01.may.2023/ शिव बाबा की मुरली (परमात्मा की वाणी) आज की प्रातः मुरली मधुबन से।
मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं।YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है, “मीठे बच्चे - अपनी उन्नति के लिए अमृतवेले उठ बाप को याद करो, सवेरे का समय कमाई के लिए बहुत-बहुत अच्छा है''
प्रश्नः-सदा सलामत रहने का आधार क्या है? सदा सलामत किसे कहेंगे?
उत्तर:-बाप की श्रीमत ही सदा सलामत बनाती है। कभी भी कोई दु:ख और तकल़ीफ नहीं होगी। तुम बच्चे इतने तकदीरवान बनते हो जो कभी किसी प्रकार की चोट नहीं लग सकती। निरोगी काया बन जायेगी। तुम अपनी तकदीर की महिमा गाते रहो। जो उठते-बैठते बाप की याद में रहते हैं - वह हैं तकदीरवान बच्चे। उन्हें ही सदा सलामत कहेंगे।
गीत:-रात के राही...
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे पुरुषार्थी बच्चे इस गीत का अर्थ तो स्वयं जानते होंगे, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। जो यात्रा पर उपस्थित हैं वे ही यथार्थ अर्थ समझ सकते हैं। अब यह यात्रा है रात की और जिस्मानी यात्रायें होती हैं दिन की। अमरनाथ, बद्रीनाथ पर जाते हैं तो दिन को सफर (मुसाफिरी) कर रात को सो जाते हैं। और तुम बच्चों की मुसाफिरी है रात की। दिन में तो तुमको शरीर निर्वाह अर्थ काम करना पड़ता है। नौकरी पर जाते हैं और मातायें घर सम्भालती हैं। सबसे ज्यादा उन्नति रात को होती है, जबकि सब मनुष्य सोये हुए होते हैं। तुम्हारी उस समय बड़ी अच्छी यात्रा हो सकती है। भक्त लोग भी सवेरे अमृतवेले याद में रहते हैं। बच्चे अपनी उन्नति करना चाहते हो तो बाप राय देते हैं - नींद को जीतने वाले बनो। 5 हज़ार वर्ष पहले भी कहा था। भल सवेरे सो जाओ। कहावत है “सवेरे सोना सवेरे उठना'' - यह गुण मनुष्यों को बड़ा बनाता है। बरोबर तुम कितने साहूकार बनते हो, जो कभी तुमको पैसे की परवाह नहीं रहती! तुमको 21 जन्म के लिए वर्सा मिल जाता है शिवालय में। यहाँ तो तुम जन्म बाई जन्म पुरुषार्थ करते हो और अभी का तुम्हारा पुरुषार्थ 21 जन्मों का बन जाता है। वन्डर है ना। ऐसा कोई भी पुरुषार्थ कराने वाला है नहीं। अविनाशी बाप अविनाशी पुरुषार्थ कराते हैं। यहाँ तो पैसे के लिए क्या नहीं करते हैं - बाप बच्चों को, बच्चे बाप को भी मार डालते हैं।
तुम्हें अब अविनाशी बाप से अविनाशी वर्सा लेना है, तो अविनाशी बाप और वर्से को याद करना है। और कोई तकल़ीफ नहीं, सिर्फ दो अक्षर हैं। इसको महामंत्र कहा जाता है। बस, यह दो अक्षर याद करने से तुमको राज-तिलक मिल जाता है। अब इस याद में है बल। जितना जो याद करेंगे। योग और ज्ञान। शास्त्रों आदि के ज्ञान की यहाँ बात नहीं। दो अक्षर याद करने के लिए कहते हैं तो फुर्सत नहीं रहती है। कह देते हैं हम याद नहीं कर सकते, घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। दो अक्षर की यात्रा नहीं कर सकते! तुम लोग गीत, कविता, डायलॉग बनाते हो, याद करते हो, वास्तव में इन सबकी यहाँ दरकार नहीं है। यहाँ तो चुप रहना है। क्या तुम बीज और झाड़ को नहीं समझ सकते हो। बीज को हाथ में लेने से ही सारा झाड़ सामने आ जायेगा। इसमें चार युग और चार वर्ण हैं। यह सब बुद्धि में लाना, देरी नहीं लगती है। सेकण्ड में स्वर्ग की बादशाही मिल जाती है। सिर्फ याद में रहना है। सेकण्ड में साक्षात्कार कराया जाता है। उस समय जैसे स्वर्ग वा कृष्णपुरी में हैं। सिर्फ दो बातें याद करनी हैं - एक तो बाप की याद, दूसरा यह नॉलेज बहुत ऊंच है मनुष्य से देवता बनने की। देवतायें तो पवित्र होते हैं। नॉलेज हमेशा ब्रह्मचर्य में पढ़ी जाती है। जब पढ़कर घर सम्भालने लायक बनें तब बाद में शादी करनी होती है। अपने घर वालों को क्रियेटर सम्भालेंगे, इसलिए अपनी कमाई चाहिए ना। तो ब्रह्मचर्य में कमाई होती है। आजकल तो धन के भूखे हो गये हैं। थोड़ी आमदनी हुई फिर दूसरा कोर्स करते हैं। अब बाप कहते हैं - बच्चों, यह कोर्स बहुत सहज है सिर्फ श्रीमत पर रात को जागकर प्रैक्टिस करो। रात को बुद्धि की यात्रा करना बहुत सहज है और मदद भी बहुत मिलेगी। दो तीन बजे अमृतवेला कहा जाता है। सवेरे उठकर स्वदर्शन चक्र फिराना है। यह बुद्धि का काम है। बाप का फरमान है - निरन्तर मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होते जायेंगे। नहीं तो तुम सजनियों को कैसे ले जायेंगे। तुम सजनियाँ हो पतित, सबके पंख टूटे हुए हैं। अब सिर्फ याद करो तो पवित्र बन जायेंगे। सवेरे उठने का प्रयत्न करो। दिन में तो याद न भी ठहरे, रात को पुरुषार्थ करना सहज है और मदद भी बहुत मिलेगी। मुख्य है याद। तुम जानते हो हम आत्मा हैं। हमको परमपिता परमात्मा पढ़ा रहे हैं। उनसे पढ़ना है। वह बाप भी है, उनका बनना है। तुम जानते हो हम आत्मायें आकर शिवबाबा से मिली हैं। आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल... जीव आत्मायें आकर बाप से मिलती हैं। तो जरूर परमात्मा को भी जीव आत्मा बनना पड़े। वह तो सुप्रीम आत्मा है। आत्मा परमात्मा का रूप एक ही है। जैसे स्टार्स चमकते हैं, आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। बाप कहते हैं मैं भी एक्टर हूँ। मैं भी ड्रामा के बंधन में बांधा हुआ हूँ। यह दुनिया नहीं जानती कि कल्प-कल्प संगमयुग के सिवाए कब आ नहीं सकता हूँ। आफतें आदि तो बहुत आती रहती हैं। बाप कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जब सब पतित बन जाते हैं। मैं ही नई दुनिया का रचयिता हूँ। आता ही पतित दुनिया में हूँ। पतित पहले आत्मा बनती है। आत्मा जानती है हम पहले पावन थे, अब पतित बने हैं। यह शिक्षा तुमको ही मिलती है। टीचर के सामने जो स्टूडेन्ट होते हैं उनको ही शिक्षा मिलती है। तुमको यह शिक्षा पहले-पहले मिलती है। इन 5 विकारों को जीतो। योग अग्नि से विकर्मों को भस्म करो। इस विष (विकार) ने ही तुमको कब्रदाखिल कर दिया है, इसको प्वाइज़न कहा जाता है। ज्ञान अमृत से तुम पवित्र बन जाते हो।
बाप और वर्से को याद करना, है तो बहुत सहज। कई बच्चियाँ कहती हैं बाबा धारणा नहीं होती, बड़ी बहनों मुआफिक समझा नहीं सकते हैं। बाप कहते हैं - बच्चे, यह तो हरेक के कर्म का हिसाब-किताब है। कोई तो 25-30 वर्ष रहते हुए भी धारणा नहीं कर सकते हैं। तुम आत्माओं का तो बाप परमात्मा है। वह स्वर्ग का रचयिता है। बाप स्वर्ग का वर्सा देने ही आये हैं। तुम बाप को तो याद करो। बच्चों को भी होशियार करना है। तुम बच्चों को पहले रहम करना चाहिए - अपने बच्चों पर। तुम बच्चे समझते हो हम इस समय अपने मोस्ट बिलवेड परमपिता परमात्मा के सम्मुख बैठे हैं। कल्प पहले भी हमने निराकार बाप से बेहद का वर्सा स्वर्ग का लिया था। बाप कहते हैं मुझे भी इस शरीर का लोन लेना पड़ता है। किराये पर बैठे हैं। अपना न होने से जरूर किराये से ही लेंगे। यह रथ है जिसमें कल्प-कल्प रथी बनते हैं। रथ में रथी देख रहे हैं ना। आगे तो गीता पढ़ने से कुछ भी समझ में नहीं आता था। कहाँ वह अर्जुन और घोड़ों का रथ बैठ दिखाया है। तुम्हारा बाप रथी है, बच्चों को कहते हैं मुझ बाप को याद करो फिर चार्ट रखो। ऐसा साजन जो 21 जन्म सुख देते उनको क्यों नहीं याद करेंगे। परन्तु यह है गुप्त। अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा निश्चय कर फिर बाप की श्रीमत पर चलना है, इसमें ही माया बड़ा हैरान करती है। वह भी कम उस्ताद नहीं है। अच्छे-अच्छे बच्चों को भी जीत लेती है। बाबा स्वर्ग का मालिक बनावे और माया चण्डाल के जन्म में ले जावे क्योंकि श्रीमत छोड़ देते हैं। यहाँ बच्चे जानते हैं हमको भगवान पढ़ाते हैं। तुम गॉडली स्टूडेन्ट हो ना। भल दूसरा भी कोर्स उठाते फिर भी टीचर को याद करेंगे। बाप कहते हैं - भल गृहस्थ व्यवहार में रहो, परन्तु सदा सुखी बनने के लिए साथ में दूसरा कोर्स उठाओ। मैं तुम्हें अथाह धन देता हूँ जो तुम 21 जन्म कभी दु:ख नहीं देखेंगे। तुम्हारे जैसा अक्लमंद सृष्टि भर में कोई नहीं होता। प्रेज़ीडेन्ट आदि की कितनी महिमा करते हैं। परन्तु तुम मोस्ट वन्डरफुल इनकागनीटो बड़ी अथॉरिटी हो। तुम्हारे जैसा नॉलेजफुल इस दुनिया में कोई हो नहीं सकता। अब तुम बच्चे जानते हो भारत को हम स्वर्ग बनाए 21 जन्म के लिए स्वर्ग का मालिक बन रहे हैं। जगत अम्बा को कितनी बड़ी प्राप्ति है। वह भी यही महामंत्र देती है कि शिवबाबा को याद करो। बाप सम्मुख कहते हैं - लाडले बच्चे, मुझे याद करो। यह यात्रा भूलो मत। टाइम वेस्ट न करो। यह बहुत भारी कमाई है। बुद्धियोग वहाँ लग जाना चाहिए। हम शिवबाबा के सम्मुख हैं। बाप के घर आये हैं। अभी तो तुम हरिद्वार में बैठे हो। हरी परमात्मा खुद बैठे हैं। वहाँ तो पानी है। यह सच्चा-सच्चा हरी का द्वार है। हर हर यानी दु:ख हरने वाला। यहाँ वह दु:ख हर्ता सुख कर्ता तुम्हारे सामने बैठा है। भक्त लोग जाकर गंगा के किनारे बैठते हैं, समझते हैं गंगा का तट हो, गंगा जल मुख में हो। जब कोई मरते हैं तो गंगाजल पिलाते हैं। अब गंगा पतित-पावनी नहीं है। पतित-पावन है ही शिवबाबा। हरेक को याद उस शिवबाबा को करना है तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। ऐसे नहीं, पिछाड़ी में कोई बैठ कहेंगे शिव-बाबा को याद करो। अन्त में आपेही शिवबाबा की याद में शरीर छोड़ना है। अब हमको शिवबाबा के पास जाना है मुक्तिधाम। सतयुग को जीवनमुक्तिधाम कहा जाता है। धाम रहने के स्थान को कहा जाता है। निर्वाणधाम में निराकार आत्मायें ब्रह्म तत्व में रहती हैं। अब तुम आकर हरी के घर में बैठे हो। दु:ख हरने वाला एक ही है। अब तुम बच्चों को शिवबाबा और उनका स्वीट होम याद आयेगा। बाबा आये हैं अपने घर ले चलने। अब शिवबाबा के स्वीट होम को याद करना है। यहाँ तो कोई स्वीट है नहीं।
अब बाप बच्चों को कहते हैं - बेहद की राजाई लेनी है तो रात को जागकर यात्रा करो। मैं आता ही हूँ घोर अन्धियारी रात में। ब्रह्मा की रात पूरी हो दिन होना है। मैं आता हूँ बेहद की रात और बेहद दिन के संगम पर। तो तुम भी रात में नींद को जीत याद करने का अभ्यास करो। 2-3 बजे के समय को ब्रह्म महूर्त कहा जाता है। बाप शिक्षा देते हैं ब्रह्मा द्वारा। रात को जाग मुझे याद करो तो फिर पक्के हो जायेंगे। माया बहुत सतायेगी फिर भी मेहनत करो। इसमें मेहनत सारी बुद्धि की है। उठते, बैठते, चलते याद में रहना है। बाप कहते हैं थक मत जाना रात के राही। रात को बहुत मजा आयेगा। फिर वह नशा दिन में भी चलेगा। एक तो बाप को याद करो और अपनी तकदीर की महिमा करो। और सबकी तकदीरें फूटी हुई हैं। तुम्हारी तकदीर अब जग रही है, औरों की सो रही है। जिनका बुद्धियोग इस समय धन कमाने में रहता है उनकी तकदीर सोई हुई समझो। सच्ची तकदीर तुम्हारी जग रही है। पेट कोई जास्ती थोड़ेही खाता है। भील लोग क्या खाते हैं? मिर्ची और मकाई चने का आटा मिलाए रोटी खा लेते हैं। यहाँ तो तुमको सब कुछ मिलता है। तुमको बहुत साधारण रहना है। न बहुत साहूकारी, न बहुत गरीबी। अब बाप कहते हैं - हे लाडले बच्चे, मुझे याद करो। मैं तुमको नयनों पर बिठाए ले चलता हूँ। मेरे नूरे रत्नों। नूरेचिश्म बच्चों को हमेशा प्यार किया जाता है। श्रीमत पर चलने से सदा सलामत रहेंगे। सदा सलामत का अर्थ भी बड़ा भारी है। तुमको चोट नहीं लगेगी, कोई तकल़ीफ नहीं होगी। इतना तुमको सदा सलामत बनाता हूँ। निरोगी काया रहेगी। न काल की ताकत है। अगर अच्छी रीति याद करेंगे तो मदद मिलेगी। जिन्होंने कल्प पहले पुरुषार्थ कर अपनी प्रालब्ध बनाई है। साक्षी हो देख रहे हैं, यह अपने को इन्श्योर करते हैं! बाबा भक्ति मार्ग में भी इन्श्योर मैगनेट है। ईश्वर अर्थ निकालते हैं। गरीबों को गुप्त दान देते हैं। कोई को शादी करानी होती है तो गुप्त दे आते हैं। गुप्त दान का फल भी ऐसा मिलता है। शो करने से उनकी ताकत आधी हो जाती है। मैगनेट बाप को कहते हैं, तुम इनश्योर करते हो। जो जैसा अपने को इनश्योर करते हैं वैसा फल मिलता है। पाप करते हैं तो उसका दण्ड मिल जाता है। पुण्य का फल अच्छा मिलता है। वह होते हैं हद के फ्लैन्थ्रोफिस्ट। कमाई में से 8 आना, 4 आना भी निकालते हैं। अब तो तुमको कम्पलीट फ्लैन्थ्रोफिस्ट बनना है। फुल इन्श्योर कर देना है। देखो, मम्मा ने सिर्फ तन और मन इन्श्योर किया। कन्याओं के पास तो धन होता ही नहीं। उन्हों को यह ख्याल नहीं रखना है। वह फिर तन-मन से सेवा कर रही हैं इसलिए कन्यायें बहुत प्यारी लगती हैं। कन्यायें नम्बरवन में आ जाती हैं। बाबा अधरकुमार था। हाँ, कोई कुमार निकलते हैं। स्वयंवर रच पवित्र रह दिखाते हैं तो अहो सौभाग्य। सरेन्डर भी पूरा हो। वह बहुत अच्छा पद पा सकते हैं। बाबा समझाते हैं कर्मों का भोग भी सारा यहाँ चुक्तू करना है। मम्मा-बाबा को भी कर्म का भोग भोगना पड़ता है। रहा हुआ हिसाब-किताब यहाँ ही निकलेगा। ऐसे नहीं, ईश्वर का बना हूँ फिर रक्षा क्यों नहीं करते। नहीं, कर्मभोग तो जरूर यहाँ ही चुक्तू करना है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बुद्धियोग से सच्ची यात्रा करनी है। विनाशी धन के पीछे अपनी तकदीर नहीं गंवानी है। सच्ची कमाई करनी है।
2) तन-मन-धन से पूरा फ्लैन्थ्रोफिस्ट (महादानी) बनना है। अपना सब कुछ 21 जन्मों के लिए इन्श्योर कर देना है।
वरदान:-दिव्य बुद्धि के बल द्वारा परमात्म टचिंग का अनुभव करने वाला मास्टर सर्वशक्तिमान भव
दिव्य बुद्धि को बुद्धिबल कहा जाता है इस बुद्धिबल द्वारा ही बाप से सर्वशक्तियां कैच कर मास्टर सर्व-शक्तिमान बनते हो। जैसे साइंस बुद्धिबल है लेकिन वह संसारी बुद्धि है इसलिए इस संसार के प्रति, प्रकृति के प्रति ही सोच सकते हैं। आपके पास दिव्य बुद्धि का बल है जो परमात्म प्राप्ति की अनुभूति कराता है। दिव्य बुद्धि द्वारा हर कर्म में परमात्म प्योर टचिंग का अनुभव कर सफलता का अनुभव कर सकते हो। दिव्य बुद्धि के बल से माया के वार को हार खिला सकते हो।
स्लोगन:- मास्टर ज्ञान सूर्य बन सर्व को ज्ञान की लाइट माइट देने वाले ही सच्चे सेवाधारी हैं।
इस मास की सभी मुरलियाँ (ईश्वरीय महावाक्य) निराकार परमात्मा शिव ने ब्रह्मा मुखकमल से अपने ब्रह्मावत्सों अर्थात् ब्रह्माकुमार एवं ब्रह्माकुमारियों के सम्मुख 18-1-1969 से पहले उच्चारण की थी। यह केवल ब्रह्माकुमारीज़ की अधिकृत टीचर बहनों द्वारा नियमित बीके विद्यार्थियों को सुनाने के लिए हैं। कार्यालय:- राजयोग भवन, ई-5,अरेरा कॉलोनी, मेन रोड भोपाल मध्यप्रदेश सम्पर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/GmXEJuoYvxE