15Sept.2023/ शिव बाबा की मुरली (परमात्मा की वाणी) आज की प्रातः मुरली मधुबन से।
मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है। “मीठे बच्चे - तुम रूद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हो, रूद्र शिवबाबा तुम्हें जो सुनाते हैं वह सुनकर दूसरों को जरूर सुनाना है''
प्रश्नः-बाप ने भी यज्ञ रचा है और मनुष्य भी यज्ञ रचते हैं - दोनों में कौन सा मुख्य अन्तर है?
उत्तर:-मनुष्य रूद्र यज्ञ रचते हैं कि शान्ति हो अर्थात् विनाश न हो लेकिन बाप ने रूद्र यज्ञ रचा है कि इस यज्ञ से विनाश ज्वाला निकले और भारत स्वर्ग बनें। बाप के इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से तुम नर से नारायण अर्थात् मनुष्य से देवता बन जाते हो। उस यज्ञ से तो कोई भी प्राप्ति नहीं होती है।
गीत:-तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है......
ओम् शान्ति। यह कितना मीठा गीत है और कितना अर्थ सहित है, जो विशाल बुद्धि वाले होंगे वह अच्छी रीति समझ सकेंगे। बुद्धि भी नम्बरवार है ना। उत्तम-मध्यम-कनिष्ट होते हैं। उत्तम बुद्धि वाले इसका अर्थ अच्छी रीति समझ सकते हैं। तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है, यह कौन याद करते हैं? (बच्चे) कौन से बच्चे? बच्चे तो ढेर हैं। जो ब्राह्मण बने हैं, जो देवता थे, जिन्होंने ही पूरे 84 जन्म लिए हैं उन्होंने ही जास्ती बुलाया है। वही शिव अथवा सोमनाथ के मन्दिर की स्थापना करते हैं। सिद्ध होता है हम जो पूज्य देवी-देवता थे, अभी पुजारी बने हैं। बरोबर हम पूज्य थे फिर पुजारी बने तो सोमनाथ शिव की पूजा करते हैं। रूद्र यज्ञ बहुत रचते हैं, रूद्र ज्ञान यज्ञ कभी नहीं रचते। रूद्र यज्ञ नाम रखते हैं। अभी भी रूद्र यज्ञ रच रहे हैं। तुम बहुत अच्छा समझा सकते हो - रूद्र कौन है? क्या रूद्र ने कभी यज्ञ रचा था? कैसे रचा फिर क्या उसकी सिद्धि हुई? यह तो कोई नहीं जानते। तुमको अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। परमपिता परमात्मा के सिवाए ज्ञान का तीसरा नेत्र कोई दे नहीं सकता। ज्ञान सागर परम-पिता परमात्मा को ही गाया जाता है। मनुष्य को ज्ञान सागर नहीं कह सकते। अभी तुम जानते हो हमको दादे का वर्सा मिल रहा है जिसको ही याद करते हैं कि बाबा आकर अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करो। फिर हम भी दान लेकर औरों को करेंगे। बहुत सहज है। सिर्फ याद दिलायेंगे कि तुम्हारे दो बाप हैं। भक्ति मार्ग में दो बाप हो जाते हैं। सतयुग-त्रेता में लौकिक बाप ही होता है। वहाँ वर्सा भी तुम इस समय के पुरुषार्थ अनुसार पाते हो। तो तुम बच्चों का माथा फिरना चाहिए। ऐसी-ऐसी जगह जाकर पूछना चाहिए कि रूद्र यज्ञ किसने रचा था? क्या रूद्र ज्ञान यज्ञ है या रूद्र यज्ञ है? असुल नाम है रूद्र ज्ञान यज्ञ। रूद्र तो है निराकार। वह कैसे यज्ञ रचेगा? जरूर शरीर धारण करना पड़े। दक्ष प्रजापति का यज्ञ भी मनाते आते हैं। दिखाते हैं दक्ष प्रजापति यज्ञ में अश्व को स्वाहा करते हैं। घोड़े को टुकड़े-टुकड़े कर जलाते हैं। उनको दक्ष प्रजापति यज्ञ कहते हैं। यह तुम अभी जानते हो तो वहाँ लिखना चाहिए यह कौन सा यज्ञ है? बड़ा भभके से यज्ञ करते हैं। बहुत पैसे इकट्ठे करते हैं। बड़े-बड़े आदमी दान करते हैं। कोई 100 निकालते, कोई 500 निकालते। इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में तो तुम सारे स्वाहा होते हो। उसमें तो थोड़ा-थोड़ा पैसा निकाल इकट्ठा करते हैं फिर ब्राह्मण को दक्षिणा मिलती है। यहाँ तो तुमको स्वाहा होना पड़ता है। वहाँ स्वाहा होने की बात नहीं। यहाँ बच्चे कहते हैं बाबा तन-मन-धन सहित मैं आता हूँ, वहाँ ऐसे नहीं कहेंगे। आहुति में कभी ऐसे नहीं डालेंगे। आरती आदि होगी, चंदा चीरा होगा। बड़ों-बड़ों से लेते हैं। तुम बच्चे जानते हो इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से ही विनाश ज्वाला प्रज्जवलित हुई है। वह यज्ञ रचते हैं शान्ति के लिए, विनाश के लिए नहीं। वहाँ शान्ति का बड़ा आवाज़ करते हैं। शान्ति तो सारी दुनिया में चाहिए ना। परमात्मा है शान्ति का सागर। तुम बच्चों को अर्थ समझाया जाता है। अ़खबार पढ़ते हो तो ख्याल चलना चाहिए - कैसे हम सबको समझायें?
बाप जानते हैं कैसे बी.के. दुकान सम्भाल रहे हैं। सेठ का कौन सा दुकान अच्छा चलता है, कौन सा मैनेजर अच्छा है, वह तो गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। यह ब्रह्मा है गोथरी। यह बड़ी रमणीक बातें हैं। तो रूद्र ज्ञान यज्ञ के लिए तो लिखा हुआ है इससे विनाश ज्वाला निकली। वह यज्ञ करते हैं शान्ति के लिए। यह है सच्चा-सच्चा यज्ञ। उन ब्राह्मणों के तो अनेक सेठ होते हैं। यह तुम ब्राह्मणों का एक ही सेठ है। बाप है रूद्र। रूद्र बाप कहो, शिव कहो, सोमनाथ कहो, उसने ज्ञान यज्ञ रचा है, जिसमें तुम बैठे हो। वह यज्ञ तो दो-चार दिन चलेगा। तुम्हारा यह रूद्र ज्ञान यज्ञ तो बहुत बड़ा है। उसमें टाइम लगता है। यह है नर से नारायण अथवा मनुष्य से देवता बनने का यज्ञ। वह तो ऐसे नहीं कहेंगे। बाप बैठ समझाते हैं कैसे उन्हों को सावधान करो। बड़ों-बड़ों को बोलो - यह तुम जो यज्ञ रचते हो, उसमें भूल है। परमपिता परमात्मा कल्प-कल्प संगम पर आते हैं। शास्त्रों में युगे-युगे लिख दिया है। यह भूल कर दी है। वैसे ही रूद्र यज्ञ रचते हैं। वास्तव में रूद्र ज्ञान यज्ञ है। शिव का नाम है रूद्र, उसने ही ज्ञान यज्ञ रचा है। जैसे इब्राहम ने अपना इस्लाम धर्म स्थापन किया, बुद्ध ने बौद्धी धर्म स्थापन किया, वैसे रूद्र का है ज्ञान यज्ञ जिससे विनाश ज्वाला प्रज्जवलित होगी। तो गोया वो लोग शान्ति के लिए यज्ञ रचते हैं अर्थात् विनाश नहीं चाहते। स्वर्ग की स्थापना के लिए नर्क का विनाश हो, तो अच्छा ही है ना।
भारत है अविनाशी खण्ड। जरूर भारत के मनुष्य सम्प्रदाय बहुत ज्यादा होने चाहिए। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। उनको सारा कल्प हुआ है। शास्त्रों में 33 करोड़ लिख दिया है। परन्तु यह तो समझाना चाहिए - जरूर और धर्म वालों से देवता धर्म की आदमशुमारी जास्ती होगी, लेकिन वह कनवर्ट हो गये हैं तो कैसे निकलें। बौद्धी, क्रिश्चियन, मुसलमान आदि जाकर ढेर बने हैं, इसलिए थोड़ी संख्या हो जाती है। यह भी ड्रामा। इसमें समझने की बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। जब तक बुद्धि में ज्ञान नहीं बैठा है तो सिर्फ अर्पणमय होने से क्या फायदा? अर्पणमय तो ढेर बनते हैं परन्तु जो अच्छी रीति धारणा कर और कराते हैं, प्रजा बनाते हैं वही अच्छा पद पा सकते हैं।
तो यह गीत एक्यूरेट है - बुलाने को जी चाहता है....। सबसे पहले 84 जन्म किसने लिए होंगे? जो पहले-पहले थे, वह थे ही देवी-देवतायें। सो भी भारत में थे। अभी तो कोई कहाँ, कोई कहाँ कनवर्ट हो गये हैं। कई तो भारत से बाहर चले गये हैं। नहीं तो वास्तव में भारत जैसा बड़े ते बड़ा तीर्थ और कोई है नहीं। और सभी धर्म स्थापक जो हैं उन्हों को भी पावन बनाने के लिए भगवान् को भारत में आना पड़ता है क्योंकि सब पतित हैं, सबको पावन बनाने वाला एक है। यह तुम जानते हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार यथार्थ रीति जान सकते हैं। तुम कहेंगे हम रूद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हैं, ऐसा कोई यज्ञ होता है क्या, जिसमें इतना समय बैठे हों? क्या बैठ करते हो? रूद्र जो ज्ञान सुनाते हैं वह सुनते ही रहते हो। जहाँ तक रूद्र बाबा इस शरीर में है, सुनाते ही रहेंगे। प्रजापिता ब्रह्मा भी तो जरूर यहाँ होगा ना। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात गाई हुई है। सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा का थोड़ेही दिन और रात बनायेंगे। वह तो सूक्ष्मवतनवासी देवता है। दिन और रात का प्रश्न यहाँ का है। ब्रह्मा की रात माना पतित। फिर वही पावन बनते हैं तो दिन होता है। ब्रह्मा को भी पावन बनाने वाला वह एक सतगुरू है। सत बाबा, सत टीचर, सतगुरू तीनों इकट्ठे हैं। पहले जरूर बाप के बच्चे होंगे फिर पद टीचर से पायेंगे। नम्बरवार हैं ना। यह भी बुद्धि में रहे तो कितनी खुशी रहे। तुम पहले बेहद के बाप के थे ना। यहाँ आये हो पार्ट बजाने। भक्ति मार्ग में बेहद के बाप को याद करते आये हो क्योंकि वह है स्वर्ग का रचयिता। जरूर स्वर्ग की राजाई देने वाला होगा। यह समझाना तो बड़ा सहज है। सेन्सीबुल ही समझा सकेंगे। वास्तव में सेन्सीबुल तुम ब्राह्मण हो। तुम्हारे में जो अक्लमंद हैं, उनमें भी नम्बरवार हैं। दुनिया के अक्लमंद भी नम्बरवार हैं ना। यहाँ भी जो सेन्सीबुल बनते जायेंगे वह जरूर अच्छा नम्बर पायेंगे। हर एक अपनी दिल से पूछे हम कहाँ तक सेन्सीबुल बना हूँ? जैसे बाबा मुरली चलाते हैं वैसे वहाँ भी तुम्हारी मुरली चल सकती है। तुम उन्हें समझाओ कि रूद्र यज्ञ और रूद्र ज्ञान यज्ञ में रात-दिन का फ़र्क है। रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा तो उससे विनाश ज्वाला निकली, भारत स्वर्ग बना और यह फिर यज्ञ रचते हैं विनाश न हो अर्थात् स्वर्ग स्थापन न हो। यह तो उल्टी बात हो गई। तब तो बाबा कहते हैं मैं इन सबका उद्धार करने आता हूँ। रूद्र ज्ञान यज्ञ रचता हूँ। तो तुम प्रतिज्ञा करते हो - बाबा, हम आपसे सुनकर और सुनायेंगे। अच्छा, औरों को सुनाओ। पहले यहाँ तो रिपीट करो। घड़ी-घड़ी रिपीट करो जो फिर कहाँ समझा सको। फर्स्टक्लास प्वाइंट है। उस यज्ञ में तो जौ-तिल आदि डालते हैं, मेरे रूद्र ज्ञान यज्ञ में तो सारी पुरानी दुनिया की सामग्री स्वाहा हुई थी। परन्तु यह सब बातें कोई की बुद्धि में अच्छी रीति धारण नहीं होती। बाप को याद नहीं करते हैं तो बुद्धि का ताला नहीं खुलता। बाबा कहते हैं - हम भी क्या करें? इस समय सबकी बुद्धि पतित है, उनको पावन बनाता हूँ। जो मेरे को याद नहीं करते, उनमें धारणा नहीं हो सकती। बुद्धि का ताला कैसे खुले? याद से ही खुलेगा। मोस्ट बिलवेड बाप है, उनकी बड़ी महिमा करते हैं। शिवबाबा की कितनी महिमा है! शिव की पूजा भी होती है, तो जरूर आता होगा ना। बिगर आरगन्स क्या आकर करेंगे? तो अब ब्रह्मा में आया हुआ हूँ। तुम बच्चे बापदादा के सामने बैठे हुए हो परन्तु देह-अभिमान होने कारण इतना लॅव, बाप के लिए रिगार्ड नहीं रहता। डायरेक्शन पर मुश्किल चलते हैं। अहंकार में आ जाते हैं। बाप कहते हैं - मैं निरहंकारी हूँ, तुमको इतना अहंकार क्यों आता है? बस, समझते हैं मैं ही होशियार हूँ। इतना देह-अभिमान आ जाता है।
अब कोई का पति मर जाता है तो उसकी देह ख़त्म हो गई। बाकी आत्मा निकल गई फिर ब्राह्मण में आत्मा को बुलाते हैं। देह को तो नहीं बुलाते। भावना रखते हैं तो भावना का भाड़ा मिलता है। पति को याद करते रहे तो पति का साक्षात्कार कर लेंगे। बाबा साक्षात्कार तो कराते हैं ना। ऐसे बहुतों का प्यार होता है। आयेगी तो आत्मा ना। कोई का स्त्री में प्यार है तो भावना का भाड़ा मिल जाता है। स्त्री को देख लेते हैं। चीज़ ले आते हैं, खुद उनको पहनाते हैं। ऐसे बहुत कुछ होता आया है। आगे बहुत विधि से खिलाते थे। जैसे गणेश को अथवा नानक आदि को याद करते हैं तो साक्षात्कार हो जाता है, ऐसे बहुतों को हो सकता है। परन्तु वह चाबी एक ही बाप के हाथ में है। बाप कहते हैं यह साक्षात्कार की बातें भी ड्रामा में नूंधी हुई हैं। साक्षात्कार कराया, ड्रामा चला, ठहरता नहीं है। ड्रामा को भी अच्छी रीति जानना होता है। अरे, बाबा का तो अच्छी रीति रिगार्ड रखो। बाप में इतना रिगार्ड प्यार रखना बड़ा मुश्किल समझते हैं, समझते हैं वह तो निराकार है। कहते हैं यह तो उनका रथ है, इनको हम क्या करेंगे? हम तो निराकार को ही याद करेंगे। अच्छा, निराकार की गोद में जाकर दिखाओ? निराकार साथ खाओ, पियो। तुम इनके पास क्यों आते हो? कहते हैं - नहीं बाबा, आप इसमें हो, आपको ही इसमें विराजमान समझ चलते हैं। यह बड़ा मुश्किल किसकी बुद्धि में रहता है। ऐसे बहुत हैं जो गपोड़े लगाते हैं - हमारा बाबा में बहुत प्यार है, हम इतने घण्टे बाबा को याद करते हैं। बाबा कहते हैं मैं भी पूरा याद नहीं करता हूँ। मैं तो एक ही सिकीलधा बच्चा हूँ फिर भी मैं पुरुषार्थ बहुत करता हूँ। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अर्पण होने के साथ-साथ अपनी बुद्धि को विशाल बनाना है। ऊंच पद के लिए अच्छी रीति धारणा करनी और करानी है।
2) बाप समान निरहंकारी बनना है। अहंकार छोड़ बाप से अति लॅव वा रिगार्ड रखना है। देह-अभिमान में नहीं आना है।
वरदान:-मालिक बन कर्मेन्द्रियों से कर्म कराने वाले कर्मयोगी, कर्मबन्धनमुक्त भव
ब्राह्मण जीवन कर्मबन्धन का जीवन नहीं, कर्मयोगी जीवन है। कर्मन्द्रियों के मालिक बन जो चाहो, जैसे चाहो, जितना समय कर्म करने चाहो वैसे कर्मेन्द्रियों से कराते चलो तो ब्राह्मण सो फरिश्ता बन जायेंगे। कर्मबन्धन समाप्त हो जायेंगे। यह देह सेवा के अर्थ मिली है, कर्मबन्धन के हिसाब-किताब की जीवन समाप्त हुई। पुरानी देह और देह की दुनिया का संबंध समाप्त हुआ, इसलिए इसे मरजीवा जीवन कहते हैं।
स्लोगन:-दिलाराम के साथ का अनुभव करना है तो साक्षीपन की स्थिति में रहो। कार्यालय:- राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश। संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/MUZZKzWN3GE