22April 2024/ शिव बाबा की मुरली (परमात्मा की वाणी) आज की प्रातः मुरली मधुबन से।
मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है। “मीठे बच्चे - सर्व का सद्गति दाता एक बाप है, बाप जैसी निष्काम सेवा और कोई भी नहीं कर सकता''
प्रश्नः-न्यु वर्ल्ड स्थापन करने में बाप को कौन-सी मेहनत करनी पड़ती है?
उत्तर:-एकदम अजामिल जैसे पापियों को फिर से लक्ष्मी-नारायण जैसे पूज्य देवता बनाने की मेहनत बाप को करनी पड़ती है। बाप तुम बच्चों को देवता बनाने की मेहनत करते। बाकी सर्व आत्मायें वापिस शान्तिधाम जाती हैं। हर एक को अपना हिसाब-किताब चुक्तू कर लायक बनकर वापस घर जाना है।
गीत:-इस पाप की दुनिया से......
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। बच्चे जानते हैं यह है पाप की दुनिया। नई दुनिया होती है पुण्य की दुनिया। वहाँ पाप होता नहीं है। वह है राम राज्य, यह है रावण राज्य। इस रावण राज्य में सब पतित दु:खी हैं, तब तो पुकारते हैं - हे पतित-पावन आकर हमें पावन बनाओ। सभी धर्म वाले पुकारते हैं - ओ गॉड फादर आकर हमें लिबरेट करो, गाइड बनो। गोया बाप जब आते हैं तो जो भी धर्म हैं सारी सृष्टि में, सबको ले जाते हैं। इस समय सभी रावण राज्य में हैं। सभी धर्म वालों को ले जाते हैं वापिस शान्तिधाम। विनाश तो सबका होना ही है। बाप यहाँ आकर बच्चों को सुख-धाम का लायक बनाते हैं। सभी का कल्याण करते हैं, इसलिए एक को ही सर्व का सद्गति दाता, सर्व का कल्याण करने वाला कहा जाता है। बाप कहते हैं अभी तुमको वापिस जाना है। सभी धर्म वालों को शान्तिधाम, निर्वाणधाम जाना है, जहाँ सभी आत्मायें शान्ति में रहती हैं। बेहद का बाप जो रचयिता है, वही आकर सभी को मुक्ति और जीवनमुक्ति देते हैं। तो महिमा भी उस एक गॉड फादर की करनी चाहिए। जो सर्व की आकर सेवा करते हैं, उनको ही याद करना चाहिए। बाप खुद समझाते हैं मैं दूर देश, परमधाम का रहने वाला हूँ। सबसे पहले जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, वह है नहीं इसलिए मुझे पुकारते हैं। मैं आकर सभी बच्चों को वापिस ले जाता हूँ। अब हिन्दू कोई धर्म नहीं है। असुल है देवी-देवता धर्म। परन्तु पवित्र न होने कारण अपने को देवता के बदले हिन्दू कह दिया है। हिन्दू धर्म स्थापन करने वाला तो कोई है नहीं। गीता ही है सर्व शास्त्र शिरोमणी। वह भगवान् की गाई हुई है। भगवान् एक को ही कहा जाता है - गॉड फादर। श्रीकृष्ण वा लक्ष्मी-नारायण को गॉड फादर वा पतित-पावन नहीं कहेंगे। यह तो राजा-रानी हैं। उन्हों को ऐसा किसने बनाया? बाप ने। बाप पहले नई दुनिया रचते हैं, जिसके यह मालिक बनते हैं। कैसे बनें, यह कोई मनुष्य मात्र नहीं जानते हैं। बड़े-बड़े लखपति मन्दिर आदि बनाते हैं। उन्हों से पूछना चाहिए - इन्हों ने यह विश्व का राज्य कैसे पाया? कैसे मालिक बनें? कभी कोई बतला नहीं सकेंगे। क्या कर्म किया जो इतना फल पाया? अब बाप समझाते हैं - तुम अपने धर्म को भूले हुए हो। आदि सनातन देवी-देवता धर्म को न जानने कारण सब और-और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं। वह फिर रिटर्न होंगे अपने-अपने धर्म में। जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हैं, वह फिर अपने ही धर्म में आ जायेंगे। क्रिश्चियन धर्म का होगा तो फिर क्रिश्चियन धर्म में आ जायेगा। यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लग रहा है। जो-जो जिस धर्म का है, उनको अपने-अपने धर्म में आना पड़ेगा। यह झाड़ है, इनकी तीन ट्युब्स हैं फिर उनसे वृद्धि होती जाती है। और कोई यह नॉलेज दे न सके। अब बाप कहते हैं तुम अपने धर्म में आ जाओ। कोई कहते हैं मैं संन्यास धर्म में जाता हूँ, रामकृष्ण परमहंस संन्यासी का फालोअर हूँ। अब वह है निवृत्ति मार्ग वाले, तुम हो प्रवृत्ति मार्ग वाले। गृहस्थ मार्ग वाले निवृत्ति मार्ग वालों के फालोअर्स कैसे बन सकते हैं! तुम पहले प्रवृत्ति मार्ग में पवित्र थे। फिर रावण द्वारा तुम अपवित्र बने हो। यह बातें बाप समझाते हैं। तुम हो गृहस्थ आश्रम के, भक्ति भी तुमको करनी है। बाप आकर भक्ति का फल सद्गति देते हैं। कहा जाता है - रिलीजन इज़ माइट। बाप रिलीजन स्थापन करते हैं। तुम सारे विश्व के मालिक बनते हो। बाप से तुमको कितनी माइट मिलती है। एक सर्वशक्तिमान् बाप ही आकर सबकी सद्गति करते हैं और कोई न सद्गति दे सकते हैं, न पा सकते हैं। यहाँ ही वृद्धि को पाते रहते हैं। वापिस कोई भी जा नहीं सकता। बाप कहते हैं मैं सभी धर्मों का सर्वेन्ट हूँ, सबको आकर सद्गति देता हूँ। सद्गति कहा जाता है सतयुग को। मुक्ति है शान्तिधाम में। तो सबसे बड़ा कौन हुआ? बाप कहते हैं - हे आत्मायें तुम सब ब्रदर्स हो, सबको बाप से वर्सा मिलता है। सबको आकर अपने-अपने सेक्शन में भेजने के लायक बनाता हूँ। लायक नहीं बनते तो सजायें खानी पड़ती हैं। हिसाब-किताब चुक्तू कर फिर वापस जाते हैं। वह है शान्तिधाम और वह है सुखधाम।
बाप कहते हैं मैं आकर न्यु वर्ल्ड स्थापन करता हूँ, इसमें मेहनत करनी पड़ती है। एकदम अजामिल जैसे पापियों को आकर ऐसा देवी-देवता बनाता हूँ। जबसे तुम वाम मार्ग में गये हो तो सीढ़ी नीचे उतरते आये हो। यह 84 जन्मों की सीढ़ी है ही नीचे उतरने की। सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो.... अभी यह है संगम। बाप कहते हैं मैं आता ही एक बार हूँ। मैं कोई इब्राहम-बुद्ध के तन में नहीं आता हूँ। मैं पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही आता हूँ। अब कहा जाता है फालो फादर। बाप कहते हैं तुम सब आत्माओं को मुझे ही फालो करना है। मामेकम् याद करो तो तुम्हारे पाप योग अग्नि में भस्म होंगे। इसको कहा जाता है योग अग्नि। तुम हो सच्चे-सच्चे ब्राह्मण। तुम काम चिता से उतर ज्ञान चिता पर बैठते हो। यह एक ही बाप समझाते हैं। क्राइस्ट, बुद्ध आदि सब एक को याद करते हैं। परन्तु उनको यथार्थ कोई जानते नहीं। अब तुम आस्तिक बने हो। रचता और रचना को तुमने बाप द्वारा जाना है। ऋषि-मुनि सब नेती-नेती कहते थे, हम नहीं जानते। स्वर्ग है सचखण्ड, दु:ख का नाम नहीं। यहाँ कितना दु:ख है। आयु भी बहुत छोटी है। देवताओं की आयु कितनी बड़ी है। वह हैं पवित्र योगी। यहाँ हैं अपवित्र भोगी। सीढ़ी उतरते-उतरते आयु कमती होती जाती है। अकाले मृत्यु भी होती रहती है। बाप तुमको ऐसा बनाते हैं जो तुम 21 जन्म कभी रोगी नहीं बनेंगे। तो ऐसे बाप से वर्सा लेना चाहिए। आत्मा को कितना समझदार बनना चाहिए। बाबा ऐसा वर्सा देते हैं जो वहाँ कोई दु:ख नहीं। तुम्हारा रोना-चिल्लाना बन्द हो जाता है। सब पार्टधारी हैं। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। यह भी ड्रामा। बाबा कर्म, अकर्म, विकर्म की गति भी समझाते हैं। ब्रह्मा का दिन और रात गाई हुई है। ब्रह्मा का दिन-रात सो ब्राह्मणों का। अब तुम्हारा दिन होने वाला है। महाशिवरात्रि कहते हैं। अब भक्ति की रात पूरी हो ज्ञान का उदय होता है। अब है संगम। तुम अब फिर से स्वर्गवासी बन रहे हो। अन्धियारी रात में धक्के भी खाये, टिप्पड़ भी घिसाई, पैसे भी खलास किये। अब बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुमको शान्तिधाम और सुखधाम में ले जाने के लिये। तुम सुखधाम के रहवासी थे। 84 जन्म के बाद दु:खधाम में आकर पड़े हो। फिर पुकारते हो - बाबा आओ, इस पुरानी दुनिया में। यह तुम्हारी दुनिया नहीं है। तुम अब योगबल से अपनी दुनिया स्थापन कर रहे हो। तुमको अब डबल अहिंसक बनना है। न काम कटारी चलानी है, न लड़ना-झगड़ना है। बाप कहते हैं मैं हर 5 हज़ार वर्ष के बाद आता हूँ। यह कल्प 5 हज़ार वर्ष का है, न कि लाखों वर्ष का। अगर लाखों वर्ष का होता फिर तो यहाँ बहुत आदमशुमारी होती। गपोड़े लगाते रहते हैं इसलिए बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ, मेरा भी ड्रामा में पार्ट है। पार्ट बिगर मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूँ। मैं भी ड्रामा के बन्धन में हूँ। पूरे टाइम पर आता हूँ, मन्मनाभव। परन्तु इसका कोई अर्थ नहीं जानता। बाप कहते हैं देह के सभी सम्बन्ध छोड़ मामेकम् याद करो तो सब पावन बन जायेंगे। बच्चे बाप को याद करने की मेहनत करते रहते हैं।
यह है ईश्वरीय विश्व-विद्यालय। ऐसे विद्यालय और हो न सकें। यहाँ ईश्वर बाप आकर सारे विश्व को चेन्ज करते हैं। हेल से हेविन बना देते हैं, जिस पर तुम राज्य करते हो। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। यह है बाबा का भाग्यशाली रथ, जिसमें बाप आकर प्रवेश करते हैं। शिव जयन्ती को कोई भी जानते नहीं हैं। वह तो कह देते परमात्मा नाम-रूप से न्यारा है। अरे, नाम-रूप से न्यारी तो कोई चीज़ होती नहीं। कहते हैं यह आकाश है, तो यह नाम तो हुआ ना। भल पोलार है, परन्तु फिर भी नाम है। तो बाप का भी नाम है कल्याणकारी। फिर भक्ति मार्ग में बहुत नाम रखे हैं। बाबुरीनाथ भी कहते हैं। वह आकर काम कटारी से छुड़ाकर पावन बनाते हैं। निवृत्ति मार्ग वाले ब्रह्म को ही परमात्मा मानते हैं, उनको ही याद करते हैं। ब्रह्म योगी, तत्व योगी कहलाते हैं। परन्तु वह हो गया रहने का स्थान, जिसको ब्रह्माण्ड कहा जाता है। वह फिर ब्रह्म को भगवान् समझ लेते हैं। समझते हैं हम लीन हो जायेंगे। गोया आत्मा को विनाशी बना देते हैं। बाप कहते हैं मैं ही आकर सर्व की सद्गति करता हूँ इसलिए एक शिवबाबा की जयन्ती हीरे तुल्य है बाकी सब जयन्तियाँ कौड़ी तुल्य हैं। शिवबाबा ही सबकी सद्गति करते हैं। तो वह है हीरे जैसा। वही तुमको गोल्डन एज में ले जाते हैं। यह नॉलेज तुमको बाप ही आकर पढ़ाते हैं, जिससे तुम देवी-देवता बनते हो। फिर यह नॉलेज प्राय:लोप हो जाती है। इन लक्ष्मी-नारायण में रचता और रचना की नॉलेज नहीं है।
बच्चों ने गीत सुना - कहते हैं ऐसी जगह ले चलो, जहाँ शान्ति और चैन हो। वह है शान्तिधाम, फिर सुखधाम। वहाँ अकाले मृत्यु नहीं होती है। तो बाप आये हैं बच्चों को उस सुख-चैन की दुनिया में ले चलने। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
रात्रि क्लास
अभी तुम्हारी सूर्यवशी, चंद्रवंशी दोनों डिनायस्टी बनती हैं। जितना तुम जानते हो और पवित्र बनते हो उतना और कोई जान नहीं सकेंगे, न पवित्र बन सकेंगे। बाकी सुनेंगे बाप आया हुआ है तो बाप को याद करने लग जायेंगे। सो भी तुम आगे चल यह भी देखेंगे - लाखों, करोड़ों समझते जायेंगे। वायुमण्डल ही ऐसा होगा। पिछाड़ी की लड़ाई में सभी होपलेस हो जायेंगे। सभी को टच होगा। तुम्हारा आवाज़ भी होगा। स्वर्ग की स्थापना हो रही है। बाकी सभी का मौत तैयार है। परन्तु वह समय ऐसा होता है जो घुटका खाने का समय नहीं रहेगा। आगे चल बहुत समझेंगे, जो होंगे। ऐसे भी नहीं - यह सभी उस समय होंगे। कोई मर भी जायेंगे। होंगे वही जो कल्प-कल्प होते हैं। उस समय एक बाप की याद में होंगे। आवाज भी कम हो जायेगा। फिर अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने लगेंगे। तुम सभी साक्षी होकर देखेंगे। बहुत दर्दनाक घटनायें होती रहेंगी। सभी को मालूम पड़ जायेगा कि अभी विनाश होना है। दुनिया चेंज होनी है। विवेक कहता है विनाश तब होगा जब बाम्ब्स गिरेंगे। अभी आपस में कहते रहते हैं कन्डीशन करो, वचन दो हम बाम्ब्स नहीं छोड़ेंगे। लेकिन यह सभी चीज़ें बनी हुई हैं विनाश के लिए।
तुम बच्चों को खुशी भी बहुत रहनी है। तुम जानते हो नई दुनिया बन रही है। समझते हो बाप ही नई दुनिया स्थापन करेंगे। वहाँ दु:ख का नाम नहीं होगा। उसका नाम ही है पैराडाइज। जैसे तुमको निश्चय है वैसे आगे चल बहुतों को होगा। क्या होता है जिनको अनुभव पाना है, वह आगे चलकर बहुत पायेंगे। पिछाड़ी के समय याद की यात्रा में भी बहुत रहेंगे। अभी तो समय पड़ा है, पुरुषार्थ पूरा नहीं करेंगे तो पद कम हो जायेगा। पुरूषार्थ करने से पद भी अच्छा मिलेगा। उस समय तुम्हारी अवस्था भी बहुत अच्छी होगी। साक्षात्कार भी करेंगे। कल्प-कल्प जैसे विनाश हुआ है, वैसे होगा। जिनमें निश्चय होगा, चक्र का ज्ञान होगा वह खुशी में रहेंगे। अच्छा - रूहानी बच्चे गुडनाईट।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) डबल अहिंसक बन योगबल से इस हेल को हेविन बनाना है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने का पुरूषार्थ करना है।
2) एक बाप को पूरा-पूरा फालो करना है। सच्चा-सच्चा ब्राह्मण बन योग-अग्नि से विकर्मों को दग्ध करना है। सबको काम चिता से उतार ज्ञान चिता पर बिठाना है।
वरदान:-नि:स्वार्थ और निर्विकल्प स्थिति से सेवा करने वाले सफलता मूर्त भव
सेवा में सफलता का आधार आपकी नि:स्वार्थ और निर्विकल्प स्थिति है। इस स्थिति में रहने वाले सेवा करते स्वयं भी सन्तुष्ट और हर्षित रहते और उनसे दूसरे भी सन्तुष्ट रहते। सेवा में संगठन होता है और संगठन में भिन्न-भिन्न बातें, भिन्न-भिन्न विचार होते हैं। लेकिन अनेकता में मूंझो नहीं। ऐसा नहीं सोचो किसका मानें, किसका नहीं मानें। नि:स्वार्थ और निर्विकल्प भाव से निर्णय लो तो किसी को भी व्यर्थ संकल्प नहीं आयेगा और सफलता मूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन:-अब सकाश द्वारा बुद्धियों को परिवर्तन करने की सेवा प्रारम्भ करो। कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश। संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/ZsacohCB11U?