मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं, YouTube को क्लिक कर सुन भी सकते है।                                            'आत्मिक प्यार की मूर्ति बन शिक्षा और सहयोग साथ-साथ दो"

(विशेष मधुबन निवासी भाई-बहिनों से मुलाकात)

आज प्यार के सागर बापदादा अपने मास्टर ज्ञान सागर बच्चों से मिलन मना रहे हैं। ये परमात्म प्यार बच्चों की पालना का आधार है। जैसे परमात्म प्यार ब्राह्मण जीवन का आधार है, ऐसे ही ब्राह्मण संगठन का आधार आत्मिक प्यार है। जो आत्मिक प्यार आप बच्चे ही अनुभव कर सकते हो। आज के विश्व की आत्मायें इस सच्चे, नि:स्वार्थ आत्मिक-परमात्म प्यार की प्यासी हैं। ऐसा सच्चा प्यार सिवाए आप ब्राह्मण आत्माओं के किसी को प्राप्त नहीं हो सकता। प्यासी आत्माओं की प्यास पूर्ण करने वाले अपने को हर समय परमात्म प्यार वा आत्मिक प्यार में समाये हुए अनुभव करते हो? प्यार के दाता व देवता सदा रहे हो? चलते-फिरते आत्मिक प्यार की वृत्ति, दृष्टि, बोल, सम्बन्ध-सम्पर्क अर्थात् कर्म अनुभव करते हो? कैसी भी आत्मा हो लेकिन आप ब्राह्मणों की नेचुरल वृत्ति, ब्राह्मण नेचर बन गयी है? बनानी पड़ती है या बन गयी है? फालो फादर, फालो मदर। अपने ब्राह्मण जन्म के आदि समय को याद करो। भिन्न-भिन्न नेचर वाले बाप के बने। प्यार के सागर बाप ने एक ही प्यार के सागर के स्वरूप की अनादि नेचर से अपना बना लिया ना! अगर आप सबकी भिन्न-भिन्न नेचर देखते तो अपना बना सकते? तो अपने से पूछो, मेरी नेचुरल नेचर क्या है? किसी की भी कमजोर नेचर; वास्तव में ब्राह्मण जीवन की नेचुरल नेचर मास्टर प्रेम का सागर है। जब दुनिया वाले भी कहते हैं कि प्यार पत्थर को भी पानी करता है, तो आत्मिक प्यार, परमात्म प्यार ले के देने वाले, भिन्न-भिन्न नेचर को परिवर्तन नहीं कर सकते? कर सकते है या नहीं? पीछे वाले बोलो? जो समझते हैं कर सकते हैं वो एक हाथ उठाओ। बड़ा हाथ उठाओ, छोटा नहीं। (सभी ने हाथ उठाया) अच्छा मुबारक हो! फिर सरकमस्टान्स आते हैं। सरकमस्टान्स तो आने ही हैं। ये तो ब्राह्मण जीवन के रास्ते के साइडसीन्स हैं। और साइडसीन कभी एक जैसे नहीं होते हैं। कोई सुन्दर भी होती है, कोई गन्दगी की भी होती है। लेकिन पार करना राही का काम है, ना कि साइडसीन बदलने की बात है। तो बापदादा क्या चाहते हैं! सब जानने में तो होशियार हो गये हो ना।

आज मधुबन निवासियों को विशेष चान्स मिला है। गोल्डन चान्स है ना। अच्छा। इस गोल्डन चान्स का रिटर्न क्या? बड़े उमंग-उत्साह से चान्स लिया है। वैसे नीचे बैठने वाले भी मधुबन निवासी हैं (मधुबन निवासी भाई बहिनों के अलावा अन्य सभी पाण्डव भवन में मुरली सुन रहे हैं) लेकिन आज सिर्फ ग्रुप-ग्रुप को मिलने का चान्स है। इतना इकट्ठा तो दूर-दूर हो जाते हैं इसलिए थोड़े-थोड़े भाग बनाये हैं। बाकी हैं सभी मधुबन निवासी। जब सेन्टर पर रहने वालों की भी परमानेन्ट एड्रेस मधुबन ही है ना, तो ब्राह्मण अर्थात् परमानेन्ट एड्रेस मधुबन। घर मधुबन है बाकी सेवा स्थान हैं। तो नीचे वाले ऐसे नहीं समझें कि आज हमको मधुबन निवासियों से निकाल लिया है। नहीं, आप सब मधुबन निवासी हैं। सिर्फ आपको सामने बापदादा देखने चाहते हैं। तो छोटे ग्रुप में देख सकते हैं। अभी देखो, पीछे देखने वाले भी इतने स्पष्ट नहीं दिखाई देते हैं, ये नजदीक वाले स्पष्ट दिखाई देते हैं। लेकिन पीछे वाले दिल से दूर नहीं हैं। नीचे वाले भी दिल से दूर नहीं हैं। तो बापदादा यही चाहते हैं कि वर्तमान समय प्रमाण लव और लॉ का बैलेन्स रखना पड़ता है, लेकिन लॉ और लव का बैलेन्स मिलकरके लॉ नहीं लगे। लॉ में भी लव महसूस हो। जैसे साकार स्वरूप में बाप को देखा। लॉ के साथ लव इतना दिया जो हरेक के मुख से यही निकलता कि बाबा का मेरे से प्यार है। मेरा बाबा है। लॉ जरूर उठाओ लेकिन लॉ के साथ लव भी दो। सिर्फ लॉ नहीं। सिर्फ लॉ से कहाँ-कहाँ आत्मायें कमजोर होने के कारण दिल-शिकस्त हो जाती हैं। जब स्वयं आत्मिक प्यार की मूर्ति बनेंगे तब दूसरों के प्यार की, (आत्मिक प्यार, दूसरा प्यार नहीं) आत्मिक प्यार अर्थात् हर समस्या को हल करने में सहयोगी बनना। सिर्फ शिक्षा देना नहीं, शिक्षा और सहयोग साथ-साथ देना - ये है आत्मिक प्यार की मूर्ति बनना। तो आज विशेष बापदादा हर ब्राह्मण आत्मा को, चाहे देश, चाहे विदेश चारों ओर के सर्व बच्चों को यही विशेष अण्डरलाइन करते हैं कि आत्मिक प्यार की मूर्ति बनो। और आत्माओं के आत्मिक प्यार की प्यास बुझाने वाले दाता-देवता बनो। ठीक है ना! अच्छा।

(फिर बापदादा ने मधुबन वालों से चिटचैट की तथा सभी को नज़र से निहाल करते दृष्टि दी)

हॉस्पिटल, आबू निवासी तथा पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:- सभी अपने को खुशनसीब समझते हो? सारे विश्व में सबसे बड़े ते बड़ा नसीब किसका है? हरेक क्या समझते हैं कि सबसे बड़े ते बड़ा नसीब मेरा है! हर एक ऐसा समझते हैं? जब खुशनसीब हैं तो खुश रहते हैं? सदा खुश रहते हैं? कभी-कभी तो नहीं ना! जब बापदादा ने भाग्य का सितारा चमका दिया तो चमकते हुए सितारे को देख खुश रहते हो? दिल में सदा खुशी के बाजे बजते हैं। बजते हैं? कौन सा गीत दिल गाती है? “वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य'' - यह गीत गाते हो? सारा कल्प आपके भाग्य का गायन होता रहता है। आधाकल्प भाग्य की प्रालब्ध भोगते हो और आधा कल्प आपके भाग्य का गायन अनेक आत्मायें गाती रहती हैं। सबसे विशेष बात है कि बाप को सारे विश्व में से कौन पसन्द आया? आप पसन्द आये ना! कितनी आत्मायें हैं लेकिन आप ही पसन्द आये। जिसको भगवान ने पसन्द कर लिया, उससे ज्यादा क्या होगा! तो सदा बाप के साथ अपना भाग्य भी याद रखो। भगवान और भाग्य। सारे कल्प में ऐसी कोई आत्मा होगी जिसको रोज़ याद प्यार मिले, प्रभु प्यार मिले। रोज़ यादप्यार मिलता है ना। सबसे ज्यादा लाडले कौन हैं? आप ही लाडले हो ना। तो सदा अपने भाग्य को याद करने से व्यर्थ बातें भाग जायेंगी। भगाना नहीं पड़ेगा, सहज ही भाग जायेंगी।

अभी वर्तमान समय के प्रमाण संगमयुग के समय का महत्व समझकर हर सेकण्ड अपनी प्रालब्ध श्रेष्ठ बनाते रहो। एक सेकण्ड भी व्यर्थ नहीं जाये क्योंकि एक-एक सेकण्ड का बहुत बड़ा महत्व है। सेकण्ड नहीं जाता लेकिन बहुत समय जाता है और यह समय फिर नहीं मिलना है। समय का परिचय है ना - अच्छी तरह से। स्मृति में रहता है? देखो, आज आप सबको स्पेशल टाइम मिला है ना। अगर इकट्ठे आते तो दिखाई भी नहीं देते। अभी देख तो रहे हैं कौन-कौन हैं। सब विशेष आत्मायें हो। सिर्फ अपनी विशेषता को जान विशेषता को कार्य में लगाओ। ड्रामा अनुसार हर ब्राह्मण आत्मा को कोई न कोई विशेषता प्राप्त है। ऐसा कोई नहीं है जिसमें कोई विशेषता नहीं हो। तो अपनी विशेषता को सदा स्मृति में रखो और उसको सेवा में लगाओ। हरेक की विशेषता, उड़ती कला की बहुत तीव्र विधि बन जायेगी। सेवा में लगाना, अभिमान में नहीं आना क्योंकि संगम पर हर विशेषता ड्रामा अनुसार परमात्म देन है। परमात्म देन में अभिमान नहीं आयेगा। जैसे प्रसाद होता है ना उसको कोई अपना नहीं कहेगा कि मेरा प्रसाद है, प्रभु प्रसाद है। ये विशेषतायें भी प्रभु प्रसाद हैं। प्रसाद सिर्फ अपने प्रति नहीं यूज़ किया जाता है, बांटा जाता है। बांटते हो, महादानी हो, वरदानी भी हो। पाण्डव भी वरदानी, महादानी हैं, शक्तियां भी महादानी हैं? एक दो घण्टे के महादानी नहीं, खुला भण्डार, इसीलिए बाप को भोला भण्डारी कहते हैं, खुला भण्डार है ना। आत्माओं को अंचली देते जाओ, कितनी बड़ी लाइन हैं भिखारियों की। और आपके पास कितना भरपूर भण्डार है? अखुट भण्डार है, खुटने वाला है क्या? बांटने में एकानामी तो नहीं करते? इसमें फ्राक दिली से बांटो। व्यर्थ गंवाने में एकानामी करो लेकिन बांटने में खुली दिल से बांटो।

सभी खुश हैं? कभी-कभी थोड़ा-थोड़ा होता है। कभी मूड आफ, कभी मूड बहुत खुश ऐसे तो नहीं ना। फालो फादर, बापदादा मूड आफ करता है क्या? तो फालो फादर हैं ना। बापदादा के पास स्पेशल ब्राह्मण बच्चों के लिए टी.वी. है, उसमें सबकी भिन्न-भिन्न मूड आती है। कितना मजा आता होगा देखने में! सदा महादानी बनने वाले की मूड बदलती नहीं है। दाता हैं ना, देते जाओ। देवता बनने वाले माना देने वाले। लेवता नहीं देवता। कितने बार देवता बने हो, अनेक बार बने हो ना। तो देवता अर्थात् देने के संस्कार वाले। कोई कुछ भी दे लेकिन आप सुख की अंचली, शान्ति की अंचली प्रेम की अंचली दो। लोगों के पास है ही दु:ख अशान्ति तो क्या देंगे वो ही देंगे ना। और आपके पास क्या है - सुख-शान्ति। सब ठीक है ना! अच्छा! मिलन मनाया, ऐसे तो नहीं समझते हम तो पीछे आये। स्पेशल आये हो। नजदीक तो मधुबन के रह रहे हो। मधुबन का घेराव तो अच्छा किया है।

हॉस्पिटल वाले भी सेवा अच्छी कर रहे हैं। शान्तिवन के भी बहुत हैं। पार्टी वाले सिकीलधे हैं। थोड़े हैं इसलिए सिकीलधे हैं। फारेनर्स के बिना भी शोभा नहीं है, इसलिए हर ग्रुप में अपनी शोभा बढ़ाने अच्छा आ जाते हैं। अच्छा।

सेवाधारियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:- सभी सेवा के निमित्त अपना भाग्य बनाने वाले हो क्योंकि इस यज्ञ सेवा का पुण्य बहुत बड़ा है। तन से सेवा तो करते हो लेकिन मन से भी सेवा करते रहो, तो डबल पुण्य हो जाता है। मन्सा सेवा और तन की सेवा। जो भी आते हैं सेवाधारियों की सेवा से वायुमण्डल में देख करके अपना लाभ लेकर जाते हैं। तो जितने भी आते हैं सेवा के समय, उतनी आत्माओं का पुण्य या दुआयें जमा हो जाती हैं। ऐसे सेवा करते हो, तन से भी और मन से भी। डबल सेवाधारी हो या सिंगल, कौन हो? डबल। डबल करते हो? सेवा का प्रत्यक्षफल भी मिलता रहता है। जितना समय रहते हो, एक्स्ट्रा खुशी मिलती है ना! तो प्रत्यक्ष फल भी खाते हो, दुआयें भी जमा होती है, भविष्य भी बना और वर्तमान भी बना। बापदादा को भी खुशी होती है कि बच्चे अपनी प्रालब्ध बहुत सहज और श्रेष्ठ बना रहे हैं। बस सेवा, सेवा और सेवा। और किसी बातों में नहीं जाना। सेवा अर्थात् जमा करना। जितना भी समय मिलता है तो डबल कमाई करो। प्रत्यक्षफल भी, भविष्य भी। सेवा का चांस भी आप आत्माओं को प्राप्त है। सेवाधारियों से बापदादा का विशेष प्यार होता है क्योंकि बापदादा भी विश्व का सेवक है। तो समान हो गये ना! मन को बिजी रखते हो या खाली रखते हो? मधुबन अर्थात् याद और सेवा। चलते-फिरते मन याद में या सेवा में बिजी रहे। सभी खुश रहते हो? कभी-कभी वाले तो नहीं हो? सदा खुश रहने वाले। आपकी खुशी को देख दूसरे भी खुश हो जाते है। सेवाधारियों को भी टर्न मिला, खुश हो ना! टर्न मिला ना विशेष? मधुबन वालों के निमित्त आपका भी गोल्डन चांस हो गया। स्वयं सदा स्वमान में रह उड़ते रहो। स्वमान को कभी नहीं छोड़ो, चाहे झाड़ू लगा रहे हो लेकिन स्वमान क्या है? विश्व की सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ आत्मा हूँ। तो अपना रूहानी स्वमान कोई भी काम करते भूलना नहीं। नशा रहता है ना, रूहानी नशा। हम किसके बन गये! भाग्य याद रहता है ना? भूलते तो नहीं हो? जितना भी समय सेवा के लिए मिलता है उतना समय एक-एक सेकण्ड सफल करो। व्यर्थ नहीं जाए, साधारण भी नहीं। रूहानी नशे में, रूहानी प्राप्तियों में समय जाए। ऐसा लक्ष्य रखते हो ना। अच्छा, ओम् शान्ति।

वरदान:-स्नेह की उड़ान द्वारा सदा समीपता का अनुभव करने वाले स्नेही मूर्त भव
सभी बच्चों में बापदादा का स्नेह समाया हुआ है, स्नेह की शक्ति से सभी आगे उड़ते जा रहे हैं। स्नेह की उड़ान तन वा मन से, दिल से बाप के समीप ले आती है। भल ज्ञान योग धारणा में सब यथाशक्ति नम्बरवार हैं लेकिन स्नेह में हर एक नम्बरवन हैं। यह स्नेह ही ब्राह्मण जीवन प्रदान करने का मूल आधार है। स्नेह का अर्थ है पास रहना, पास होना और हर परिस्थिति को बहुत सहज पास करना।
स्लोगन:-अपनी नज़रों में बाप को समा लो तो माया की नज़र से बच जायेंगे।                                     कार्यालय:-राजयोगभवन,E-5अरेराकॉलोनीभोपालमध्यप्रदेश।                    संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/Bqlc7l8kahw?

न्यूज़ सोर्स : madhuban/mp1news Bhopal