16Sept.2023/ शिव बाबा की मुरली (परमात्मा की वाणी) आज की प्रातः मुरली मधुबन से।
मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है। “मीठे बच्चे - घर-घर को स्वर्ग बनाने की जिम्मेवारी तुम बच्चों पर है, सबको पतित से पावन होने का लक्ष्य देना है, दैवीगुण धारण करने हैं''
प्रश्नः-ईश्वरीय गोद में आने से तुम बच्चों को कौन सा अनुभव होता है?
उत्तर:-मंगल मिलन मनाने का अनुभव ईश्वरीय गोद में आने वाले बच्चों को होता है। तुम जानते हो संगमयुग है ईश्वर से मिलन मनाने का युग। तुम ईश्वर से मिलन मनाकर भारत को स्वर्ग बना देते हो। इस समय तुम बच्चे सम्मुख मिलते हो। सारा कल्प कोई भी सम्मुख मिलन नहीं मना सकते। तुम्हारा यह बहुत छोटा सा ईश्वरीय कुल है, शिवबाबा है दादा, ब्रह्मा है बाबा और तुम बच्चे हो भाई-बहिन, दूसरा कोई संबंध नहीं।
गीत:-नई उमर की कलियां........
ओम् शान्ति। बाबा जब आते हैं तो पहले कुछ समय साइलेन्स में बैठना चाहिए क्योंकि पहले-पहले दान दिया जाता है याद का। याद से ही पतितों को पावन बनाना है। तुम बच्चे दान दे रहे हो और ले रहे हो। बाप आकर कांटों से कलियां बनाते हैं फिर कलियों से फूल बनते हैं। तुम जानते हो हमारी सर्विस ही है - हर एक को स्वर्ग के लायक बनाना। जैसे तुम बन रहे हो।
बाप आकर पहले हेल्थ, पीछे वेल्थ देते हैं। पहले शान्ति फिर सुख। वास्तव में सुख दोनों में है। तुम बच्चों को सुख और शान्ति दोनों चाहिए और जो संन्यासी आदि हैं वह सिर्फ शान्ति चाहते हैं। संन्यासी सुख नहीं चाहते हैं। सुख तो वह दे न सकें। अगर शान्ति देवें तो भी अल्पकाल क्षण भंगुर सुख के लिए। कहते हैं कि सुख तो काग विष्टा समान है। संन्यासी बहुत करके शान्ति चाहते हैं मुक्ति के लिए। मुक्ति दूसरा कोई तो दे नहीं सकता। इसको बेहद की मुक्ति, बेहद की जीवनमुक्ति कहा जाता है, सो बेहद का बाप ही दे सकते हैं। तुम जानते हो इस समय सब कांटे हैं। कांटे चुभते हैं। बाप कहते हैं सब एक-दो को काम कटारी से मारते हैं। उनको पता नहीं है कि काम कटारी को हिंसा कहा जाता है। तुम विकार में जाते हो तो आदि-मध्य-अन्त एक-दो को दु:ख देते हो। यह है दु:ख की दुनिया। सुख की दुनिया स्वर्ग को कहा जाता है - जबकि नई सृष्टि नया भारत है। भारतवासी जो देवी-देवताओं के पुजारी हैं, जानते हैं कि इन देवताओं का राज्य था जिसको स्वर्ग कहा जाता है। यह भी महसूसता आती है। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाकर उनकी महिमा गाते हैं। समझते हैं भारत के यह मालिक थे। भारत स्वर्ग था - यह भी महसूसता आती है, परन्तु हवा के मुआफिक। समझते तो हैं भारत में लक्ष्मी-नारायण के इतने मन्दिर बनाते हैं तो उन्हों की राजधानी थी। महाराजा-महारानी कहा जाता है। परन्तु कब थे सो भूल गये हैं। कितनी साधारण भूल है। कोई जास्ती टाइम नहीं हुआ है। पांच हजार वर्ष की बात है। क्राइस्ट, बुद्ध आदि को दो-अढ़ाई हजार वर्ष हुए हैं। उनके लिये ऐसे कहते हैं कि रीइनकारनेशन किया। यूँ तो रीइनकॉरनेट हरेक करते हैं। आत्मा आकर प्रवेश करती है इसको भी री-इनकारनेट कहेंगे। परन्तु पहले बड़ों का नाम गाया जाता है। कहा जाता है - परमपिता परमात्मा रीइनकारनेट करेंगे, तब आकर शरीर में प्रवेश करेंगे। रीइनकारनेट का अर्थ यह है। तो जो बड़े नामीग्रामी होते हैं उनके लिये यह कहा जाता है। जैसे बुद्ध का रीइनकारनेशन, क्राइस्ट का रीइनकारनेशन। बौद्धी और क्रिश्चियन का भारत से कनेक्शन देखने में आता है। गुरूनानक को 500 वर्ष के लगभग ही दिखाते हैं। उनका भी छोटा रीइनकारनेशन है। वह बड़े हैं। तो रीइनकारनेशन सब करते हैं। अब परमपिता परमात्मा को बुलाते हैं। परन्तु वह कब आयेगा, कैसे आयेगा - यह नहीं जानते। शरीर में तो जरूर आना होता है। परन्तु जन्म न लेने कारण उनको रीइनकारनेशन कहा जाता है। छोटा बच्चा तो नहीं बनते हैं। सबसे बड़ा रीइनकारनेशन परमपिता परमात्मा का कहेंगे। गाते हैं - परमात्मा 24 अवतार लेते हैं। अब कह देते पत्थर-पत्थर में अवतार लिया। गिरते जाते हैं। जैसे भारत गिरता जाता है वैसे उनकी कथनी भी गिरती जाती है। बाप नई दुनिया का रचयिता है। सो जरूर नई और पुरानी के संगम पर आयेंगे। उनको सबसे बड़ा रीइनकारनेशन कहेंगे। शिव का सबसे बड़ा रीइनकारनेशन है। परन्तु मनुष्य समझते नहीं हैं क्योंकि परमात्मा से बेमुख हुए हैं। निराकार से परिचित जरूर हैं परन्तु वह यह नहीं जानते कि परमात्मा कब आते हैं, क्या आकर करते हैं? ऐसे नहीं कि विष्णु का रीइनकारनेशन कहेंगे। देवी-देवता धर्म का रीइनकारनेशन नहीं कहेंगे। देवी-देवता धर्म की स्थापना कहेंगे।
विष्णु अवतरण का एक नाटक भी बनाते हैं। अब वास्तव में विष्णु अवतरण की तो बात ही नहीं। तुम अब विष्णु के कुल के बन रहे हो। ईश्वर का कुल है ना। यह शिव का बच्चा ब्रह्मा, ब्रह्मा के बच्चे तुम। इसको ईश्वरीय कुल कहा जाता है। परमपिता परमात्मा कहते हैं मैं आकर तुमको अपना बनाता हूँ। मैं आकर तुम बच्चों का बाप बनता हूँ। हूँ तो सबका बाप। परन्तु अभी तुम ब्रह्मा द्वारा मेरे बने हो, इसलिये तुम मुझे दादा कहते हो। आत्माओं का बाप तो है ही। सब जानते हैं इस समय मैं आया हुआ हूँ। तुम ही अभी मिलते हो। बेहद के बाप से तब मिलते हो जब बाप जन्म देते हैं। अभी तुमको धर्म का बच्चा बनाया है ब्रह्मा द्वारा। विकार के तो बच्चे हो न सकें। इतनी प्रजा है। बहन-भाई कितने हैं तो यह सब मुख-वंशावली ठहरे ना। संन्यासियों की वंशावली नहीं होती है क्योंकि उनमें दादा-बाबा का कोई कनेक्शन नहीं है। यहाँ बाप भी है, दादा भी है। दादा इनको (बड़े भाई को) कहा जाता है। बाप आकर अपना बनाते हैं। तुम जानते हो हम ईश्वर की गोद में आये हैं। यह मंगल-मिलन है। कलियुग का अन्त और सतयुग की आदि - इसको ही संगम कहा जाता है। संगम में मिलन होता है। जैसे 3 नदियों का संगम है। उसमें क्या होता है? गुरू लोग और जिज्ञासू का मंगल-मिलन होता है। वह तो हो गया जिस्मानी। गाया भी हुआ है - आत्मा और परमात्मा का मंगल-मिलन। यह सबसे अच्छा है। आत्मायें मिलती हैं - परमपिता परमात्मा से। इसमें पानी के नदी की बात नहीं है। यहाँ तुम बैठे हो। यह तुम्हारा बहुत भारी मंगल-मिलन है। आत्मायें भी चैतन्य हैं। परमपिता परमात्मा का यह लोन लिया हुआ शरीर है, इनको मंगल मिलन कहा जाता है। कुम्भ का मेला कहा जाता है ना। कुम्भ को भी संगम कहेंगे। 3 नदियों के संगम का नाम कुम्भ रख दिया है। सबसे बड़ा संगम कौन-सा है? सागर और नदियों का। सबसे बड़ी नदी है ब्रह्मपुत्रा। उसमें बाबा आते हैं इसलिये सागर और ब्रह्मपुत्रा नदी का इकट्ठा मेला तो है ही। अब कुम्भ का मेला है - संगम पर। तुम सब ज्ञान सागर बाप से मिलते हो, इसको ईश्वरीय कुम्भ का मेला कह सकते हैं। यह है आत्माओं और परमात्मा का संगम। कुम्भ वा संगम, बात एक ही है। तो तुम बच्चे जानते हो हम अपने लिये स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। हमको घर में पवित्र होकर रहना है। जहाँ पवित्रता है, वहाँ ही स्वर्ग कहेंगे। बच्चे पवित्र रहते हैं तो पवित्रता सुख-शान्ति है। तुम्हारी अवस्था ऐसी होनी चाहिये जैसे देवताओं की होती है। कोई भी अवगुण नहीं होना चाहिये, इसको ही स्वर्ग कहेंगे। वही फिर स्थाई स्वर्ग बन जाता है। घर में ऐसा लायक बनना है, इसलिये कहा जाता है घर-घर को स्वर्ग बनाओ। तुम मनुष्यों को स्वर्ग में चलने लायक बनाते हो। तुम्हारे लिये ही गीत है - घर-घर को स्वर्ग बनाओ। सतयुग में घर-घर में स्वर्ग था, अब नहीं है। जो बच्चे बाप से वर्सा लेते हैं उन्हों को अपने घर बैठे पतित से पावन बनने का लक्ष्य देना है।
यह बड़े ते बड़ा चैतन्य तीर्थ है। जहाँ शिवबाबा सागर है, वहाँ तुम आत्मायें गंगायें जरूर होंगी। यह सबसे बड़ा ऊंच ते ऊंच मेला है। वह सब हैं भक्ति मार्ग के मेले, यह है ज्ञान मार्ग का मेला। भक्ति मार्ग के मेले तो जन्म बाई जन्म लगते रहते हैं। ज्ञान मार्ग का मेला एक ही बार लगता है। यह है रूहानी मिलन। सुप्रीम रूह परमधाम से आकर बच्चों से मिलते हैं। सबसे अच्छी यात्रा या मेला यह है। यह चैतन्य सागर तो कहाँ भी जा सकते हैं। वह जड़ सागर तो कहाँ नहीं जाता। यह सागर जाता है। तुम नदियां भी जाती हो निमंत्रण पर। ज्ञान सागर इस ब्रह्मपुत्रा नदी के साथ चलते हैं। तुम भिन्न-भिन्न प्रकार की नदियां हो - कोई पवित्र हैं, कोई अपवित्र हैं। कोई-कोई समय ऐसे बहुत आ जाते हैं जो पवित्र नहीं रह सकते हैं। फिर भी आते तो हैं ना। बाहर के गृहस्थी भी आते हैं। एलाउ किया जाता है। ऐसे भी नहीं, सबको एलाउ करेंगे। कोई मित्र-सम्बन्धी आदि आते हैं, जिन्हों को उठाने के लिये एलाउ करते हैं। नहीं तो कायदे बहुत हैं। इन्द्रप्रस्थ में कोई पतित आ न सकें। कोई भी पण्डा वा सब्जपरी आदि कोई भी पतित को साथ में ले आ नहीं सकती इसलिये बाप कहते हैं ख़बरदार रहना, सर्टीफिकेट तुमको मिलता है। किसको साथ ले आती हो या भेज देती हो, रेसपान्सिबिलिटी तुम्हारे पर है। यूँ तो सेन्टर्स पर तो निमंत्रण भी देते हैं। कितने पतित आते होंगे। सेन्टर पर पतित आयें तब तो उनको पावन बनाओ। यहाँ तो सागर बैठा हुआ है तो नियम रखे हुए हैं। नब्ज देखी जाती है। डॉक्टर्स सर्जन तो भिन्न-भिन्न होते हैं ना। मम्मा-बाबा वा अनन्य बच्चे बात करेंगे तो झट पता लगेगा कि बुद्धि में बैठता है वा नहीं। तुम कोई को भी समझायेंगे कि दो बाप हैं तो झट मानेंगे। युक्ति बतलाई जाती है। परमपिता परमात्मा को तो सब याद करते हैं। हम फलाने बाप के बच्चे हैं। सिर्फ उनके आक्यूपेशन को नहीं जानते। यह तो तुम बच्चे समझ गये हो कि जिस-जिस नाम-रूप से जो मनुष्य आते हैं, उसी नाम-रूप से 5 हजार वर्ष बाद फिर आना है जरूर। क्राइस्ट का जो चित्र है, हूबहू फिर उसी समय ही हो सकता। ऐसा और किसी मनुष्य का हो नहीं सकता। कृष्ण का जो चित्र है वह फिर और किसी मनुष्य रूप में हो न सके। आत्मा भिन्न-भिन्न नाम, रूप, देश, काल में जन्म लेते-लेते अब पतित हो गई है, उसको फिर पावन बनाते हैं।
तुम जानते हो कल्याणकारी बाप है, अकल्याणकारी रावण है। सबको सद्गति देने वाला बाप है। फिर इसमें मनुष्य तो क्या सब चीज़ों की सद्गति हो जाती है। नर्क का विनाश, स्वर्ग की स्थापना होती है। जो कल्प पहले आये थे - कोई पंजाबी, कोई पारसी आते हैं ना, सभी को निमंत्रण देना है। बाप आया हुआ है - ढिंढोरा पीटने में भी हर्जा नहीं है। तुम्हारे चित्र भी बड़े अच्छे हैं। अभी तुम मन्दिर लायक बनते हो। अब भूतों को निकालने में बड़ी मेहनत है। लक्ष्मी अथवा नारायण को वरने लिये विकारी अवगुण निकालने में कितनी मेहनत लगती है। कोई को काम का भूत, कोई को क्रोध का भूत, किसको मोह का भूत थप्पड़ मार देते हैं। एकदम गिर पड़ते हैं। लोभवश भी गिर पड़ते हैं। अच्छे-अच्छे घर की बच्चियां मिठाई देखेंगी तो छिपाकर खा लेंगी। लोभ ने भी कितनों को नुकसान पहुँचाया है। लोभ के वश ही चोरी करते हैं। पहले तुम भट्ठी में थे। अभी तो सबको अपने घर में भट्ठी बनानी पड़े। बाप ने एक ही बड़ी भट्ठी बनाई। अभी तो कहते हैं पहले 7 रोज भट्ठी में रहना पड़े। आजकल किसका भट्ठी में बैठना बड़ा मुश्किल है। सेन्टर में भी आते हैं तो रंग चढ़ाते हो फिर घर में जाने से उड़ जाता है। संगदोष लग जाता है। अभी तो बड़ी मेहनत है।
अभी तुम बच्चे जानते हो हम ईश्वरीय कुल में बैठे हैं। दादा, बाबा और हम भाई-बहन हैं। ब्राह्मण कुल सर्वोत्तम गाया हुआ है। उन ब्राह्मणों को भी तुम ज्ञान दे सकते हो - ब्राह्मण हैं उत्तम चोटी, यह संगमयुगी ब्राह्मण ही फिर देवता बनते हैं, पहले तो देवताओं से भी ऊंच ब्राह्मण हैं, चोटी तो ऊंची ठहरी ना, तुम ब्राह्मण देवताओं की पूजा करते हो, अपने को पुजारी, उनको पूज्य समझते हो। तुम उन पुजारियों, ब्राह्मणों को भी यह समझा सकते हो। तुम तो हो सच्चे-सच्चे ब्राह्मण संगमयुगी। तुम ब्रह्मा मुख वंशावली हो, फिर तुम सो देवता बनते हो। स्वर्ग का देवता जरूर परमपिता परमात्मा ही बनायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अन्दर के अवगुणों की जांच कर उन्हें निकालना है। संगदोष से अपनी सम्भाल करनी है। देवताई गुण धारण कर स्वयं को लायक बनाना है।
2) घर-घर को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है। भूतों को बाप की याद से भगाना है। बाप के साथ मंगल मिलन मनाते रहना है।
वरदान:-अपने अनादि संस्कारों को इमर्ज कर सर्व समस्याओं को पार करने वाले उड़ता पंछी भव
आप सब अनादि रूप में हो ही उड़ने वाले, लेकिन बोझ के कारण उड़ता पंछी के बजाए पिंजड़े के पंछी बन गये हो। अब फिर से अनादि संस्कार इमर्ज करो अर्थात् फरिश्ते रूप में स्थित रहो, इसी को ही सहज पुरुषार्थ कहा जाता है। उड़ता पंछी बनेंगे तो परिस्थितियां नीचे और आप ऊपर हो जायेंगे। यही सर्व समस्याओं का समाधान है।
स्लोगन:-हर कदम में कल्याण समझ हर आत्मा को शान्ति की शक्ति का दान देना ही सच्ची सेवा है। कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश। संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/22rnDfk6xV4