मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube को क्लिक कर सुन भी सकते है।इस वर्ष को निर्मान, निर्मल वर्ष और व्यर्थ से मुक्त होने का मुक्ति वर्ष मनाओ

आज बापदादा अपने चारों ओर के बच्चों के मस्तक में चमकती हुई तीन लकीरें देख रहे हैं। एक लकीर है प्रभू पालना की, दूसरी लकीर है श्रेष्ठ पढ़ाई की और तीसरी लकीर है श्रेष्ठ मत की। तीनों ही लकीर चमक रही हैं। यह तीनों लकीर सर्व के भाग्य की लकीरे हैं। आप सभी भी अपनी तीनों लकीरें देख रहे हो ना! प्रभू पालना का भाग्य सिवाए आप ब्राह्मण आत्माओं के और किसी को भी प्राप्त नहीं होता है। परमात्म पालना जिस पालना से कितने श्रेष्ठ पूज्यनीय बन जाते हो। कभी स्वप्न में भी ऐसा सोचा था कि मुझ आत्मा को परमात्म पढ़ाई का अधिकार प्राप्त होना है। लेकिन अभी साकार में अनुभव कर रहे हो। स्वयं सत-गुरू अमृतवेले से रात तक हर कर्म की श्रेष्ठ मत दे कर्म बन्धन के परिवर्तन में, कर्म सम्बन्ध में आने की श्रीमत देने के निमित्त बनायेंगे - यह भी स्वप्न में नहीं था। लेकिन अभी अनुभव से कहते हो हमारा हर कर्म श्रीमत पर चल रहा है। ऐसा अनुभव है? ऐसा श्रेष्ठ भाग्य हर बच्चों का बापदादा भी देख-देख हर्षित होते हैं। वाह मेरे श्रेष्ठ भाग्यवान वाह! बच्चे कहते वाह बाबा वाह! और बाप कहते वाह बच्चे वाह!

आज अमृतवेले से बच्चों के दो संकल्पों से याद बापदादा के पास पहुंची। एक तो कई बच्चों को अपना एकाउन्ट देने की याद थी। दूसरी - बाप के संग के रंग की होली याद थी। तो सभी होली मनाने आये हो ना! ब्राह्मणों की भाषा में मनाना अर्थात् बनना। होली मनाते हैं अर्थात् होली बनते हैं। बापदादा देख रहे थे ब्राह्मण बच्चों का होलीएस्ट बनना कितना सर्व से न्यारा और प्यारा है। वैसे द्वापर के आदि की महान आत्मायें और समय प्रति समय आये हुए धर्म पितायें भी पवित्र, होली बने हैं। लेकिन आपकी पवि-त्रता सबसे श्रेष्ठ भी है, न्यारी भी है। कोई भी सारे कल्प में चाहे महात्मा है, चाहे धर्म आत्मा है, धर्म पिता है लेकिन आप की आत्मा भी पवित्र, शरीर भी पवित्र, प्रकृति भी सतोप्रधान पवित्र, ऐसा होलीएस्ट कोई न बना है, न बन सकता है। अपना भविष्य स्वरूप सामने लाओ। सबके सामने अपना भविष्य रूप आया? या पता ही नहीं है कि बनूंगा या नहीं बनूंगा! क्या बनूंगा! कुछ भी बनेंगे लेकिन होंगे तो पवित्र ना! शरीर भी पवित्र, आत्मा भी पवित्र और प्रकृति भी पवित्र पावन, सुखदाई.... निश्चय की कलम से अपना भविष्य चित्र सामने ला सकते हैं। निश्चय है ना! टीचर्स को निश्चय है? अच्छा एक सेकण्ड में अपना भविष्य चित्र सामने ला सकते हो? चलो कृष्ण नहीं बनेंगे, लेकिन साथी तो बनेंगे ना! कितना प्यारा लगता है। आर्टिस्ट बनना आता है या नहीं आता है? बस सामने देखो। अभी साधारण हूँ, कल (ड्रामा का कल, यह कल नहीं जो कल आयेगा) तो कल यह पवित्र शरीरधारी बनना ही है। पाण्डव क्या समझते हो? पक्का है ना, शक्य तो नहीं है - पता नहीं बनेंगे या नहीं बनेंगे? शक्य है? नहीं है ना! पक्का है। जब राजयोगी हैं तो राज्य अधिकारी बनना ही है। बापदादा कई बार याद दिलाते हैं कि बाप आपके लिए सौगात लाये हैं तो सौगात क्या लाये हैं? सुनहरी दुनिया, सतोप्रधान दुनिया की सौगात लाये हैं। तो निश्चय है, निश्चय की निशानी है रूहानी नशा। जितना अपने राज्य के समीप आ रहे हो, घर के भी समीप आ रहे हो और अपने राज्य के भी समीप आ रहे हो, तो बार-बार अपने स्वीट होम और अपने स्वीट राज्य की स्मृति स्पष्ट आनी ही चाहिए। यह समीप आने की निशानी है। अपना घर, अपना राज्य ऐसा ही स्पष्ट स्मृति में आये, तीसरे नेत्र द्वारा स्पष्ट दिखाई दे। अनुभव हो आज यह, कल यह। कितने बार पार्ट पूरा कर अपने घर और अपने राज्य में गये हो, याद आता है ना! और अब फिर से जाना है।

बापदादा ने सभी की वर्तमान समय की रिजल्ट देखी। चाहे डबल फारेनर्स, चाहे भारतवासी, सभी बच्चों की रिजल्ट में देखा कि वर्तमान समय अलबेले पन के बहुत नये-नये प्रकार बच्चों में हैं। अनेक प्रकार का अलबेलापन है। मन ही मन में सोच लेते हैं, सब चलता है...। आजकल का सब बातों में यह विशेष स्लोगन है - “सब चलता है'' - यह अलबेलापन है। साथ में थोड़ा-थोड़ा भिन्न-भिन्न प्रकार का पुरुषार्थ वा स्व-परिवर्तन में अलबेलेपन के साथ कुछ परसेन्ट में आलस्य भी है। हो जायेगा, कर ही लेंगे... बापदादा ने नये-नये प्रकार की अलबेलेपन की बातें देखी हैं इसलिए अपना सच्चा, सच्ची दिल से अलबेले रूप से नहीं, एकाउन्ट जरूर रखो।

तो बापदादा आज रिजल्ट सुना रहे हैं। सुनाये ना! कि नहीं सिर्फ प्यार करें? यह भी प्यार है। हर एक से बापदादा का इतना प्यार है कि सभी बच्चे ब्रह्मा बाप के साथ-साथ अपने घर में चलें। पीछे-पीछे नहीं आवें, साथी बनके चलें। तो समान तो बनना पड़े ना! बिना समानता के साथी बनके नहीं चल सकेंगे और फिर अपने राज्य का पहला जन्म, पहला जन्म तो पहला ही होगा ना! अगर दूसरे तीसरे जन्म में आ भी गये, अच्छा राजा भी बन गये, लेकिन कहेंगे तो दूसरा तीसरा ना! साथ चलें और ब्रह्मा बाप के साथ पहले जन्म के अधिकारी बनें - यह है नम्बरवन पास विद ऑनर वाले। तो पास विद ऑनर बनना है या पास मार्क्स वाले भी ठीक हैं? कभी भी यह नहीं सोचना कि जो हम कर रहे हैं, जो हो रहा है वह बापदादा नहीं देखते हैं। इसमें कभी अलबेले नहीं होना। अगर कोई भी बच्चा अपने दिल का चार्ट पूछे तो बापदादा बता सकते हैं लेकिन अभी बताना नहीं है। बापदादा हर एक महारथी, घोड़ेसवार... सबका चार्ट देख रहे हैं। कई बार तो बापदादा को बहुत तरस आता है, हैं कौन और करते क्या हैं? लेकिन जैसे ब्रह्मा बाप कहते थे ना - याद है क्या कहते थे? गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। शिवबाबा जाने और ब्रह्मा बाबा जाने क्योंकि बापदादा को तरस बहुत पड़ता है लेकिन ऐसे बच्चे बापदादा के रहम के संकल्प को टच नहीं कर सकते, कैच नहीं कर सकते, इसीलिए बापदादा ने कहा - भिन्न-भिन्न प्रकार का रॉयल अलबेलापन बाप देखते रहते हैं। आज बापदादा कह ही देते हैं कि तरस बहुत पड़ता है। कई बच्चे ऐसे समझते हैं कि सतयुग में तो पता ही नहीं पड़ेगा कौन क्या था, अभी तो मौज मना लो। अभी जो कुछ करना है कर लो। कोई रोकने वाला नहीं, कोई देखने वाला नहीं। लेकिन यह गलत है। सिर्फ बापदादा नाम नहीं सुनाते, नाम सुनायें तो कल ठीक हो जाएं।

तो समझा क्या करना है, पाण्डव समझा कि नहीं समझा! चल जायेगा? चलेगा नहीं क्योंकि बापदादा के पास हर एक की हर दिन की रिपोर्ट आती है। बाप-दादा आपस में भी रूहरिहान करते हैं। तो बापदादा सभी बच्चों को फिर से ईशारा दे रहे हैं कि समय सब प्रकार से अति में जा रहा है। माया भी अपना अति का पार्ट बजा रही है, प्रकृति भी अपना अति का पार्ट बजा रही है। ऐसे समय पर ब्राह्मण बच्चों का अपने तरफ अटेन्शन भी अति अर्थात् मन-वचन-कर्म में अति में चाहिए। साधारण पुरुषार्थ नहीं। वैसे बापदादा ने देखा है कि सेवा से लगन अच्छी है। सेवा के लिए एवररेडी हैं, चांस मिले तो प्यार से सेवा के लिए एवररेडी हैं। लेकिन अभी सेवा में एडीशन करो - वाणी के साथ-साथ मन्सा, अपनी आत्मा को विशेष कोई न कोई प्राप्ति के स्वरूप में स्थित कर वाणी से सेवा करो। मानो भाषण कर रहे हो तो वाणी से तो भाषण अच्छा करते ही हो लेकिन उस समय अपने आत्मिक स्थिति में विशेष चाहे शक्ति की, चाहे शान्ति की, चाहे परमात्म प्यार की, कोई न कोई विशेष अनुभूति की स्थिति में स्थित कर मन्सा द्वारा आत्मिक स्थिति का प्रभाव वायुमण्डल में फैलाओ और वाणी से साथ-साथ सन्देश दो। वाणी द्वारा सन्देश दो, मन्सा आत्मिक स्थिति द्वारा अनुभूति कराओ। भाषण के समय आपके बोल आपके मस्तक से, नयनों से, सूरत से उस अनुभूति की सीरत दिखाई दे कि आज भाषण तो सुना लेकिन परमात्म प्यार की बहुत अच्छी अनुभूति हो रही थी। जैसे भाषण की रिजल्ट में कहते हैं बहुत अच्छा बोला, बहुत अच्छा, बहुत अच्छी बातें सुनाई, ऐसे ही आपके आत्म स्वरूप की अनुभूति का भी वर्णन करें। मनुष्य आत्माओं को वायब्रेशन पहुंचे, वायुमण्डल बनें। जब साइंस के साधन ठण्डा वातावरण कर सकते हैं, सबको महसूस होता है बहुत ठण्डाई अच्छी आ रही है। गर्म वायुमण्डल अनुभव करा सकते हैं। साइंस सर्दी में गर्मी का अनुभव करा सकती है, गर्मी में सर्दी का अनुभव करा सकती, तो आपकी साइंस क्या प्रेम स्वरूप, सुख स्वरूप, शान्त स्वरूप वायुमण्डल अनुभव नहीं करा सकती! यह रिसर्च करो। सिर्फ अच्छा-अच्छा किया लेकिन अच्छे बन जायें, तब समाप्ति के समय को समाप्त कर अपना राज्य लायेंगे। क्यों, आपको अपना राज्य याद नहीं आता? संगमयुग श्रेष्ठ है वह ठीक है, हीरे तुल्य है। लेकिन हे रहमदिल, विश्व कल्याणी बच्चे, अपने दु:खी अशान्त भाई बहिनों पर रहम नहीं आता? उमंग नहीं आता, दु:खमय संसार को सुखमय बना दें, यह उमंग नहीं आता? दु:ख देखने चाहते, दूसरों का दु:ख देखकर भी रहम नहीं आता? आपके भाई हैं, आपकी बहिनें हैं तो दु:ख देखना अच्छा लगता है? अपना दयालु, कृपालु स्वरूप इमर्ज करो। सिर्फ सेवा में नहीं लग जाओ, यह प्रोग्राम किया, यह प्रोग्राम किया... चलो वर्ष पूरा हुआ। अभी मर्सीफुल बनो। चाहे दृष्टि से, चाहे अनुभूति से, चाहे आत्मिक स्थिति के प्रभाव से, मर्सीफुल बनो। रहमदिल बनो। अच्छा।

बापदादा ने एक बात और भी देखी है, सुनाना अच्छा नहीं लगता। कभी-कभी कोई-कोई बच्चे, अच्छे-अच्छे भी दूसरों की बातों में बहुत पड़ते हैं। दूसरों की बातें देखना, दूसरों की बातें वर्णन करना... और देखते भी व्यर्थ बातें हैं। विशेषता एक दो की वर्णन करना, वह कम है। हर एक की विशेषता देखना, विशेषता वर्णन करना, उनकी विशेषता द्वारा उनको उमंग-उत्साह दिलाना, यह कम है। लेकिन व्यर्थ बातें जिन बातों को, बापदादा कहते हैं छोड़ दो, अपनी तो छोड़ने की कोशिश करते, लेकिन दूसरे की देखने की भी आदत है। उसमें टाइम बहुत जाता है। बापदादा एक विशेष श्रीमत दे रहे हैं - है कॉमन बात लेकिन टाइम बहुत वेस्ट जाता है। बोल में निर्मान बनो। बोल में निर्मानता कम नहीं होनी चाहिए। भले साधारण शब्द बोलते हैं, समझते हैं, इसमें तो बोलना ही पड़ेगा ना! लेकिन निर्मानता के बजाए अगर कोई अथॉरिटी से, निर्मान बोल नहीं बोलते तो थोड़ा कार्य का, सीट का, 5 परसेन्ट अभिमान दिखाई देता है। निर्मानता ब्राह्मणों के जीवन का विशेष श्रृंगार है। निर्मानता मन में, वाणी में, बोल में, सम्बन्ध-सम्पर्क में... हो। ऐसे नहीं तीन बातों में तो मैं निर्मान हूँ, एक में कम हूँ तो क्या हुआ! लेकिन वह एक कमी पास विद ऑनर होने नहीं देगी। निर्मानता ही महानता है। झुकना नहीं है, झुकाना है। कई बच्चे हंसी में ऐसे कह देते हैं क्या मुझे ही झुकना है, यह भी तो झुके। लेकिन यह झुकना नहीं है वास्तव में परमात्मा को भी अपने ऊपर झुकाना है, आत्मा की तो बात ही छोड़ो। निर्मानता निरंहकारी स्वत: ही बना देती है। निरंहकारी बनने का पुरुषार्थ करना नहीं पड़ता है। निर्मानता हर एक के मन में, आपके लिए प्यार का स्थान बना देती है। निर्मानता हर एक के मन से आपके प्रति दुआयें निकालेंगी। बहुत दुआयें मिलेंगी। दुआयें, पुरुषार्थ में लिफ्ट से भी रॉकेट बन जायेंगी। निर्माणता ऐसी चीज़ है। कैसा भी कोई होगा, चाहे बिजी हो, चाहे कठोर दिल वाला हो, चाहे क्रोधी हो, लेकिन निर्मानता आपको सर्व द्वारा सहयोग दिलाने के निमित्त बन जायेगी। निर्मान, हर एक के संस्कार से स्वयं को चला सकता है। रीयल गोल्ड होने के कारण स्वयं को मोल्ड करने की विशेषता होती है। तो बापदादा ने देखा है कि बोल-चाल में भी, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी, सेवा में भी एक दो के साथ निर्मान स्वभाव विजय प्राप्त करा देता है, इसलिए इस वर्ष में विशेष बापदादा इस वर्ष को निर्मान, निर्मल वर्ष का नाम दे रहे हैं। वर्ष मनायेंगे ना।

बापदादा हर बच्चे को इस वर्ष में व्यर्थ से मुक्त देखने चाहते हैं। मुक्त वर्ष मनाओ। जो भी कमी हो, उस कमी को मुक्ति दो, क्योंकि जब तक मुक्ति नहीं दी है ना, तो मुक्तिधाम में बाप के साथ नहीं चल सकेंगे। तो मुक्ति देंगे? मुक्ति वर्ष मनायेंगे? जो मनायेगा वह ऐसे हाथ करें। मनायेंगे? एक दो को देख लिया ना, मनायेंगे ना! अच्छा है। अगर मुक्ति वर्ष मनाया तो बापदादा जौहरातों से जड़ी हुई थालियों में बहुत-बहुत मुबारक, ग्रीटिंग्स, बधाईयां देंगे। अच्छा है, अपने को भी मुक्त करो। अपने भाई बहिनों को भी दु:ख से दूर करो। बिचारों के मन से यह तो खुशी का आवाज निकले - हमारा बाप आ गया। ठीक है। अच्छा।

चारों ओर के सर्व होलीएस्ट आत्माओं को, सदा निर्मान बन निर्माण करने वाले बापदादा के समीप आत्माओं को, सदा अपने पुरुषार्थ की विधि को फास्ट, तीव्र कर सम्पन्न बनने वाले स्नेही आत्माओं को, सदा अपने बचत का खाता बढ़ाने वाले तीव्र पुरुषार्थी, तीव्र बुद्धि वाले बच्चों को विशाल बुद्धि की मुबारक। यादप्यार के साथ सभी बच्चों को नमस्ते।

वरदान:-एक बल एक भरोसे के आधार पर माया को सरेन्डर कराने वाले शक्तिशाली आत्मा भव
एक बल एक भरोसा अर्थात् सदा शक्तिशाली। जहाँ एक बल एक भरोसा है वहाँ कोई हिला नहीं सकता। उनके आगे माया मूर्छित हो जाती है, सरेन्डर हो जाती है। माया सरेन्डर हो गई तो सदा विजयी हैं ही। तो यही नशा रहे कि विजय हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। यह अधिकार कोई छीन नहीं सकता। दिल में यह स्मृति इमर्ज रहे कि हम ही कल्प-कल्प की शक्तियां और पाण्डव विजयी बने थे, हैं और फिर बनेंगे।
स्लोगन:-नई दुनिया की स्मृति से सर्व गुणों का आह्वान करो और तीव्रगति से आगे बढ़ो।         कार्यालय:-राजयोगभवन,E-5अरेराकॉलोनीभोपालमध्यप्रदेश।                    संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/b7_XL-YKwnA?

न्यूज़ सोर्स : madhuban/mp1news Bhopal