24 oct.2023/ शिव बाबा की मुरली (परमात्मा की वाणी) आज की प्रातः मुरली मधुबन से।
मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है। “मीठे बच्चे - तुम्हें बड़ा विचित्र उस्ताद मिला है, तुम उसकी श्रीमत पर चलो तो डबल सिरताज देवता बन जायेंगे''
प्रश्नः-पढ़ाई में कभी भी थकावट न आये उसका सहज पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर:-पढ़ाई के बीच में जो कभी निंदा-स्तुति, मान-अपमान होता है, उसमें स्थिति समान रहे, उसे एक खेल समझो तो कभी थकावट नहीं आयेगी। सबसे जास्ती निंदा तो श्रीकृष्ण की हुई है, कितने कलंक लगाये हैं, फिर ऐसे श्रीकृष्ण को पूजते भी हैं। तो यह गाली मिलना कोई नई बात नहीं है इसलिए पढ़ाई में थकना नहीं है, जब तक बाप पढ़ा रहे हैं, पढ़ते रहना है।
गीत:-बनवारी रे जीने का सहारा तेरा नाम......
ओम् शान्ति। यह किसने कहा? किसने फ़रमाया और किसको? यह तो तुम बच्चे ही जानते हो, जिनको ही गोप-गोपियाँ कहा जाता है। तो उन्होंने अपने बाप गोपीवल्लभ को याद किया। ऐसा बाप सिवाए परमपिता परमात्मा के कोई हो नहीं सकता। तो याद उनको करते हैं, जो होकर जाते हैं। उनका फिर बाद में गायन होता है। मिसाल - जैसे क्राईस्ट आया, क्रिश्चियन धर्म स्थापन करके कहाँ चला नहीं गया, उनको पालना तो जरूर करनी है, पुनर्जन्म में आना है। परन्तु जो धर्म स्थापन करके गये हैं उनका वर्ष-वर्ष बर्थ डे मनाते हैं। भक्ति मार्ग में उनको याद किया जाता है। वैसे ही आजकल दशहरे का भी उत्सव मनाते हैं। मनाना होता है तो जरूर शुभ ही होगा। कोई अच्छा करके जाते हैं तो उनका उत्सव मनाया जाता है। दीपमाला का भी उत्सव मनाया जाता है। श्रीकृष्ण जयन्ती मनाई जाती है। जो होकर जाते हैं उनका फिर उत्सव मनाते हैं। अब भारतवासियों को तो यह पता है नहीं कि यह राखी उत्सव आदि क्यों मनाते हैं। क्या हुआ था? क्राइस्ट-बुद्ध आदि को जानते हैं कि यह धर्म स्थापन करने आये थे। इस समय सभी आसुरी सम्प्रदाय हैं। तुम हो ईश्वरीय सम्प्रदाय। अब बाप राम आकर दैवी श्रेष्ठाचारी बना रहे हैं अथवा ऐसे कहें कि परमपिता आकर स्वर्ग का उद्घाटन कर रहे हैं अथवा फाउन्डेशन डाल रहे हैं। ओपनिंग सेरीमनी भी कह सकते हैं। भारत में श्रेष्ठाचारी महाराजा-महारानी होकर गये हैं, सतयुगी देवी-देवतायें डबल सिरताज थे। पवित्रता का ताज भी था और रत्नजड़ित ताज भी था। विकारी राजाओं को सिर्फ रत्नजड़ित ताज होता है। डबल ताज वालों की सिंगल ताज वाले पूजा करते हैं। परन्तु कब होकर गये, कैसे राज्य पाया यह किसको पता नहीं है। लक्ष्मी-नारायण इतने श्रेष्ठ डबल सिरताज देवी-देवता थे, उन्हों को ऐसा श्रेष्ठ बनाने वाला कौन, यह बाप बैठ समझाते हैं। अभी दशहरा मनाते हैं, तुम जानते हो जरूर कुछ हुआ है जिस कारण दशहरा मनाते हैं, रावण को जलाते हैं, परन्तु वह जलने की चीज़ है नहीं। अभी उनका राज्य पूरा होता है। जब तक रामराज्य स्थापन हो जाए तब तक यह भ्रष्टाचारी राज्य चलना है। रावण राज्य ख़त्म हो रामराज्य स्थापन हुआ था, उसकी सेरीमनी मनाते रहते हैं। रावण को जलाते हैं, इससे सिद्ध करते हैं बरोबर भ्रष्टाचारी आसुरी राज्य है। भ्रष्टाचार की भी ग्रेड्स रहती हैं। भ्रष्टाचार द्वापर से शुरू होता है। पहले दो कला भ्रष्टाचार रहता है फिर 4 कला, फिर 8 कला, 10 कला, बढ़ते-बढ़ते 16 कला भ्रष्टाचार हो गया है। अभी फिर 16 कला भ्रष्टाचार को बदलाए 16 कला श्रेष्ठाचारी बनाना एक बाप का ही काम है।
बाप समझाते हैं इस समय रावणराज्य है, रामराज्य श्रेष्ठ राज्य था। अभी वह भ्रष्ट बन गये हैं। श्रेष्ठाचारी भारत को स्वर्ग कहा जाता है। वही राज्य अब भ्रष्टाचारी हो गया है। अब बाप कहते हैं - मैं आया हूँ भ्रष्टाचारी राज्य को श्रेष्ठाचारी राज्य बनाने लिए। यादव कुल भी है, कौरव कुल भी है। यादव कुल में भी अनेक धर्म हैं। जो श्रेष्ठाचारी दैवी धर्म के थे वह धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन पड़े हैं। फिर बाप श्रेष्ठ कर्म सिखलाते हैं। भक्ति मार्ग में उत्सव मनाते आये हैं। जरूर भगवान् आया था, 5 हज़ार वर्ष की बात है। बाप ने आकर भ्रष्टाचारी को श्रेष्ठाचारी बनाया था। सारी दुनिया को श्रेष्ठाचारी बनाना बाप का ही काम है, फिर उनकी पालना करने लिए तुमको ऊपर से भेज देते हैं। तुमने जो दैवी धर्म की स्थापना की है, उसकी फिर जाकर पालना करो। ऐसे कोई कहते नहीं, आटोमेटिकली यह ड्रामा अनुसार होता है। तुम श्रेष्ठाचारी बन जायेंगे फिर सृष्टि भी सतोप्रधान श्रेष्ठाचारी बन जायेगी। अभी तो 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं। कितनी उथल-पाथल होती रहती है। मनुष्य कितने दु:खी होते हैं। करोड़ों का नुकसान हो जाता है। सतयुग में यह कोई भी उपद्रव नहीं होते। उपद्रव होते हैं नर्क में। उपद्रव भी पहले दो कला वाले थे, अभी 16 कला वाले बन गये हैं। यह सब डीटेल में समझाने की बातें हैं और हैं बहुत सहज, परन्तु समझते नहीं, न समझा सकते हैं। तो यह रावण को जलाना द्वापर से शुरू होता है। ऐसे थोड़ेही कहेंगे 5 हज़ार वर्ष हुए। भक्ति मार्ग शुरू होता है तो यह उपद्रव भी शुरू होते हैं। अब फिर रावण राज्य का विनाश, रामराज्य की स्थापना कैसे होती है सो तुम जानते हो। मनुष्य नहीं जानते रावण क्या है। बाप कहते हैं लंका तो कोई थी नहीं। सतयुग में लंका होती नहीं। बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। जमुना का कण्ठा है। अजमेर में वैकुण्ठ का मॉडल भी दिखाते हैं परन्तु समझते नहीं। सोने के महल आदि बनाने में वहाँ कोई देर नहीं लगती है। मशीनरी पर झट गलाकर टाइल्स बनाते हैं।
तुम बच्चे जानते हो यह जो साइंस है, जिससे विनाश होता है, वही फिर तुमको वहाँ काम में आयेगी। अभी यह एरोप्लेन आदि बड़ी खुशी के लिए बनाते हैं, उनसे ही विनाश करेंगे। तो यह एरोप्लेन सुख के लिए भी है तो दु:ख के लिए भी है। अल्पकाल लिए सुख है। 100 वर्ष के अन्दर यह सब चीजें निकली हैं। तो 100 वर्ष के अन्दर इतना सब हुआ है। तो तुम विचार करो जब विनाश होगा फिर नई दुनिया में कितने थोड़े समय में सब चीज़े बन जायेंगी। वहाँ तो झट सोने के महल बन जाते हैं। भारत में सोने चाँदी के कितने महल जड़ित से जड़े हुए बनते हैं। वहाँ दरबार बड़ी बनती है। राजे रजवाड़े आपस में मिलते होंगे। उसको पाण्डव सभा नहीं कहेंगे। उसको कहेंगे लक्ष्मी-नारायण के राजधानी की सभा। प्रिन्स-प्रिन्सेज सब आकर बैठते हैं। ब्रिटिश गवर्मेन्ट थी तो प्रिन्स-प्रिन्सेज महाराजाओं की बड़ी सभा लगती थी। सब राजाई ताज लगाकर बैठते थे। नेपाल में बाबा जाते थे तो वहाँ राणा फैमिली की सभा लगती थी। बड़े ताज वाले राणे बैठते थे। उनको महाराजा-महारानी कहते हैं, फिर उनमें भी नम्बरवार होते हैं। रानियाँ नहीं बैठती हैं। वह पर्देनशीन होती हैं। बड़े भभके से बैठते हैं। हम कहते थे यह तो पाण्डव राज्य है। वह अपने को कहते भी सूर्यवंशी हैं। यहाँ थे परन्तु सिंगल ताज वाले। उनसे पहले डबल सिरताज थे। श्रीकृष्ण के लिए अनेक बातें लिख दी हैं - फलानी को भगाया, यह किया। परन्तु ऐसी बात तो है नहीं।
जो उत्सव पास्ट हो जाते हैं वह फिर मनाते आते हैं। यह भी उत्सव मनाते हैं। जबकि रावण राज्य को ख़लास कर रामराज्य की स्थापना की, यह तो वर्ष-वर्ष मनाते हैं। तो सिद्ध होता है आसुरी रावण राज्य 5 हजार वर्ष पहले भी था। बाप आया था, आकर रावण राज्य का विनाश कराया था। वही महाभारत लड़ाई खड़ी है। बाकी रावण कोई चीज़ नहीं है। रावण की स्त्री मदोदरी दिखाते हैं। उनको फिर 10 शीश नहीं दिखाते हैं। रावण को 10 शीश दिखाते हैं। विष्णु को 4 भुजा दिखाते हैं। दो लक्ष्मी की, दो नारायण की। वैसे रावण को 10 शीश दिखाते हैं - 5 विकार उनके, 5 विकार मदोदरी के। विष्णु चतुर्भुज भी अर्थ सहित दिखाया है। पूजा भी महालक्ष्मी की करते हैं। महालक्ष्मी को कभी दो भुजा वाला नहीं दिखायेंगे। दीपमाला में लक्ष्मी का आह्वान करते हैं। क्यों, नारायण ने कोई गुनाह किया क्या? लक्ष्मी को भी धन तो नारायण ही देता होगा ना। हाफ पार्टनर होंगे। तो नारायण ने क्या गुनाह किया? वास्तव में धन कोई लक्ष्मी से नहीं मिलता, धन तो जगदम्बा से मिलता है। तुम जानते हो जगत अम्बा सो ही फिर लक्ष्मी बनती है। तो उन्होंने अलग-अलग कर दिया है। जगत अम्बा से हर चीज़ माँगते हैं। कोई भी दु:ख होगा, बच्चा मर जायेगा तो जगत अम्बा को कहेंगे रक्षा करो, बच्चा दो, यह बीमारी दूर करो। बहुत कामनायें रखते हैं। लक्ष्मी के पास एक ही कामना रखकर जाते हैं - धन की। बस। जगत अम्बा सभी कामनायें पूरी करने वाली है। धनवान तो यह बनाती है। इस समय तुम्हारी सब कामनायें पूरी होती हैं। कोई धन नहीं देते हैं, सिर्फ पढ़ाते हैं - जिससे तुम क्या से क्या बन जाते हो और फिर लक्ष्मी बनती हो तो धनवान बन जाती हो। ताकत इस समय तुम्हारे में है जो तुम सब कामनायें पूरी कर सकती हो। जगत अम्बा दान देती है, लक्ष्मी दान थोड़ेही देगी। वहाँ दान देते नहीं। भूख होती ही नहीं। कंगाल कोई होते नहीं। सतयुग में रावण होता नहीं। यहाँ रावण को जलाते हैं। दशहरे के बाद फिर दीपमाला मनाते हैं, खुशियाँ मनाते हैं क्योंकि रावण राज्य विनाश हो रामराज्य स्थापन होगा तो खुशियाँ होंगी। घर-घर में रोशनी हो जाती है। तुम्हारी आत्मा में रोशनी आ जाती है। जो चीज़ संगम पर है वह सतयुग में नहीं होगी। तुम त्रिकालदर्शी हो, वहाँ तो तुम प्रालब्ध भोगते हो। यह नॉलेज सारी भूल जाते हो। संगम पर है ही स्थापना और विनाश। स्थापना हो गई फिर बस। इन सब उत्सवों आदि का तुमको ही ज्ञान है। अज्ञानी मनुष्य तो कुछ भी नहीं समझते। बड़े बखेरे बना देते हैं, है कुछ भी नहीं। तुम प्रैक्टिकल में देख रहे हो सतयुग में यह बातें नहीं होती हैं। नारद की भी बात शास्त्रों में है। तुमसे भी पूछा जाता है - तुम कहते हो बाबा हम लक्ष्मी को वरेंगे अथवा नारायण को वरेंगे। तो बाप कहते हैं अपने में देखो कोई विकार तो नहीं है। अगर क्रोध आदि होगा तो कैसे वर सकेंगे? हाँ, अभी सम्पूर्ण तो कोई बने नहीं है। परन्तु बनना है, इन भूतों को भगाना है तब ही इतना मर्तबा पा सकेंगे। उस्ताद भी बड़ा विचित्र मिला है। बाप तो सर्वगुण सम्पन्न, ज्ञान का सागर, आनन्द का सागर है तो जो आकर बच्चे बनते हैं उनको भी सर्वगुण सम्पन्न, डबल सिरताज देवता बनाते हैं। बरोबर तुम बन रहे हो। देवताओं को दोनों ताज रहते हैं। तुम आये हो बाप से वर्सा लेने। वर्सा लेना है, पढ़ना है। प्वाइन्ट्स तो बहुत निकलती रहती हैं। अगर पढ़ेंगे नहीं तो औरों को कैसे समझा सकेंगे? ड्रामा हूबहू रिपीट हो रहा है। यह नॉलेज अभी तुम समझते हो फिर यह गुम हो जायेगी। यह जो लंका आदि दिखाते हैं, वह भी है नहीं। रावण का जन्म कब हुआ? लिखा हुआ है द्वापर से देवतायें वाम मार्ग में जाते हैं तो विकारी बनना शुरू होते हैं। भक्ति भी पहले अव्यभिचारी थी फिर व्यभिचारी बन जाती है। अभी तो मनुष्य अपनी पूजा कराने लग पड़े हैं। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ भ्रष्टाचारी दुनिया का विनाश और श्रेष्ठाचारी दुनिया की स्थापना करने। जरूर पहले स्थापना करेंगे फिर विनाश करेंगे। यह हमारा पार्ट कल्प-कल्प का है। भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी बनाने में भी टाईम लगता है। जब तक बाप बैठ पढ़ा रहे हैं, पढ़ना है। कल्प पहले जिन्होंने जितना पढ़ा है वही पढ़ेंगे। बहुत बच्चे चलते-चलते कहते - बस, हम चल नहीं सकेंगे। अरे, स्तुति-निंदा, मान-अपमान यह तो सब होगा। तुम पढ़ाई को क्यों छोड़ते हो। सबसे जास्ती निंदा तो श्रीकृष्ण की हुई है। कितने कलंक लगाये हैं। फिर ऐसे श्रीकृष्ण को पूजते क्यों हैं? वास्तव में गाली अभी इनको (ब्रह्मा को) मिलती है। सारे सिन्ध में निंदा हुई फिर कर तो कुछ भी नहीं सके। यह भी सब खेल है। नई बात नहीं, कल्प पहले भी गाली खाई थी, नदी पार की थी। तुम सिन्ध से निकल इस पार चले आये ना। श्रीकृष्ण तो नहीं थे, यह दादा आता-जाता था। तुम जानते हो अभी हम राज्य पाते हैं फिर गंवाते हैं। यह भी खेल है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करने वाली कामधेनु (जगदम्बा) बनना है। दान देते रहना है।
2) स्तुति-निंदा में स्थिति समान रखनी है। यह सब होते पढ़ाई नहीं छोड़नी है। इसे खेल समझ पार करना है।
वरदान:-अपने शक्ति स्वरूप द्वारा अलौकिकता का अनुभव कराने वाले ज्वाला रूप भव
अभी तक बाप शमा की आकर्षण है, बाप का कर्तव्य चल रहा है, बच्चों का कर्तव्य गुप्त है। लेकिन जब आप अपने शक्ति स्वरूप में स्थित होंगे तो सम्पर्क में आने वाली आत्मायें अलौकिकता का अनुभव करेंगी। अच्छा-अच्छा कहने वालों को अच्छा बनने की प्रेरणा तब मिलेगी जब संगठित रूप में आप ज्वाला स्वरूप, लाइट हाउस बनेंगे। मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्टेज, स्टेज पर आ जाए तो सभी आपके आगे परवाने समान चक्र लगाने लग जायें।
स्लोगन:-अपनी कर्मेन्द्रियों को योग अग्नि में तपाने वाले ही सम्पूर्ण पावन बनते हैं। कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश। संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/a0Pxp06GdCo