23.may.2023/ शिव बाबा की मुरली (परमात्मा की वाणी) आज की प्रातः मुरली मधुबन से।
मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं। YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है, “मीठे बच्चे - मात-पिता को पूरा-पूरा फालो कर सपूत बनो, याद और श्रीमत के आधार पर ही बाप के तख्तनशीन बनेंगे।''
प्रश्नः-किस पुरुषार्थ से सेकण्ड में जीवन्मुक्ति प्राप्त हो सकती है?
उत्तर:-पुरुषार्थ करो अन्तकाल में एक बाप के सिवाए दूसरा कोई भी याद न आये। इसके लिए बुद्धि को गृहस्थ व्यवहार में रहते भी न्यारा रखो, सब कुछ भूलते जाओ, श्रीमत पर चलते रहो। किसी को भी काँटा नहीं लगाओ। हर कदम में मात-पिता को फालो करो। कोई भी कमी है तो अविनाशी सर्जन को सच-सच बतलाओ।
गीत:-नई उमर की कलियाँ...
ओम् शान्ति। बच्चों को इस गीत का अर्थ समझाते हैं। यह जो महिमा करते हैं इस देश में जन्मी थी सीता..... यूँ तो वास्तव में मेल और फीमेल सब सीतायें हैं क्योंकि सब भक्तियाँ हैं, भक्ति करने वाले, भगवान को याद करते हैं। यह सजनियाँ साजन को याद करती हैं। किसलिए? फूल बनने लिए। कहते भी हैं ना - कमलफूल समान रहना है। अब तुम जानते हो - हम आत्माओं का बाप परमात्मा है। उनसे स्वर्ग का वर्सा मिलना होता है, जिसको जीवन-मुक्ति कहा जाता है। जीवनमुक्ति का वर्सा जरूर मिलेगा सतयुग के लिए, कलियुग के लिए नहीं। नई दुनिया शुरू होती है गोया नाटक नया शुरू हो जाता है। दुनिया पुरानी है तो नाटक भी पुराना हो जाता है। अब यह है पुरानी दुनिया। नई दुनिया में लक्ष्मी-नारायण जैसे फूल थे। अभी तुम जानते हो हम काँटों से फूल बन रहे हैं - स्वर्ग का मालिक बनने लिए। काँटा वे हैं जो एक दो के ऊपर काम कटारी चलाते हैं। तुमको निश्चय है हम आत्माओं का बाप आया हुआ है फिर से सदा सुखी स्वर्ग का मालिक बनाने। इस निश्चय में गड़बड़ नहीं होनी चाहिए। बाप ने आकर इनको (दादा को) भी समझाया है। यह कहते हैं बरोबर हम नहीं जानते थे। हम पहले सतयुग में धर्मात्मा थे। धर्मात्मा उनको कहा जाता है जो काम कटारी नहीं चलाते। धर्मात्मा सिर्फ उनको नहीं कहते जो दान-पुण्य करते हैं। मनुष्य जो कुछ करते उनका फल दूसरे जन्म में मिलता है। वह इन्डायरेक्ट दान करना है। ईश्वर अर्थ दान करते हैं। जैसे कोई कृष्ण अर्थ भी करते हैं। परन्तु श्रीकृष्ण को गीता का भगवान समझने कारण मुँझारा कर दिया है। भगवान कहते हैं - मैं भारत में ही आया हूँ। तुम बच्चे जानते हो - हमारा बाप परमधाम से आया है। हमको कहते हैं - बच्चे, अब नाटक पूरा होता है, मुझे याद करो। तुम ही सो लक्ष्मी-नारायण थे। त्रेता में हैं राम-सीता... श्रीकृष्ण का युग तो कोई अलग नहीं है। उन्होंने द्वापर में डाल दिया है। यह फिर भी होगा। बाप बैठ बच्चों को शास्त्रों का सार समझाते हैं। मैंने कोई गीता आदि हाथ में नहीं उठाई है। मुझे तो ज्ञान का सागर कहते हैं। मुझे भक्त ऐसे भी कहते हैं सत है, चैतन्य है... मनुष्य जो बहुत वेद-शास्त्र आदि पढ़ते हैं, उनको शास्त्रों की अथॉरिटी कहा जाता है। अब यह वेद-शास्त्र आदि कहाँ से शुरू हुए? भक्ति मार्ग से। यह ड्रामा अनादि बना हुआ है। ऐसे नहीं वेद-शास्त्र अनादि कहेंगे। अगर अनादि कहें तो सतयुग से लेकर कहा जाये। सतयुग में तो वेद-शास्त्र होते नहीं। यह तो भक्ति मार्ग से शुरू होते हैं। अब बाप की बुद्धि में है कि मैं ज्ञान का सागर हूँ। इस मनुष्य सृष्टि को मैं ही जानता हूँ। बाप आकर अपना परिचय देते हैं। यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, 84 जन्म कैसे भोगते हैं। तुम जानते हो हम 84 जन्म सतो, रजो, तमो में पार्ट बजाते हैं।
अभी बाप ने आकर ब्रह्मा द्वारा यह यज्ञ रचा है। शिवबाबा द्वारा हम ब्रह्मा के बच्चे बने हैं। तो वह दादा हो गया। वहाँ तो है ही बाप का वर्सा। आधाकल्प से तुम चाहते थे - मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा। यह नहीं जानते थे कि बाप भक्तों के पास आयेंगे, क्या करेंगे। कहते हैं भगवान घर बैठे आ जाये। सो तो बड़े घर में आयेंगे ना। तुम्हारे लिए तो अपना घर छोटा है। यह है बेहद का घर। न जाने कब भगवान भक्तों के पास आ जाये। भगवान तो जरूर भक्तों के लिए आयेंगे। भक्त भगवान के बच्चे ठहरे। ऐसे नहीं, भगवान सब भक्तों में है, सब भगवान हैं। नहीं। बाप डायरेक्ट बैठ समझाते हैं कि मैं आऊंगा जरूर, आकर बच्चों को सुख दूँगा। मनुष्य विलायत से आते हैं तो बड़ी वन्डरफुल सौगात लाते हैं। बाप कहते हैं कि मैं तुम्हारे लिए वैकुण्ठ सौगात लाया हूँ। वहाँ विष नहीं मिलेगा। इस ज्ञान अमृत पीने से तुम स्वर्ग में जा सकते हो। तो जरूर जहर छोड़ना पड़ेगा। मैं कोई सन्यासियों-उदासियों मिसल पुस्तक नहीं उठाता हूँ। मैं तो शान्तिधाम-सुखधाम का मालिक बनाने लिए रास्ता बताता हूँ। हे मेरे लाडले बच्चों, परदेशी बाप आत्माओं से बात करते हैं। और कोई ऐसे नहीं कहेंगे कि मैं परमात्मा हूँ, तुम आत्माओं से बात करता हूँ। वह तो कहते अहम् परमात्मा तत त्वम्। बाप, बाप को वर्सा देंगे क्या! बाप जरूर बच्चों को वर्सा देंगे। तुम्हारी कितनी विशाल बुद्धि बनी है। बाप आकर बुद्धि का ताला खोलते हैं। बुद्धि में मूलवतन, सूक्ष्मवतन याद है। यह है स्थूल वतन। तुम अब बन गये हो त्रिकालदर्शी। तीनों लोकों, तीनों कालों को जानते हो। यह हैं डिटेल की बातें। नटशेल में तो हैं ही दो बातें - बाप और वर्से को याद करना है। याद के चार्ट पर ही मदार है। घर में रहो, युक्ति से चलो, बाप और वर्से को याद करो। चार्ट रखो - हम कितना समय योग में रहे? बाप को याद करने से वर्सा जरूर मिलता है। बाप तो बहुत सहज कर बतलाते हैं। परन्तु कोई याद करे भी ना। माया एकदम भुला देती है। कोई-कोई बाँधेली बच्चियाँ ऐसी अच्छी हैं जो घर में रहते भी कई महारथियों से अच्छा योग में रहती हैं। शिवबाबा को बहुत याद करती हैं - शिवबाबा हमें दु:ख से छुड़ाओ। जानते हैं - शिवबाबा से हमको स्वर्ग की राजाई मिलती है। घर में याद करते-करते अगर प्राण त्याग दें तो भी बहुत अच्छा पद मिल सकता है। “मेरा तो एक दूसरा न कोई'' - इसी निश्चय से बेड़ा पार हो जाए। कितनी मार खाती हैं! ऐसा सतसंग तो कभी नहीं देखा होगा जहाँ स्त्रियाँ मार खाती। सतसंग में जाने से कोई मना करते हैं क्या? ढेर सतसंग हैं। यहाँ तो अबलाओं पर कितने अत्याचार होते हैं, विघ्न पड़ते हैं! शुरू से लेकर चलता आया है। अकासुर, बकासुर कैसे ले जाते थे बच्चों को, विष के लिए मारें कितनी खाती थी! कोई तो बात होगी ना। अच्छे-अच्छे बच्चे भल सेन्टर्स भी खोलते हैं फिर भी चलते-चलते माया का वार हो जाता है। बाप तो धर्मराज भी है। कहते हैं - मैं कालों का काल हूँ। अमृतसर में एक अकाल तख्त है, इसका अर्थ कोई समझते नहीं हैं। बाप कहते हैं - मैं कालों का काल भी हूँ। वह जमघट तो एक दो को ले जाते हैं। बाप कहते हैं - मैं तो सब आत्माओं को ले जाऊंगा इसलिए खुश होना चाहिए। आधाकल्प से भक्ति की है परन्तु वापिस कोई भी जा नहीं सकते। अभी आप सभी को ले जाते हो।
मनुष्य कहते हैं - भगवान कालों का काल है जो सभी को मार डालते हैं। परन्तु मैं मारता नहीं हूँ। मैं तो तुम्हें शरीर से मुक्त कर, आत्मा को गुल-गुल बनाए वापस ले जाता हूँ, इसमें डरने की तो बात ही नहीं है। बहुत बच्चे मरने से डरते हैं। डरते वह हैं जिनका पूरा योग नहीं। अरे, हम तो तैयारी कर रहे हैं वापस जाने की। बाबा आया है तैयारी कराए ले चलने लिए, तो तुम स्वर्गवासी नहीं बनेंगे? कहते हैं - फलाना स्वर्गवासी हुआ। परन्तु जाते कोई भी नहीं हैं। स्वर्ग तो भारत में होता है। वह था सतयुग। कलियुग में स्वर्ग कहाँ से आया। अखबार में डालते हैं फलाना वैकुण्ठ गया, उनको श्राध खिलाते हैं। अब वैकुण्ठ में तो अथाह वैभव हैं फिर तुम उनको क्या खिलायेंगे। उनकी तो सद्गति हो गई तो फिर यहाँ का भोजन खिलाए पतित क्यों बनाते हो। अभी तुम बच्चे जानते हो सच-सच तुमको निर्वाणधाम जाने लिए बाबा शिक्षा देते हैं। खुशी से जाना चाहिए। पुराने काँटों से सम्बन्ध तोड़ना चाहिए। बाप कितना सहज कर बतलाते हैं, सिर्फ मुझे याद करो इसमें तो बहुत खुशी होनी चाहिए। बाप कहते हैं अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो मेरे बच्चों से पूछो। अभी के पुरुषार्थ से 21 जन्मों की प्रालब्ध बनाते हैं। अब नहीं लिया तो खलास। रेस बड़ी भारी है। सबको पुरुषार्थ करना चाहिए। बाप कहते हैं - बच्चे, हमारे ऊपर जीत प्राप्त करो। बाबा, मम्मा, बापदादा, पिताश्री कहते हो ना। यह बाबा भी उनसे पढ़ रहा है ना। शिवबाबा पढ़ाते हैं। यह गृहस्थ धन्धे आदि वाला था ना। ऐसे ख्याल नहीं आना चाहिए - मैं पीछे आया हूँ, इसलिए दौड़ी नहीं लगा सकता हूँ। माँ-बाप कहते हैं - सपूत बच्चा वह जो फॉलो करे। यह माँ-बाप भी पुरुषार्थी हैं। पुरुषार्थ कराने वाला है मात-पिता। तुम मात-पिता हम बालक तेरे.. तो यह भी उनका बालक हुआ ना। यह भी गृहस्थी था, तुम भी गृहस्थी हो। है बड़ा सहज। इसमें भी कन्याओं का तो अहो सौभाग्य है, उनको झट बचा लेते हैं। 5 विकारों की सीढ़ी नहीं चढ़ना है। बाल ब्रह्मचारी भीष्म-पितामह का मिसाल है ना। यह राजयोग है। तुम जानते हो हम भविष्य राजाई पाने लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। मम्मा-बाबा भी पुरुषार्थ कर ऊंच ते ऊंच पद पाते हैं। कल्प पहले भी उन्होंने पाया था। कहते हैं - लाडले बच्चे, तुम हमारे तख्त का मालिक बनने लिए पुरुषार्थ करो। मम्मा-बाबा कहते हो तो क्यों नहीं पुरुषार्थ करते हो, कोई तकलीफ हो तो बाबा को बताओ। इस कारण पुरुषार्थ कम चलता है। बाप है अविनाशी सर्जन। बाकी कोई भी तकलीफ हो तो चाहे लिखो, चाहे सम्मुख आकर पूछो। बाप राय देंगे। मुख्य बात है बाप और वर्से को याद करना। नटशेल में यह काफी है। सेकेण्ड में जीवन्मुक्ति पाने का पुरुषार्थ करते-करते इतना याद करना है जो अन्त काल और कुछ याद न आये। गृहस्थ व्यवहार को भूलते जाओ। कहते हैं मंजिल तो बड़ी है और विश्व का मालिक बनना है। लड़ाई में कितनी मेहनत कर हद की बादशाही लेते हैं। तुम तो स्वर्ग में विश्व के मालिक बनते हो और क्या चाहिए। इतना मीठा बाप दुनिया में और कोई होता नहीं। परन्तु इस बाप के नाम, रूप, देश, काल को भूल गये हैं। बरोबर शिव हम आत्माओं का बाप स्वर्ग का रचता है तो स्वर्ग का ही वर्सा देते होंगे ना, यह भूल गये हैं। किसको सेकेण्ड में भी तीर लग सकता है। बरोबर बेहद का बाप है, वर्सा देने आया है। क्रियेटर है। किसका? क्या नर्क का? ऐसे तो कभी नहीं कहेंगे। बाप तो स्वर्ग का मालिक बनाने वाला है। बस, हम तो झट जाकर उनका हाथ पकड़ते हैं। बूढ़े साधारण तन में आया है। बाप कहते हैं - सब बच्चे बेसमझ पुजारी पतित बन पड़े हैं। मैं आकर पुजारी से पूज्य बनाता हूँ। यह भी पुजारी था। नारायण की पूजा करता था। चित्र में दिखाया है - लक्ष्मी उनके पाँव दबाती है। बाप कोई ऐसे थोड़ेही कहते हैं कि चरण धोकर पियो। बाप कहते पहले लक्ष्मी, पीछे नारायण। तो जो लक्ष्मी बनती है, उनका मैं पाँव दबाता हूँ। बूढ़ी माताओं को कहते तुमने आधाकल्प कितने धक्के खाये हैं। पहले अव्यभिचारी भक्ति थी, अब व्यभिचारी भक्ति बन पड़ी है। थक गये हैं। बाप को संकल्प उठा - मैं जाकर नई सृष्टि रचूँ। बाप तो जानी जाननहार है। कहते हैं - इन बिचारों ने आधाकल्प भक्ति की है। अब बिल्कुल थक पड़े हैं। मौत भी बड़ा कड़ा है, एक दो को खत्म कर देंगे। बाप है नॉलेजफुल। परन्तु कहते हैं - मैं भी बन्धन में बाँधा हुआ हूँ। जानता हूँ - बच्चे बहुत दु:खी हैं। इन पर 5 विकार आकर चटके हैं। उनको अब खातिरी देते हैं। तुम्हारे सुख के दिन आ रहे हैं। अभी तुम श्रीमत पर चलो तो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनेंगे। बाप है ऊंच ते ऊंच। बाकी सब हैं रचना। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को परमात्मा नहीं कहेंगे। सुप्रीम सोल एक ही बाप है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर - वह हुए सूक्ष्मवतनवासी। चित्रों में ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के आगे शिवलिंग रखते हैं क्योंकि बच्चे हैं ना। यह भी वह नहीं जानते। अभी तुम बच्चों को दिव्य दृष्टि मिली है। तुमको तो बहुत हर्षित रहना चाहिए। हम सारे सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त को जानते हैं। बाप से स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। सिर्फ बाप को याद करते हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं, इसमें कोई छोड़ने की बात नहीं। पहले तो गऊशाला बनानी थी। नहीं तो यह कैसे होशियार बन सकते। पाण्डवों को देश निकाला मिला था, तो यह गऊशाला बनी ना। अब तुम समझते हो हम काँटों से फूल बन रहे हैं। क्यों न हम बाबा-मम्मा के तख्त पर बैठें। बाबा भी कहते हैं फालो कर नम्बरवार तख्त पर बैठो। अपनी दिल से पूछना है - हम बाबा को याद करते हैं? रात को हमेशा पोतामेल देखो। सारे दिन में अथवा सवेरे उठकर कितना समय बाप को याद किया? बाप को याद कर श्रीमत पर चलना है। एक दो को काँटा नहीं लगाना है। काम-क्रोध है मुख्य। इनको जीतो तो दूसरे छोटे-छोटे विकार ठण्डे हो जायेंगे। काम महाशत्रु है। काम के कारण लड़ाई-झगड़े मारामारी कितना करते हैं। कहते हैं - बाबा, बच्चे बहुत अशान्त करते हैं। स्वर्ग में तो कभी कोई किसी को तंग नहीं करते। वहाँ बच्चे भी तंग नहीं करेंगे इसलिए अब बाप और स्वर्ग के सुख को याद करो। बस, अब हम चले सुखधाम। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मात-पिता के तख्त को जीतने की दौड़ लगानी है। पूरा फॉलो करना है।
2) पुराने कॉटों से सम्बन्ध तोड़ “मेरा तो एक दूसरा न कोई'' इस निश्चय में पक्का रहना है।
वरदान:-हर गुण वा शक्ति को अपना स्वरूप बनाने वाले बाप समान सम्पन्न भव
जो बच्चे बाप समान सम्पन्न बनने वाले हैं वह सदा याद स्वरूप, सर्वगुण और सर्व शक्तियों स्वरूप रहते हैं। स्वरूप का अर्थ है अपना रूप ही वह बन जाए। गुण वा शक्ति अलग नहीं हो, लेकिन रूप में समाये हुए हों। जैसे कमजोर संस्कार या कोई अवगुण बहुतकाल से स्वरूप बन गये हैं, उसको धारण करने की मेहनत नहीं करते। ऐसे हर गुण हर शक्ति निजी स्वरूप बन जाए, याद करने की भी मेहनत नहीं करनी पड़े लेकिन याद में समाये रहें तब कहेंगे बाप समान।
स्लोगन:-“बाबा'' शब्द ही सर्व खजानों की चाबी है, इसे सदा सम्भालकर रखो। कार्यालय:- राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश। संपर्क:- 9691454063,9406564449, https://youtube.com/watch?v=b_jI6v3Gt1o&feature=share