मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube को क्लिक कर सुन भी सकते है।                                      “मीठे बच्चे - बाप आया है तुम्हें सच्ची स्वतन्त्रता देने, जमघटों की सजाओं से मुक्त करने, रावण की परतन्त्रता से छुड़ाने''
प्रश्नः-बाप और तुम बच्चों की समझानी में मुख्य अन्तर कौन-सा है?
उत्तर:-बाप जब समझाते हैं तो ‘मीठे बच्चे' कहकर समझाते हैं, जिससे बाप की बात का तीर लगता है। तुम बच्चे आपस में भाइयों को समझाते हो, ‘मीठे बच्चे' नहीं कह सकते। बाप बड़ा है इसलिए उनकी बात का असर होता है। वह बच्चों को रियलाइज़ कराते हैं - बच्चों, तुम्हें लज्जा नहीं आती, तुम पतित बन गये, अब पावन बनो।
ओम् शान्ति। बेहद का रूहानी बाप बेहद के रूहानी बच्चों को बैठ समझाते हैं, अब यह बेहद का बाप और बेहद के बच्चे ही जानते हैं। और कोई न बेहद के बाप को जानते हैं, न बेहद के बच्चे अपने को मानते हैं। ब्रह्मा मुख वंशावली ही जानते और मानते हैं। और कोई तो मान भी नहीं सकेंगे। ब्रह्मा भी जरूर चाहिए, जिसको आदि देव कहते हैं, जिसमें बाप की प्रवेशता होती है। बाप आकर क्या करते हैं? कहते हैं पावन बनना है। बाप की श्रीमत है अपने को आत्मा निश्चय करो। बच्चों को आत्मा का परिचय भी दिया है। आत्मा भ्रकुटी के बीच में निवास करती है। बाबा ने समझाया है आत्मा अविनाशी है, इनका तख्त यह विनाशी शरीर है। यह बातें तुम जानते हो कि हम सब आत्मायें आपस में भाई-भाई एक बाप के बच्चे हैं। ईश्वर सर्वव्यापी कहना यह भूल है। तुम अच्छी रीति समझाते हो, हर एक में 5 विकारों की प्रवेशता है तो कई समझते हैं यह ठीक बोलते हैं। हम भाई-भाई हैं तो जरूर बाप से वर्सा मिलना चाहिए। परन्तु यहाँ से बाहर निकलते हैं तो माया के तूफानों में चले जाते हैं। कोई विरले ठहरते हैं। सब जगह यह हाल होता है। कोई थोड़ा अच्छा समझते हैं तो जास्ती समझने की कोशिश करते हैं। अभी तुम सबको समझा सकते हो। अगर कोई जास्ती अटेन्शन नहीं देते हैं तो कहेंगे यह पुराने भक्त नहीं हैं। इन बातों को तो समझने वाले ही समझें। कोई नहीं समझते हैं तो फिर समझा भी नहीं सकते हैं। तुम्हारे पास भी नम्बरवार हैं, कोई अच्छा आदमी होता है तो उनको समझाने के लिए ऐसे अच्छे को भेजा जाता है। शायद कुछ समझ जाए। यह तो जानते हैं, बड़े आदमी इतना जल्दी नहीं समझेंगे। हाँ, ओपीनियन देते हैं - इनकी समझानी बहुत अच्छी है। बाप का परिचय पूरा देते हैं परन्तु खुद को फुर्सत ही कहाँ है। तुम कहते हो बेहद के बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों।

अभी तुम समझते हो बाप डायरेक्ट हम आत्माओं से बात करते हैं। डायरेक्ट सुनने से तीर अच्छा लगता है। वह बी.के. द्वारा सुनते हैं। यहाँ परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा डायरेक्ट समझाते हैं - हे बच्चों, तुम बाप का कहना नहीं मानते हो। तुम सब तो कोई को ऐसे नहीं कह सकेंगे ना। वहाँ तो बाप नहीं है। यहाँ बाप बैठे हैं, बाप बात करते हैं। बच्चे, तुम बाप की भी नहीं मानेंगे! अज्ञान काल में भी बाप की समझानी और भाई की समझानी में फर्क पड़ता है। भाई का इतना असर नहीं पड़ेगा जितना बाप का असर पड़ेगा। बाप फिर भी बड़ा हुआ ना, तो डर रहेगा। तुमको भी बाप समझाते हैं - मुझ अपने बाप को याद करो। तुमको शर्म नहीं आती, तुम घड़ी-घड़ी मुझे भूल जाते हो। बाप डायरेक्ट कहते हैं तो वह असर जल्दी पड़ता है। अरे, बाप का कहना नहीं मानते हो। बेहद का बाप कहते हैं यह जन्म निर्विकारी बनो तो 21 जन्म निर्विकारी बन पवित्र दुनिया का मालिक बनेंगे। यह नहीं मानते हो। बाप के कहने का तीर कड़ा लगता है। फर्क तो रहता है। ऐसे भी नहीं है कि सदैव नये-नये से बाबा मिलते रहेंगे। उल्टे-सुल्टे प्रश्न करते हैं। बुद्धि में नहीं बैठता क्योंकि यह है बिल्कुल नई बात। गीता में श्रीकृष्ण का नाम लिख दिया है। वह तो हो नहीं सकता। अभी ड्रामा अनुसार तुम्हारी बुद्धि में बैठा है। तुम बच्चे भागते हो हम बाबा के पास जायें, डायरेक्ट मुरली सुनें। वहाँ तो भाइयों द्वारा सुनते थे, अब बाबा से सुनें। बाप का असर होता है। बच्चे-बच्चे कह बात करते हैं। बच्चे, तुम्हें लज्जा नहीं आती! बाप को याद नहीं करते हो! बाप के साथ तुम्हारा प्यार नहीं है! कितना याद करते हो? बाबा एक घण्टा। अरे, निरन्तर याद करेंगे तो तुम्हारे पाप कट जायेंगे। जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा सिर पर है। बाप सम्मुख समझाते हैं - तुमने बाप की कितनी ग्लानि की है। तुम्हारे ऊपर तो केस चलना चाहिए। अखबार में कोई के लिए ग्लानि लिखते हैं तो उस पर केस करते हैं ना। अब बाप स्मृति दिलाते हैं - तुम क्या-क्या करते थे। बाप समझाते हैं ड्रामा अनुसार रावण के संग में यह हुआ है। अब भक्ति मार्ग सब पूरा हुआ, पास्ट हो गया, बीच में कोई रोकने वाला तो होता नहीं। दिन-प्रतिदिन उतरते-उतरते तमोप्रधान बुद्धि बुद्धू हो जाते हैं। जिसकी पूजा करते हैं, उनको ठिक्कर-भित्तर में कह देते हैं। इसको कहा जाता है बेहद की बेसमझी। बेहद के बच्चों की बेहद की बेसमझी। एक तरफ शिवबाबा की पूजा करते हैं, दूसरे तरफ उस बाप को ही सर्वव्यापी कहते हैं। अभी तुमको स्मृति आई है इतनी बेसमझी की जो बाप की ग्लानि कर दी है। अब तुम बच्चों ने समझा है तो अब पुरूषार्थ कर रहे हो बेगर टू प्रिन्स बनने का। श्रीकृष्ण सतयुग का प्रिन्स, उनके लिए फिर कहते 16108 रानियाँ थी, बच्चे थे! अभी तुमको तो लज्जा आयेगी। कोई पाप करते हैं तो भगवान के आगे कान पकड़कर कहते हैं - हे भगवान, बड़ी भूल हुई, रहम करो, क्षमा करो। तुमने कितनी बड़ी भूल की है। बाप समझाते हैं - ड्रामा में ऐसा है। जब ऐसे बनो तब तो मैं आऊं।

अब बाप कहते हैं - तुमको सब धर्म वालों का कल्याण करना है। बाप जो सबकी सद्गति करते हैं, उनके लिए सब धर्म वाले कह देते हैं सर्वव्यापी है। यह कहाँ से सीखे। भगवानुवाच, मै सर्वव्यापी नहीं हूँ। तुम्हारे कारण औरों का भी ऐसा हाल हो गया है। पुकारते हैं - हे पतित-पावन.... परन्तु समझते नहीं हैं। हम जब पहले-पहले घर से आये तो पतित थे क्या? देह-अभिमानी बनने के कारण पतित बने। कोई भी धर्म वाला आये, उनसे पूछना है परमपिता परमात्मा का तुमको परिचय है, वह कौन है? कहाँ निवास करते हैं? तो कहेंगे ऊपर में या कहेंगे सर्वव्यापी है। बाप कहते हैं तुम्हारे खातिर सारी दुनिया चट खाते में आ गई है। निमित्त तुम बने हो। सबको समझाना पड़ता है। भल ड्रामा अनुसार होता है परन्तु तुम पतित तो बन गये ना। सभी पाप आत्मायें हैं। अब पुण्य आत्मा बनने के लिए पुकारते हैं। सब धर्म वालों को मुक्तिधाम घर में जाना है। वहाँ पवित्र हैं। यह भी ड्रामा बना हुआ है, जो बाप आकर समझाते हैं। यह ज्ञान सब धर्मों के लिए है। बाबा के पास समाचार आया था, किसी आचार्य ने कहा आप सबको आत्मा में परमात्मा समझ नमस्कार करता हूँ। अब इतने सब परमात्मा हैं क्या? कुछ भी समझ नहीं। जिन्होंने भक्ति जास्ती नहीं की है, वह ठहरते नहीं हैं। सेन्टर्स में भी कोई कितना समय, कोई कितना समय ठहरते हैं। इससे समझना चाहिए कि भक्ति कम की है इसलिए ठहरते नहीं हैं। फिर भी जायेंगे कहाँ। दूसरी कोई हट्टी तो है नहीं। ऐसी क्या युक्ति रचें जो मनुष्य जल्दी समझ लें। अभी तो सबको पैगाम देना है। यह कहना है कि बाप को याद करो। तुम ही पूरा याद नहीं कर सकते हो तो तुम्हारा तीर कैसे लगेगा इसलिए बाबा कहते हैं चार्ट रखो। मुख्य बात है ही पावन बनने की। जितना पावन बनेंगे उतना नॉलेज धारण होगी। खुशी भी होगी। बच्चों को तो बहुत खुशी होनी चाहिए - हम सबका उद्धार करें। बाप ही आकर सद्गति करते हैं। बाप को तो ग़म और खुशी की बात ही नहीं। यह ड्रामा बना हुआ है। तुमको तो कोई ग़म नहीं होना चाहिए। बाप मिला है और क्या, सिर्फ बाप की मत पर चलना है। यह समझानी भी अब मिलती है, सतयुग में नहीं मिलेगी। वहाँ तो ज्ञान की बात ही नहीं। यहाँ तुमको बेहद का बाप मिला है तो तुमको स्वर्ग से भी जास्ती खुशी होनी चाहिए।

बाप कहते हैं विलायत में भी जाकर तुमको यह समझाना है। सभी धर्म वालों पर तुमको तरस पड़ता है। सभी कहते हैं - हे भगवान रहम करो, ब्लिस करो, दु:ख से लिबरेट करो। परन्तु समझते कुछ नहीं। बाप अनेक प्रकार की युक्तियाँ बतलाते हैं। सबको यह बतलाना है कि तुम रावण की जेल में पड़े हो। कहते हैं स्वतन्त्रता मिले, परन्तु वास्तव में स्वतन्त्रता कहा किसको जाता है, यह कोई जानता नहीं है। रावण की जेल में तो सब फँसे हुए हैं। अभी सच्ची स्वतन्त्रता देने के लिए बाप आये हैं। फिर भी रावण की जेल में परतन्त्र होकर पाप करते रहते हैं। सच्ची स्वतन्त्रता कौन-सी है? यह मनुष्यों को बतलाना है। तुम अखबार में भी डाल सकते हो - यहाँ रावण के राज्य में स्वतन्त्रता थोड़ेही है। बहुत शार्ट में लिखना चाहिए। जास्ती तीक-तीक कोई समझ न सके। बोलो, तुमको स्वतन्त्रता है कहाँ, तुम तो रावण की जेल में पड़े हो। तुम्हारा विलायत में आवाज़ होगा तो फिर यहाँ झट समझ जायेंगे। एक-दो पर घेराव करते रहते हैं। तो यह स्वतन्त्रता हुई क्या? स्वतन्त्रता तो तुमको बाप दे रहे हैं। रावण की जेल से स्वतन्त्र कर रहे हैं। तुम जानते हो वहाँ हम बड़े स्वतन्त्र, बड़े धनवान होते हैं। किसकी नज़र भी नहीं पड़ती। पीछे जब कमजोर बनें तब सबकी नज़र पड़ी तुम्हारे धन पर। मुहम्मद गज़नवी ने आकर मन्दिर को लूटा तो तुम्हारी स्वतन्त्रता पूरी हो गई। रावण के राज्य में परतन्त्र बन गये। अभी तुम पुरूषोत्तम संगमयुग पर हो। अभी सच्ची स्वतन्त्रता को पा रहे हो। वह तो स्वतन्त्रता को समझते ही नहीं। तो यह बात भी युक्ति से समझानी है। जिन्होंने कल्प पहले स्वतन्त्रता पाई है, वही मानेंगे। तुम समझाते हो तो कितना आरग्यु करते हैं, जैसे बुद्धू। टाइम वेस्ट करते हैं तो दिल नहीं होती है बात करें।

बाप आकर स्वतन्त्रता देते हैं। रावण की परतन्त्रता में दु:ख बहुत है। अपरमअपार दु:ख है। बाप के राज्य में हम कितना स्वतन्त्र होते हैं। स्वतन्त्रता उसको कहा जाता है - जब हम पवित्र देवता बनते हैं तो रावण राज्य से छूट जाते हैं। सच्ची स्वतन्त्रता बाप ही आकर देते हैं। अभी तो पराये राज्य में सब दु:खी हैं। स्वतन्त्रता मिलने का यह पुरूषोत्तम संगमयुग है। वह तो कहते फॉरेन गवर्मेंन्ट गई तो हम स्वतन्त्र बनें। अब तुम जानते हो जब तक पावन नहीं बने हैं तब तक स्वतन्त्र नहीं कहेंगे। फिर जमघटों की सजायें खानी पड़ेंगी। पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। बाप आते हैं घर ले जाने। वहाँ सब स्वतन्त्र होते हैं। तुम सब धर्म वालों को समझा सकते हो - तुम आत्मा हो, मुक्तिधाम से आये हो पार्ट बजाने। सुखधाम से फिर दु:खधाम में तमोप्रधान दुनिया में आ गये हो। बाप कहते हैं तुम मेरी सन्तान हो, रावण की थोड़ेही हो। मैं तुमको राज्य-भाग्य देकर गया था। तुम अपने राज्य में कितने स्वतन्त्र थे। अब फिर वहाँ जाने के लिए पावन बनना है। तुम कितने धनवान बनते हो। वहाँ तो पैसे की चिंता नही होती है। भल गरीब हो फिर भी पैसे की चिंता नहीं। सुखी रहते हैं। चिंता यहाँ होती है। बाकी राजधानी में नम्बरवार पद होते हैं। सूर्यवंशी राजाओं जैसे सब थोड़ेही बनेंगे। जितनी मेहनत उतना पद। तुम सब धर्म वालों की सर्विस करने वाले हो। विलायत वालों को भी समझाना है - तुम सब भाई-भाई हो ना। सब शान्तिधाम में रहते हैं। अब रावण राज्य में हो। अब घर जाने का रास्ता आपको बताते हैं, अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। कहते भी हैं भगवान सबको लिबरेट करते हैं। परन्तु यह नहीं समझते कि कैसे लिबरेट करते हैं। बच्चे कहाँ मूंझ पड़ते हैं तो कहेंगे बाबा हमको लिबरेट कर अपने घर ले चलो। जैसे तुम लोग फागी में जंगल में मूंझ गये थे। रास्ते का मालूम नहीं पड़ता था। फिर लिबरेटर मिला, रास्ता बताया। बेहद के बाप को भी कहते हैं - बाबा, हमको लिबरेट करो। आप चलो, हम भी आपके पीछे चलेंगे। सिवाए बाप के और कोई रास्ता नहीं बताते हैं। कितने शास्त्र पढ़ते थे, तीर्थों पर धक्के खाते थे परन्तु भगवान को नहीं जानते तो ढूंढेंगे फिर कहाँ से। सर्वव्यापी है फिर मिलेंगे कैसे। कितना अज्ञान अन्धियारे में हैं। सर्व का सद्गति दाता एक बाप है, वही आकर तुम बच्चों को अज्ञान अन्धेरे से निकालते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) एक बाप मिला है इसलिए किसी भी बात का ग़म (चिंता) नहीं करना है। उनकी मत पर चलकर, बेहद का समझदार बन खुशी-खुशी सबका उद्धार करने के निमित्त बनना है।

2) जमघटों की सजाओं से बचने वा सच्ची स्वतन्त्रता पाने के लिए पावन जरूर बनना है। नॉलेज सोर्स आफ इनकम है, इसे धारण कर धनवान बनना है।

वरदान:-नॉलेज की लाइट माइट से रांग को राइट में परिवर्तन करने वाले ज्ञानी तू आत्मा भव
कहा जाता है नॉलेज इज लाइट, माइट। जहाँ लाइट अर्थात् रोशनी है कि ये रांग है, ये राइट है, ये अंधकार है, ये प्रकाश है, ये व्यर्थ है, यह समर्थ है - तो रांग समझने वाले रांग कर्मो वा संकल्पों के वशीभूत हो नहीं सकते। ज्ञानी तू आत्मा अर्थात् समझदार, ज्ञान स्वरूप, कभी यह नहीं कह सकते कि ऐसा होना तो चाहिए...लेकिन उनके पास रांग को राइट में परिवर्तन करने की शक्ति होती है।
स्लोगन:-जो सदा शुभ-चिन्तक और शुभ-चिन्तन में रहते हैं वह व्यर्थ चिन्तन से छूट जाते हैं।                                                                                                                                                                                                                                         कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश।                                                                     संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/iN6c64Pqi2M?

न्यूज़ सोर्स : madhuban/ mp1news Bhopal