18march 2024/ शिव बाबा की मुरली (परमात्मा की वाणी) आज की प्रातः मुरली मधुबन से।
मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है। “मीठे बच्चे - विचार सागर मंथन कर एक ऐसी टॉपिक निकालो जो सब जगह एक ही टॉपिक पर भाषण चले, यही है तुम्हारी युनिटी''
प्रश्नः-कौन-सी मेहनत करते-करते तुम बच्चे पास विद् ऑनर हो सकते हो?
उत्तर:-कर्म-बन्धन से अतीत बनो। जब किसी से बात करते हो तो आत्मा भाई समझ भाई को देखो। बाप से सुनते हो तो भी बाप को भृकुटी में देखो। भाई-भाई की दृष्टि से वह स्नेह और सम्बन्ध पक्का हो जायेगा। यही मेहनत का काम है, इससे ही पास विद् आनर बनेंगे। ऊंच पद पाने वाले बच्चे यह पुरूषार्थ अवश्य करेंगे।
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे बच्चों को समझाया गया है - यह है मृत्युलोक, उसकी भेंट में अमरलोक भी है। भक्ति मार्ग में दिखाते हैं शंकर ने पार्वती को अमरकथा सुनाई। अब अमरलोक में तो तुम जाते हो। शंकर तो कथा सुनाते नहीं। कथा सुनाने वाला ज्ञान सागर एक ही बाप है। शंकर कोई ज्ञान सागर नहीं, जो कथा सुनायेंगे। ऐसी-ऐसी बातों पर तुम बच्चों को समझाना है। काल पर जीत कैसे पाई जाती है, यह जो नॉलेज है वह अमर बनाती है, इससे आयु बड़ी होती है, वहाँ काल होता नहीं। यहाँ तुम 5 विकारों अथवा रावण पर जीत पाने से राम राज्य अथवा अमरलोक के मालिक बनते हो। मृत्युलोक में है रावण राज्य, अमरलोक में है राम राज्य। देवताओं को कभी काल नहीं खाता। वहाँ काल के जमघट होते नहीं। तो यह टॉपिक भी बहुत अच्छी है - मनुष्य काल पर विजय कैसे चक्र सकते हैं। यह सारी ज्ञान की बातें हैं। भारत अमरलोक था, कितनी बड़ी आयु थी। सर्प का मिसाल भी सतयुग के लिए है। एक खाल छोड़ दूसरी लेते हैं, इसको कहा जाता है बेहद का वैराग्य। जानते हैं सारी दुनिया का विनाश होने वाला है। यह पुराना शरीर भी छोड़ना है। यह 84 जन्मों की पुरानी खाल है। अमरलोक में ऐसे नहीं होता। वहाँ फिर समझते हैं अब शरीर बड़ा, जड़जड़ीभूत हो गया है, इसे छोड़ नया शरीर लेंगे। फिर साक्षात्कार भी होता है, समझ को ही साक्षात्कार कहा जाता है। हमारी अब नई खाल तैयार हुई है। पुरानी को अब छोड़ना है। वहाँ भी ऐसे ही होता है। उनको कहा ही जाता है अमरलोक, जहाँ काल आता नहीं। आपेही समय पर शरीर छोड़ देते हैं। कछुए का मिसाल भी यहाँ का है। काम करके फिर अन्तर्मुखी हो जाता है। इस समय के मिसाल फिर भक्ति मार्ग में कॉपी करते हैं, परन्तु सिर्फ कहने मात्र। समझते कुछ भी नहीं। अभी तुम तो समझते हो राखी उत्सव, दशहरा, दीपमाला, होली आदि सब इस समय के हैं। जो भक्ति मार्ग में चले हैं। तो यह बातें सतयुग में होती नहीं। यह ऐसी-ऐसी टॉपिक लिखो। मनुष्य काल पर जीत कैसे पहन सकते हैं? मृत्युलोक से अमरलोक में कैसे जा सकते हैं? ऐसी बातों पर समझाने के लिए पहले लिखना पड़ता है। जैसे नाटक की स्टोरी लिखते हैं - आज फलाना नाटक है। तुम्हारी भी प्वाइंट्स की लिस्ट हो, आज इस टॉपिक पर समझाया जायेगा। रावण राज्य से दैवी राज्य में कैसे जा सकते हैं? समझानी तो भल एक ही है। परन्तु भिन्न-भिन्न टापिक सुनने से खुशी होगी कि बेहद के बाप से बेहद का वर्सा कैसे मिलता है। जैसे संन्यासियों का अखबार में पड़ता है - आज 125वां यज्ञ रचा है, उसमें यह-यह सुनायेंगे। यहाँ तो बाप कहते हैं - मैं एक ही बार यज्ञ रचता हूँ, जिसमें सारी पुरानी दुनिया स्वाहा हो जाती है। वह तो बहुत यज्ञ रचते हैं। जुलूस आदि करते हैं। यहाँ तो तुम जानते हो - यह रूद्र शिवबाबा का एक ही यज्ञ है, जिसमें सारी पुरानी दुनिया स्वाहा हो जाती है, नई दुनिया की स्थापना हो जाती है और तुम जाकर देवता बन जाते हो। यह भी बाप तुमको समझाते हैं। रचयिता बाप ही आकर अपना और रचना के आदि-मध्य-अन्त का सारा नॉलेज देते हैं और राजयोग भी सिखाते हैं। सतयुग में हैं ही पवित्र देवतायें। वह राजाई भी करते हैं। उसको कहा जाता है आदि सनातन देवी-देवता धर्म। यह भी टॉपिक रख सकते हो कि आदि सनातन सतयुगी देवी-देवता धर्म की स्थापना कैसे हो रही है, विश्व में शान्ति कैसे स्थापन होती है - आकर समझो। परमपिता परमात्मा के सिवाए विश्व में शान्ति स्थापन करने की राय और कोई दे नहीं सकते। राय देने वाले को भी प्राइज़ मिलती है। विश्व में शान्ति स्थापन करने की प्राइज़ कैसे और कौन देते हैं, यह भी टॉपिक है। ऐसे विचार सागर मंथन कर टॉपिक निकालनी चाहिए। ऐसा प्रबन्ध हो जो सब जगह एक ही टॉपिक हो, सबका कनेक्शन रहेगा। ऐसी लिस्ट बनाकर पहले इशारा दे देना चाहिए। फिर समाचार देहली में आना चाहिए। सबको मालूम पड़ जाए कि सब जगह ऐसा भाषण चला, इसको कहा जाता है युनिटी। सारी दुनिया में डिसयुनिटी है। रामराज्य का गायन है - शेर गऊ इकट्ठा जल पीते हैं। त्रेता में ऐसा गायन है, तो सतयुग में क्या नहीं होगा! बाकी शास्त्रों में तो अनेक कथायें लिख दी हैं। तुम तो बाप से एक ही कथा सुनते हो। दुनिया में ढेर कथायें बनाते रहते हैं। द्वापर से लेकर कलियुग तक जो भी शास्त्र आदि चलते हैं, वहाँ तो वह होते नहीं। भक्ति मार्ग की सब बातें पूरी हो जाती हैं। यहाँ तुम जो कुछ भी देखते हो, वह सब है ईविल। उनको देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो। अब जो बाप समझाते हैं वही बुद्धि में रखो।
हम संगमयुगी ब्राह्मण कितने ऊंच हैं! देवताओं से भी ऊंच हैं। इस समय हम ईश्वरीय औलाद हैं। धीरे-धीरे वृद्धि को पाते रहते हैं। इतनी सहज बात भी किसकी बुद्धि में नहीं आती है। हम ईश्वरीय सन्तान हैं तो जरूर स्वर्ग के मालिक होने चाहिए क्योंकि वह बाप स्वर्ग की स्थापना करते हैं। करोड़ों वर्ष कह देने कारण कोई बात याद नहीं रहती है। बाप आकर याद दिलाते हैं, यह तो 5 हजार वर्ष की बात है। तुम देवी-देवता थे। अब फिर तुमको वही बनाते हैं। सम्मुख सुनने से कितनी खुशी और रिफ्रेशमेंट आ जाती है। बच्चे जो सयाने हैं, समझू हैं, उनकी बुद्धि में आता है - हमको बाप से वर्सा तो जरूर लेना है। बाप नई दुनिया रचते हैं तो जरूर हम भी नई दुनिया में होने चाहिए। एक बाप के तो सब बच्चे हैं। सबका धर्म, सबके रहने का स्थान, आना-जाना सब भिन्न-भिन्न प्रकार का है। कैसे जाकर मूलवतन में निवास करते हैं, यह भी बुद्धि में है। मूलवतन में सिजरा है। सूक्ष्मवतन में सिजरा नहीं दिखा सकते। वहाँ जो कुछ दिखाते हैं वह सब हैं साक्षात्कार की बातें। यह सब ड्रामा में नूँध है। फिर सूक्ष्मवतन में भी जाते हैं। वहाँ मूवी चलती है। बीच में मूवी का भी ड्रामा बनाया था। फिर टाकी बना है। साइलेन्स का तो ड्रामा बन न सके। बच्चे जानते हैं हम साइलेन्स में कैसे रहते हैं। जैसे वहाँ आत्माओं का सिजरा है, वैसे यहाँ मनुष्यों का है। तो ऐसी-ऐसी बातें बुद्धि में रख तुम भाषण कर सकते हो। फिर भी पढ़ाई में टाइम लगता है। करके यह भी समझ जाएं परन्तु याद की यात्रा कहाँ, जिससे धारणा और खुशी हो। अभी तुम यथार्थ रीति योग सीख रहे हो। बच्चों को समझाया है - सबको भाई-भाई देखो। आत्मा का तख्त तो यह है इसलिए भागीरथ बाबा का सिंहासन भी मशहूर है। जब किसी को समझाते हो तो भी ऐसे समझो - हम भाईयों को समझाते हैं। यही दृष्टि रहे - इसमें ही भारी मेहनत है। मेहनत से ही ऊंच पद मिलता है। बाप भी ऐसे देखेंगे, बाप की नज़र भी भृकुटी के बीच में जायेगी। आत्मा तो छोटी बिन्दी है। सुनती भी वही है। तुम बाप को भी भृकुटी के बीच में देखेंगे। बाबा भी यहाँ है तो भाई (ब्रह्मा की आत्मा) भी यहाँ है। ऐसे बुद्धि में रहने से तुम भी जैसे ज्ञान सागर के बच्चे ज्ञान सागर बन जाते हो। तुम्हारे लिए तो बहुत सहज है। गृहस्थ व्यवहार में रहने वालों के लिए यह अवस्था जरा मुश्किल है। सुनकर घर चले जाते हैं। वहाँ का वातावरण ही और है। यहाँ सहज है। बाबा युक्ति बहुत सहज बताते हैं - अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो। यह भी भाई है, इस दृष्टि से कर्मबन्धन से अतीत हो जायेंगे। शरीर भी भूल जाता है, सिर्फ बाप ही याद रहता है। इसमें मेहनत करते रहेंगे तब पास विद् ऑनर होंगे। ऐसी अवस्था में बिरला ही कोई रहता है। विश्व का मालिक भी वही बनते हैं। 8 रत्नों की माला है ना। तो पुरूषार्थ करना है। ऊंच पद पाने वाले कैसे भी करके पुरूषार्थ जरूर करते होंगे। इसमें दूसरी कुछ भी बातें निकलती नहीं हैं। भाई-भाई की दृष्टि, स्नेह और सम्बन्ध हो जाता है। दृष्टि वह जम जाती है इसलिए बाप कहते हैं तुमको बहुत गुह्य-गुह्य बातें सुनाता हूँ। इसमें अभ्यास करना मेहनत का काम है। यहाँ भी बैठे हो तो अपने को आत्मा समझो। आत्मा ही सुनती है। सुनने वाली आत्मा को तुम देखते हो। मनुष्य तो कह देते आत्मा निर्लेप है। बाकी क्या शरीर सुनता है? यह तो रांग है। बाप तुमको गुह्य-गुह्य बातें सुनाते हैं। मेहनत तो बच्चों को करनी है। जो कल्प पहले बने थे वह मेहनत जरूर करेंगे। अपना अनुभव भी सुनायेंगे - ऐसे हम सुनता-सुनाता हूँ। टेव (आदत) पड़ गई है। आत्मा को ही सुनाते हैं - मनमनाभव। फिर वह उनको, वह उनको कहते हैं - मनमनाभव अर्थात् बाप को याद करो। यह गुप्त मेहनत है। जैसे पढ़ाई भी एकान्त में झाड़ के नीचे जाकर पढ़ते हैं, वह है स्थूल बात। यह तो प्रैक्टिस करने की बात है। दिन-प्रतिदिन तुम्हारी यह प्रैक्टिस बढ़ती जायेगी। तुम नई-नई बातें सुनते हो ना। जो तुम अभी सुनते हो वह फिर नये-नये आकर सुनेंगे। कोई कहते हैं हम देरी से आये हैं। अरे, तुम तो और ही फर्स्टक्लास गुह्य-गुह्य बातें सुनते हो, जो पुरूषार्थ करने से ही ऊंच पद मिलता है। और ही अच्छा। माया तो पिछाड़ी तक छोड़ती नहीं है। माया की लड़ाई चलती रहेगी। जब तक तुम जीत पहनो। फिर अनायास ही तुम चले जायेंगे। जो जितना याद करेंगे, समझेंगे हम जाते हैं बाप के पास, शरीर छोड़ देते हैं। बाबा ने देखा है - ऐसे ब्रह्म में लीन होने का लक्ष्य रखने वाले जब शरीर छोड़ते हैं तो सन्नाटा हो जाता है। बाकी मोक्ष तो कोई पाता नहीं है, न वापिस ही जाते हैं। नाटक में तो सब एक्टर्स चाहिए ना। अन्त में सब आ जाते हैं। जब एक भी नहीं रहेगा तब वापिस जायेंगे। जो भी मनुष्य मात्र हैं, सब चले जायेंगे। बाकी थोड़े बचेंगे। वह कहेंगे सबको सी ऑफ किया। इस समय सतयुग की स्थापना हो रही है। कितने करोड़ों मनुष्य हैं। सबको हम सी ऑफ कर फिर अपनी राजधानी में चले जायेंगे। वो लोग तो करके 40-50 को सी ऑफ करते होंगे। तुम कितनों को सी ऑफ करते हो। सभी आत्मायें मच्छरों सदृश्य चली जायेंगी शान्तिधाम। तुम आये हो साथ ले जाने और सबको भेजने के लिए। तुम्हारी बातें वन्डरफुल हैं। इतने करोड़ों मनुष्य जायेंगे। उनको सी ऑफ करेंगे। सब वापिस मूलवतन में चले जायेंगे। यह भी तुम्हारी बुद्धि ही काम करती है। धीरे-धीरे सिजरा बड़ा हो जायेगा। फिर रूण्ड माला रूद्र माला बन जायेगी। यह बात तुम्हारी बुद्धि में है कि रूद्र माला रूण्ड माला कैसे बनती है। तुम्हारे में भी जो विशालबुद्धि हैं वही इस बात को समझ सकते हैं। अनेक प्रकार से बाप समझाते रहते हैं - याद करने लिए। हम रूद्र माला में जाकर रूण्ड माला में आयेंगे। फिर नम्बरवार आते रहेंगे। कितनी बड़ी रूद्र माला बनती है। इस ज्ञान को कोई भी नहीं जानते हैं। शुरू से लेकर इस ज्ञान को कोई जानते नहीं। तुम संगमयुगी ब्राह्मण ही जानते हो। इस संगमयुग को याद करो तो सारी नॉलेज बुद्धि में आ जायेगी।
तुम हो लाइट हाउस। सबको ठिकाने पर लगाने वाले। तुम कैसे अच्छे लाइट हाउस बनते हो। ऐसी कोई बात नहीं जो तुमसे लागू न होती हो। तुम सर्जन भी हो, सर्राफ भी हो, धोबी भी हो। सभी खूबियां (विशेषतायें) तुम्हारे में आ जाती हैं। महिमा तुम्हारी भी हो जाती है, परन्तु नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। जैसे-जैसे कर्तव्य करते हो ऐसा-ऐसा गायन होता है। बाप तो डायरेक्शन देते हैं उस पर विचार करना, सेमीनार करना तुम बच्चों का काम है। बाबा कोई मना नहीं करते हैं। अच्छा, बहुत सुनाने से क्या फायदा। बाप कहते हैं मनमनाभव। बाबा तुम्हें कितना तरावटी माल खिलाते हैं। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा नशा रहे कि हम संगमयुगी ब्राह्मण देवताओं से भी ऊंच हैं क्योंकि अभी हम ईश्वरीय औलाद हैं, हम मास्टर ज्ञान सागर हैं। सभी खूबियां इस समय हमारे में भर रही हैं।
2) जो बाप समझाते हैं वही बुद्धि में रखना है, बाकी कुछ भी सुनते हुए न सुनो, देखते हुए न देखो। हियर नो ईविल, सी नो ईविल...
वरदान:-ईश्वरीय सेवा द्वारा वैराइटी मेवा प्राप्त करने वाली अधिकारी आत्मा भव
कहा जाता है “करो सेवा तो मिले मेवा''। ईश्वरीय ज्ञान देना ही ईश्वरीय सेवा है जो यह सेवा करते हैं उन्हें अतीन्द्रिय सुख का, शक्तियों का, खुशी का वैराइटी मेवा मिलता है। आप ब्राह्मण ही इसके अधिकारी हो क्योंकि आपका काम ही है ईश्वरीय पढ़ाई पढ़ना और पढ़ाना, जिससे ईश्वर के बन जाएं। तो ऐसी ईश्वरीय सेवा करने से ईश्वरीय फल के अधिकारी बन गये - इसी नशे में रहो।
स्लोगन:-बाप के साथ रहकर कर्म करो तो डबल लाइट रहेंगे। कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश। संपर्क:-9691454063,9406564449, https://youtu.be/s2z_w8deHn0?