मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं।YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है।                                                                 पवित्रता के दृढ़ व्रत द्वारा वृत्ति का परिवर्तन

आज ऊंचे से ऊंचा बाप अपने सर्व महान् बच्चों को देख रहे हैं। महान् आत्मा तो सभी बच्चे बने हैं क्योंकि सबसे महान् बनने का मुख्य आधार ‘पवित्रता' को धारण किया है। पवित्रता का व्रत सभी ने प्रतिज्ञा के रूप में धारण किया है। किसी भी प्रकार का दृढ़ संकल्प रूपी व्रत लेना अर्थात् अपनी वृत्ति को परिवर्तन करना। दृढ़ व्रत वृत्ति को बदल देता है इसलिये ही भक्ति में व्रत लेते भी हैं और व्रत रखते भी हैं। व्रत लेना अर्थात् मन में संकल्प करना और व्रत रखना अर्थात् स्थूल रीति से परहेज करना। चाहे खान-पान की, चाहे चाल-चलन की, लेकिन दोनों का लक्ष्य व्रत द्वारा वृत्ति को बदलने का है। आप सभी ने भी पवित्रता का व्रत लिया और वृत्ति श्रेष्ठ बनाई। सर्व आत्माओं के प्रति क्या वृत्ति बनाई? आत्मा भाई-भाई हैं। ब्रदरहुड, इस वृत्ति से ही ब्राह्मण महान् आत्मा बने। यह व्रत तो सभी का पक्का है ना?

ब्राह्मण जीवन का अर्थ ही है पवित्र आत्मा, और ये पवित्रता ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन है। फाउण्डेशन पक्का है ना कि हिलता है? ये फाउण्डेशन सदा अचल-अडोल रहना ही ब्राह्मण जीवन का सुख प्राप्त करना है। कभी-कभी बच्चे जब बाप से रूहरिहान करते अपना सच्चा चार्ट देते हैं तो क्या कहते हैं? कि जितना अतीन्द्रिय सुख, जितनी शक्तियाँ अनुभव होनी चाहिये, उतनी नहीं हैं या दूसरे शब्दों में कहते हैं कि हैं, लेकिन सदा नहीं हैं। इसका कारण क्या? कहने में तो मास्टर सर्वशक्तिमान् कहते हैं, अगर पूछेंगे कि मास्टर सर्वशक्तिमान् हो, तो क्या कहेंगे? ‘ना' तो नहीं कहेंगे ना। कहते तो ‘हाँ' हैं। मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं तो फिर शक्तियां कहाँ चली जाती हैं? और हैं ही ब्राह्मण जीवनधारी। नामधारी नहीं हैं, जीवनधारी हैं। ब्राह्मणों के जीवन में सम्पूर्ण सुख-शान्ति की अनुभूति न हो वा ब्राह्मण सर्व प्राप्तियों से सदा सम्पन्न न हों तो सिवाए ब्राह्मणों के और कौन होगा? और कोई हो सकता है? ब्राह्मण ही हो सकते हैं ना। आप सभी अपना साइन क्या करते हो? बी.के. फलानी, बी.के. फलाना कहते हो ना। पक्का है ना? बी.के. का अर्थ क्या है? ‘ब्राह्मण'। तो ब्राह्मण की परिभाषा यह है।

‘जितना' और ‘उतना' शब्द क्यों निकलता है? कहते हो सुख-शान्ति की जननी पवित्रता है। जब भी अतीन्द्रिय सुख वा स्वीट साइलेन्स का अनुभव कम होता है, इसका कारण पवित्रता का फाउण्डेशन कमजोर है। पहले भी सुनाया है कि पवित्रता स़िर्फ ब्रह्मचर्य का व्रत नहीं, ये व्रत भी महान् है क्योंकि इस ब्रह्मचर्य के व्रत को आज की महान् आत्मा कहलाने वाले भी मुश्किल तो क्या लेकिन असम्भव समझते हैं। तो असम्भव को अपने दृढ़ संकल्प द्वारा सम्भव किया है और सहज पालन किया है इसलिये ये व्रत भी धारण करना कम बात नहीं है। बापदादा इस व्रत को पालन करने वाली आत्माओं को दिल से दुआओं सहित मुबारक देते हैं। लेकिन बापदादा हर एक ब्राह्मण बच्चे को सम्पूर्ण और सम्पन्न देखना चाहते हैं। तो जैसे इस मुख्य बात को जीवन में अपनाया है, असम्भव को सम्भव सहज किया है तो और सर्व प्रकार की पवित्रता को धारण करना क्या बड़ी बात है! पवित्रता की परिभाषा सभी बहुत अच्छी तरह से जानते हो। अगर आप सबको कहें “पवित्रता क्या है'' इस टॉपिक पर भाषण करो तो अच्छी तरह से कर सकते हो ना? जब जानते भी हो और मानते भी हो फिर ‘उतना', ‘जितना' ये शब्द क्यों? कौन-सी पवित्रता कमजोर होती है, जो सुख, शान्ति और शक्ति की अनुभूति कम हो जाती है? पवित्रता किसी न किसी स्टेज में अचल नहीं रहती, तो किस रूप की पवित्रता की हलचल है उसको चेक करो। बापदादा पवित्रता के सर्व रूपों को स्पष्ट नहीं करते क्योंकि आप जानते हो, कई बार सुन चुके हो, सुनाते भी रहते हो, अपने आपसे भी बात करते रहते हो कि हाँ, ये है, ये है...। मैजारिटी की रिजल्ट देखते हुए क्या दिखाई देता है? कि ज्ञान बहुत है, योग की विधि के भी विधाता बन गये, धारणा के विषय पर वर्णन करने में भी बहुत होशियार हैं और सेवा में एक-दो से आगे हैं, बाकी क्या है? ज्ञाता तो नम्बरवन हो गये हैं, सिर्फ एक बात में अलबेले बन जाते हो, वो है “स्व को सेकेण्ड में व्यर्थ सोचने, देखने, बोलने और करने में फुलस्टॉप लगाकर परिवर्तन करना।'' समझते भी हो कि यही कमजोरी सुख की अनुभूति में अन्तर लाती है, शक्ति स्वरूप बनने में वा बाप समान बनने में विघ्न स्वरूप बनती है फिर भी क्या होता है? स्वयं को परिवर्तन नहीं कर सकते, फुलस्टॉप नहीं दे सकते। ठीक है, समझते हैं का कॉमा (,) लगा देते हैं, वा दूसरों को देख आश्चर्य की निशानी (!) लगा देते हो कि ऐसा होता है क्या! ऐसे होना चाहिये! वा क्वेश्चन मार्क की क्यू (लाइन) लगा देते हो, क्यों की क्यू लगा देते हो। फुलस्टॉप अर्थात् बिन्दु (.)। तो फुल स्टॉप तब लग सकता है जब बिन्दु स्वरूप बाप और बिन्दु स्वरूप आत्मा - दोनों की स्मृति हो। यह स्मृति फुलस्टॉप अर्थात बिन्दु लगाने में समर्थ बना देती है। उस समय कोई-कोई अन्दर सोचते भी हैं कि मुझे आत्मिक स्थिति में स्थित होना है लेकिन माया अपनी सैक्रीन द्वारा आत्मा के बजाय व्यक्ति वा बातें बार-बार सामने लाती है, जिससे आत्मा छिप जाती है और बार-बार व्यक्ति और बातें सामने स्पष्ट आती हैं। तो मूल कारण स्व के ऊपर कन्ट्रोल करने की कन्ट्रोलिंग पॉवर कम है। दूसरों को कन्ट्रोल करना बहुत आता है लेकिन स्व पर कन्ट्रोल अर्थात् परिवर्तन शक्ति को कार्य में लगाना कम आता है।

बापदादा कोई-कोई बच्चों के शब्द पर मुस्कराते रहते हैं। जब स्व के परिवर्तन का समय आता है वा सहन करने का समय आता है वा समाने का समय आता है तो क्या कहते हो? बहुत करके क्या कहते कि ‘मुझे ही मरना है', ‘मुझे ही बदलना है', ‘मुझे ही सहन करना है' लेकिन जैसे लोग कहते हैं ना कि ‘मरा और स्वर्ग गया' उस मरने में तो स्वर्ग में कोई जाते नहीं हैं लेकिन इस मरने में तो स्वर्ग में श्रेष्ठ सीट मिल जाती है। तो यह मरना नहीं है लेकिन स्वर्ग में स्वराज्य लेना है। तो मरना अच्छा है ना? क्या मुश्किल है? उस समय मुश्किल लगता है। मैं ग़लत हूँ ही नहीं, वो ग़लत है, लेकिन ग़लत को मैं राइट कैसे करूँ, यह नहीं आता। रांग वाले को बदलना चाहिये या राइट वाले को बदलना चाहिये? किसको बदलना है? दोनों को बदलना पड़े। ‘बदलने' शब्द को आध्यात्मिक भाषा में आगे बढ़ना मानो, ‘बदलना' नहीं मानो, ‘बढ़ना'। उल्टे रूप का बदलना नहीं, सुल्टे रूप का बदलना। अपने को बदलने की शक्ति है? कि कभी तो बदलेंगे ही।

पवित्रता का अर्थ ही है - सदा संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध और सम्पर्क में तीन बिन्दु का महत्व हर समय धारण करना। कोई भी ऐसी परिस्थिति आये तो सेकेण्ड में फुलस्टॉप लगाने में स्वयं को सदा पहले ऑफर करो “मुझे करना है''। ऐसी ऑफर करने वाले को तीन प्रकार की दुआएं मिलती हैं। (1) स्वयं को स्वयं की भी दुआएं मिलती हैं, खुशी मिलती है, (2) बाप द्वारा, (3) जो भी श्रेष्ठ आत्मायें ब्राह्मण परिवार की हैं उन्हों के द्वारा भी दुआएं मिलती हैं। तो मरना हुआ या पाना हुआ, क्या कहेंगे? पाया ना। तो फुलस्टॉप लगाने के पुरुषार्थ को वा कन्ट्रोलिंग पॉवर द्वारा परिवर्तन शक्ति को तीव्र गति से बढ़ाओ। अलबेलापन नहीं लाओ ये तो होता ही है, ये तो चलना ही है... ये अलबेलेपन के संकल्प हैं। अलबेलापन परिवर्तन कर अलर्ट बन जाओ। अच्छा!

चारों ओर के महान आत्माओं को, सर्वश्रेष्ठ पवित्रता के व्रत को धारण करने वाली आत्माओं को, सदा स्व को सेकेण्ड में फुलस्टॉप लगाए श्रेष्ठ परिवर्तक आत्माओं को, सदा स्वयं को श्रेष्ठ कार्य में निमित्त बनाने की ऑफर करने वाली आत्माओं को, सदा तीन बिन्दु का महत्व प्रैक्टिकल में धारण कर दिखाने वाली बाप समान आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

दादियों से मुलाकात

सभी आप लोगों को देखकर खुश होते हैं। क्यों खुश होते हैं? (बापदादा सभी से पूछ रहे हैं) दादियों को देख खुश होते हो ना? क्यों खुश होते हो? क्योंकि अपने वायब्रेशन वा कर्म द्वारा खुशी देते हैं इसलिये खुश होते हो। जब भी ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं से मिलते हो तो खुशी अनुभव करते हो ना। (टीचर्स से) फ़ालो भी करती हो ना। कई सोचते हैं बाप तो बाप है, कैसे समान बन सकते हैं? लेकिन जो निमित्त आत्मायें हैं वो तो आपके हमजिन्स हैं ना? तो जब वो बन सकती हैं तो आप नहीं बन सकते? तो लक्ष्य सभी का सम्पूर्ण और सम्पन्न बनने का है। अगर हाथ उठवायेंगे कि 16 कला बनना है या 14 कला तो किसमें उठायेंगे? 16 कला। तो 16 कला का अर्थ क्या है? सम्पूर्ण ना। जब लक्ष्य ही ऐसा है तो बनना ही है। मुश्किल है नहीं, बनना ही है। छोटी-छोटी बातों में घबराओ नहीं। मूर्ति बन रहे हो तो कुछ तो हेमर लगेंगे ना, नहीं तो ऐसे कैसे मूर्ति बनेंगे! जो जितना आगे होता है उसको त़ूफान भी सबसे ज्यादा क्रॉस करने होते हैं लेकिन वो त़ूफान उन्हों को त़ूफान नहीं लगता, तोह़फा लगता है। ये त़ूफान भी गिफ्ट बन जाती है अनुभवी बनने की, तो तोह़फा बन गया ना। तो गिफ्ट लेना अच्छा लगता है या मुश्किल लगता है? तो ये भी लेना है, देना नहीं है। देना मुश्किल होता है, लेना तो सहज होता है।

ये नहीं सोचो मेरा ही पार्ट है क्या, सब विघ्नों के अनुभव मेरे पास ही आने है क्या! वेलकम करो आओ। ये गिफ्ट है। ज्यादा में ज्यादा गिफ्ट मिलती है, इसमें क्या? ज्यादा एक्यूरेट मूर्ति बनना अर्थात् हेमर लगना। हेमर से ही तो उसे ठोक-ठोक करके ठीक करते हैं। आप लोग तो अनुभवी हो गये हो, नथिंग न्यु। खेल लगता है। देखते रहते हो और मुस्कराते रहते हो, दुआयें देते रहते हो। टीचर्स बहादुर हो या कभी-कभी घबराती हो? ये तो सोचा ही नहीं था, ऐसे होगा, पहले पता होता तो सोच लेते...। डबल फ़ॉरेनर्स समझते हो इतना तो सोचा ही नहीं था कि ब्राह्मण बनने में भी ऐसा होता है? सोच-समझकर आये हो ना या अभी सोचना पड़ रहा है? अच्छा!

कितना भी कोई कैसा भी हो लेकिन बापदादा अच्छाई को ही देखते हैं इसलिये बापदादा सभी को अच्छा ही कहेंगे, बुरा नहीं कहेंगे। चाहे 9 बुराई हों और एक अच्छाई हो तो भी बाप क्या कहेगा? अच्छे हैं या कहेंगे कि ये तो बहुत खराब है, ये तो बड़ा कमजोर है? अच्छा। ये बड़ा ग्रुप हो गया है। (21 देशों के लोग आये हैं) अच्छा है, हाउसफुल हो तब तो दूसरा बनें। अगर फुल नहीं होगा तो बनने की मार्जिन नहीं होगी। आवश्यकता ही साधन को सामने लाती है।

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात - हर कदम में पद्मों की कमाई जमा करने का युग - संगमयुग

अपने को पद्मापद्म भाग्यवान समझते हो? हर कदम में पद्मों की कमाई जमा हो रही है? तो कितने पद्म जमा किये हैं? अनगिनत हैं? क्योंकि जानते हैं कि जमा करने का समय अब है। सतयुग में जमा नहीं होगा। कर्म वहाँ भी होंगे लेकिन अकर्म होंगे क्योंकि वहाँ के कर्म का सम्बन्ध भी यहाँ के कर्मों के फल के हिसाब में है। तो यहाँ है करने का समय और वहाँ है खाने का समय। तो इतना अटेन्शन रहता है? कितने जन्मों के लिये जमा करना है? (84) जमा करने में खुशी होती है ना? मेहनत तो नहीं लगती? क्यों नहीं मेहनत महसूस होती है? क्योंकि प्रत्यक्षफल भी मिलता है। प्रत्यक्षफल मिलता है कि भविष्य के आधार पर चल रहे हो? भविष्य से भी प्रत्यक्षफल अति श्रेष्ठ है। सदा ही श्रेष्ठ कर्म और श्रेष्ठ प्रत्यक्षफल मिलने का साधन है कि सदा ये याद रखो कि “अब नहीं तो कब नहीं।'' जैसे नाम है डबल फॉरेनर्स, तो डबल का टाइटिल बहुत अच्छा है। तो सबमें डबल - खुशी में, नशे में, पुरुषार्थ में, सबमें डबल। सेवा में भी डबल। और रहते भी सदा डबल हो, कम्बाइण्ड, सिंगल नहीं। कभी डबल होने का संकल्प तो नहीं आता? कम्पनी चाहिये या कम्पैनियन चाहिये? चाहिये तो बता दो। ऐसे नहीं करना कि वहाँ जाकर कहो कम्पैनियन चाहिये। कितने भी कम्पैनियन करो लेकिन ऐसा कम्पैनियन नहीं मिल सकता। कितने भी अच्छे कम्पैनियन हो लेकिन सब लेने वाले होंगे, देने वाले नहीं। इस वर्ल्ड में ऐसा कम्पैनियन कोई है? अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका आदि में थोड़ा ढूँढ कर आओ, मिलता है! क्योंकि मनुष्यात्मायें कितने भी देने वाले बनें फिर भी देते-देते लेंगे ज़रूर। तो जब दाता कम्पैनियन मिले तो क्या करना चाहिये? कहाँ भी जाओ, फिर आना ही पड़ेगा। ये सब जाने वाले नहीं हैं। कोई कमजोर तो नहीं हैं? फोटो निकल रहा है। फिर आपको फोटो भेजेंगे कि आपने कहा था। कहो यह होना ही नहीं है। बापदादा भी आप सबके बिना अकेला नहीं रह सकता। अच्छा।

वरदान:- महावीर बन बाप का साक्षात्कार कराने वाले वाहनधारी सो अलंकारधारी भव
महावीर अर्थात् शस्त्रधारी। शक्तियों वा पाण्डवों को सदा वाहन में दिखाते हैं और शस्त्र भी दिखाते हैं। शस्त्र अर्थात् अलंकार। वाहन है श्रेष्ठ स्थिति और अलंकार हैं सर्व शक्तियां। ऐसे वाहनधारी और अलंकारधारी ही साक्षात्कार मूर्त बन बाप का साक्षात्कार करा सकते हैं। यही महावीर बच्चों का कर्तव्य है। महावीर उसे ही कहा जाता है जो अपनी उड़ती कला द्वारा सर्व परिस्थितियों को पार कर ले।
स्लोगन:- एकरस पुरुषार्थ द्वारा ऊंची स्थिति बना लो तो हिमालय जैसा बड़ा पेपर भी रूई हो जायेगा।                                                                   ब्रह्माकुमारीज क्षेत्रीय कार्यालय: राजयोग भवन, ई-5,अरेरा कॉलोनी, मेन रोड मध्यप्रदेश।                                            सम्पर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/erRamXjOlEY