02 Feb.2024/ शिव बाबा की मुरली (परमात्मा की वाणी) आज की प्रातः मुरली मधुबन से।
मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है। “मीठे बच्चे - ऊंच पद पाने के लिए बाप तुम्हें जो पढ़ाते हैं उसे ज्यों का त्यों धारण करो, सदा श्रीमत पर चलते रहो''
प्रश्नः-कभी भी अफसोस न हो, उसके लिए किस बात पर अच्छी तरह विचार करो?
उत्तर:-हर एक आत्मा जो पार्ट बजा रही है, वह ड्रामा में एक्यूरेट नूँधा हुआ है। यह अनादि और अविनाशी ड्रामा है। इस बात पर विचार करो तो कभी भी अफसोस नहीं हो सकता। अफसोस उन्हें होता जो ड्रामा के आदि मध्य अन्त को रियलाइज नहीं करते हैं। तुम बच्चों को इस ड्रामा को ज्यों का त्यों साक्षी होकर देखना है, इसमें रोने रूसने की कोई बात नहीं।
ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं कि आत्मा कितनी छोटी है। बहुत छोटी है और छोटी सी आत्मा से शरीर कितना बड़ा देखने में आता है। छोटी आत्मा अलग हो जाती है तो फिर कुछ भी नहीं देख सकती। आत्मा के ऊपर विचार किया जाता है। इतनी छोटी बिन्दी क्या-क्या काम करती है। मैग्नीफाय ग्लास होते हैं, उनसे छोटे-छोटे हीरों को देखा जाता है। कोई दाग आदि तो नहीं है। तो आत्मा भी कितनी छोटी है। कैसे मैग्नीफाय ग्लास है - जिससे देखते हो। रहती कहाँ है? क्या कनेक्शन है? इन आंखों से कितना बड़ा धरती आसमान देखने में आता है! बिन्दी निकल जाने से कुछ नहीं रहता। जैसे बिन्दी बाप वैसे बिन्दी आत्मा। इतनी छोटी आत्मा प्युअर इमप्युअर बनती है। यह बहुत विचार करने की बातें हैं। दूसरा कोई नहीं जानते - आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है। इतनी छोटी आत्मा शरीर में रह क्या-क्या बनाती है। क्या-क्या देखती है। उस आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है - 84 का। कैसे वह काम करती है, वन्डर है। इतनी छोटी सी बिन्दी में 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है। एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। शरीर से आत्मा निकल गई तो शरीर मर गया। कितना बड़ा शरीर है और कितनी छोटी आत्मा है। यह भी बाबा ने बहुत बार समझाया है कि मनुष्यों को कैसे पता पड़े कि यह सृष्टि का चक्र हर 5 हजार वर्ष बाद फिरता है। फलाना मरा यह कोई नई बात नहीं। उनकी आत्मा ने यह शरीर छोड़ दूसरा लिया। 5 हजार वर्ष पहले भी इस नाम रूप को इसी समय छोड़ा था। आत्मा जानती है हम एक शरीर छोड़ दूसरे में प्रवेश करती हूँ।
अभी तुम शिवजयन्ती मनाते हो। दिखाते हो 5 हजार वर्ष पहले भी शिवजयन्ती मनाई थी। हर 5 हजार वर्ष बाद शिवजयन्ती जो हीरे तुल्य है, मनाते ही आते हैं। यह सही बातें हैं। विचार सागर मंथन करना होता है जो औरों को समझा सकें। यह त्योहार होते हैं, तुम कहेंगे नई बात नहीं, हिस्ट्री रिपीट होती है जो फिर 5 हजार वर्ष बाद जो भी पार्टधारी हैं वह अपना शरीर लेते हैं। एक नाम रूप देश काल छोड़ दूसरा लेते हैं। इस पर विचार सागर मंथन कर ऐसा लिखें जो मनुष्य वन्डर खायें। बच्चों से हम पूछते हैं ना - आगे कब मिले हो? इतनी छोटी आत्मा से ही पूछना होता है ना। तुम इस नाम रूप में आगे कब मिले थे? आत्मा ने सुना। तो बहुत कहते हैं हाँ बाबा, आपसे कल्प पहले मिले थे। सारा ड्रामा का पार्ट बुद्धि में है। वह होते हैं हद के ड्रामा के एक्टर्स। यह है बेहद का ड्रामा। यह ड्रामा बड़ा एक्यूरेट है, इसमें जरा भी फ़र्क नहीं पड़ सकता। वह बाइसकोप होते हैं हद के, मशीन पर चलते हैं। दो चार रोल भी हो सकते हैं, जो फिरते हैं। यह तो अनादि अविनाशी एक ही बेहद का ड्रामा है। इसमें कितनी छोटी आत्मा एक पार्ट बजाए फिर दूसरा बजाती है। 84 जन्मों का कितना बड़ा फिल्म रोल होगा। यह कुदरत है। कोई की बुद्धि में बैठेगा! है तो रिकार्ड मिसल, बड़ा वन्डरफुल है। 84 लाख तो हो न सके। 84 का ही चक्र है, इनकी पहचान कैसे दी जाए। अखबार वालों को भी समझाओ तो डालेंगे। मैंगजीन में भी घड़ी-घड़ी डाल सकते हैं। हम इस संगम के समय की ही बातें करते हैं। सतयुग में तो यह बातें होंगी नहीं। न कलियुग में होंगी। जानवर आदि जो भी कुछ हैं, सबके लिए कहेंगे फिर 5 हजार वर्ष के बाद देखेंगे। फर्क नहीं पड़ सकता। ड्रामा में सारी नूँध है। सतयुग में जानवर भी बहुत खूबसूरत होंगे। यह सारी वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होगी। जैसे ड्रामा की शूटिंग होती है। मक्खी उड़ी वह भी निकल गई तो फिर रिपीट होगी। अब हम इन छोटी-छोटी बातों का ख्याल तो नहीं करेंगे। पहले तो बाप खुद कहते हैं हम कल्प-कल्प संगमयुगे इस भाग्यशाली रथ पर आता हूँ। आत्मा ने कहा कैसे इसमें आते हैं, इतनी छोटी बिन्दी है। उनको फिर ज्ञान का सागर कहते हैं। यह बातें तुम बच्चों में भी जो समझू हैं, वह समझ सकते हैं। हर 5हजार वर्ष के बाद मैं आता हूँ। कितनी यह वैल्युबुल पढ़ाई है। बाप के पास ही एक्यूरेट नॉलेज है जो बच्चों को देते हैं। तुम्हारे से कोई पूछे तुम झट कहेंगे सतयुग की आयु 1250 वर्ष की है। एक-एक जन्म की आयु 150 वर्ष होती है। कितना पार्ट बजता है। बुद्धि में सारा चक्र फिरता है। हम 84 जन्म लेते हैं। सारी सृष्टि ऐसे चक्र में फिरती रहती है। यह अनादि अविनाशी बना बनाया ड्रामा है। इसमें नई एडीशन हो नहीं सकती। गायन भी है चिंता ताकी कीजिए जो अनहोनी होए। जो कुछ होता है ड्रामा में नूँध है। साक्षी होकर देखना पड़ता है। उस नाटक में कोई ऐसा पार्ट होता है तो जो कमजोर दिल वाले होते हैं वो रोने लग पड़ते हैं। है तो नाटक ना। यह रीयल है, इसमें हर आत्मा अपना पार्ट बजाती है। ड्रामा कभी बन्द नहीं होता है। इसमें रोने रूसने की कोई बात नहीं। कोई भी नई बात थोड़ेही है। अफसोस उनको होता है जो ड्रामा के आदि मध्य अन्त को रियलाइज नहीं करते। यह भी तुम जानते हो। इस समय जो हम इस ज्ञान से पद पाते हैं, चक्र लगाकर फिर वही बनेंगे। यह बड़ी आश्चर्यवत विचार सागर मंथन करने की बातें हैं। कोई भी मनुष्य इन बातों को नहीं जानते। ऋषि मुनि भी कहते थे - हम रचता और रचना को नहीं जानते हैं। उनको क्या पता कि रचता इतनी छोटी बिन्दी है। वही नई सृष्टि का रचता है। तुम बच्चों को पढ़ाते हैं, ज्ञान का सागर है। यह बातें तुम बच्चे ही समझाते हो। तुम थोड़ेही कहेंगे हम नहीं जानते हैं। तुमको बाप इस समय सब समझाते हैं।
तुमको कोई भी बात में अफसोस करने की जरूरत नहीं। सदैव हर्षित रहना है। उस ड्रामा की फिल्म चलते चलते घिस जायेगी, पुरानी हो जायेगी फिर बदली करेंगे। पुरानी को खलास कर देते हैं। यह तो बेहद का अविनाशी ड्रामा है। ऐसी-ऐसी बातों पर विचार कर पक्का कर लेना चाहिए। यह ड्रामा है। हम बाप की श्रीमत पर चल पतित से पावन बन रहे हैं और कोई बात हो नहीं सकती, जिससे हम पतित से पावन बन जायें अथवा तमोप्रधान से सतोप्रधान बनें। पार्ट बजाते-बजाते हम सतोप्रधान से तमोप्रधान बने हैं फिर सतोप्रधान बनना है। न आत्मा विनाश को पा सकती, न पार्ट विनाश को पा सकता। ऐसी-ऐसी बातों पर कोई का विचार नहीं चलता। मनुष्य तो सुनकर वन्डर खायेंगे। वह तो सिर्फ भक्ति मार्ग के शास्त्र ही पढ़ते हैं। रामायण, भागवत, गीता आदि वही हैं। इसमें तो विचार सागर मंथन करना होता है। बेहद का बाप जो समझाते हैं उसको ज्यों का त्यों हम धारण कर लें तो अच्छा ही पद पा लें। सब एक जैसी धारणा नहीं कर सकते हैं। कोई तो बहुत महीनता से समझाते हैं। आजकल जेल में भी भाषण करने जाते हैं। वेश्याओं के पास भी जाते हैं, गूँगे बहरों के पास भी बच्चे जाते होंगे क्योंकि उन्हों का भी हक है। इशारे से समझ सकते हैं। आत्मा समझने वाली तो अन्दर है ना। चित्र सामने रख दो, पढ़ तो सकेंगे ना। बुद्धि तो आत्मा में है ना। भल अन्धे लूले लंगड़े हैं परन्तु कोई न कोई प्रकार से समझ सकते हैं। अन्धों के कान तो हैं। तुम्हारा सीढ़ी का चित्र तो बहुत अच्छा है। यह नॉलेज कोई को भी समझाकर स्वर्ग में जाने लायक बना सकते हो। आत्मा बाप से वर्सा ले सकती है। स्वर्ग में जा सकती है। करके आरगन्स डिफेक्टेड हैं। वहाँ तो लूले लंगड़े होते नहीं। वहाँ आत्मा और शरीर दोनों कंचन मिल जाते हैं। प्रकृति भी कंचन है, नई चीज़ जरूर सतोप्रधान होती है। यह भी ड्रामा बना हुआ है। एक सेकेण्ड न मिले दूसरे से। कुछ न कुछ फर्क पड़ता है। ऐसे ड्रामा को ज्यों का त्यों साक्षी होकर देखना है। यह नॉलेज तुमको अब मिलती है फिर कभी नहीं मिलनी है। आगे यह नॉलेज थोड़ेही थी, यह अनादि अविनाशी बना बनाया ड्रामा कहा जाता है। इसको अच्छी रीति समझ और धारण कर किसी को समझाना है।
तुम ब्राह्मण ही इस ज्ञान को जानते हो। यह तो चोबचीनी (ताकत की दवा) तुमको मिलती है। अच्छे ते अच्छी चीज़ की महिमा की जाती है। नई दुनिया कैसे स्थापन होती है फिर से यह राज्य कैसे होगा तुम्हारे में भी नम्बरवार जानते हैं। जो जानते हैं वह दूसरों को समझा भी सकते हैं। बहुत खुशी रहती है। किन्हों को तो पाई की भी खुशी नहीं है। सबका अपना-अपना पार्ट है। जिनको बुद्धि में बैठता होगा, विचार सागर मंथन करते होंगे तो दूसरों को भी समझायेंगे। तुम्हारी यह है पढ़ाई जिससे तुम यह बनते हो। तुम कोई को भी समझाओ कि तुम आत्मा हो। आत्मा ही परमात्मा को याद करती है। आत्मायें सब ब्रदर्स हैं। कहावत है गाड इज वन। बाकी सब मनुष्यों में आत्मा है। सब आत्माओं का पारलौकिक बाप एक है। जो पक्के निश्चयबुद्धि होंगे उनको कोई फिरा नहीं सकते। कच्चे को जल्दी फिरा देंगे। सर्वव्यापी के ज्ञान पर कितनी डिबेट करते हैं। वह भी अपने ज्ञान पर पक्के हैं, हो सकता है हमारे इस ज्ञान का न हो। उनको देवता धर्म का कैसे कह सकते। आदि सनातन देवी-देवता धर्म तो प्राय:लोप है। तुम बच्चों को मालूम है, हमारा ही आदि सनातन धर्म पवित्र प्रवृत्ति वाला था। अब तो अपवित्र हो गया है। जो पहले पूज्य थे वही पुजारी बन पड़े हैं। बहुत प्वाइंट्स कण्ठ होंगी तो समझाते रहेंगे। बाप तुमको समझाते हैं तुम फिर औरों को समझाओ कि यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है। सिवाए तुम्हारे और कोई नहीं जानते। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं।
बाबा को भी घड़ी-घड़ी प्वाइंट्स रिपीट करनी पड़ती हैं क्योंकि नये-नये आते हैं। शुरू में कैसे स्थापना हुई, तुम्हारे से पूछेंगे फिर तुमको भी रिपीट करना पड़ेगा। तुम बहुत बिजी रहेंगे। चित्रों पर भी तुम समझा सकते हो। परन्तु ज्ञान की धारणा सबको एकरस तो नहीं हो सकती है। इसमें ज्ञान चाहिए, याद चाहिए, धारणा बड़ी अच्छी चाहिए। सतोप्रधान बनने के लिए बाप को याद जरूर करना है। कई बच्चे तो अपने धन्धे में फँसे रहते हैं। कुछ भी पुरूषार्थ ही नहीं करते। यह भी ड्रामा में नूँध है। कल्प पहले जिन्होंने जितना पुरूषार्थ किया है उतना ही करेंगे। पिछाड़ी में तुमको एकदम भाई-भाई होकर रहना है। नंगे आये हैं, नंगे जाना है। ऐसा न हो पिछाड़ी में कोई याद आ जाये। अभी तो कोई वापिस जा न सके। जब तक विनाश न हो, स्वर्ग में कैसे जा सकेंगे। जरूर या तो सूक्ष्मवतन में जायेंगे या यहाँ ही जन्म लेंगे। बाकी जो कमी रही होगी उसका पुरूषार्थ करेंगे। वह भी बड़े हों तब समझ सकें। यह भी ड्रामा में सारी नूँध है। तुम्हारी एकरस अवस्था तो पिछाड़ी में ही होगी। ऐसे नहीं लिखने से सब याद हो सकता है। फिर लाइब्रेरीज़ आदि में इतनी किताबें क्यों होती हैं। डॉक्टर, वकील लोग बहुत किताबें रखते हैं। स्टडी करते रहते हैं, वह मनुष्य, मनुष्य के वकील बनते हैं। तुम आत्मायें, आत्माओं के वकील बनती हो। आत्मायें, आत्माओं को पढ़ाती हैं। वह है जिस्मानी पढ़ाई। यह है रूहानी पढ़ाई। इस रूहानी पढ़ाई से फिर 21 जन्म कभी भूलचूक नहीं होगी। माया के राज्य में बहुत भूलचूक होती रहती है, जिस कारण से सहन करना पड़ता है। जो पूरा नहीं पढ़ेंगे, कर्मातीत अवस्था को नहीं पायेंगे तो सहन करना ही पड़ेगा। फिर पद भी कम हो जायेगा। विचार सागर मंथन कर औरों को सुनाते रहेंगे तब चिन्तन चलेगा। बच्चे जानते हैं कल्प पहले भी ऐसे बाप आया था, जिसकी शिवजयन्ती मनाई जाती है। लड़ाई आदि की तो कोई बात नहीं। वह सब हैं शास्त्रों की बातें। यह पढ़ाई है। आमदनी में खुशी होती है। जिनको लाख होते हैं, उनको जास्ती खुशी होती है। कोई लखपति भी होते हैं, कोई कखपति भी होते हैं अर्थात् थोड़े पैसे वाले भी होते हैं। तो जिसके पास जितने ज्ञान रत्न होंगे उतनी खुशी भी होगी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विचार सागर मंथन कर स्वयं को ज्ञान रत्नों से भरपूर करना है। ड्रामा के राज़ को अच्छी रीति समझकर दूसरों को समझाना है। किसी भी बात में अफसोस न कर सदा हर्षित रहना है।
2) अपनी अवस्था बहुतकाल से एकरस बनानी है ताकि पिछाड़ी में एक बाप के सिवाए दूसरा कोई भी याद न आये। अभ्यास करना है हम भाई भाई हैं, अभी वापस जाते हैं।
वरदान:-अलबेलेपन की लहर को विदाई दे सदा उमंग-उत्साह में रहने वाली समझदार आत्मा भव
कई बच्चे दूसरों को देखकर स्वयं अलबेले हो जाते हैं। सोचते हैं ये तो होता ही है....चलता ही है... क्या एक ने ठोकर खाई तो उसे देखकर अलबेलेपन में आकर खुद भी ठोकर खाना - यह समझदारी है? बापदादा को रहम आता है कि ऐसे अलबेले रहने वालों के लिए पश्चाताप की घड़ियाँ कितनी कठिन होंगी, इसलिए समझदार बन अलबेलेपन की लहर को, दूसरों को देखने की लहर को मन से विदाई दो। औरों को नहीं देखो, बाप को देखो।
स्लोगन:-वारिस क्वालिटी तैयार करो तब प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा। कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश। संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/WijzhwvrQC0?