29Nov.2023/ शिव बाबा की मुरली (परमात्मा की वाणी) आज की प्रातः मुरली मधुबन से।
मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है। “मीठे बच्चे - अपनी बुद्धि वा विचारों को इतना शुद्ध, स्वच्छ बनाओ जो श्रीमत को यथार्थ रीति धारण कर बाप का नाम बाला कर सको''
प्रश्नः-बच्चों की कौन-सी अवस्था ही बाप का शो करेगी?
उत्तर:-जब बच्चों की निरन्तर हर्षितमुख, अचल-अडोल, स्थिर और मस्त अवस्था बनें तब बाप का शो कर सके। ऐसी एकरस अवस्था वाले होशियार बच्चे ही यथार्थ रीति सबको बाप का परिचय दे सकते हैं।
गीत:-मरना तेरी गली में..........
ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना। कहते हैं आये हैं तेरे दर पे जीते जी मरने के लिए। किसके दर पर? फिर भी यही बात निकलती कि अगर गीता का भगवान् श्रीकृष्ण कहें तो यह सब बातें हो न सकें। न श्रीकृष्ण यहाँ हो सके। वह तो है सतयुग का प्रिन्स। गीता कोई श्रीकृष्ण ने नहीं सुनाई, गीता तो परमपिता ने सुनाई। सारा मदार एक बात पर है। भक्ति में तुम इतनी मेहनत करते आये हो वह तो दरकार नहीं। यह तो सेकेण्ड की बात है। सिर्फ यह एक बात ही सिद्ध करने के लिए भी बाप को कितनी मेहनत करनी पड़ती है। कितनी नॉलेज देनी पड़ती है। प्राचीन नॉलेज जो भगवान् ने दी है वही नॉलेज है, सारी बात गीता पर है। परमपिता परमात्मा ने ही आकर देवी-देवता धर्म की स्थापना के लिए सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाया है, जो अब प्राय:लोप है। मनुष्य तो समझते हैं श्रीकृष्ण कभी फिर आकर गीता सुनायेगा। परन्तु अब तुमको यह अच्छी रीति गोले के चित्र पर सिद्ध करना है कि गीता पारलौकिक परमपिता परमात्मा ज्ञान सागर ने सुनाई। श्रीकृष्ण की महिमा और है, परमपिता परमात्मा की महिमा और है। वह है सतयुग का प्रिन्स, जिसने सहज राजयोग से राज्य-भाग्य पाया है। पढ़ते समय नाम रूप से और है और फिर जब राज्य पाया तब और है - यह सिद्ध कर बताना है। पतित-पावन है ही एक बाप। अभी फिर से श्रीकृष्ण की आत्मा पतित-पावन द्वारा राजयोग सीख भविष्य पावन दुनिया का प्रिन्स बन रही है। यह सिद्ध कर समझाने में भी युक्तियां चाहिए। फॉरेनर्स को भी सिद्ध कर बताना पड़ता है। नम्बरवन है ही गीता। सर्व शास्त्र-मई श्रीमत भगवत गीता माता। अब माता को जन्म किसने दिया? बाप ही माता को एडाप्ट करते हैं ना। गीता किसने सुनाई? ऐसे नहीं कहेंगे कि क्राइस्ट ने बाइबिल को एडाप्ट किया। क्राइस्ट ने जो शिक्षा दी उनका फिर बाइबिल बनाकर पढ़ते हैं। अब गीता की शिक्षा किसने दी, जो फिर बाद में पुस्तक बनाकर पढ़ते रहते हैं? यह किसको पता नहीं। और सबके शास्त्रों का तो पता है। यह जो सहज राजयोग की शिक्षा है, वह किसने दी है, यह सिद्ध करना है। दुनिया तो दिन-प्रतिदिन तमोप्रधान बनती जाती है। यह सब स्वच्छ बुद्धि में ही बैठ सकता है। जो श्रीमत पर नहीं चलते, उनको धारणा हो न सके। श्रीमत कहेगी तुम बिल्कुल समझा नहीं सकते हो। अपने को ज्ञानी मत समझो। पहले तो मुख्य बात यह सिद्ध करनी है कि गीता का भगवान् परमपिता परमात्मा है, वही पतित-पावन है। मनुष्य तो सर्वव्यापी कह देते हैं वा ब्रह्म तत्व कह देते वा सागर कह देते। जो आया सो कह देते - बिगर अर्थ। भूल सारी गीता से निकली है, जो गीता का भगवान् श्रीकृष्ण कह दिया है। तो समझाने लिए गीता उठानी पड़े। बनारस वाले गुप्ता जी को भी कहते थे कि बनारस में यह सिद्ध कर बतलाओ कि गीता का भगवान् श्रीकृष्ण नहीं। अब सम्मेलन तो होते हैं, सब रिलीजस मनुष्य कहते हैं क्या उपाय करें जो शान्ति हो जाए? अब शान्ति स्थापन करना पतित मनुष्यों के हाथ में तो है नहीं। कहते भी हैं पतित-पावन आओ। फिर भी पतित कैसे शान्ति स्थापन कर सकते, जबकि बुलाते रहते हैं परन्तु पतित से पावन बनाने वाले बाप को जानते नहीं हैं। भारत पावन था, अभी पतित है। अब पतित-पावन कौन है? यह कोई की बुद्धि में नहीं आता। कह देते हैं रघुपति राघव........ अब वह राम तो है नहीं। झूठा बुलावा करते हैं। जानते कुछ नहीं। अब यह कौन जाकर बताये? बड़े अच्छे बच्चे चाहिए। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। बड़ा गोला भी बनवाया है, जिससे सिद्ध हो जाए कि गीता भगवान् ने रची। वह तो कह देते कोई भी हो, हैं तो सब भगवान्। बाप कहते हैं तुम बेसमझ हो। मैंने आकर पावन राज्य स्थापन किया, उसके बदले फिर श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया। पतित को ही पावन बनाकर फर्स्ट प्रिन्स बनाता हूँ। भगवानुवाच - मैं श्रीकृष्ण की आत्मा को एडाप्ट कर ब्रह्मा बनाए उन द्वारा ज्ञान देता हूँ। वह फिर इस सहज राजयोग से फर्स्ट प्रिन्स सतयुग का बन जाता है। यह समझानी और कोई की बुद्धि में है नहीं।
तुम्हें पहले तो यह भूल सिद्धकर दिखानी है कि श्रीमत भगवत गीता है सब शास्त्रों की माई बाप। उसका रचयिता कौन था? जैसे क्राइस्ट ने बाइबिल को जन्म दिया, वह है क्रिश्चियन धर्म का शास्त्र। अच्छा बाइबिल का बाप कौन? क्राइस्ट। उनको माई-बाप नहीं कहेंगे। मदर की तो वहाँ बात ही नहीं। यह तो यहाँ मात-पिता है। क्रिश्चियन ने रीस की है श्रीकृष्ण के धर्म से, यूँ तो वह क्राइस्ट को मानने वाले हैं। जैसे बुद्ध ने धर्म स्थापन किया तो बौद्धियों का शास्त्र भी है। अब गीता किसने सुनायी? उससे कौन-सा धर्म स्थापन हुआ? यह कोई नहीं जानते। कभी नहीं कहते कि पतित-पावन परमपिता परमात्मा ने ज्ञान दिया है। अभी गोला ऐसा बनाया है, जिससे समझ सकें कि बरोबर परमपिता परमात्मा ने ज्ञान दिया है। राधे-कृष्ण तो सतयुग में हैं। उन्होंने अपने को तो ज्ञान नहीं दिया। ज्ञान देने वाला तो दूसरा चाहिए। कोई ने तो उन्हों को पास कराया होगा। यह राजाई प्राप्त कराने का ज्ञान किसने दिया? किस्मत आपेही तो नहीं बनती। किस्मत बनाने वाला या तो बाप या तो टीचर चाहिए। कहते हैं गुरू गति देते हैं। परन्तु गति सद्गति का भी अर्थ नहीं समझते। प्रवृत्ति मार्ग वालों की सद्गति होती है। बाकी गति माना सब बाप के पास जाते हैं। यह बातें कोई भी समझते नहीं। वह तो भक्ति मार्ग में बहुत बड़े-बड़े दुकान खोलकर बैठे हैं। सच्चे ज्ञान मार्ग की दुकान यह एक ही है बाकी सब भक्ति मार्ग की दुकानें हैं। बाप कहते हैं यह वेद-शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग की सामग्री है। इन जप-तप, वेद-शास्त्र आदि का अध्ययन करने से मैं नहीं मिलता हूँ। मैं तो बच्चों को ज्ञान देकर पावन बनाता हूँ। सारी सृष्टि का सद्गति दाता हूँ। वाया गति में जाकर फिर सद्गति में आना है। सब तो सतयुग में नहीं आयेंगे। यह ड्रामा बना हुआ है। जो कल्प पहले तुमको सिखाया था, जो चित्र बनवाये थे, वह अब बनवा रहे हैं।
मनुष्य कहते हैं 3 धर्मों की टांगों पर सृष्टि खड़ी है। एक देवता धर्म की टांग टूटी हुई है इसलिए हिलते रहते हैं। पहले एक धर्म रहता जिसको अद्वेत राज्य कहा जाता है। फिर वह एक टांग कम हो 3 टांगे निकलती हैं, जिसमें कुछ भी ताकत नहीं रहती है। आपस में ही लड़ाई-झगड़ा चलता रहता है। धनी को जानते नहीं। निधनके बन पड़े हैं। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। प्रदर्शनी में भी यह बात समझानी है कि गीता का भगवान् श्रीकृष्ण नहीं है, परमपिता परमात्मा है। जिसका बर्थ प्लेस भारत है। श्रीकृष्ण तो है साकार, वह है निराकार। उनकी महिमा बिल्कुल अलग है। ऐसी युक्ति से कार्टून बनाना चाहिए जो सिद्ध हो जाए कि गीता किसने गाई? अंधो के आगे बड़ी आरसी (आइना) रखना है। यह है ही अंधो के आगे आइना। जास्ती टू मच में नहीं जाना है। कड़ी भूल यह है। परमपिता परमात्मा की महिमा अलग है, उसके बदले श्रीकृष्ण को महिमा दे दी है। लक्ष्मी-नारायण के चित्र में नीचे राधे-कृष्ण हैं। वही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। लक्ष्मी-नारायण सतयुग में, राम-सीता त्रेता में। पहला नम्बर बच्चा श्रीकृष्ण है, उनको फिर द्वापर में ले गये हैं। यह सब है भक्तिमार्ग की नूंध। विलायत वाले इन बातों से क्या जानें। ड्रामा अनुसार यह ज्ञान किसके पास भी है नहीं। कहते भी हैं ज्ञान दिन, भक्ति रात। ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात। सतयुग स्थापन करने वाला कौन है? ब्रह्मा आया कहाँ से? सूक्ष्मवतन में कहाँ से आया? परमपिता परमात्मा ही सूक्ष्म सृष्टि रचते हैं। वहाँ ब्रह्मा दिखाते हैं। परन्तु वहाँ तो प्रजापिता ब्रह्मा होता नहीं। जरूर प्रजापिता ब्रह्मा और है। वह कहाँ से आया, यह बातें कोई समझ नहीं सकते। श्रीकृष्ण के अन्तिम जन्म में उनको परमात्मा ने अपना रथ बनाया है, यह किसकी बुद्धि में नही है।
यह बड़ा भारी क्लास है। टीचर तो समझते हैं ना - यह स्टूडेण्ट कैसा है? तो क्या बाप नही समझते होंगे? यह बेहद के बाप का क्लास है। यहाँ की बात ही निराली है। शास्त्रों में तो प्रलय आदि दिखाकर कितना रोला कर दिया है। कितना घमण्ड है। रामायण, गीता आदि कैसे बैठ सुनाते हैं। श्रीकृष्ण ने तो गीता सुनाई नहीं। उसने तो गीता का ज्ञान सुनकर राज्य पद पाया है। सिद्ध कर समझाते हैं, गीता का भगवान् यह है। उनके गुण यह हैं, श्रीकृष्ण के गुण यह हैं। इस भूल के कारण ही भारत कौड़ी जैसा बना है। तुम मातायें उनको कह सकती हो कि तुम लोग कहते हो माता नर्क का द्वार है परन्तु परमात्मा ने तो ज्ञान का कलष माताओं पर रखा है, मातायें ही स्वर्ग का द्वार बनती हैं। तुम निंदा कर रहे हो। परन्तु बोलने वाले बड़े होशियार चाहिए। प्वाइन्ट्स सब नोट कर समझाना चाहिए। भक्ति मार्ग वास्तव में गृहस्थियों के लिए है। यह है प्रवृत्ति मार्ग का सहज राजयोग। हम सिद्ध कर समझाने लिए आये हैं। बच्चों को शो करना है। सदैव हर्षितमुख, अचल, स्थिर, मस्त रहना चाहिए। आगे चल महिमा निकलनी जरूर है। तुम सब हो तो ब्रह्माकुमार कुमारियां। कुमारी वह जो 21 जन्मों लिए बाप से वर्सा दिलाये। कुमारियों की महिमा बहुत भारी है। मुख्य कुमारी तुम्हारी मम्मा है। चन्द्रमा के आगे फिर अच्छा स्टॉर भी चाहिए। यह ज्ञान सूर्य है। यह गुप्त मम्मा अलग है। इस राज़ को तुम बच्चे ही समझकर समझा सकते हो। उस मम्मा का नाम अलग है, मन्दिर उसके हैं। इस गुप्त बुढ़ी माँ का मन्दिर थोड़ेही है। यह मात-पिता कम्बाइन्ड है। दुनिया यह नहीं जानती। श्रीकृष्ण तो हो नहीं सकता। वह फिर भी सतयुग का प्रिन्स है। श्रीकृष्ण में भगवान् आ न सके। समझाना बहुत सहज है। गीता के भगवान् की महिमा अलग है। वह पतित-पावन सारी दुनिया का गाइड, लिबरेटर है। मनुष्य चित्रों से समझ जायेंगे कि बरोबर परमात्मा की महिमा अलग है, सब एक थोड़ेही हो सकते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी अवस्था बड़ी मस्त, अचल अडोल बनानी है। सदा हर्षितमुख रहना है।
2) ज्ञान के शुद्ध घमण्ड (नशे) में रह कर बाप का शो करना है। गीता के भगवान् को सिद्ध कर बाप की सच्ची पहचान देनी है।
वरदान:-स्मृति स्वरूप बन विस्मृति वालों को स्मृति दिलाने वाले सच्चे सेवाधारी भव
अपने स्मृति स्वरूप फीचर्स द्वारा औरों को स्मृति स्वरूप बनाना यही सच्ची सेवा है। आपके फीचर्स औरों को स्मृति दिला दें कि मैं आत्मा हूँ, मस्तक में देखें ही चमकती हुई आत्मा वा मणी को। जैसे सांप की मणी देख करके सांप की तरफ कोई का ध्यान नहीं जाता, ऐसे अविनाशी चमकती हुई मणि को देख देहभान को भूल जाएं, अटेन्शन स्वत: आत्मा की तरफ जाए। विस्मृति वालों को स्मृति आ जाए - तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी।
स्लोगन:-अवगुण धारण करने वाली बुद्धि का नाश कर सतोप्रधान दिव्य बुद्धि धारण करो। कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश। संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/a0Zpq0y-ol0?