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आज ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर ब्रह्मा बाप और शिव बाप अपने विश्व के चारों ओर के श्रेष्ठ भाग्यवान ब्राह्मण कुल को बहुत-बहुत अरब-खरब बार दिव्य अलौकिक जन्म की मुबारक दे रहे हैं। साथ-साथ अति स्नेह के, दिल के प्यार के रूहानी पुष्पों से जन्म की बधाई दे रहे हैं। हर एक ब्राह्मण आत्मा की विशेषता देख-देख हर्षित हो रहे हैं। दिल ही दिल में गीत गा रहे हैं - वाह बच्चे वाह! आज के दिन अमृतवेले से सभी के दिल में यही खुशी की लहरें दिखाई दे रही हैं - वाह बाप का और हमारा अलौकिक जन्म! बाप भी सभी बच्चों की अमृतवेले से बधाईयों की मालायें देख-देख खुश हो रहे हैं। यह बर्थ डे सारे कल्प में इस संगमयुग में ही मनाते हैं। सतयुग में भी ऐसा अलौकिक जन्म दिन नहीं मनायेंगे। वहाँ भी ऐसा विचित्र जन्म दिन नहीं होगा, जो बाप और बच्चों का एक ही साथ जन्म हो। अब तक सुना है क्या कि बाप और बच्चे का जन्म एक दिन हुआ? लेकिन आज का दिन आप बच्चों का और बापदादा का जन्म एक दिन मना रहे हो। तो वाह-वाह! के गीत गा रहे हो ना!

आज बापदादा अमृतवेले एक माला बना रहे थे। कौन सी माला? 108 की फाइनल माला नहीं बना रहे थे जो आप सोचो हमारा नाम था, हमारा नाम था... लेकिन आज आदि से, स्थापना के समय से अब विनाश के समीप समय तक कौन से, कौन से बच्चे अमर भव के वरदानी रहे हैं! उन्हों की माला बना रहे थे। यह भी ड्रामा अनुसार उन आत्माओं को ऊंचे ते ऊंचे भगवन के साथ सर्व चरित्र देखने, सुनने का श्रेष्ठ पार्ट है लेकिन वह कितने थोड़े हैं! आप सबका भी पार्ट है, क्यों? बापदादा ब्राह्मण वंशावली बना रहे हैं। इसलिए विश्व के हिसाब से जो भी ब्राह्मण आत्मायें हैं वह बहुत-बहुत-बहुत भाग्यवान हैं, क्यों? कोटों में कोई की लाइन में और कोई में भी कोई, एक तरफ विश्व की कोटों आत्मायें, दूसरे तरफ आप हर एक ब्राह्मण एक हो। तो जन्म दिन पर बापदादा हर एक बच्चे को, कोई-कोई को नहीं सभी बच्चों की जन्म पत्री देख हर एक के विशेषताओं की मालायें गले में डाल रहे थे। आप सभी चाहे नये हैं, चाहे आदि के हैं, चाहे मध्य के हैं लेकिन विशेष हैं और विशेष रहेंगे ही। सारा कल्प विशेष रहेंगे। सारा कल्प विश्व की सर्व आत्माओं की आप श्रेष्ठ आत्माओं के ऊपर महानता की नज़र रहती है। तो आप हर एक अपनी विशेषताओं को जानते हो? अगर हाँ तो एक हाथ उठाओ। बहुत अच्छा। उस विशेषताओं को क्या करते हो? जानते हो बहुत अच्छा, मानते हो बहुत अच्छा लेकिन उन विशेषताओं को क्या करते हो? (सेवा में लगाते हैं) और रीति से यूज़ तो नहीं करते ना? यह विशेषतायें परमात्म देन हैं। परमात्म देन सदा विश्व सेवा में अर्पण करनी है। विशेषतायें अगर निगेटिव रूप में यूज़ किया तो अभिमान का रूप बन जाता है क्योंकि ज्ञान में आने के बाद, ब्राह्मण जीवन में आने के बाद बाप द्वारा विशेषतायें बहुत प्राप्त होती हैं क्योंकि बाप का बनने से विशेषताओं के खजाने के अधिकारी बन जाते हो। एक दो विशेषतायें नहीं हैं, बहुत विशेषतायें हैं। जो यादगार में भी आपकी विशेषताओं का वर्णन है - 16 कला सम्पन्न, तो सिर्फ 16 नहीं हैं, 16 माना सम्पूर्ण। सर्व गुण सम्पन्न। सम्पूर्ण निर्विकारिता का डिटेल है। कहने में आता है सम्पूर्ण निर्विकारी लेकिन सम्पूर्ण में कई डिटेल हैं। तो विशेषतायें तो बाप द्वारा हर ब्राह्मण को वर्से में प्राप्त होती ही हैं। लेकिन उन विशेषताओं को धारण करना और फिर सेवा में लगाना। मेरी यह विशेषता है, नहीं, परमात्म देन है। परमात्म देन समझने से विशेषता में परमात्म शक्तियाँ भर जाती हैं। मेरी कहने से अभिमान और अपमान दोनों का सामना करना पड़ता है। किसी भी प्रकार का अभिमान, चाहे ज्ञान का, चाहे योग का, चाहे सेवा का, चाहे बुद्धि का, चाहे कोई गुण का, जिसमें भी अभिमान होगा उसकी निशानी है - उसको अपमान बहुत जल्दी फील होगा। तो विशेष आत्मायें हो अर्थात् परमात्म देन के अधिकारी हो।

तो आज आप सभी बापदादा का बर्थ डे मनाने आये हो ना! और बापदादा आप सबका बर्थ डे मनाने आये हैं। आप तो सिर्फ बापदादा का बर्थ डे मनायेंगे लेकिन बापदादा सारे ब्राह्मण कुल का बर्थ डे मनाने आये हैं। चाहे देश में दूर बैठे हैं, चाहे विदेश के कोने में दूर में बैठे हैं लेकिन जो भी ब्राह्मण आत्मा, ब्राह्मण कुल की बन गई, उन सबका बर्थ डे बापदादा भी मना रहे हैं, आप भी मना रहे हैं। सबका मना रहे हो या सिर्फ यहाँ बैठने वालों का मना रहे हो? सभी याद हैं ना! सभी देख रहे हैं कि हमारा भी मना रहे हैं या नहीं? तो सबका मना रहे हैं। सबको मुबारक, मुबारक, मुबारक हो। मनाना अर्थात् उमंग-उत्साह में आना। तो दिल में उत्साह है ना, वाह! हमारा अलौकिक जन्म दिन!

तो आज अमृतवेले से जन्म दिन का उत्साह-उमंग सभी में बहुत-बहुत रहा ना! बापदादा ने कार्ड भी देखे, आप इन आंखों से देखते हो, बापदादा तो सूक्ष्म में ही आपसे पहले ही देख लेते हैं। लेकिन बापदादा ने देखा सभी अपने दिल का उमंग दिखाने के लिए कितना उमंग-उत्साह रखते हैं। आजकल तो ई-मेल बहुत सस्ता है ना! तो ई-मेल भी सभी बहुत करते हैं। बापदादा के पास सब पहुंचता है। चाहे ई-मेल हो, चाहे कार्ड हो, चाहे पत्र हो, चाहे दिल के संकल्प हों। अमृतवेले से वतन में अगर चारों ओर के कार्ड, पत्र, ई-मेल, संकल्प सब इकट्ठे करो तो देख-देखकर बड़ा मजा आयेगा। यह एग्जीबिशन विचित्र होती है। तो बर्थ डे पर भविष्य के लिए संकल्प किया जाता है। जैसे बर्थ डे का नम्बर आगे बढ़ता है, वर्ष आगे बढ़ता है, ऐसे ही पुरुषार्थ में वा अपने अमूल्य जीवन में, मन में अर्थात् संकल्प में, बुद्धि के निर्णय शक्ति में, वाणी में, सेकण्ड में सफलता मूर्त बनाने की शक्ति में, सम्बन्ध-सम्पर्क में हर समय सम्पर्क-सम्बन्ध वाले को कोई न कोई प्राप्ति की अनुभूति हो, ऐसा अपने भविष्य वर्ष के लिए दृढ़ संकल्प का व्रत लिया? क्योंकि विशेष शिव जयन्ती के दिन दो लक्ष्य ब्राह्मण आत्माओं के रहते हैं - एक स्वयं से प्रतिज्ञा का और दूसरा बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने का, यह दो विशेष लक्ष्य इस दिन हर एक के अन्दर रहता है। तो बापदादा ने आप सबकी की हुई प्रतिज्ञाओं का (जो बीते हुए समय में की हैं) पोतामेल देखा। हर साल हर एक ने विधि पूर्वक संकल्प से, वाणी से प्रतिज्ञा की है। बहुत अच्छा किया है। लेकिन अभी आज के बाद अर्थात् जन्म दिन मनाने के बाद एक शब्द को विशेष अण्डरलाइन करना। कॉमन शब्द है, नया नहीं है। वह शब्द है - निरन्तर दृढ़ता। कभी दृढ़ता और कभी दृढ़ता में भी अलबेला-पन, नहीं। अगर निरन्तर दृढ़ता है तो उसकी निशानी है - निरन्तर हर संकल्प, बोल, कर्म द्वारा स्व में, सेवा में और सम्बन्ध में 100 परसेन्ट सफलता। जब तक इन सभी बातों में ब्राह्मणों में सदा सफलता कम है तब तक प्रत्यक्षता ड्रामा अनुसार रुकी हुई है। सफलता प्रत्यक्षता का आधार है। हर बोल सफलता पूर्वक हो, हर संकल्प सफलता पूर्वक हो, इसलिए आजकल के याद-गार में भी गुरू कहलाने वालों को सत वचन महाराज कहा जाता है। चाहे झूठ भी बोल रहे हों लेकिन भक्त कहते हैं सत वचन। तो यह आपके वचन का गायन है। महाराज, महान तो आप ही बनते हो ना! इसीलिए सत वचन महाराज माना महान आत्मायें। ऐसे कभी नहीं सोचो कि मेरा भाव नहीं था लेकिन बोल दिया, निकल गया, बिना भाव के, भावना के बोल नहीं निकलते हैं, यह तो चलाने की बात है। कभी कहते हैं निकल गया, क्यों निकल गया? क्यों, कन्ट्रोलिंग पावर नहीं है क्या जो निकल गया? हो गया, तो राजा नहीं हैं? कोई-कोई कर्मेन्द्रियों के वशीभूत हो गये ना - जो निकल गया, हो गया!

तो इस वर्ष में मुबारक के साथ निरन्तर हर बात में दृढ़ता को अण्डरलाइन करना। आज बर्थ डे है इसलिए बापदादा आज नहीं सुनाते हैं लेकिन सभी के चार्ट से बापदादा ने एक बात नोट की, लेकिन लास्ट बारी में सुनायेंगे। आज तो मनाना है, सुनाना नहीं है। 15 दिन के बाद सुनायेंगे। (बापदादा सुनाये तो 15 दिन में सब ठीक हो जायेंगे) अच्छा पहले कहो 15 दिन में करेक्शन हो जायेगी फिर तो सुनाना ठीक है। अगर 15 दिन में परिवर्तन हो जाए तो बापदादा तो पता नहीं क्या कर देंगे! तो सुनायें क्या? तो 15 दिन में परिवर्तन हो जायेगा? संकल्प करेंगे? अच्छा, पाण्डव करेंगे सुनायें? सुनना तो सहज है, करेंगे? करना पड़ेगा। (बाप-दादा ने पीछे वालों से, माताओं से, टीचर्स से, डबल फारेनर्स सबसे पूछा, सभी ने हाथ हिलाया) हाथ तो सब बहुत अच्छा उठा लेते हैं।

डबल फारेनर्स के तीन ग्रुप हैं ना? (अन्तर्मुखी, मस्ताना, शक्ति ग्रुप)

अच्छा, अन्तर्मुखी ग्रुप हाथ उठाओ। अन्तर्मुखी में थोड़े हैं। दूसरा ग्रुप है मस्ताना, अच्छा मस्ताना ग्रुप वाले खड़े हो जाओ। सदा मस्त रहने वाले ना! मस्ताना का अर्थ क्या हुआ? सदा मस्त रहने वाले ना! तीसरा ग्रुप - शक्ति। शक्ति ग्रुप शक्तिशाली है ना! नाम तो बहुत अच्छे रखे हैं। देखो शुरू-शुरू में जब भट्ठी थी तो आपके ग्रुप्स के नाम क्या थे? (डिवाइन युनिटी, मनोहर पार्टी, सुप्रीम पार्टी) नाम तो सुन्दर हैं ना? तो यह भी ग्रुप अच्छे बने हैं। नाम याद रहेगा तो नाम के साथ कर्तव्य भी याद रहेगा। अच्छा डबल फारेनर्स कुमार उठो। अच्छा, यह कुमारों का ग्रुप है। अच्छा किया है, बापदादा ने डबल फारेनर्स के रिफ्रेशमेंट का समाचार बहुत अच्छा सुना है। बापदादा दिल से मुबारक भी दे रहे हैं लेकिन सभी ग्रुप्स को जो आज अण्डरलाइन किया है, वह याद भी दिला रहे हैं।

डबल फारेन की टीचर्स बहुत हैं। टीचर बनना बहुत-बहुत श्रेष्ठ भाग्य की निशानी है क्योंकि बापदादा टीचर्स को गुरू-भाई के रूप में देखते हैं, इतना समान रूप में देखते हैं क्योंकि बाप के आसन पर बैठते हैं, टीचर्स को यह हक मिलता है। जैसे गुरू की गद्दी होती है ना तो यह मुरली का तख्त, मुरली धारण कराना और मुरली सुनाना। सुनाना सिर्फ नहीं लेकिन मुरली धारण कराना, यह टीचर्स को बापदादा ने गुरूभाई का तख्त दिया है और फारेन में तो देखा जाता है कि बहुत जल्दी से जल्दी तख्तनशीन हो जाते हैं। बापदादा खुश होते हैं, जिम्मेवारी का ताज धारण कर लेना, हिम्मत रखना, यह भी कोई कम बात नहीं है लेकिन गुरू-भाई अर्थात् बाप समान। वैसे तो सभी को बाप समान बनना ही है लेकिन फिर भी टीचर्स को विशेष जिम्मेवारी का ताज है। बाप-दादा को भी टीचर्स का संगठन बहुत अच्छा लगता है। लेकिन आज का विशेष शब्द “निरन्तर अटेन्शन।''

अच्छा - भारत की टीचर्स उठो, भारत की टीचर्स भी कम नहीं हैं। तो सुना, टीचर्स को बाबा किस नज़र से देखते हैं। यह क्लास की, मुरली सुनाने की सीट... बहुत भाग्यवान हैं। बहुत-बहुत-बहुत लक्की हो क्योंकि साकार रूप में निमित्त कौन हैं? अच्छा दादियां तो एक फारेन रहती है, एक मधुबन रहती है लेकिन हर स्थान पर साकार रूप में निमित्त टीचर्स हैं या निमित्त पाण्डव भी हैं। ऐसे नहीं सिर्फ टीचर्स (बहिनें) हैं, पाण्डव भी हैं, जिसको बड़े भाई कहते हो ना। पाण्डव तो जरूरी हैं ही। शक्तियां और पाण्डव दोनों के साथ से ही आदि से कार्य चला है, चाहे थोड़े पाण्डव थे लेकिन विश्वकिशोर तो थे ना। आनंदकिशोर, विश्वकिशोर शुरू के हैं। तो पाण्डवों का साथ तो है ना। लेकिन मैजारिटी टीचर्स ज्यादा हैं जो निमित्त बन जाती हैं। आप बैकबोन हो, टीचर्स के भी बैकबोन हो। हर एक का पार्ट है। लेकिन विदेश में यह विशेषता है कि पाण्डव भी टीचर बनते हैं, भारत में कम बनते हैं। तो टीचर्स को सदा बापदादा कहते हैं टीचर अर्थात् अपने फीचर्स द्वारा बाप का साक्षात्कार कराने वाली। फीचर्स द्वारा फ्यूचर स्पष्ट दिखाने वाली। तो ऐसी टीचर्स हो ना? जो आपको देख बापदादा के पालना की अनुभूति हो। परमात्म गुण, परमात्म शक्तियां आपके चेहरे से दिखाई दें, बोल से दिखाई दें। ऐसे नहीं फलानी टीचर ने बोला, नहीं। बापदादा ने टीचर्स के फीचर्स द्वारा अनुभव कराया। बाप से हर एक का कनेक्शन जोड़ना - यही है टीचर्स का कर्तव्य। हर एक के दिल से हर समय बाबा निकले।

यह ग्रुप्स भी अच्छे बनाये हैं क्योंकि पर्सनल रिफ्रेशमेंट मिलने से अनुभूति अच्छी करते हैं। ग्रुप्स में रिजल्ट अच्छी निकली ना! अच्छा है।

चारों ओर के जन्म उत्सव मनाने वाले श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं को, सदा अलौकिक जन्म के अलौकिक दिव्य कर्तव्य करने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा एक बाप दूसरा न कोई, ऐसे एकनामी और सर्व खजानों के एकानामी के अवतार बच्चों को सदा हर वरदान और वर्से को जीवन द्वारा प्रत्यक्ष करने वाले उमंग-उत्साह में रहने वाले बच्चों को, बापदादा का अलौकिक जन्म के मुबारक सहित यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से:- दादी जी ने बापदादा को बर्थ डे की बहुत-बहुत बधाई दी।

आज माला में आप सब आये। माला याद की ना! आदि की स्थापना के रत्न, तो उसमें आप माला के मणके थे। अच्छा है स्थापना में भी निमित्त बने, पालना में भी निमित्त बने, अभी बाप के साथ चलने में भी निमित्त बनेंगे। क्या दरवाजा बापदादा अकेला खोलेगा? (नहीं) आपके लिए रुके हुए हैं। आओ तो दरवाजा खोलें। लेकिन सेवा पूरी करनी पड़ेगी ना क्योंकि साकार में आप लोगों को निमित्त बनाया है। तो साकार का कार्य तो पूरा करना पड़ेगा ना। आजकल सब किसको देखते हैं? सबकी नजर कहाँ जाती है? आप लोगों के ऊपर ही तो जाती है। जो निमित्त बने हुए हैं, उन्हों के ऊपर ही सबकी नज़र जाती है। नज़रों में तो सभी को बिठाया क्योंकि बाप की नज़र कोई छोटी तो है ही नहीं, बेहद की नज़र है। तो सभी नज़र में हैं। सभी नूरे रत्न हैं। बहुत अच्छा। हर एक अपना-अपना पार्ट बजा रहे हैं और बजाना ही है। ड्रामा में बंधे हुए हो। मजा आता है ना! बहुत अच्छा है!

वरदान:-अल्पकाल के सहारे के किनारे को छोड़ एक बाप को सहारा बनाने वाले यथार्थ पुरुषार्थी भव
पुरुषार्थ का अर्थ यह नहीं है कि एक बार की गलती बार-बार करते रहो और पुरुषार्थ को अपना सहारा बना लो। यथार्थ पुरुषार्थी अर्थात् पुरुष बन रथ द्वारा कार्य कराने वाले। अभी अल्पकाल के सहारे के किनारे छोड़ दो। कई बच्चे बाप के बजाए हद के किनारों को सहारा बना लेते हैं। चाहे अपने स्वभाव-संस्कारों को, चाहे परिस्थितियों को..यह सब अल्पकाल के सहारे दिखावा-मात्र, धोखेबाज हैं। एक बाप का सहारा ही छत्रछाया है।
स्लोगन:-नॉलेजफुल वह है जो माया को दूर से ही पहचान कर स्वयं को समर्थ बना ले।                                            कार्यालय:-राजयोग भवन, E-5 अरेरा कॉलोनी भोपाल मध्य प्रदेश।                                             संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/j1oRPBadWoc?

न्यूज़ सोर्स : madhuban/mp1news Bhopal