11 August.2023/ शिव बाबा की मुरली (परमात्मा की वाणी) आज की प्रातः मुरली मधुबन से।
मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है। “मीठे बच्चे-अभी तुम कौड़ी से हीरे जैसा बने हो, ईश्वर की गोद पाना ही हीरे जैसा बनना है, श्रीमत तुम्हें हीरे जैसा बना देती है''
प्रश्नः-सतयुग में किसी को तो ताउसी-तख्त (बादशाही) और किसी को दास-दासी या प्रजा पद मिलता है, इसका कारण क्या है?
उत्तर:-सतयुग में ताउसी तख्त उन्हें मिलता जो संगम पर ज्ञान सागर की पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ते हैं और धारण करते हैं, ज्ञान रत्नों का दान कर बहुतों को आप समान बनाते हैं और जो ग़फलत करते, देह-अभिमान में आकर हंगामें मचाते, उन्हें प्रजा पद मिल जाता है। पढ़ाई पर ध्यान न देने वाले ही दास-दासी बन जाते हैं।
ओम् शान्ति। कौड़ी से हीरे जैसा बनने वाले सिकीलधे, पुरुषार्थी बच्चे यह जानते हैं कि माया का तूफान लगता है। बच्चे कौड़ी से हीरे जैसा बनने का पुरुषार्थ करते हैं, परन्तु श्रीमत पर न चलने के कारण फिर से माया का तूफान लगने से ज्योत बुझ जाती है। इस पर भी गीत है। बच्चों को अब मालूम पड़ा है कि हम सो पूज्य देवी-देवता थे। यह आत्मा सुनती है बेहद के मोस्ट बील्वेड बाप द्वारा। उनकी यह महिमा गाई जाती है। वह ऊंच ते ऊंच भगवान् है। सारी सृष्टि में उनको ही याद करते हैं क्योंकि इस दुनिया में तो बरोबर दु:ख ही दु:ख है। ऐसा मत समझो कि सब मनुष्य बेसमझ हैं। समझते भी हैं कि प्राचीन भारत बहुत ऊंच था और सभी खण्ड अथवा धर्म थे नहीं इसलिए भारत को प्राचीन कहते हैं। इतना समझते हैं परन्तु वह कैसे हुआ, कब हुआ? भारत फिर हीरे जैसा कब और कैसे बनेगा - यह नहीं जानते। अभी तुम बच्चे सम्मुख बैठे हो और जो परदेश अर्थात् बाहर सेन्टर पर रहते हैं, वह भी सुनते हैं। हीरे जैसा बनाने वाला बेहद का बाप कहते हैं - यह तुम्हारा अन्तिम ईश्वरीय जन्म है जबकि भगवान् बैठ हीरे जैसा बनाने लिए तुमको पढ़ाते हैं, तो ऐसे बाप का कितना न रिगार्ड रखना है। सत बाप, सत टीचर, सतगुरू का रिगार्ड रखा जाता है। बाप कहते हैं बच्चों को सुख देने वाला मैं ही हूँ। इस समय तुम बच्चों को सुख देने के लिए आकर अपनी मत देता हूँ। भगवान् ने जो श्रीमत दी थी वह फिर मनुष्यों ने गीता में लिखा है, परन्तु यथार्थ नहीं। अब यह तुमको ऊंच ते ऊंच हीरे जैसा बनाते हैं। स्वर्ग में तो तुम ही आ सकते हो ना। यूँ तो सारी दुनिया की आत्मायें बच्चे हैं बाप के। प्रजापिता ब्रह्मा तो है ना। इस समय शिवबाबा के पोत्रे कहलाते हो। फिर पर-पोत्रे, तर-पोत्रे भी कहलाते हो। वृद्धि तो होती जाती है ना। वास्तव में सभी का रचयिता मैं बाप ही हूँ। पूछते हैं ना कि तुमको किसने पैदा किया? तो कहते हैं अल्लाह वा खुदा ने। इतना समझते हैं परन्तु कैसे पैदा करते हैं, कैसे इतना सब वृद्धि को पाते हैं - यह कुछ भी पता नहीं है। यह तो तुम जानते हो कि सतयुग में बहुत थोड़ी रचना होती है। जरूर रचयिता भी होगा जो नई दुनिया रचते हैं। नई दुनिया में देवी-देवता पद प्राप्त कराते हैं तो जरूर पुरानी दुनिया का विनाश भी कराते होंगे - यह कोई भी नहीं जानते। अथाह किताब शास्त्र आदि लिखते हैं। समझते हैं यह फिलॉसाफी के शास्त्र हैं। फिलॉसाफी ज्ञान को कहते हैं। परन्तु यह किसको पता नहीं है कि ज्ञान का सागर तो एक ही परमपिता परमात्मा है। तुम इस द्वारा नॉलेज पाकर हीरे जैसा बनते हो। ईश्वर की गोद पाना ही हीरे जैसा जन्म है। हीरे जैसा बनाने वाला बाप हमको हीरे जैसा बना रहा है। बलिहारी इनकी गाई जाती है। सतयुग में तो बलिहारी की बात ही नहीं। वहाँ तो यह ख्याल भी नहीं रहता।
तुम अभी जानते हो हम अभी न शूद्र हैं, न देवता हैं। अभी हम ब्राह्मण हैं। तुमको ही स्वदर्शन चक्रधारी कहा जाता है। यहाँ तुम स्वदर्शन चक्रधारी बन विष्णु कुल में जाकर राज्य करेंगे। स्वदर्शन चक्रधारी, कमल फूल समान तुमको यहाँ ही बनना है। यहाँ है पुरुषार्थ, वहाँ है प्रालब्ध। ऐसी बातें दुनिया में कोई नहीं जानते। बाप कहते हैं - माया ने तुमको तुच्छ बुद्धि बनाया है। तुम हीरे जैसे देवी-देवता थे। पहले तुमको पता नहीं था। दुनिया में तो अनेक मतें हैं - कोई क्या कहते, कोई क्या कहते। कोई कहते हैं मनुष्य मरते हैं फिर नये पैदा होते हैं। कोई कहते हैं कि जैसा संकल्प करते वैसा बन जाते हैं। अनेक प्रकार की मत वाले हैं। तुम हो श्रीमत पर चलने वाले। श्रीमत से तुम्हारी भी श्रेष्ठ मत बनती है। तुम ही जानते हो, सब तो नहीं जानेंगे। भल कोई लखपति, पद्मपति हैं परन्तु इस ज्ञान में आना बड़ा मुश्किल है। कोटों में कोई ही आता है क्योंकि साहूकारों पर लफड़े बहुत हैं। ड्रामा में नूँध ही ऐसी है जो गरीब ही ईश्वर की गोद लेते हैं। यह रथ तो उनका है ना। बापदादा दोनों इक्ट्ठे हैं - यह तुम ही समझते हो। निराकार भगवान् को अपना शरीर नहीं है तो जरूर लोन पर शरीर लेना पड़े, तब तो भगवानुवाच हो ना। श्रीकृष्ण भगवानुवाच हो नहीं सकता। उनको तो झट सब जान लेते। यह है निराकार, इसलिए इनको कोई जानते नहीं। आजकल बहुत मनुष्य वेष बदलकर कृष्ण का रूप धारण करते हैं। पैसे कमाते हैं। सब माया के मुरीद बन गये हैं। अभी तुम ईश्वर के मुरीद बनते हो। कोई तो 100 प्रतिशत ईश्वर के मुरीद बने हैं, उनकी शरण ली है। बाकी सब माया रावण की शरण में फँसे हुए हैं। बाबा ने समझाया है कि ख़ास भारतवासी सब शोकवाटिका में हैं। सारी दुनिया ही लंका है। उन्होंने तो शास्त्रों में हद की बातें लिख दी हैं। बेहद का बाप बेहद की बातें सुनाते हैं। तुम जानते हो कि अभी हम ईश्वर की गोद में हैं। फिर हम नई दुनिया के मालिक देवी-देवता बनेंगे। वहाँ तो माया होती नहीं। सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी बड़े साहूकार होते हैं। फिर जब वैश्य वंशी बनते तब हीरे जवाहरात के मन्दिर बनाते हैं। पहले-पहले जो हीरे जवाहरात के मन्दिर बनाते हैं वे ऐसे महलों में रहते हैं इसलिए गाया जाता है कि भारत हीरे जैसा था। अब तो कौड़ी मिसल हैं। यह है ही पतित दुनिया। भारत ही सचखण्ड पावन था। भारत ही अभी पतित खण्ड है, भारत को अभी हम पावन नहीं कहेंगे। अभी हम पावन बन रहे हैं। वहाँ तो है ही सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया। कृष्ण की कितनी भारी महिमा है! उनको झूले में झुलाते हैं परन्तु उनकी बायोग्राफी को नहीं जानते।
तुम जानते हो अभी कलियुग है। भारत ही सतयुग था। बरोबर 84 जन्म भारतवासी ले सकते हैं। तुम जब अच्छी रीति समझाते हो तो मान लेते हैं। इस ईश्वरीय गोद से भारत हीरे जैसा बनता है। यथा राजा-रानी तथा प्रजा। प्रजा को भी हीरे जैसा कहेंगे। अभी यथा राजा-रानी तथा प्रजा कौड़ी मिसल है। अब हीरे जैसा बनाने वाला बाप आया है तो पूरा पुरुषार्थ करना है। हीरे जैसा बनाने वाले बाप से ही पूरा योग लगाना है। तुम जानते हो शिवबाबा से हम वैकुण्ठ का मालिक बनते हैं। पढ़ाई पर ही सारा मदार है। पढ़ाई का ख्याल तो सबको करना चाहिए ना। घर में काम-काज करते भी ऐसा समझो कि हम गॉड फादर के स्टूडेंट हैं। हमारी पढ़ाई बिल्कुल ही सहज है। एक घड़ी भी आकर सुनना जरूर है। प्वाइंट्स ऐसी अच्छी-अच्छी निकलती हैं जो कोई समय अचानक ही किसको तीर लग जाता है इसलिए मुरली तो कैसे भी जरूर सुननी है। नहीं सुन सकते हैं तो कैसे भी करके पढ़ाई पढ़नी है। प्रबन्ध हो सकता है। पहले तो एक हफ्ता भी अच्छी रीति समझना है फिर नई-नई प्वाइंट्स समझने लिए पढ़ना भी जरूर है। बाबा पढ़ाते रहते हैं। प्वाइंट्स निकलती रहती हैं। बोर्ड पर भी लिख सकते हो कि बहनों और भाइयों, आओ, तुम सबको इस सहज ज्ञान और सहज राजयोग से हीरे जैसा बनावें। तुम्हारे पास तो चित्र भी सब हैं। उन पर समझाना बहुत सहज है। जैसे छोटे बच्चे को खिलौने दिखाकर बताया जाता है, पढ़ाते हैं - यह हाथी है, ऐसे-ऐसे करता है; यह ऊंट है.....। मनुष्य को भी परमात्मा का पता नहीं है, न ही यह जानते कि वह क्या करते हैं। उनके कर्तव्य को न जानें तो बाकी महत्व क्या रहा? तो चित्र पर समझाना होता है - यह परमपिता परमात्मा शिव है, यह हीरे जैसा बनाने वाला है, इनसे वर्सा मिलता है ब्रह्मा द्वारा। ब्रह्माकुमार-कुमारियों को शिवबाबा पढ़ाकर ऐसा देवी-देवता बनाते हैं। पढ़ाया है तब तो हम समझा सकते हैं ना। आगे नहीं जानते थे कि परमपिता परमात्मा आकर पढ़ाते हैं। समझानी तो बड़ी सहज है कि भारत हीरे जैसा था, अब कौड़ी जैसा है। फिर कौड़ी पिछाड़ी धक्के क्यों खाते हो? यह सब धन माल आदि मिट्टी में मिल जाना है। अब तुम सचखण्ड के लिए सच्ची कमाई करो। पूरी कमाई न करने के कारण बिल्कुल साधारण प्रजा में चले जाते हैं। प्रजा के भी नौकर बन जाते हैं। बाप का बनकर फिर बाप को फारकती दे देते हैं। तो बाबा समझाते हैं कि बच्चे घर में भी मुरली मंगाकर पढ़ सकते हो। मुरली मिलती रहेगी। कहाँ भी हो तुमको पढ़ना जरूर है। पढ़ो और पढ़ाओ। विलायत में भी रहते तुम सर्विस कर सकते हो। बाप का परिचय देना है। प्रभाव तो अन्त में ही निकलना है। समझेंगे कि बरोबर प्राचीन भारत हेविन था। कितना धन यहाँ से लूटकर ले गये हैं!
सतयुग में चैतन्य में सारी सृष्टि के तुम मालिक बनते हो, यानी राज्य करते हो। फिर भक्ति मार्ग में जड़ चित्रों को एक कोठरी में बन्द कर रखते हो, यादगार बनाते हो। पूजा का सामान भी तो चाहिए ना। अब तुम सब कुछ जान गये हो कि हम सब पूज्य थे, अब पुजारी बन गये हैं। पूज्य से पुजारी बनने में हमको कितना समय लगता है? कैसे मन्दिर बनें? हमने ही तो मन्दिर बनवाये हैं। हमने अपने जड़ चित्र बनाकर अपनी ही पूजा शुरू की। कितनी वन्डरफुल बातें हैं! बाप समझाते हैं - बच्चे, अब कोई ग़फलत न करो। देही-अभिमानी बनने से ही तुम हीरे जैसे बनेंगे। देह-अभिमान में नहीं आना है। देह-अभिमान में आकर बड़े-बड़े हंगामें मचाते हैं तो अपनी भी सत्यानाश और औरों की भी सत्यानाश करते हैं। एक ही ज्ञान सागर से कोई तो पढ़कर ताउसी तख्त पर बैठते हैं और कोई दास दासी। देखो, लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के बादशाह थे। कितनी उन्हों की महिमा, पूजा होती है, मन्दिर बनाते हैं। अब तुम जानते हो कि हम फिर से सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण बन रहे हैं। फिर सूर्यवंशी से चन्द्रवंशी में आयेंगे। राजाई लेना कितना ऊंच पद है। पुरुषार्थ ऐसा करना और कराना है। अगर कराना नहीं जानते तो गोया पुरुषार्थ करना ही नहीं सीखे हैं। आप समान नहीं बना सकते हो तो राजा-रानी बन नहीं सकते। अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करना है। यह नशा बहुत थोड़ों को रहता है। देही-अभिमानी हो रहने से खुशी का पारा चढ़ेगा। मम्मा बाबा को देखो कितने ख्यालात रहते हैं। बाप को तरस पड़ता है कि इस बच्ची को मार मिलती है तो कैसे बचाया जाये? एशलम देने में कितने हंगामें हैं। सर्वशक्तिमान शिवबाबा द्वारा भारत को हीरे जैसा बनने की लॉटरी मिलती है। यहाँ तुम सम्मुख सुनते हो, अच्छा लगता है। बाबा डोज़ चढ़ाते रहते हैं। बच्चों को कदम-कदम श्रीमत पर चलना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सुख देने वाले बाप, टीचर, सतगुरू का रिगार्ड जरूर रखना है। उनकी मत पर चलना ही उनका रिगार्ड है।
2) घर का कामकाज करते स्वयं को गॉड फादर का स्टूडेन्ट समझना है। पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है, मुरली मिस नहीं करनी है। सचखण्ड के लिए सच्ची कमाई करनी है।
वरदान:-पास्ट, प्रेजन्ट और फ्युचर को जान मायाजीत बनने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी भव
जो बच्चे तीनों कालों को जानते हैं वे कभी भी माया से हार नहीं खा सकते क्योंकि वर्तमान क्या है और भविष्य में क्या होने वाला है, दोनों ही त्रिकालदर्शी आत्मा की बुद्धि में स्पष्ट रहता है। क्या हूँ और क्या बनने वाला हूँ, वर्तमान और भविष्य दोनों का उन्हें नशा रहता है। उसी नशे की खुशी में उड़ते रहते हैं इसलिए उनके पांव धरनी से ऊंचे होते हैं। वह देह, देह के संबंध, देह के पुराने पदार्थो की आकर्षण में नहीं आते।
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