मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है।                                                            “मीठे बच्चे - प्रभात के समय मन-बुद्धि से मुझ बाप को याद करो, साथ-साथ भारत को दैवी राजस्थान बनाने की सेवा करो''
प्रश्नः-सूर्यवंशी राजधानी की प्राइज़ किस आधार पर मिलती है?
उत्तर:-सूर्यवंशी राजधानी की प्राइज़ लेना है तो बाप का पूरा मददगार बनो, श्रीमत पर चलते रहो। आशीर्वाद नहीं मांगनी है लेकिन योगबल से आत्मा को पावन बनाने का पुरुषार्थ करना है। देह सहित देह के सब सम्बन्धों को त्याग एक मोस्ट बील्वेड बाप को याद करो तो तुम्हें सूर्यवंशी राजधानी की प्राइज़ मिल जायेगी। उसमें पीस, प्योरिटी, प्रासपर्टी सब कुछ होगा।
गीत:-आखिर वह दिन आया आज.........

ओम् शान्ति। ओम् शान्ति का अर्थ तो तुम बच्चों की बुद्धि में रहता ही है। बाप जो समझाते हैं वह इस दुनिया में सिवाए तुम्हारे और किसको समझ में नहीं आयेगा। वह ऐसे समझेंगे जैसे कोई मेडिकल कॉलेज में नया जाकर बैठे तो कुछ समझ न सके। ऐसे कोई सतसंग होता नहीं, जहाँ मनुष्य जाये और कुछ न समझे। वहाँ तो है ही शास्त्र आदि सुनाने की बातें। यह है बड़े ते बड़ी कॉलेज। नई बात नहीं है। फिर से वह दिन आया आज, जबकि बाप बैठ बच्चों को राजयोग सिखलाते हैं। इस समय भारत में राजाई तो है नहीं। तुम इस राजयोग से राजाओं का राजा बनते हो अर्थात् तुम जानते हो कि जो विकारी राजायें हैं उनके भी हम राजा बन रहे हैं। बुद्धि मिली है। जो कोई कर्म करते हैं वह बुद्धि में रहता है ना। तुम वारियर्स हो, जानते हो हम आत्मायें अब बाप के साथ योग रखने से भारत को पवित्र बनाते हैं और चक्र के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज धारण कर हम चक्रवर्ती राजा बन रहे हैं। यह बुद्धि में रहना चाहिए। हम युद्ध के मैदान में हैं। विजय तो हमारी है ही। यह तो सर्टेन है। बरोबर हम अब इस भारत को फिर से दैवी डबल सिरताज राजस्थान बना रहे हैं। बाबा चित्रों के लिए बहुत अच्छी रीति समझाते रहते हैं। हम 84 जन्म पूरे कर अब वापिस जाते हैं। फिर आकर राज्य करेंगे। यह सब ब्रह्माकुमार-कुमारियां क्या कर रहे हैं, ब्रह्माकुमारियों की यह संस्था क्या है? पूछते हैं ना। बी.के. फट से कहती हैं कि हम इस भारत को फिर से दैवी राजस्थान बना रहे हैं, श्रीमत पर। मनुष्य ‘श्री' का अर्थ भी नहीं जानते हैं। तुम जानते हो श्री श्री शिवबाबा हैं, उनकी ही माला बनती है। यह सारी रचना किसकी है? क्रियेटर तो बाप हुआ ना। सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी जो भी हैं, यह सारी माला है रुद्र शिवबाबा की। सब अपने रचता को जानते हैं परन्तु उनके आक्यूपेशन को नहीं जानते। वह कब और कैसे आकर पुरानी दुनिया को नया बनाते हैं - यह किसकी बुद्धि में भी नहीं है। वह तो समझते हैं - कलियुग अभी बहुत वर्ष चलना है।

अभी तुम जानते हो हम दैवी राजस्थान स्थापन करने के निमित्त बने हुए हैं। बरोबर दैवी राजस्थान होगा फिर क्षत्रिय राजस्थान होगा। पहले सूर्यवंशी कुल फिर क्षत्रिय कुल का राज्य होगा। तुमको चक्रवर्ती राजा रानी बनना है तो बुद्धि में चक्र फिरना चाहिए ना। तुम किसको भी इन चित्रों पर बहुत अच्छी रीति समझा सकते हो। यह लक्ष्मी-नारायण सूर्यवंशी कुल और यह राम-सीता हैं क्षत्रिय कुल। फिर वैश्य, शूद्र वंशी पतित कुल बन जाते हैं। पूज्य फिर पुजारी बनते हैं। सिंगल ताज वाले राजाओं का चित्र भी बनाना चाहिए। यह एग्जीवीशन बड़ी वन्डरफुल हो जायेगी। तुम जानते हो ड्रामा अनुसार सर्विस अर्थ यह एग्जीवीशन बहुत जरूरी है तब तो बच्चों की बुद्धि में बैठेगा। नई दुनिया कैसे स्थापन हो रही है - वह चित्रों द्वारा समझाया जाता है। बच्चों की बुद्धि में खुशी का पारा चढ़ना चाहिए। यह तो समझाया है सतयुग में आत्मा का ज्ञान है सो भी जब बूढ़े होते हैं तब अनायास ख्याल आता है कि यह पुराना शरीर छोड़ फिर दूसरा नया शरीर लेना है। यह ख्यालात पिछाड़ी के टाइम में आता है। बाकी सारा टाइम खुशी-मौज में रहते हैं। पहले यह ज्ञान नहीं रहता है। बच्चों को समझाया है यह परम-पिता परमात्मा का नाम, रूप, देश, काल कोई भी नहीं जानते, जब तक कि बाप आकर अपना परिचय दे और परिचय भी बहुत गम्भीर है। उनका रूप तो पहले लिंग ही कहना पड़ता। रुद्र यज्ञ रचते हैं तो मिट्टी के लिंग बनाते हैं, जिनकी पूजा होती आई है। बाप ने पहले यह नहीं बताया कि बिन्दी रूप है। बिन्दी रूप कहते तो तुम समझ नहीं सकते। जो बात जब समझानी है तब समझाते हैं। ऐसे नहीं कहेंगे पहले क्यों नहीं बताया जो आज समझाते हो। नहीं, ड्रामा में नूँध ही ऐसी है। इस एग्जीवीशन से बहुत सर्विस की वृद्धि होती है। इन्वेन्शन निकलती है तो फिर वृद्धि होती जाती है। जैसे बाबा मोटर का मिसाल देते हैं। पहले इन्वेन्शन करने में मेहनत लगी होगी फिर तो देखो बड़े बड़े कारखानों में एक मिनट में मोटर तैयार हो जाती है। कितनी साइन्स निकली है।

तुम जानते हो कितना बड़ा भारत है। कितनी बड़ी दुनिया है। फिर कितनी छोटी हो जायेगी। यह बुद्धि में अच्छी रीति बिठाना है। जो सर्विसएबुल बच्चे हैं, उन्हों की ही बुद्धि में रहेगा। बाकी का तो खान-पान, झरमुई-झगमुई में ही टाइम वेस्ट होता है। यह तुम जानते हो भारत में फिर से दैवी राजस्थान स्थापन हो रहा है। वास्तव में किंगडम अक्षर भी रांग है। भारत दैवी राजस्थान बन रहा है। इस समय आसुरी राजस्थान है, रावण का राज्य है। हरेक में 5 विकार प्रवेश हैं। कितनी करोड़ आत्मायें हैं, सब एक्टर्स हैं। अपने-अपने समय पर आकर और फिर चले जाते हैं। फिर हरेक को अपना पार्ट रिपीट करना होता है। सेकेण्ड बाई सेकेण्ड ड्रामा हूबहू रिपीट होता है। जो कल्प पहले पार्ट बजाया था, वही अब बजता है, इतना सब बुद्धि में रखना है। धन्धेधोरी में रहने से तो फिर मुश्किल हो जाता है परन्तु बाप कहते हैं प्रभात का तो गायन है। गाते हैं राम सिमर प्रभात मोरे मन........ बाप कहते हैं अभी और कुछ भी नहीं सिमरो, प्रभात के समय मुझे याद करो। बाप अभी सम्मुख कहते हैं, भक्ति मार्ग में फिर गायन चलता है। सतयुग-त्रेता में तो गायन होता नहीं। बाप समझाते हैं - हे आत्मा, अपने मन-बुद्धि से प्रभात के समय मुझ बाप को याद करो। भक्त लोग अक्सर करके रात को जागते हैं, कुछ न कुछ याद करते हैं। यहाँ की रस्म-रिवाज फिर भक्ति मार्ग में चली आई है। तुम बच्चों को समझाने की भिन्न-भिन्न युक्तियां मिलती रहती हैं। भारत इतना समय पहले दैवी राजस्थान था फिर क्षत्रिय राजस्थान हुआ फिर वैश्य राजस्थान बना। दिन-प्रतिदिन तमोप्रधान बनते जाते हैं, गिरना जरूर है। मुख्य है यह चक्र, चक्र को जानने से तुम चक्रवर्ती राजा बनते हो। अभी तुम कलियुग में बैठे हो। सामने सतयुग है। यह चक्र कैसे फिरता है, इसका तुमको ज्ञान है। जानते हो कल हम सतयुगी राजधानी में होंगे। कितना सहज है। ऊपर में त्रिमूर्ति शिव भी है। चक्र भी है। लक्ष्मी-नारायण भी इसमें आ जाते हैं। यह चित्र सामने रखा हुआ हो तो कोई को भी सहज रीति समझा सकते हो। भारत दैवी राजस्थान था, अभी नहीं है। सिंगल ताज वाले भी नहीं हैं। चित्रों पर ही तुम बच्चों को समझाना है। यह चित्र बहुत वैल्युबुल हैं। कितनी वन्डरफुल चीज़ है तो वन्डरफुल रीति समझाना भी पड़े। यह झाड़ और त्रिमूर्ति का चित्र भी सबको अपने-अपने घर में रखना पड़े। कोई भी मित्र-सम्बन्धी आदि आये तो इन चित्रों पर ही समझाना चाहिए। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी है। हरेक बच्चे के पास यह चित्र जरूर होने चाहिए। साथ में अच्छे-अच्छे गीत भी हों। आखिर वह दिन आया आज - बरोबर बाबा आया हुआ है। हमको राजयोग सिखलाते हैं। चित्र तो कोई भी मांगे मिल सकते हैं। गरीबों को फ्री मिल सकते हैं। परन्तु समझाने की भी ताकत चाहिए। यह है अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना। तुम दानी हो, तुम्हारे जैसा अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान कोई कर नहीं सकता। ऐसा दान कोई होता नहीं। तो दान करना चाहिए, जो आये उनको समझाना चाहिए। फिर एक-दो को देख बहुत आयेंगे। यह चित्र मोस्ट वैल्युबुल चीज़ हैं, अमूल्य हैं। जैसे तुम भी अमूल्य कहलाते हो। तुम कौड़ी से हीरे जैसा बनते हो। यह चित्र विलायत में ले जाकर कोई समझाये तो कमाल हो जाए। इतना समय यह संन्यासी लोग कहते आये कि हम भारत का योग सिखलाते हैं। हर एक अपने धर्म की महिमा करते हैं। बौद्ध धर्म वाले कितने को बौद्धी बना देते हैं, परन्तु उससे फायदा तो कुछ भी नहीं। तुम तो यहाँ मनुष्य को बन्दर से मन्दिर लायक बनाते हो। भारत में ही सम्पूर्ण निर्विकारी थे। भारत गोरा था, अभी भारत काला है। कितने मनुष्य हैं! सतयुग में तो बहुत थोड़े होंगे ना। संगम पर ही बाप आकर स्थापना करते हैं। राजयोग सिखलाते हैं। उन बच्चों को ही सिखलाते हैं, जिन्होंने कल्प पहले भी सीखा था। स्थापना तो होनी ही है। बच्चे रावण से हार खाते हैं फिर रावण पर जीत पाते हैं। कितना सहज है। तो बच्चों को बड़े चित्र बनवाकर उस पर सर्विस करनी चाहिए। बड़े-बड़े अक्षर होने चाहिए। लिखना चाहिए - यहाँ से भक्ति मार्ग शुरू होता है। जरूर जब दुर्गति पूरी होगी तब तो बाप सद्गति करने आयेंगे ना।

बाबा ने समझाया है ऐसे कभी भी किसको नहीं कहना कि भक्ति न करो। नहीं, बाप का परिचय दे समझाना है तब तीर लगेगा। तुम जानते हो महाभारत लड़ाई क्यों कहा जाता है? क्योंकि यह बड़ा भारी यज्ञ है, इस यज्ञ से ही यह लड़ाई प्रज्वलित हुई है। यह पुरानी दुनिया ख़त्म होनी है। यह बातें तुम्हारी बुद्धि में हैं। मनुष्यों को पीस प्राइज़ मिलती रहती है। परन्तु पीस तो होती नहीं। वास्तव में पीस स्थापन करने वाला तो एक ही बाप है। उनके साथ तुम मददगार हो। प्राइज भी तुमको मिलनी है। बाप को थोड़ेही प्राइज़ मिलती है। बाप तो है देने वाला। तुमको नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार प्राइज मिलती है। बेशुमार बच्चे होंगे। तुम अभी प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी स्थापन कर रहे हो। कितनी भारी प्राइज़ है! जानते हो जितना जो मेहनत करेंगे उनको सूर्यवंशी राजधानी की प्राइज़ मिलेगी। बाप है श्रीमत देने वाला। ऐसे नहीं, बाबा आशीर्वाद करो। स्टूडेन्ट को राय दी जाती है कि बाप को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। योगबल से ही तुम्हारी आत्मा पवित्र बनेगी। तुम सब सीतायें हो, आग से पार होती हो। या तो योगबल से पार होना है या तो आग में जलना पड़ेगा। देह सहित सब सम्बन्धों को त्याग एक मोस्ट बील्वेड बाप को याद करना है। परन्तु यह याद निरन्तर रहने में बड़ी मुश्किलात है। टाइम लगता है। गाया भी हुआ है योग अग्नि। भारत का प्राचीन योग और ज्ञान मशहूर है क्योंकि गीता है सर्व शास्त्रमई शिरोमणी। उसमें राजयोग अक्षर है, परन्तु राज अक्षर गुम कर सिर्फ योग अक्षर पकड़ लिया है। बाप बिगर कोई कह न सके कि इस राजयोग से मैं तुमको राजाओं का राजा बनाऊंगा। अभी तुम शिवबाबा के सम्मुख बैठे हो। जानते हो हम सब आत्मायें वहाँ परमधाम में निवास करने वाली हैं फिर शरीर धारण कर पार्ट बजाती हैं। पुनर्जन्म शिवबाबा तो नहीं लेते। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी पुनर्जन्म नहीं लेना है। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ पतित से पावन बनाने इसलिए ही सब याद करते हैं पतित-पावन आओ, यह एक्यूरेट अक्षर है। बाप कहते हैं हम तुमको पावन सो देवी-देवता बना रहे हैं तो इतना नशा भी चढ़ना चाहिए। बाबा इनमें आकर हमको शिक्षा दे रहे हैं। इस फलों के बगीचे का बागवान बाबा है, बाबा का हमने हाथ पकड़ा है। इसमें सारी बुद्धि की बात है। बाबा हमको उस पार, विषय सागर से क्षीर सागर में ले जाते हैं। वहाँ विष होता नहीं, इसलिए उनको वाइसलेस वर्ल्ड कहा जाता है। निर्विकारी भारत था, अब वह विकारी बना हुआ है। यह चक्र भारत के लिए ही है। भारतवासी ही चक्र लगाते हैं। और धर्म वाले पूरा चक्र नहीं लगाते। वह तो पिछाड़ी में आते हैं। यह बड़ा वन्डरफुल चक्र है। बुद्धि में नशा रहना चाहिए। इन चित्रों पर बड़ा अटेन्शन रहना चाहिए। सर्विस करके दिखाओ। विलायत में भी चित्र जायें तो नाम बाला होगा। विहंग मार्ग की सर्विस हो जाए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना जो मिला है उसे दान करना है। अपना समय खाने-पीने, झरमुई-झगमुई में व्यर्थ नहीं गँवाना है।

2) कौड़ी जैसे मनुष्यों को हीरे जैसा बनाने की सेवा करनी है। बाप से आशीर्वाद या कृपा मांगनी नहीं है। उनकी राय पर चलते रहना है।

वरदान:-सेवा द्वारा प्राप्त मान, मर्तबे का त्याग कर अविनाशी भाग्य बनाने वाले महात्यागी भव
आप बच्चे जो श्रेष्ठ कर्म करते हो-इस श्रेष्ठ कर्म अथवा सेवा का प्रत्यक्षफल है - सर्व द्वारा महिमा होना। सेवाधारी को श्रेष्ठ गायन की सीट मिलती है। मान, मर्तबे की सीट मिलती है, यह सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है। लेकिन यह सिद्धियां रास्ते की चट्टियाँ हैं, यह कोई फाइनल मंजिल नहीं है इसलिए इसके त्यागवान, भाग्यवान बनो, इसको ही कहा जाता है महात्यागी बनना। गुप्त महादानी की विशेषता ही है त्याग के भी त्यागी।
स्लोगन:-फरिश्ता बनना है तो साक्षी हो हर आत्मा का पार्ट देखो और सकाश दो।                                                                                          कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश।                                                                         संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/XUEoXlkRj8I

न्यूज़ सोर्स : madhuban