य कारोबारी कर्मेन्द्रियों पर है वा बीच-बीच में स्वराज्य के बजाय पर-राज्य अपना अधिकार तो नहीं करते? पर-राज्य है - माया का राज्य। पर-राज्य की निशानी है पर-अधीन बन जायेंगे। स्वराज्य की निशानी है सदा श्रेष्ठ अधिकारी अनुभव करेंगे। पर-राज्य, पर-अधीन वा परवश बनाता है। जब भी कोई अन्य राजा किसी राज्य पर अधिकार प्राप्त करता है तो पहले राजा को ही कैदी बनाता है अर्थात् पर-अधीन बनाता है। तो चेक करो कि एक राज्य है? कि बीच-बीच में माया के राज्य अधिकारी, आप स्वराज्य अधिकारी राजाओं को वा आपके कोई भी कर्मेन्द्रियों रूपी राज कारोबारी को परवश तो नहीं बना देते हैं? तो एक राज्य है वा दो राज्य है? आप स्वराज्य अधिकारी का लॉ और ऑर्डर चलता है वा बीच-बीच में माया का भी ऑर्डर चलता है?

साथ-साथ एक धर्म, धर्म अर्थात् धारणा। तो स्वराज्य का धर्म वा धारणा एक कौन-सी है? ‘पवित्रता'। मन, वचन, कर्म, सम्बन्ध, सम्पर्क सब प्रकार की पवित्रता इसको कहा जाता है - एक धर्म अर्थात् एक धारणा। स्वप्न मात्र, संकल्प मात्र भी अपवित्रता अर्थात् दूसरा धर्म न हो क्योंकि जहाँ पवित्रता है वहाँ अपवित्रता अर्थात् व्यर्थ वा विकल्प का नाम-निशान नहीं होगा। ऐसे समर्थ सम्राट बने हो? वा ढीलेढाले राजे हो? वा कभी ढीले, कभी सम्राट? कौन से राजे हो? अगर अभी छोटा-सा एक जन्म का राज्य नहीं चला सकते तो 21 जन्म का राज्य अधिकार कैसे प्राप्त करेंगे? संस्कार अब भर रहे हैं। अभी के श्रेष्ठ संस्कार से भविष्य संसार बनेगा। तो अभी से एक राज्य, एक धर्म के संस्कार भविष्य संसार का फाउण्डेशन हैं।

तो चेक करो - सुख, शान्ति, सम्पत्ति अर्थात् सदा हद की प्राप्तियों के आधार पर सुख है वा आत्मिक अतीन्द्रिय सुख परमात्म सुखमय राज्य है? साधन वा सैलवेशन वा प्रशंसा के आधार पर सुख की अनुभूति है वा परमात्म आधार पर अतीन्द्रिय सुखमय राज्य है? इसी प्रकार से अखण्ड शान्ति - किसी भी प्रकार की अशान्ति की परिस्थिति अखण्ड शान्ति को खण्डित तो नहीं करती है? अशान्ति का त़ूफान चाहे छोटा हो, चाहे बड़ा हो लेकिन स्वराज्य अधिकारी के लिये त़ूफान अनुभवी बनाने की उड़ती कला का तोह़फा बन जाये, लिफ्ट की गिफ्ट बन जाये। इसको कहा जाता है अखण्ड शान्ति। तो चेक करो अखण्ड शान्तिमय स्वराज्य है?

ऐसे ही सम्पत्ति अर्थात् स्वराज्य की सम्पत्ति ज्ञान, गुण और शक्तियां हैं। इन सर्व सम्पत्तियों से सम्पन्न स्वराज्य अधिकारी हैं? सम्पन्नता की निशानी है - सम्पन्नता अर्थात् सदा सन्तुष्टता, अप्राप्ति का नाम-निशान नहीं। हद के इच्छाओं की अविद्या इसको कहा जाता है सम्पत्तिवान। और राजा का अर्थ ही है दाता। अगर हद की इच्छा वा प्राप्ति की उत्पत्ति है तो वो राजा के बजाय मंगता (मांगने वाला) बन जाता है, इसलिये अपने स्वराज्य अधिकार को अच्छी तरह से चेक करो कि मेरा स्वराज्य एक राज्य, एक धर्म, सुख-शान्ति सम्पन्न बना है? कि अभी तक बन रहे हैं? अगर राजा बन रहे हैं तो जब राज्य अधिकारी स्थिति नहीं है तो उस समय क्या हो? प्रजा बन जाते हो वा न राजा, न प्रजा। बीच में हो? अभी बीच में नहीं रहो। यह भी नहीं सोचना कि अन्त में बन जायेंगे। अगर बहुतकाल का राज्य-भाग्य प्राप्त करना ही है तो बहुतकाल के स्वराज्य का फल है बहुतकाल का राज्य। फुल समय के राज्य अधिकार का आधार वर्तमान सदाकाल का स्वराज्य है। समझा? कभी अलबेले नहीं रह जाना। हो जायेगा, हो जायेगा नहीं करते रहना। बाप-दादा को बहुत मीठी बातों से बहलाते हैं। राजा के बजाय बहुत बढ़िया वकील बन जाते हैं। ऐसी-ऐसी लॉ प्वॉइन्ट्स सुनाते हैं जो बाप भी मुस्कराते रहते हैं। वकील अच्छा या राजा अच्छा? बहुत होशियारी से वकालत करते हैं इसलिये अब वकालत करना छोड़ दो, राज दुलारे बनो। बाप का बच्चों से स्नेह है इसलिये सुनते-देखते भी मुस्कराते रहते हैं। अभी धर्मराज से काम नहीं लेते।

स्नेह सभी को चला रहा है। स्नेह के कारण ही पहुँच गये हो ना। तो स्नेह के रेसपान्स में बापदादा भी पद्मगुणा स्नेह का रिटर्न दे रहे हैं। देश-विदेश के सभी बच्चे स्नेह के विमान द्वारा मधुबन में पहुँचे हो। बापदादा साकार रूप में आप सबको और स्नेह स्वरूप में सर्व बच्चों को देख रहे हैं। अच्छा!

सर्व स्नेह में समाये हुए समीप बच्चों को, सर्व स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं को, सर्व प्राप्तियों सम्पन्न श्रेष्ठ सम्पत्तिवान विशेष आत्माओं को, सदा एक धर्म, एक राज्य सम्पन्न स्वराज्य अधिकारी बाप समान भाग्यवान आत्माओं को भाग्यविधाता बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

दादियों से मुलाकात:- सभी कार्य अच्छे चल रहे हैं ना? अच्छे उमंग-उत्साह से कार्य हो रहा है। करावनहार करा रहे हैं और निमित्त बन करने वाले कर रहे हैं। ऐसे अनुभव होता है ना? सर्व के सहयोग की अंगुली से हर कार्य सहज और सफल होता है। कैसे हो रहा है ये जादू लगता है ना। दुनिया वाले तो देखते और सोचते रह जाते हैं। और आप निमित्त आत्मायें सदा आगे बढ़ते जायेंगे क्योंकि बे]िफा बादशाह हो। दुनिया वालों को तो हर कदम में चिन्ता है और आप सबके हर संकल्प में परमात्म चिन्तन है इसलिये बे]िफा हैं। बे]िफा हैं ना? अच्छा है, अविनाशी सम्बन्ध है। अच्छा, तो सब ठीक चल रहा है और चलना ही है। निश्चय है और निश्चिन्त हैं। क्या होगा, कैसे होगा यह चिन्ता नहीं है।

टीचर्स को कोई चिन्ता है? सेन्टर्स कैसे बढ़ेंगे यह चिन्ता है? सेवा कैसे बढ़ेगी यह चिन्ता है? नहीं है? बे]िफा हो? चिन्तन करना अलग चीज़ है, चिन्ता करना अलग चीज़ है। सेवा बढ़ाने का चिन्तन अर्थात् प्लैन भले बनाओ। लेकिन चिन्ता से कभी सफलता नहीं होगी। चलाने वाला चला रहा है, कराने वाला करा रहा है इसलिये सब सहज होना ही है, स़िर्फ निमित्त बन संकल्प, तन, मन, धन सफल करते चलो। जिस समय जो कार्य होता है वो कार्य हमारा कार्य है। जब हमारा कार्य है, मेरा कार्य है तो जहाँ मेरापन होता है वहाँ सब कुछ स्वत: ही लग जाता है। तो अभी ब्राह्मण परिवार का विशेष कार्य कौन-सा है? टीचर्स बताओ। ब्राह्मण परिवार का अभी विशेष कार्य कौन सा है, किसमें सफल करेंगे? (ज्ञान सरोवर में) सरोवर में सब स्वाहा करेंगे। परिवार में जो विशेष कार्य होता है तो सबका अटेन्शन कहाँ होता है? उसी विशेष कार्य के तरफ अटेन्शन होता है। ब्राह्मण परिवार में बड़े से बड़ा कार्य वर्तमान समय यही है ना। हर समय का अपना-अपना है, वर्तमान समय देश-विदेश सर्व ब्राह्मण परिवार का सहयोग इस विशेष कार्य में है ना कि अपने-अपने सेन्टर में है? जितना बड़ा कार्य उतना बड़ा दिल। और जितना बड़ा दिल होता है ना उतना स्वत: ही सम्पन्नता होती है। अगर छोटा दिल होता है तो जो आना होता है वह भी रुक जाता है, जो होना होता है वह भी रुक जाता है और बड़े दिल से असम्भव भी सम्भव हो जाता है। मधुबन का ज्ञान सरोवर है वा आपका है? किसका है? मधुबन का है ना? गुजरात का तो नहीं है, मधुबन का है? महाराष्ट्र का है? विदेश का है? सभी का है। बेहद की सेवा का बेहद का स्थान अनेक आत्माओं को बेहद का वर्सा दिलाने वाला है। ठीक है ना। अच्छा!

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

1) स्व-परिवर्तन का वायब्रेशन ही विश्व परिवर्तन करायेगा

सभी अपने को खुशनसीब आत्मायें अनुभव करते हो? खुशी का भाग्य जो स्वप्न में भी नहीं था वो प्राप्त कर लिया। तो सभी की दिल सदा यह गीत गाती है कि सबसे खुशनसीब हूँ तो मैं हूँ। यह है मन का गीत। मुख का गीत गाने के लिये मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन मन का गीत सब गा सकते हैं। सबसे बड़े से बड़ा ख़ज़ाना है खुशी का ख़ज़ाना क्योंकि खुशी तब होती है जब प्राप्ति होती है। अगर अप्राप्ति होगी तो कितना भी कोई किसी को खुश रहने के लिये कहे, कितना भी आर्टीफिशयल खुश रहने की कोशिश करे लेकिन रह नहीं सकते। तो आप सदा खुश रहते हो या कभी-कभी रहते हो? जब चैलेन्ज करते हो कि हम भगवान के बच्चे हैं, तो जहाँ भगवान् है वहाँ कोई अप्राप्ति हो सकती है? तो खुशी भी सदा है क्योंकि सदा सर्व प्राप्ति स्वरूप हैं। ब्रह्मा बाप का क्या गीत था? पा लिया - जो था पाना। तो यह स़िर्फ ब्रह्मा बाप का गीत है या आप सबका? कभी-कभी थोड़ी दु:ख की लहर आ जाती है? कब तक आयेगी? अभी थोड़ा समय भी दु:ख की लहर नहीं आये। जब विश्व परिवर्तन करने के निमित्त हो तो अपना ये परिवर्तन नहीं कर सकते हो? अभी भी टाइम चाहिये, फुलस्टॉप लगाओ। ऐसा श्रेष्ठ समय, श्रेष्ठ प्राप्तियाँ, श्रेष्ठ सम्बन्ध सारे कल्प में नहीं मिलेगा। तो पहले स्व-परिवर्तन करो। यह स्व-परिवर्तन का वायब्रेशन ही विश्व परिवर्तन करायेगा।

डबल विदेशी आत्माओं की विशेषता है फ़ास्ट लाइफ़। तो परिवर्तन में फ़ास्ट हैं? फ़ारेन में कोई ढीला-ढाला चलता है तो अच्छा नहीं लगता है ना। तो इसी विशेषता को परिवर्तन में लाओ। अच्छा है। आगे बढ़ रहे हैं और बढ़ते ही रहेंगे। पहचानने की दृष्टि अच्छी तेज़ है जो बाप को पहचान लिया। अभी पुरुषार्थ में भी तीव्र, सेवा में भी तीव्र और मंज़िल पर सम्पूर्ण बन पहुँचने में भी तीव्र। फ़र्स्ट नम्बर आना है ना? जैसे ब्रह्मा बाप फर्स्ट हुआ ना तो ब्रह्मा बाप के साथी बन फर्स्ट के साथ फर्स्ट में आयेंगे। ब्रह्मा बाप से प्यार है ना। अच्छा, मातायें कमाल करेंगी ना। जो दुनिया असम्भव समझती है वो आपने सहज करके दिखा दिया। ऐसा कमाल कर रही हो ना। दुनिया वाले समझते हैं कि मातायें निर्बल हैं, कुछ नहीं कर सकतीं आप असम्भव को सम्भव करके विश्व परिवर्तन में सबसे आगे बढ़ रही हो। पाण्डव क्या कर रहे हो? असम्भव को सम्भव तो कर रहे हो ना। पवित्रता का झण्डा लहराया है ना। हाथ में अच्छी तरह से झण्डा पकड़ा है या कभी नीचे हो जाता है? सदा पवित्रता के चैलेन्ज का झण्डा लहराते रहो।

2) रोज़ अमृतवेले कम्बाइण्ड स्वरूप की स्मृति का तिलक लगाओ

सदा अपने को सहज योगी अनुभव करते हो? कितनी भी परिस्थितियां मुश्किल अनुभव कराने वाली हों लेकिन मुश्किल को भी सहज करने वाले सहजयोगी हैं, ऐसे हो या मुश्किल के समय मुश्किल का अनुभव होता है? सदा सहज है? मुश्किल होने का कारण है बाप का साथ छोड़ देते हो। जब अकेले बन जाते हो तो कमजोर पड़ जाते हो और कमजोर को तो सहज बात भी मुश्किल लगती है इसलिये बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि सदा कम्बाइण्ड रूप में रहो। कम्बाइण्ड को कोई अलग नहीं कर सकता। जैसे इस समय आत्मा और शरीर कम्बाइण्ड है ऐसे बाप और आप कम्बाइण्ड रहो। मातायें क्या समझती हो? कम्बाइण्ड हो या कभी अलग, कभी कम्बाइण्ड? ऐसा साथ फिर कभी मिलना है? फिर क्यों साथ छोड़ देती हो? काम ही क्या दिया है? स़िर्फ यह याद रखो कि ‘मेरा बाबा'। इससे सहज काम क्या होगा? मुश्किल है? (63 जन्मों का संस्कार है) अभी तो नया जन्म हो गया ना। नया जन्म, नये संस्कार। अभी पुराने जन्म में हो या नये जन्म में? या आधा-आधा है? तो नये जन्म में स्मृति के संस्कार हैं या विस्मृति के? फिर नये को छोड़कर पुराने में क्यों जाते हो? नई चीज़ अच्छी लगती है या पुरानी चीज़ अच्छी लगती है? फिर पुराने में क्यों चले जाते हो? रोज़ अमृतवेले स्वयं को ब्राह्मण जीवन के स्मृति का तिलक लगाओ। जैसे भक्त लोग तिलक ज़रूर लगाते हैं तो आप स्मृति का तिलक लगाओ। वैसे भी देखो मातायें जो तिलक लगाती है वो साथ का तिलक लगाती हैं। तो सदा स्मृति रखो कि हम कम्बाइण्ड हैं तो इस साथ का तिलक सदा लगाओ। अगर युगल होगा तो तिलक लगायेंगे, अगर युगल नहीं होगा तो तिलक नहीं लगायेंगे। यह साथ का तिलक है। तो रोज़ स्मृति का तिलक लगाती हो या भूल जाता है? कभी लगाना भूल जाता, कभी मिट जाता! जो सुहाग होता है, साथ होता है वह कभी भूलता नहीं। तो साथी को सदा साथ रखो।

यह ग्रुप सुन्दर गुलदस्ता है। वैराइटी फूलों का गुलदस्ता शोभनीक लगता है। तो सभी जो भी, जहाँ से भी आये हैं, सभी एक-दो से प्यारे हैं। सभी सन्तुष्ट हो ना? सदा साथ हैं और सदा सन्तुष्ट हैं। बस, यही एक शब्द याद रखना कि कम्बाइण्ड हैं और सदा ही कम्बाइण्ड रह साथ जायेंगे। लेकिन साथ रहेंगे तो साथ चलेंगे। साथ रहना है, साथ चलना है। जिससे प्यार होता है उससे अलग हो नहीं सकते। हर सेकेण्ड, हर संकल्प में साथ है ही। अच्छा!

वरदान:-बैलेन्स की विशेषता को धारण कर सर्व को ब्लैसिंग देने वाले शक्तिशाली, सेवाधारी भव
अभी आप शक्तिशाली आत्माओं की सेवा है सर्व को ब्लैसिंग देना। चाहे नयनों से दो, चाहे मस्तकमणी द्वारा दो। जैसे साकार को लास्ट कर्मातीत स्टेज के समय देखा-कैसे बैलेन्स की विशेषता थी और ब्लैसिंग की कमाल थी। तो फालो फादर करो - यही सहज और शक्तिशाली सेवा है। इसमें समय भी कम, मेहनत भी कम और रिजल्ट ज्यादा निकलती है। तो आत्मिक स्वरूप से सबको ब्लैसिंग देते चलो।
स्लोगन:-विस्तार को सेकण्ड में समाकर ज्ञान के सार का अनुभव कराना ही लाइट-माइट हाउस बनना है।                                             ब्रह्माकुमारीज क्षेत्रीय कार्यालय: राजयोग भवन, ई-5,अरेरा कॉलोनी, मेन रोड नंबर3,भोपल मध्यप्रदेश।                                         सम्पर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/tpQLfRJflkk