मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है।                                                       “मीठे बच्चे - जब तक आत्मा पार्ट में है तब तक उसे 100 परसेन्ट रेस्ट मिल नहीं सकती, रेस्ट मिलती है निर्वाणधाम में, वहाँ कोई पार्ट नहीं''
प्रश्नः-जो बच्चे चलते-चलते पढ़ाई से थक जाते हैं उन्हें फिर कौन से संकल्प आते हैं जो विकल्प का रूप ले लेते हैं?
उत्तर:-1. उन्हें बाप को छोड़ देने के अर्थात् फारकती देने के संकल्प आते हैं। बाबा कहते - यह संकल्प आना भी विकल्प है। ऐसा संकल्प करना भी पाप है। पढ़ाई न पढ़ना माना ही थक जाना। ऐसे बच्चे अपना खाना खराब कर देते हैं। 2. अगर किसी बात के कारण कोई मात-पिता से रूठ जाते हैं तो वह 21 जन्मों की बादशाही गंवा देते हैं।
गीत:-आज अन्धेरे में हैं इंसान..... 

ओम् शान्ति। यह है भक्ति का गीत वा प्रार्थना। किसके पास प्रार्थना करते हैं? भगवान् के पास। परन्तु घोर अन्धियारे में होने कारण भगवान् को जानते ही नहीं। तो अब सुने कौन? जब भगवान् उन्हों की पुकार सुने तब आकर ज्योति जगाये। परन्तु बच्चे भगवान् को जानते ही नहीं तो सुनेंगे फिर कैसे? अभी तुम सम्मुख बैठे हो, भगवान् तुमको घोर अन्धियारे से घोर सोझरे में ले जा रहे हैं। गाते भी हैं ब्रह्मा की रात और ब्रह्मा का दिन। रात में दर-दर भटकते भी बहुत हैं। पहाड़ों पर, टिकाणे, मन्दिरों, मस्जिदों मे जाते हैं। परन्तु भगवान् मिलेगा कहाँ? भगवान् का जन्म भी भारत में मनाते हैं। शिव रात्रि कहते हैं ना। बरोबर उनकी यादगार प्रतिमायें भी भारत में हैं। परन्तु समझते नहीं कि वह कब आते हैं! बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं। अभी तुम घोर अन्धियारे में नहीं हो। तुम नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार सोझरे में आते जाते हो। तुम बच्चे जानते हो यह सारी सृष्टि की रचना कौन और कैसे करते हैं।

तुम यहाँ आये हो - ईश्वरीय विश्वविद्यालय में, जहाँ ईश्वर पढ़ाते हैं, मनुष्य से देवता बनाते हैं। यह नॉलेज तुम्हारे में भी नम्बरवार समझते हैं। कोई तो अच्छी रीति समझते हैं, कोई पूरा नहीं समझने वाले भागन्ती हो जाते हैं, मात-पिता से रूठ पड़ते हैं। जिनके लिए गाया हुआ है - आश्चर्यवत् ऐसे मात-पिता से रूठ पड़ते हैं। पशन्ती, कथन्ती फिर रूठ पड़न्ती.... जानते हैं मात-पिता से हमको 21 जन्म लिए स्वर्ग की बादशाही मिलती है, फिर भी भूल जाते हैं। बाबा ने समझाया है - जिसको शान्ति कहा जाता है वह मिलती ही है शान्तिधाम अथवा निर्वाणधाम में, उसको मुक्तिधाम भी कहा जाता है। अगर कोई कहे हम 100 परसेन्ट रेस्ट में हैं, परन्तु यह अक्षर कोई है नहीं। सारे दिन में कोई न कोई कर्म जरूर चलता है। हाँ, अल्पकाल के लिए रात के नींद को रेस्ट कहते हैं क्योंकि आत्मा कहती है मैं सारा दिन काम करके थक गयी हूँ, अब रेस्ट लेती हूँ। अपने को डिटैच कर देते हैं। यह तो जानते हो - बाप रहते ही हैं शान्ति-देश में या ऐसे समझते हो कि परमपिता परमात्मा वहाँ रेस्ट में रहते हैं। परमात्मा रेस्ट में तब रहते हैं जब उनका पार्ट नहीं है। मुक्तिधाम में कोई काम नहीं करते हैं। यह बड़ी समझने की बातें हैं। अभी तुम्हारी बुद्धि का ताला खुलता जाता है। बाप कहते हैं तुमको पता है मैं रेस्ट में कब रहता हूँ? जबकि तुम बच्चे स्वर्ग में, सुख में रहते हो। वहाँ तुमको सुख-शान्ति है। उसको रेस्ट नहीं कहा जायेगा। रेस्ट में तब कहें जब तुम्हारा कोई पार्ट नहीं है। तुम जब स्वर्ग में हो तो मुझे कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती। मैं वहाँ (घर में) शान्त में रहता हूँ, शान्ति का दूसरा अक्षर वहाँ रेस्ट कहेंगे। यहाँ तो रेस्ट में रह नहीं सकते हैं। आत्मा कहती है - मैं रेस्ट में तब हूँ जबकि रात को नींद करती हूँ, उस समय रेस्ट में हूँ या शान्त में हूँ - बात एक ही है। रात को अशरीरी बन जाते हैं, शान्त हो जाते हैं। फिर उठते हैं तो कर्म में आते हैं फिर भी अन-रेस्ट है। कर्म करते अन-रेस्ट भासती है। सतयुग में अन-रेस्ट का सवाल नहीं, अन-रेस्ट करती है माया। वहाँ ऐसे नहीं कहेंगे कि हम रेस्ट में रहते हैं। काम-काज सब करते हैं परन्तु अशान्त नहीं रहते हैं। बाकी रेस्ट अक्षर है नहीं। समझो कोई कहते हैं हम शिमला जाते हैं रेस्ट के लिए, परन्तु रेस्ट का अर्थ नहीं। सच्ची रेस्ट तब है जब हम निर्वाणधाम में रहते हैं, वहाँ चुप रहते हैं। बाकी रेस्ट कोई को नहीं है। कोई कहे हमको 100 परसेन्ट रेस्ट है तो यह रांग है। इसको अज्ञान कहा जाए। हाँ, यह जरूर कहा जायेगा - पढ़ाई नहीं पढ़ने चाहते तो रेस्ट लेते हैं। न पढ़ना, रेस्ट लेना यह तो फिर थकना हो गया। अपना ही खाना खराब करते हैं।

समझाया जाता है - हे रात के राही, स्वर्ग की राह पर चलते-चलते थक मत जाना, रूठ नहीं जाना। मात-पिता को फ़ारकती देने का तो संकल्प भी नहीं उठाना चाहिए। यह संकल्प उठाया तो उसको विकल्प कहा जाता है। ऐसे मात-पिता जिससे स्वर्ग की राजाई मिलती है, उसके लिए संकल्प भी क्यों उठायें! लिखते हैं कभी-कभी संकल्प आता है - छोड़ दें, कुछ समझ में नहीं आता। अरे, समझने का तो यह टाइम है ना। समझना अर्थात् पढ़ना, तुम जानते हो हम पढ़ रहे हैं। परमपिता परमात्मा जो ज्ञान सागर है, ऊंच ते ऊंच है उनको कोई भी जानते नहीं। भल ब्रह्मा-विष्णु-शंकर अथवा लक्ष्मी-नारायण को जानते हैं परन्तु भारतवासियों को यह पता नहीं कि लक्ष्मी-नारायण ने राज्य कब लिया और किसने दिया? माया ने बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में डाल दिया है। बाप आकर समझाते हैं - रचता बाप मनुष्य सृष्टि की रचना कैसे करते हैं? यह तो कोई भी नहीं जानते। बाप ही बैठ समझाते हैं प्रजापिता ब्रह्मा को क्रियेटर नहीं कहेंगे। भल प्रजापिता कहा जाता है परन्तु वह रचता नहीं। मनुष्य कहते हैं हमको अल्लाह ने पैदा किया। निराकार फादर को ही रचता कहेंगे। रचता बाप को जरूर मनुष्य ही जानेंगे, जानवर तो नहीं जानेंगे। जानवर तो मुख से नहीं कहेगा कि हमको परमात्मा ने रचा है। मनुष्य कहेंगे हमको भगवान् ने रचा है। तो बाप बैठ समझाते हैं - तुम देखो यह रचना कैसे रची? पहले-पहले रचना होती है मुख वंशावली की। बच्चे को बड़ा होकर फिर बाप बनना है। यह बेहद का बाप कहते हैं - देखो, मैं भी कैसे रचना रचता हूँ। इनमें प्रवेश कर इनको मुख द्वारा कहता हूँ - हे आत्मा, तुम मेरी हो, मैं तुम्हारा बाप हूँ। फिर इनके द्वारा तुम बच्चों को रचता हूँ। तुम हो मुख वंशावली। अज्ञान काल में भी कहते हैं ना जैसे हैं, तैसे हैं, मेरे हैं। बाप भी ऐसे कहते हैं। तुम ब्रह्मा के बच्चे बन जाते हो। तो अभी तुम हो मुख वंशावली फिर तुम कुख वंशावली भी बनेंगे। बाप कहते हैं तुम मेरे हो फिर तुम दैवी घराने में जायेंगे। बाप यह ईश्वरीय रचना कैसे रचते हैं - यह कोई भी समझ नहीं सकते। बाप समझाते हैं यह (ब्रह्मा) भी कहते हैं मैं भी मुख वंशावली बनता हूँ। बाप के साथ माँ जरूर चाहिए। तुम कहते हो हम प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली हैं, शिवबाबा ने हमको अपना बनाया है। उनको शरीर तो चाहिए ना। शिवबाबा को तो शरीर नहीं है। शरीर का लोन लेते हैं। फिर कहते हैं तुम मेरे हो, इसको कहा जाता है मुख वंशावली। शिवबाबा इस मुख से, इस वन्नी (स्त्री) द्वारा कहते हैं कि तुम मेरे बच्चे हो। बाप ही समझाते हैं और कोई शास्त्रों आदि में यह बातें हैं नहीं। तुम अभी सुनते हो फिर प्राय:लोप हो जायेगा।

इस समय है घोर अन्धियारा। बाप आकर रोशनी करते हैं तब तो ब्रह्मा की रात, ब्रह्मा का दिन गाया हुआ है। कुछ तो है ना। गाया हुआ है झूठ तो झूठ, सच की रत्ती नहीं। परन्तु बाप कहते हैं - प्राय: कुछ न कुछ रहता है, प्रलय नहीं हो जाती। थोड़े रहेंगे फिर झाड़ वृद्धि को पाता है। मनुष्यों ने फिर महाप्रलय दिखाई है। परन्तु महाप्रलय कभी होती नहीं। ऐसे नहीं होता जो सागर में बच्चा पीपल के पत्ते पर आये, यह सब गपोड़े हैं। बाप ने समझाया है तुम जब गर्भ महल से आते हो तो वहाँ आनंद में रहते हो। वहाँ दु:ख, पाप कर्म होता नहीं। वह है ही पुण्य आत्माओं की दुनिया, यह है पाप की दुनिया। यहाँ सब कुछ त्याग कर तुम सदा पुण्य आत्मा बनते हो। तुम इतना पुण्य करते हो जो आधाकल्प तुमको कोई पाप आत्मा नहीं कहेंगे। तुम अविनाशी पुण्य आत्मा बन जाते हो। यहाँ फिर आधा-कल्प पाप आत्मा कहेंगे। घड़ी-घड़ी दान-पुण्य करते रहते हैं। भारत को कम्पलीट धर्मात्मा कहा जाता है। भारत में दान-पुण्य करते हैं। तुम जानते हो यह दुनिया हम छोड़ने वाले हैं, फिर आना नहीं है। इस दुनिया की सामग्री तुम ट्रान्सफर करते हो नई दुनिया के लिए। मनुष्य ईश्वर अर्पणम् करते हैं अर्थात् ट्रान्सफर करते हैं दूसरे जन्म के लिए। यहाँ तुम ट्रान्सफर करते हो - 21 जन्मों के लिए। तो बहुत चाहिए ना। तुमसे सारी किचड़-पट्टी लेकर नया देते हैं। पुराना लेकर सोने का देते हैं। तुम सच्चाई से बाप को देते हो, बाप भी तुमको सब कुछ देते हैं। तुम्हारा पार्ट जो चलता आया है - यह ड्रामा में था, सबने घरबार छोड़ा। नहीं तो गऊशाला कैसे बने? मनुष्य तो नहीं जानते, भट्ठी कैसे बनती है! वह तो दिखाते हैं - बिल्ली के पूँगरे आदि थे।

यह सब ज्ञान तुम बच्चों को अभी है। फिर वहाँ यह ज्ञान नहीं रहेगा। हम ऐसे 21 जन्म राज्य करेंगे फिर गिरेंगे - वहाँ यह ज्ञान नहीं रहता। त्रिकालदर्शीपने का पार्ट तुम्हारे में अभी रहता है। मुख्य हीरो हीरोइन का पार्ट तुम्हारा ही है। और कोई का पार्ट नहीं। असुर से देवता फिर देवता से असुर तुम भारतवासी ही बनते हो। बाकी तो है बीच के बाइप्लाट्स। नाटक में बीच में फिर हंसी-कुड़ी का खेल भी करते हैं ना। आधाकल्प बाद देवी-देवता धर्म प्राय: लोप हो जाता है। तुम्हारी बुद्धि में यह सारा चक्र फिरता रहता है तब तो तुम समझाते हो ना। परमपिता परमात्मा भी परम आत्मा है, परमधाम में रहने वाला। बाप कहते हैं मेरे में सारा ज्ञान है। मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप चैतन्य हूँ। वह तो जड़ बीज होते हैं, शिव तो चैतन्य है। उनकी प्रतिमा पूजी जाती है।

आजकल गवर्मेन्ट झाड़ों के सैपलिंग लगाती है। यह है चैतन्य बीज, मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का बीज कहते हैं - मुझे सारे झाड़ की नॉलेज है। तो जब कोई कहते हैं 100 परसेन्ट रेस्ट में हैं, तो समझाना चाहिए कि 100 परसेन्ट रेस्ट तो कभी मिलती नहीं। हाँ, ऐसे कहेंगे स्वर्ग में 100 परसेन्ट पवित्रता-सुख-शान्ति रहती है। नाम ही है स्वर्ग। बाप को कहते हैं सत श्री अकाल। सच बोलने वाला। उनको कोई काल नहीं खाता। उनको कहा जाता है कालों का काल। बाप कहते हैं यह छी-छी दुनिया है। इस भंभोर को आग जरूर लगनी है। तुम बच्चे जानते हो यह महाभारत लड़ाई महा-कल्याणकारी है। मनुष्य यज्ञ करते हैं कि शान्ति हो जाए, गोया समझते हैं स्वर्ग के गेट्स न खुलें। तुम तो ताली बजाते हो, भंभोर को आग लगे तो हम नई दुनिया वैकुण्ठ में जायें। यह विनाश ज्वाला इस रुद्र ज्ञान यज्ञ से ही प्रज्जवलित हुई है। जो बाप के बनेंगे वही स्वर्ग के मालिक बनेंगे। बाकी सबको हिसाब-किताब चुक्तु कर वापिस जाना है। तुम जानते हो अब वापिस मुक्तिधाम में जाकर फिर अपना पार्ट रिपीट करना है। सतयुग में यह इतने सब देवी-देवता कहाँ से आये? मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार। तुमको कौड़ी से हीरे जैसा, पतित से पावन बनाते हैं। जितना जो नॉलेज धारण करेंगे उतना पद पायेंगे। राजधानी स्थापन हो रही है। तुम जानते हो हम अपने लिए स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं श्रीमत पर। अगर श्रीमत से कोई रूठकर अपनी मत पर चले तो वह रावण मत हो जायेगी इसलिए क़दम-क़दम पर तुम श्रीमत लेते रहो। बाप जीते जी तुमको ट्रस्टी बनाते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) कम्पलीट दानी बनना है। सच्चाई से सब बाप को अर्पण कर नई दुनिया के लिए ट्रांसफर कर देना है।

2) जीते जी ट्रस्टी बनना है। क़दम-क़दम पर बाप से श्रीमत लेनी है। कभी भी श्रीमत से रूठ मनमत पर नहीं चलना है।

वरदान:-कम्बाइन्ड रूपधारी बन सेवा में खुदाई जादू का अनुभव करने वाले खुदाई खिदमतगार भव
स्वयं को सिर्फ सेवाधारी नहीं लेकिन ईश्वरीय सेवाधारी समझकर सेवा करो। इस स्मृति से याद और सेवा स्वत: कम्बाइन्ड हो जायेगी। जब खुदा को खिदमत से जुदा कर देते हो तो अकेले होने के कारण सफलता की मंजिल दूर दिखाई देती है इसलिए सिर्फ खिदमतगार नहीं, लेकिन खुदाई खिदमतगार हूँ - यह नाम सदा याद रहे तो सेवा में स्वत: खुदाई जादू भर जायेगा और असम्भव भी सम्भव हो जायेगा।
स्लोगन:-कर्मयोगी बनना है तो कमल आसनधारी (न्यारे और प्यारे) बनो।                                                                                                              कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश।                                                                           संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/RDcJxR43U5g

न्यूज़ सोर्स : madhuban