मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है।                                                     “मीठे बच्चे - पद का आधार पढ़ाई पर है, पढ़कर फिर पढ़ाना है, गली-गली में जाकर बाप का परिचय देना है''
प्रश्नः-तुम बच्चों को किस इच्छा से परे रहकर सेवा में लगे रहना है?
उत्तर:-तुम रहमदिल बच्चे हो, तुम्हें किसी से पैसा लेने की इच्छा नहीं रखनी है। इस इच्छा से परे रहकर दान करने की सेवा में, दूसरों को आपसमान बनाने में लगे रहना है। बुद्धि में रहे - जिसकी तकदीर में होगा वह बीज अवश्य बोयेंगे। अगर कोई वाचा या कर्मणा सेवा नहीं कर सकते हैं तो धन से भी सहयोगी बनते हैं। गरीब बच्चे तो चावल मुट्ठी देकर महल ले लेते हैं।
गीत:- प्रीतम आन मिलो........

ओम् शान्ति। प्रीतमाओं के लिए एक ही पुकार काफी है। अब यह किसने पुकारा और किसको? यह तो सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो क्योंकि तुमने बाप द्वारा बाप को जाना है। फादर शोज़ सन, फिर सन शोज़ फादर - ऐसा कायदा है। अब प्रीतमायें सब प्रीतम को पुकारती हैं। गीत तो श्रीकृष्ण के लिए गाया हुआ है। सबकी श्रीकृष्ण के साथ प्रीत तो है ही। श्रीकृष्ण के भक्त समझते हैं श्रीकृष्ण ने राजयोग सिखाया था। वास्तव में प्रीतम सबका एक ही है। सर्व पतितों को पावन बनाने वाला एक ही है। निराकार को ही याद करते हैं परन्तु परमपिता परमात्मा को फिर यथार्थ रीति जानते नहीं। निराकार का यथार्थ अर्थ क्या है, सो जानते नहीं। बाप ने समझाया है वास्तव में एक ही राम है, हे प्रभू, हे ईश्वर, ओ गॉड...... एक को पुकारते हैं। कोई जिस्मानी मनुष्य या देवता को नहीं पुकारते। बुद्धि निराकार तरफ चली जाती है। गॉड फादर सभी का एक ही है। समझते भी हैं हम ब्रदर्स हैं। परन्तु आत्माओं के रूप में हैं। यूँ तो हर एक अपने-अपने धर्म का है। अपने धर्म के भाई-बहन भी लड़ते रहते हैं। जब सभी दु:खी होते हैं तो बाप कहते हैं मुझे याद करो क्योंकि सर्व का पतित-पावन मैं ही हूँ। प्रीतम तो सब प्रीतमाओं का एक ही है। सजनी साजन को याद करती है। प्रीतमायें याद करती हैं - प्रीतम आन मिलो। आत्मा याद कर रही है जिया बुलाये। बुलाने वाली तो आत्मा है ना, शरीर तो नहीं। जीव आत्मा, जीव आत्मा से बात करती है। दुनिया में मनुष्य तो देह-अभिमानी होने कारण अपने को शरीर समझते हैं। तुम बच्चों को यह पक्का-पक्का समझना है कि जीव की आत्मा बुलाती है। आत्मा प्यार करती है। शरीर, शरीर से प्यार नहीं करता। आत्मा शरीर धारण करती है। इस समय का प्यार भी अशुद्ध है। देवी-देवताओं का प्यार तो बहुत शुद्ध होगा ना। मनुष्य समझते हैं प्यार विकार का ही होता है। परन्तु सतयुग में प्यार है लेकिन वहाँ कोई भी विकार नहीं होता है। बाप तुम बच्चों को 21 जन्मों के लिए इन विकारों से बचाते हैं। तुम यह बातें किसको बैठ समझाओ तो सुनकर बड़ा खुश होंगे।

तुम कहते हो - बाबा, सर्विस नहीं होती है परन्तु सर्विस के तरीके तो बहुत बताते हैं। अभी दशहरा आता है, देवियों की पूजा भी सब जगह होती है। तो वहाँ भी जाकर समझाना चाहिए। बाप की पहचान देनी चाहिए। वह है परमपिता परमात्मा निराकार बाप। हम आत्मायें भी मूलवतन में रहती हैं। वतन घर को भी कहा जाता है। हम आत्माओं का बाप भी वहाँ परमधाम में रहते हैं। बाप बच्चों को भेज देते हैं। यह भी ड्रामा अनुसार आटोमेटिकली चलता रहता है। उनको भी अपने समय पर आना पड़ता है। एक बाप है बाकी सब हैं आत्मायें। यह है मनुष्य सृष्टि। उनमें दैवी गुण वाले मनुष्य लक्ष्मी-नारायण थे सतयुग में। बाकी कोई 8-10 भुजा वाले मनुष्य नहीं होते। यह कहाँ से आये? पूजा जहाँ होती है वहाँ तुमको इनोसेंट हो जाकर पूछना चाहिए - यह क्या है? रूद्र यज्ञ भी बहुत होते हैं। साहूकार लोग यज्ञ आदि बहुत कराते रहते हैं। तुम कहाँ भी रमण कर सकते हो, तुम रमतायोगी हो। जो जिस-जिस देश में रहने वाले हैं वहाँ सर्विस कर सकते हैं। यह कौन हैं जो इनकी पूजा होती है? क्या करके गये हैं? किसकी सन्तान हैं? ऐसे-ऐसे बैठ पूछना चाहिए। फिर समझाना चाहिए क्योंकि तुम्हें सबका कल्याण करना है, रहमदिल बनना चाहिए। मुफ्त पैसे बरबाद करते रहते हैं।

बच्चों के लिए सर्विस तो बहुत है। अभी दशहरा आता है, उस पर समझाना चाहिए कि रावण को क्यों जलाते हैं? रावण का राज्य कब से कब तक चला? फिर विष्णु का राज्य कितना समय चला? यह है ब्रह्मा का दिन, यह है ब्रह्मा की रात। गवर्मेन्ट को जाकर समझाना चाहिए। बरोबर, अब रावण राज्य है ना। वह हैं विष्णु सम्प्रदाय अथवा दैवी सम्प्रदाय, यह हैं आसुरी सम्प्रदाय। बड़ों-बड़ों को जाकर समझाना चाहिए। चित्र ले जाना चाहिए। कोशिश करनी चाहिए - ऐसा बाण मारें जो नाम बाला हो जाए। बनारस में बहुत बड़े-बड़े टाइटिल मिलते हैं सरस्वती आदि के। अब सरस्वती तो है जगत अम्बा। भारतवासी सब जगत अम्बा को मानेंगे, जगत को रचने वाली। तो जरूर पिता भी होगा। जगत पिता ब्रह्मा और जगत अम्बा सरस्वती कहते हैं ना। सरस्वती भी ब्रह्मा की बच्ची है, ब्रह्मा की मुख वंशावली है। ब्रह्मा को फिर रचने वाला कौन? गाया जाता है शिव परमात्माए नम:, वह हो गये देवताए नम: तो देवताओं का रचयिता वह शिव परमात्मा हो गया, उनसे वर्सा मिला होगा। तो तुम बच्चों को समझाने निकलना पड़े ना। जो-जो अच्छे समझदार हैं उन्हें सर्विस करनी चाहिए। बाप तो गली-गली में नहीं जायेंगे। यह बच्चों का काम है। सर्विस नहीं करते हैं तो समझेंगे सर्विसएबुल नहीं हैं। तो पद भी ऐसा ही पायेंगे। भल बच्चे तो बने हैं परन्तु पढ़ाई पर सारा मदार है, जो जास्ती पढ़ेंगे वह ऊंच पद पायेंगे। पढ़े हुए के आगे अनपढ़े भरी ढोयेंगे। पुरुषार्थ ऊंच पद पाने का करना चाहिए। यह शिवबाबा सम्मुख समझा रहे हैं। बाहर वाले बच्चे भी समझेंगे - शिवबाबा मधुबन में मुरली चलाते होंगे। मुरली नहीं आती है तो बच्चे हैरान हो जाते हैं, सोचते हैं - शिवबाबा की मुरली क्यों नहीं आई? क्योंकि शिवबाबा की मुरली से ही हमारा जन्म हीरे जैसा बनना है। मुरली तो रोज़ सुनना चाहिए। 7 रोज की मुरली भी अगर किसके पास जाये, वह बैठ पढ़े तो कितनी खुशी मिल जाए। पढ़ना जरूर चाहिए। कोई भी लूला, लंगड़ा, गूंगा भी यह पढ़ सकते हैं। कैसे भी बुखार में, बीमारी में भी मुरली जरूर पढनी चाहिए।

तुम सिर्फ बोलो - तुमको दो बाप हैं, तो जिसे वर्सा लेना होगा वह उसी समय इन दो अक्षरों से भी समझ जायेंगे। यह नॉलेज ही ऐसी सहज है। बाप को याद करने से सारा चक्र बुद्धि में आ जाता है। जितना बुद्धि में चक्र फिरायेंगे तो चक्रवर्ती बनेंगे। बाप कहते हैं जो मेरे भक्त हैं अथवा लक्ष्मी-नारायण आदि को मानने वाले हैं उन्हों को समझाओ - तुम ही देवी-देवता थे, 84 का चक्र लगाया अब फिर देवता बनो। यह बाबा भी लक्ष्मी-नारायण का भक्त था ना। पुजारी से फिर पूज्य बनते हैं। लक्ष्मी-नारायण पूज्य हैं ना। तुम लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जायेंगे, कहेंगे - कल इनकी पूजा करते थे, आज हम वह बन रहे हैं। समझाना तो बड़ा सहज है। तुम बच्चों को रहमदिल बनना है। जिसको सर्विस का शौक होगा वह सिखलाने वाली ब्राह्मणी का साथ पकड़ेंगे। हमको बैठ समझाओ। तुम खाते हो शिवबाबा के भण्डारे से तो शिवबाबा की सर्विस करनी पड़े ना। सभी शिवबाबा की भण्डारी में डालते हैं। समझते हैं हम शिवबाबा की भण्डारी से खाते हैं। तो मन्सा-वाचा-कर्मणा सर्विस करनी चाहिए। यहाँ तुमको कितना मजा आता है! वह मजा घर में आ न सके। मन्सा सर्विस भी करनी है, याद करना है। पवित्र बनना है। शंख ध्वनि भी करनी है। कर्मणा कोई भी यज्ञ सर्विस करनी है। शुरू में मम्मा-बाबा भी बर्तन मांजते थे। गोबर के छेणे (कण्डे) बनाते थे। देह-अभिमान तोड़ने के लिए सब करते थे। अभी फिर बहुतों में दिन-प्रतिदिन देह-अभिमान बढ़ता जाता है। यज्ञ का खाते हैं तो सर्विस भी करनी चाहिए। बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे। सर्वव्यापी कहने से विकर्म विनाश कैसे होंगे? सर्वव्यापी कहने से तो बुद्धि का योग लग नहीं सकता। तो यह सेवा सबकी करनी है। दान देना है। वह सेवा नहीं तो स्थूल सेवा करो। वह भी नहीं कर सकते हो तो धन की सेवा करो। तो वह भी सर्विस हो जायेगी। बीज बोया जाता है तो उनका फल निकलता है। यहाँ चावल चपटी देने से महल मिल जाते हैं। किसको भी कहना नहीं है कि बीज बोओ। तकदीर में नहीं होगा तो कभी बुद्धि में आयेगा ही नहीं। साहूकार लोग होते हैं तो 5 लाख का भी इनश्योरेन्स करते हैं। गरीब होगा तो 500 का इनश्योरेन्स करेगा। यहाँ फिर गरीब सबसे जास्ती इनश्योर करते हैं। गरीब के चावल मुट्ठी भी साहूकार के धन से इक्वल हो जाते हैं। मम्मा ने देखो क्या इनश्योर किया? तन-मन से देखो कितनी सेवा की। बहुत धन देने वालों को भी इतना पद नहीं मिल सकता, जितना उनको मिलता है।

तुम हो नर से नारायण बनने वाले। यह नॉलेज है ही स्वराज्य योग। हर एक की बुद्धि समझ सकती है - हम मम्मा-बाबा को फालो करते हैं? पुरुषार्थ करना चाहिए ना। यह ज्ञान सागर तो गलियों में नहीं जायेगा। न बाबा पब्लिक में भाषण कर सकते हैं। बाप कहते हैं मैं तो बच्चों के सामने बैठ भाषण करूंगा। मैं सबका बाप हूँ। तुम मातायें, कुमारियां हो। तुमको जाकर भाषण करना है। फिर भी तुम बी.के. हो। अभी जगत अम्बा पर कितना बड़ा मेला लगता है। कुछ तो सर्विस करके गई है ना। तुम बतला सकते हो वहाँ बहुत सर्विस कर सकते हो। सर्विसएबुल बच्चे आपेही सर्विस करते रहेंगे। जो आपे ही करे सो देवता...... सुबह को जाओ, रात को लौट आओ। सर्विस करने की हिम्मत चाहिए। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे हैं। परन्तु कोई न कोई बंधन में हैं। रुद्र ज्ञान यज्ञ में अबलाओं पर अनेक प्रकार के विघ्न पड़ते हैं। प्रैक्टिकल में देख रहे हो। तो बाप से यदि वर्सा लेना है तो सर्विस में तत्पर रहना है। श्रीमत पर चलो। हाँ, लौकिक माँ-बाप आदि हैं तो उनकी सर्विस भी करनी है, साथ-साथ यह सर्विस भी करना है। बाम्बे में भी अम्बा के मन्दिर में बहुत जाते हैं, वहाँ भी जाकर सर्विस कर सकते हो। हाँ, ऐसे जो सर्विस करेंगे उनको गवर्मेन्ट भी शरीर निर्वाह अर्थ देने के लिए तैयार है। यदि कुछ भी समझने वाले नहीं हैं फिर भी मेहनत करो, कोई न कोई निकल आयेगा। सर्जन बहुत चाहिए। तुम हो अन्धों की लाठी। तुम बच्चों के लिए सर्विस तो ढेर है। तुमको कोई से पैसे आदि लेने की इच्छा नहीं है। तुमको तो रहमदिल बनना है। रहमदिल बाप के बच्चे भी रहम-दिल, जो बहुतों को मार्ग बतायेंगे वह पद भी ऊंच पायेंगे। सुनते तो बहुत हैं ना। यहाँ से गये तो फिर भूल जाता है। नम्बरवार धारणा करते हैं, इसमें बड़ी अच्छी मेहनत करनी चाहिए। 21 जन्मों का राज्य भाग्य मिलता है। कम बात थोड़ेही है। जैसे गवर्मेन्ट कहती है सोना हराम है। बाप भी कहते हैं नींद को जीतने वाले बनो। रात को भी कमाई करो।

कोई शरीर छोड़ते हैं तो समझते हैं ड्रामा में उनका इतना ही पार्ट था। अनन्य बच्चे जो होते हैं वह आते हैं। कोई तो बहुत आंसू बहाते हैं, पछताते हैं - हमने सर्विस नहीं की, बाप का कहना नहीं माना। ऐसे-ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। बाबा साक्षात्कार कराते हैं - तुमको कितना कहते थे सर्विस कर आप समान बनाओ, तुमने कुछ नहीं किया, फिर रोते हैं। धर्मराज के आगे भी रोते हैं, मार खाते हैं। इम्तहान हो गया, रिजल्ट निकल गई फिर रोने से कुछ फायदा होगा क्या?

अभी प्रीतम आया हुआ है प्रीतमाओं को ले जाने। कहते हैं आओ तो हम तुमको विश्व की महारानी बनायें। जो पुरुषार्थ करेंगे वह बनेंगे। स्टार्स में भी नम्बरवार होते हैं। कोई तो बहुत चमकते हैं। तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। ऊपर में तुम्हारे पिछाड़ी की रिजल्ट का यादगार है। अभी तो ग्रहण लगता है ना। चलते-चलते ग्रहचारी बैठ जाती है। तो तूफान से निकल नहीं सकते। ग्रहण लगा, यह गिरा। ग्रहण बहुतों को लगता है। ग्रहचारी मात-पिता को भी भुला देती है। परिपूर्ण तो कोई बने नहीं हैं। माया भी रूसतम से रूसतम हो लड़ेगी। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) रमता योगी बन सेवा करनी है। मन्सा, वाचा, कर्मणा किसी भी प्रकार की सेवा में बिजी जरूर रहना है।

2) रात को जागकर कमाई करनी है। नींद को जीतने वाला बनना है। मुरली किसी भी परिस्थिति में जरूर पढ़नी है।

वरदान:-अल्पकाल के संस्कारों को अनादि संस्कारों से परिवर्तन करने वाले वरदानी महादानी भव
अल्पकाल के संस्कार जो न चाहते हुए भी बोल और कर्म कराते रहते हैं इसलिए कहते हो मेरा भाव नहीं था, मेरा लक्ष्य नहीं था लेकिन हो गया। कई कहते हैं हमने क्रोध नहीं किया लेकिन मेरे बोलने के संस्कार ही ऐसे हैं...तो यह अल्पकाल के संस्कार भी मजबूर बना देते हैं। अब इन संस्कारों को अनादि संस्कारों से परिवर्तन करो। आत्मा के अनादि ओरीज्नल संस्कार हैं सदा सम्पन्न, सदा वरदानी और महादानी।
स्लोगन:-परिस्थिति रूपी पहाड़ को उड़ती कला के पुरुषार्थ द्वारा पार कर लेना ही उड़ता योगी बनना है।                                                                कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश।                                                                           संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/IWbmJ2ZXzdg

न्यूज़ सोर्स : madhuban