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प्रश्नः-इस ड्रामा में सबसे अच्छे ते अच्छा पार्ट तुम बच्चों का है - कैसे?
उत्तर:-तुम बच्चे ही बेहद के बाप के बनते हो। भगवान टीचर बनकर तुम्हें ही पढ़ाते हैं तो भाग्यशाली हुए ना। विश्व का मालिक तुम्हारा मेहमान बनकर आया है, वह तुम्हारे सहयोग से विश्व का कल्याण करते हैं। तुम बच्चों ने बुलाया और बाप आया, यही है दो हाथ की ताली। अभी बाप से तुम बच्चों को सारे विश्व पर राज्य करने की शक्ति मिलती है।
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चे रूहानी बाप के सामने बैठे हैं। शिक्षक के सामने भी बैठे हैं और यह भी जानते हैं यह बाबा गुरू के रूप में आये हैं हम बच्चों को ले जाने। बाप भी कहते हैं - हे रूहानी बच्चों, मैं आया हूँ तुमको यहाँ से ले जाने। यह पुरानी दुनिया बन गई है और यह भी जानते हो कि यह दुनिया छी-छी है। तुम बच्चे भी छी-छी बन गये हो। अपने को आपेही कहते हो पतित-पावन बाबा आकर हम पतितों को इस दु:खधाम से शान्तिधाम में ले जाओ। अभी तुम यहाँ बैठे रहते हो तो यह दिल में आना चाहिए। बाप भी कहते हैं मैं तुम्हारे बुलावे पर, निमन्त्रण पर आया हूँ। बाप याद दिलाते हैं बरोबर तुम बुलाते थे ना आओ। अभी तुमको स्मृति आई है हमने बुलाया है। अब बाबा आये हुए हैं ड्रामा अनुसार कल्प पहले मिसल। वो लोग प्लैन बनाते हैं ना। यह भी शिवबाबा का प्लैन है। इस समय सबके अपने-अपने प्लैन हैं ना। 5 वर्ष का प्लैन बनाते हैं, उसमें यह-यह करेंगे, बातें देखो कैसे आकर मिलती हैं। आगे यह प्लैन आदि नहीं बनाते थे, अभी प्लैन बनाते रहते हैं। तुम बच्चे जानते हो हमारे बाबा का प्लैन यह है। ड्रामा के प्लैन अनुसार 5 हजार वर्ष पहले मैंने यह प्लैन बनाया था। तुम मीठे-मीठे बच्चे जो यहाँ बहुत दु:खी हो गये हो, वेश्यालय में पड़े हो, अब मैं आया हूँ तुमको शिवालय में ले जाने। वह शान्तिधाम है निराकारी शिवालय और सुखधाम है साकारी शिवालय। तो इस समय बाप तुम बच्चों को रिफ्रेश कर रहे हैं। तुम बाप के सम्मुख बैठे हो ना। बुद्धि में निश्चय तो है बाबा आया हुआ है। ‘बाबा' अक्षर बहुत मीठा है। यह भी जानते हो हम आत्मायें उस बाप के बच्चे हैं फिर पार्ट बजाने के लिए इस बाबा के बनते हैं। कितना समय तुमको लौकिक बाबायें मिले हैं? सतयुग से लेकर सुख और दु:ख का पार्ट बजाया है। अभी तुम जानते हो हमारा दु:ख का पार्ट पूरा होता है, सुख का पार्ट भी पूरा 21 जन्म बजाया है। फिर आधाकल्प दु:ख का पार्ट बजाया। बाबा ने तुमको स्मृति दिलाई है, बाबा पूछते हैं बरोबर ऐसे है ना। अब फिर तुमको आधाकल्प सुख का पार्ट बजाना है। इस ज्ञान से तुम्हारी आत्मा भरपूर रहती है फिर खाली हो जाती है। फिर बाप भरपूर करते हैं, तुम्हारे गले में विजय माला पड़ी है। गले में ज्ञान की माला है। बरोबर हम चक्र लगाते रहते हैं। सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग फिर आते हैं इस स्वीट संगम पर। इनको स्वीट कहेंगे। शान्तिधाम कोई स्वीट नहीं है। सबसे स्वीट है पुरूषोत्तम कल्याणकारी संगमयुग। ड्रामा में तुम्हारा भी अच्छे ते अच्छा पार्ट है। तुम कितने लकी हो। बेहद के बाप के तुम बनते हो। वह आकर तुम बच्चों को पढ़ाते हैं। कितनी ऊंच, कितनी सहज पढ़ाई है। कितना तुम धनवान बनते हो, इसमें कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती। डॉक्टर, इन्जीनियर आदि कितनी मेहनत करते हैं, तुमको तो वर्सा मिलता है, बाप की कमाई पर बच्चे का हक होता है ना। तुम यह पढ़कर 21 जन्मों की सच्ची कमाई करते हो। वहाँ तुमको कोई घाटा नहीं पड़ता है जो बाप को याद करना पड़े, इनको ही अजपाजाप कहा जाता है।

तुम जानते हो बाबा आया हुआ है। बाप भी कहते हैं मैं आया हूँ, दोनों हाथ की ताली बजेगी ना। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म हो जायें। 5 विकारों रूपी रावण ने तुमको पाप आत्मा बनाया है फिर पुण्य आत्मा भी बनना है, यह बुद्धि में आना चाहिए। हम बाप की याद से पवित्र बनकर फिर घर जायेंगे, बाप के साथ। फिर इस पढ़ाई से हमको माइट मिलती है। देवी-देवता धर्म के लिए कहा जाता है रिलीजन इज माइट। बाप तो है सर्वशक्तिमान्। तो बाबा से हमको विश्व में शान्ति स्थापन करने की ताकत मिलती है। वह बादशाही हमसे कोई छीन न सके। इतनी ताकत मिलती है। राजाओं के हाथ में देखो कितनी ताकत आ जाती है। कितना उनसे डरते हैं। एक राजा की कितनी प्रजा, लश्कर आदि होता है परन्तु वह है अल्पकाल की ताकत। यह फिर है 21 जन्मों की ताकत। अभी तुम जानते हो हमको सर्वशक्तिमान् बाप से ताकत मिलती है विश्व पर राज्य करने की। लॅव तो रहता है ना। देवतायें प्रैक्टिकल में नहीं हैं तो भी कितना लव रहता है। जब सम्मुख होंगे तो प्रजा का कितना लव होगा। याद की यात्रा से यह सब तुम ताकत ले रहे हो। यह बातें भूलो नहीं। याद करते-करते तुम बहुत ताकत वाले बन जाते हो। सर्वशक्तिमान् और कोई को नहीं कहा जाता। सबको शक्ति मिलती है, इस समय कोई में शक्ति नहीं है, सब तमोप्रधान हैं। फिर सभी आत्माओं को एक से ही शक्ति मिल जाती है फिर अपनी राजधानी में आकर अपना-अपना पार्ट बजाते हैं। अपना हिसाब-किताब चुक्तू कर फिर ऐसे ही नम्बरवार शक्तिमान बनते हैं। पहले नम्बर में है इन देवताओं में शक्ति। यह लक्ष्मी-नारायण बरोबर सारे विश्व के मालिक थे ना। तुम्हारी बुद्धि में सारा सृष्टि का चक्र है। जैसे तुम्हारी आत्मा में यह नॉलेज है, वैसे बाबा की आत्मा में भी सारी नॉलेज है। अभी तुमको ज्ञान दे रहे हैं। ड्रामा में पार्ट भरा हुआ है जो रिपीट होता रहता है। फिर वह पार्ट 5 हजार वर्ष के बाद रिपीट होगा। यह भी तुम बच्चे जानते हो। तुम सतयुग में राज्य करते हो तो बाप रिटायर लाइफ में रहते हैं फिर कब स्टेज पर आते हैं? जब तुम दु:खी होते हो। तुम जानते हो उनके अन्दर सारा रिकॉर्ड भरा हुआ है। कितनी छोटी आत्मा है, उनमें कितनी समझ रहती है। बाप आकर कितनी समझ देते हैं। फिर वहाँ सतयुग में यह सब भूल जाते हो। सतयुग में तुमको यह नॉलेज होती नहीं। वहाँ तुम सुख भोगते रहते हो। यह भी अभी तुम समझते हो, सतयुग में हम सो देवता बन सुख भोगते हैं। अभी हम सो ब्राह्मण हैं। फिर सो देवता बन रहे हैं। यह ज्ञान बुद्धि में अच्छी रीति धारण करना है। किसको समझाने में खुशी होती है ना। तुम जैसे प्राण दान देते हो। कहते हैं ना काल आकर सबको ले जाते हैं। काल आदि कोई है नहीं। यह तो बना-बनाया ड्रामा है। आत्मा कहती है मैं एक शरीर छोड़ चला जाता हूँ फिर दूसरा लेता हूँ। मुझे कोई काल नहीं खाता। आत्मा को फीलिंग आती है। आत्मा जब गर्भ में रहती है तो साक्षात्कार कर दु:ख भोगती है। अन्दर सजा भोगती है इसलिए उनको कहा जाता है गर्भ जेल। कितना यह वन्डरफुल ड्रामा बना हुआ है। गर्भ जेल में सजायें खाते अपना साक्षात्कार करते रहते हैं। सजा क्यों मिली? साक्षात्कार तो करायेंगे ना - यह-यह बेकायदे काम किया है, इनको दु:ख दिया है। वहाँ सब साक्षात्कार होते हैं फिर भी बाहर आकर पाप आत्मा बन जाते हैं। सभी पाप भस्म कैसे होंगे? सो तो बच्चों को समझाया है - इस याद की यात्रा से और स्वदर्शन चक्र फिराने से तुम्हारे पाप कटते हैं। बाप कहते भी हैं - मीठे-मीठे स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों, तुम 84 का यह स्वदर्शन चक्र फिरायेंगे तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप कट जायेंगे। चक्र को भी याद करना है, किसने यह ज्ञान दिया, उनको भी याद करना है। बाबा हमको स्वदर्शन चक्रधारी बना रहे हैं। बनाते तो हैं परन्तु फिर रोज़-रोज़ नये आते हैं तो उन्हों को रिफ्रेश करना होता है। तुमको सारा ज्ञान मिला है, अभी तुम जानते हो हम यहाँ आये हैं पार्ट बजाने। 84 का चक्र लगाया अब फिर वापिस जाना है। ऐसे चक्र फिराते रहते हो? बाप जानते हैं बच्चे बहुत भूल जाते हैं। चक्र फिराने में कोई तकलीफ नहीं है, फुर्सत तो बहुत मिलती है। पिछाड़ी में तुम्हारी यह स्वदर्शन चक्रधारी की अवस्था रहेगी। तुमको ऐसा बनना है। संन्यासी लोग तो यह शिक्षा दे नहीं सकते। स्वदर्शन चक्र को खुद गुरू लोग ही जानते नहीं हैं। वह तो सिर्फ कहेंगे चलो गंगा जी पर। कितने स्नान करते हैं! बहुत स्नान करने से गुरूओं की आमदनी होती है। घड़ी-घड़ी यात्रा पर जाते हैं। अब उस यात्रा और इस यात्रा में फर्क देखो कितना है। यह यात्रा वह सब यात्रायें छुड़ा देती है। यह यात्रा कितनी सहज है। चक्र भी फिराओ। गीत भी है ना - चारों तरफ लगाये फेरे फिर भी हरदम दूर रहे। बेहद के बाप से दूर रहे। यह तुमको महसूसता आती है। वो लोग इस अर्थ को नहीं जानते। अभी तुम जानते हो बहुत फेरे लगाते रहे। अभी इन फेरों से तुम छूट गये हो। फेरे लगाते कोई नज़दीक नहीं आये हो और ही दूर होते गये।

अभी ड्रामा प्लैन अनुसार बाप को ही आना पड़ता है, सबको साथ ले जाने। बाप कहते हैं मेरी मत पर तुमको चलना ही है, पवित्र बनना है। इस दुनिया को देखते हुए नहीं देखना है। जब तक नया मकान बनकर तैयार हो जाए तब तक पुराने में रहना पड़ता है। बाप संगम पर ही आते हैं वर्सा देने। बेहद के बाप का है बेहद का वर्सा। बच्चे जानते हैं बाप का वर्सा हमारा है। उस खुशी में रहते हैं। अपनी कमाई भी करते हैं और बाप का वर्सा भी मिलता है। तुमको तो वर्सा ही मिलता है। वहाँ तुमको पता नहीं पड़ेगा स्वर्ग का वर्सा हमको कैसे मिला। वहाँ तो तुम्हारी लाइफ बहुत सुखी रहती है क्योंकि तुम बाप को याद कर माइट लेते हो। पाप काटने वाला पतित-पावन एक ही बाप है। बाप को याद करने और स्वदर्शन चक्र को फिराने से ही तुम्हारे पाप कटते हैं। यह अच्छी रीति नोट करो। यही समझाना बस है। आगे चल तुमको तीक-तीक नहीं करनी पड़ेगी। एक इशारा ही बस है। बेहद के बाप को याद करो तो तुम्हारे पाप कट जायेंगे। तुम नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने आते हो। यह तो याद है ना। और कोई की भी बुद्धि में यह बात नहीं आती। यहाँ तुम आते हो, बुद्धि में है हम जाते हैं बापदादा के पास। उनसे नई दुनिया स्वर्ग का वर्सा लेने।

बाप कहते हैं स्वदर्शन चक्रधारी बनने से तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे। अब जो तुम्हारी जीवन हीरे जैसी बनाते हैं उनको देखो। यह भी तुम समझते हो - इसमें देखने की कोई बात नहीं। यह तुम दिव्य दृष्टि द्वारा जानते हो। आत्मा ही पढ़ती है इस शरीर द्वारा - यह ज्ञान अभी मिला है। हम जो कर्म करते हैं, आत्मा ही शरीर लेकर कर्म करती है। बाबा को भी पढ़ाना है, उनका नाम तो सदैव शिव ही है। शरीर के नाम बदलते हैं। यह शरीर तो हमारा नहीं है। यह इनकी मिलकियत है। शरीर आत्मा की मिल-कियत होती है, जिससे पार्ट बजाती है। यह तो बिल्कुल सहज समझ की बात है। आत्मा तो सबमें है, सबके शरीर का नाम अलग-अलग पड़ता है। यह फिर है परम आत्मा, सुप्रीम आत्मा। ऊंच ते ऊंच है। अभी तुम समझते हो भगवान तो एक है क्रियेटर। बाकी सब हैं रचना पार्ट बजाने वाले। यह भी जान गये हो कैसे आत्मायें आती हैं, पहले-पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म की आत्मायें रहती हैं थोड़ी। फिर पिछाड़ी में लायक बनते हैं पहले आने के लिए। यह सृष्टि चक्र की जैसे माला है जो फिरती रहती है। माला को तुम फिराते हो तो सब दानों का चक्र फिरता है ना। सतयुग में भक्ति जरा भी नहीं होती। बाप ने समझाया है - हे आत्मायें, मामेकम् याद करो। तुमको घर जरूर लौटना है, विनाश सामने खड़ा है। याद से ही पाप कटेंगे और फिर सजायें खाने से भी छूट जायेंगे। मर्तबा भी अच्छा पायेंगे। नहीं तो सजायें बहुत खानी पड़ेंगी। मैं तुम बच्चों के पास कितना अच्छा मेहमान हूँ। मैं सारे विश्व को चेंज करता हूँ, पुराने विश्व को नया बना देता हूँ। तुम भी जानते हो बाबा कल्प-कल्प आकर विश्व को चेन्ज कर पुराने विश्व को नया बना देते हैं। यह विश्व नये से पुरानी, पुरानी से नई होती है ना। तुम इस समय चक्र फिराते रहते हो। बाप की बुद्धि में ज्ञान है, वर्णन करते हैं तुम्हारी बुद्धि में भी है चक्र कैसे फिरता है। तुम जानते हो बाबा आया हुआ है, उनकी श्रीमत पर हम पावन बनते हैं। याद से ही पावन बनते जायेंगे फिर ऊंच पद पायेंगे। पुरूषार्थ भी कराना जरूरी है। पुरूषार्थ कराने के लिए कितने चित्र आदि बनाते हैं। जो आते हैं उनको तुम 84 के चक्र पर समझाते हो। बाप को याद करने से तुम पतित से पावन बन जायेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) ज्ञान को बुद्धि में अच्छी रीति धारण कर अनेक आत्माओं को प्राण दान देना है, स्वदर्शन चक्रधारी बनना है।

2) इस स्वीट संगम पर अपनी कमाई के साथ-साथ बाप की श्रीमत पर चल पूरा वर्सा लेना है। अपनी लाइफ सदा सुखी बनानी है।

वरदान:-सर्व वरदानों को समय पर कार्य में लगाकर फलीभूत बनाने वाले फल स्वरूप भव
बापदादा द्वारा समय प्रति समय जो भी वरदान मिले हैं, उन्हें समय पर कार्य में लगाओ। सिर्फ वरदान सुनकर खुश नहीं हो कि आज बहुत अच्छा वरदान मिला। वरदान को काम में लगाने से वरदान कायम रहते हैं। वरदान तो अविनाशी बाप के हैं लेकिन उसे फलीभूत करना है। इसके लिए वरदान को बार-बार स्मृति का पानी दो, वरदान के स्वरूप में स्थित होने की धूप दो तो वरदानों के फल स्वरूप बन जायेंगे।
स्लोगन:-विशेषतायें प्रभु प्रसाद हैं, इन्हें सेवा में लगाओ, बांटों और बढ़ाओ।                                              कार्यालय:-राजयोगभवन,E-5अरेराकॉलोनीभोपालमध्यप्रदेश।                    संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/q9eog0OpBGI?

न्यूज़ सोर्स : madhuban/mp1news Bhopal