07 Feb.2024/ शिव बाबा की मुरली (परमात्मा की वाणी) आज की प्रातः मुरली मधुबन से।
मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है। “मीठे बच्चे - आत्म-अभिमान विश्व का मालिक बनाता है, देह-अभिमान कंगाल बना देता है, इसलिए आत्म-अभिमानी भव''
प्रश्नः-कौन-सा अभ्यास अशरीरी बनने में बहुत मदद करता है?
उत्तर:-अपने को सदा एक्टर समझो, जैसे एक्टर पार्ट पूरा होते ही वस्त्र उतार देते हैं, ऐसे तुम बच्चों को भी यह अभ्यास करना है, कर्म पूरा होते ही पुराना वस्त्र (शरीर) छोड़ अशरीरी हो जाओ। आत्मा भाई-भाई है, यह अभ्यास करते रहो। यही पावन बनने का सहज साधन है। शरीर को देखने से क्रिमिनल ख्यालात चलते हैं इसलिए अशरीरी भव।
ओम् शान्ति। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं क्योंकि बहुत बेसमझ बन गये हैं। 5 हजार वर्ष पहले भी तुमको समझाया था और दैवी कर्म भी सिखलाये थे। तुम देवी-देवता धर्म में आये थे फिर ड्रामा प्लैन अनुसार पुनर्जन्म लेते-लेते और कलायें कमती होते-होते यहाँ प्रैक्टिकली बिल्कुल ही निल कला हो गई है, क्योंकि यह है ही तमोप्रधान रावण राज्य। यह रावण राज्य भी पहले सतोप्रधान था। फिर सतो, रजो, तमो बना है। अब तो बिल्कुल ही तमोप्रधान है। अब इसका अन्त है। रावण राज्य को कहा जाता है आसुरी राज्य। रावण को जलाने का फैशन भारत में है। राम राज्य और रावण राज्य भी भारतवासी कहते हैं। राम राज्य होता ही है सतयुग में। रावण राज्य है कलियुग में। यह बड़ी समझने की बातें हैं। बाबा को वन्डर लगता है अच्छे-अच्छे बच्चे पूरी रीति न समझने के कारण अपनी तकदीर को लकीर लगा देते हैं। रावण के अवगुण चटक पड़ते हैं। दैवी गुणों का खुद भी वर्णन करते हैं। बाप ने समझाया है तुम वो ही देवतायें थे। तुमने ही 84 जन्म भोगे हैं। तुमको फ़र्क बताया है - तुम क्यों तमोप्रधान बने हो। यह है रावण राज्य। रावण है सबसे बड़ा दुश्मन, जिसने ही भारत को इतना कंगाल तमोप्रधान बनाया है। राम राज्य में इतने आदमी नहीं होते हैं। वहाँ तो एक धर्म होता है। यहाँ तो सबमें भूतों की प्रवेशता है। क्रोध, लोभ, मोह का भूत है ना। हम अविनाशी हैं, यह शरीर विनाशी है - यह भूल जाते हैं। आत्म-अभिमानी बनते ही नहीं हैं। देह-अभिमानी बहुत हैं। देह-अभिमान और आत्म-अभिमान में रात-दिन का फ़र्क है। आत्म-अभिमानी देवी-देवता सारे विश्व के मालिक बन जाते हैं। देह-अभिमान होने से कंगाल बन पड़ते हैं। भारत सोने की चिड़िया था, भल कहते भी हैं परन्तु समझते नहीं हैं। शिवबाबा आते हैं दैवी बुद्धि बनाने। बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ, यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे। कब सुना कि इन्हों को राजाई किसने दी? उन्होंने कौन-सा ऐसा कर्म किया जो इतना ऊंच पद पाया? कर्मों की बात है ना। मनुष्य आसुरी कर्म करते हैं तो वह कर्म विकर्म बन जाता है। सतयुग में कर्म अकर्म होते हैं। वहाँ कर्मों का खाता होता नहीं। बाप समझाते हैं न समझने कारण बहुत विघ्न डालते हैं। कह देते हैं शिव-शंकर एक हैं। अरे, शिव निराकार अकेला दिखाते हैं, शंकर-पार्वती दिखाते हैं, दोनों की एक्टिविटी बिल्कुल ही अलग। मिनिस्टर और प्रेजीडेन्ट को एक कैसे कहेंगे। दोनों का मर्तबा बिल्कुल अलग है, तो शिव-शंकर को एक कैसे कह देते हैं। यह जानते हैं जिनको राम सम्प्रदाय में आना नहीं है वे समझेंगे भी नहीं। आसुरी सम्प्रदाय गालियां देंगे, विघ्न डालेंगे क्योंकि उनमें 5 विकार हैं ना। देवतायें हैं सम्पूर्ण निर्विकारी। उन्हों का कितना ऊंच पद है। अब तुम समझते हो हम कितने विकारी थे। विकार से पैदा होते हैं। संन्यासियों को भी विकार से पैदा होना है, फिर संन्यास करते हैं। सतयुग में यह बातें नहीं होती। संन्यासी सतयुग को समझते भी नहीं। कह देते हैं सतयुग है ही है। जैसे कहते हैं श्रीकृष्ण हाज़िरा हज़ूर है, राधे भी हाज़िरा हज़ूर है। अनेक मत-मतान्तर, अनेक धर्म हैं। आधाकल्प दैवी मत चलती है जो अब तुमको मिल रही है। तुम ही ब्रह्मा मुख वंशावली फिर विष्णु वंशी और चन्द्रवंशी बनते हो। वह दोनों डिनायस्टी और एक ब्राह्मण कुल कहेंगे, इनको डिनायस्टी नहीं कहेंगे। इनकी राजाई होती नहीं। यह भी तुम ही समझते हो। तुम्हारे में भी कोई-कोई समझते हैं। कोई तो सुधरते ही नहीं, कोई न कोई भूत है। लोभ का भूत, क्रोध का भूत है ना। सतयुग में कोई भूत नहीं। सतयुग में होते हैं देवतायें, जो बहुत सुखी होते हैं। भूत ही दु:ख देते हैं, काम का भूत आदि-मध्य-अन्त दु:ख देता है। इसमें बहुत मेहनत करनी है। मासी का घर नहीं है। बाप कहते रहते हैं भाई-बहन समझो तो क्रिमिनल दृष्टि न जाये। हर बात में हिम्मत चाहिए। कोई कह देते हैं शादी नहीं करोगे तो निकलो घर से बाहर। तो हिम्मत चाहिए। अपनी जांच भी की जाती है।
तुम बच्चे बहुत पद्मापद्म भाग्यशाली बन रहे हो। यह सब-कुछ खत्म हो जायेगा। सब-कुछ मिट्टी में मिल जाना है। कोई तो अच्छी हिम्मत रख चल पड़ते हैं। कोई तो हिम्मत रख फिर फेल हो जाते हैं। बाप हर बात में समझाते रहते हैं। परन्तु नहीं करते तो समझा जाता है पूरा योग नहीं है। भारत का प्राचीन राजयोग तो मशहूर है। इस योग से ही तुम विश्व के मालिक बनते हो। पढ़ाई है सोर्स ऑफ इनकम। पढ़ाई से ही नम्बरवार तुम ऊंच पद पाते हो। भाई-बहन के सम्बन्ध में भी बुद्धि चलायमान होती है इसलिए बाप इससे भी ऊंच ले जाते हैं कि अपने को आत्मा समझो, दूसरे को भी आत्मा भाई-भाई समझो। हम सब भाई-भाई हैं तो दूसरी दृष्टि जायेगी नहीं। शरीर को देखने से क्रिमिनल ख्यालात आते हैं। बाप कहते हैं - बच्चे, अशरीरी भव, देही-अभिमानी भव। अपने को आत्मा समझो। आत्मा अविनाशी है। शरीर से पार्ट बजाया, फिर शरीर से अलग हो जाना चाहिए। वह एक्टर्स पार्ट पूरा कर कपड़ा बदली कर देते हैं। तुमको भी अब पुराना कपड़ा (शरीर) उतार नया कपड़ा पहनना है। इस समय आत्मा भी तमोप्रधान, शरीर भी तमोप्रधान है। तमोप्रधान आत्मा मुक्ति में जा नहीं सकती। पवित्र हो तब जाये। अपवित्र आत्मा वापिस नहीं जा सकती। यह झूठ बोलते हैं कि फलाना ब्रह्म में लीन हुआ। एक भी जा नहीं सकते। वहाँ जैसे सिजरा बना हुआ है, वैसे ही रहता है। यह तुम ब्राह्मण बच्चे जानते हो। गीता में ब्राह्मणों का नाम कुछ भी दिखाया नहीं है। यह तो समझाते हैं प्रजापिता ब्रह्मा के तन में प्रवेश करता हूँ तो जरूर एडाप्शन चाहिए। वह ब्राह्मण हैं विकारी, तुम हो निर्विकारी। निर्विकारी बनने में बहुत सितम सहन करने पड़ते हैं। यह नाम रूप देखने से बहुतों को विकल्प आते हैं। भाई-बहन के सम्बन्ध में भी गिर पड़ते हैं। लिखते हैं बाबा हम गिर पड़े, काला मुँह कर लिया। बाप कहते हैं - वाह! हमने कहा भाई-बहन होकर रहो, तुमने फिर यह खराब काम किया। उसकी फिर बड़ी कड़ी सज़ा मिल जाती है। वैसे कोई किसको खराब करते हैं तो उनको जेल में डाला जाता है। भारत कितना पवित्र था जो मैंने स्थापन किया। उनका नाम ही है शिवालय। यह ज्ञान भी कोई में नहीं है। बाकी शास्त्र आदि जो हैं वह सब भक्ति मार्ग के कर्मकाण्ड हैं। सतयुग में सब सद्गति में हैं, इसलिए वहाँ कोई पुरूषार्थ नहीं करते। यहाँ सब गति-सद्गति के लिए पुरूषार्थ करते हैं क्योंकि दुर्गति में हैं। गंगा स्नान करने जाते हैं तो गंगा का पानी सद्गति देगा क्या? वह पावन बनायेगा क्या? कुछ भी जानते नहीं। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। कोई तो खुद नहीं समझते तो दूसरों को क्या समझायेंगे, इसलिए बाबा भेजता नहीं। गाते रहते हैं - बाबा आप आयेंगे तो आपकी श्रीमत पर चलकर देवता बनेंगे। देवतायें रहते हैं सतयुग और त्रेता में। यहाँ तो सबसे जास्ती काम विकार में फँसे हुए हैं। काम विकार बिगर रह नहीं सकते। यह विकार है जैसे माई-बाप का वर्सा। यहाँ तुमको मिलता है राम का वर्सा। पवित्रता का वर्सा मिलता है। वहाँ विकार की बात नहीं होती।
भक्त लोग कहते हैं श्रीकृष्ण भगवान् है। तुम उनको 84 जन्मों में दिखाते हो। अरे, भगवान् तो निराकार है। उनका नाम शिव है। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। तरस भी पड़ता है। रहमदिल है ना। यह कितना अच्छे समझदार बच्चे हैं। भभका भी अच्छा है। जिसमें ज्ञान और योग की त़ाकत है तो वह कशिश करते हैं। पढ़े-लिखे को सत्कार अच्छा मिलता है। अनपढ़े को सत्कार नहीं मिलता है। यह तो जानते हो इस समय सब आसुरी सम्प्रदाय हैं। कुछ भी समझते नहीं हैं। शिव और शंकर का अन्तर तो बिल्कुल क्लीयर हैं। वह है मूलवतन में, वह सूक्ष्मवतन में, सब एक जैसे कैसे होंगे? यह तो तमोप्रधान दुनिया है। रावण दुश्मन है आसुरी सम्प्रदाय का, जो आप समान बना देता है। अब बाप तुमको आप समान दैवी सम्प्रदाय बनाते हैं। वहाँ रावण होता नहीं। आधाकल्प उनको जलाते हैं। राम राज्य होता है सतयुग में। गांधी जी राम राज्य चाहते थे लेकिन वह राम राज्य कैसे स्थापन कर सकते? वह कोई आत्म-अभिमानी बनने की शिक्षा नहीं देते थे। बाप ही संगम पर कहते हैं आत्म-अभिमानी बनो। यह है उत्तम बनने का युग। बाप कितना प्यार से समझाते रहते हैं। घड़ी-घड़ी कितना प्यार से बाप को याद करना चाहिए - बाबा आपकी तो कमाल है। हम कितने पत्थर बुद्धि थे, आप हमको कितना ऊंच बनाते हैं! आपकी मत बिगर हम और किसकी मत पर नहीं चलेंगे। पिछाड़ी को सब कहेंगे बरोबर ब्रह्माकुमार-कुमारियां तो दैवी मत पर चल रहे हैं। कितनी अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं। आदि-मध्य-अन्त का परिचय देते हैं। कैरेक्टर सुधारते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दृष्टि को शुद्ध पवित्र बनाने के लिए किसी के भी नाम रूप को न देख अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। स्वयं को आत्मा समझ, आत्मा भाई से बात करनी है।
2) सर्व का सत्कार प्राप्त करने के लिए ज्ञान-योग की ताकत धारण करनी है। दैवीगुणों से सम्पन्न बनना है। कैरेक्टर सुधारने की सेवा करनी है।
वरदान:- बीमारी कान्सेस के बजाए खुशी-खुशी से हिसाब-किताब चुक्तू करने वाले सोलकान्सेस भव
तन तो सबके पुराने हैं ही। हर एक को कोई न कोई छोटी बड़ी बीमारी है। लेकिन तन का प्रभाव अगर मन पर आ गया तो डबल बीमार हो बीमारी कान्सेस हो जायेंगे इसलिए मन में कभी भी बीमारी का संकल्प नहीं आना चाहिए, तब कहेंगे सोल कान्सेस। बीमारी से कभी घबराओ नहीं। थोड़ा सा दवाई रूपी फ्रूट खाकर उसे विदाई दे दो। खुशी-खुशी से हिसाब-किताब चुक्तू करो।
स्लोगन:-हर गुण, हर शक्ति का अनुभव करना अर्थात् अनुभवी मूर्त बनना। कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश। संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/LnvvpSHnVBw?