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आज चारों ओर के सर्व स्नेही बच्चों के स्नेह के मीठे-मीठे याद के भिन्न-भिन्न बोल, स्नेह के मोती की मालायें बापदादा के पास अमृतवेले से भी पहले पहुंच गई। बच्चों का स्नेह बापदादा को भी स्नेह के सागर में समा लेता है। बापदादा ने देखा हर एक बच्चे में स्नेह की शक्ति अटूट है। यह स्नेह की शक्ति हर बच्चे को सहजयोगी बना रही है। स्नेह के आधार पर सर्व आकर्षणों से उपराम हो आगे से आगे बढ़ रहे हैं। ऐसा एक बच्चा भी नहीं देखा जिसको बापदादा द्वारा या विशेष आत्माओं द्वारा न्यारे और प्यारे स्नेह का अनुभव न हो। हर एक ब्राह्मण आत्मा का ब्राह्मण जीवन का आदिकाल स्नेह की शक्ति द्वारा ही हुआ है। ब्राह्मण जन्म की यह स्नेह की शक्ति वरदान बन आगे बढ़ा रही है। तो आज का दिन विशेष बाप और बच्चों के स्नेह का दिन है। हर एक ने अपने दिल में स्नेह के मोतियों की बहुत-बहुत मालायें बापदादा को पहनाई। और शक्तियां आज के दिन मर्ज हैं लेकिन स्नेह की शक्ति इमर्ज है। बापदादा भी बच्चों के स्नेह के सागर में लवलीन है।

आज के दिन को स्मृति दिवस कहते हो। स्मृति दिवस सिर्फ ब्रह्मा बाप के स्मृति का दिवस नहीं है लेकिन बापदादा कहते हैं आज और सदा यह याद रहे कि बापदादा ने ब्राह्मण जन्म लेते ही आदि से अब तक क्या-क्या स्मृतियां दिलाई हैं। वह स्मृतियों की माला याद करो, बहुत बड़ी माला बन जायेगी। सबसे पहली स्मृति सबको क्या मिली? पहला पाठ याद है ना! मैं कौन! इस स्मृति ने ही नया जन्म दिया, वृत्ति दृष्टि स्मृति परिवर्तन कर दी है। ऐसी स्मृतियां याद आते ही रूहानी खुशी की झलक नयनों में, मुख में आ ही जाती है। आप स्मृतियां याद करते और भक्त माला सिमरण करते हैं। एक भी स्मृति अमृतवेले से कर्मयोगी बनने समय भी बार-बार याद रहे तो स्मृति समर्थ स्वरूप बना देती है क्योंकि जैसी स्मृति वैसी ही समर्थी स्वत: ही आती है इसलिए आज के दिन को स्मृति दिन साथ-साथ समर्थ दिन कहते हैं। ब्रह्मा बाप सामने आते ही, बाप की दृष्टि पड़ते ही आत्माओं में समर्थी आ जाती है। सब अनुभवी हैं। सभी अनुभवी हैं ना! चाहे साकार रूप में देखा, चाहे अव्यक्त रूप की पालना से पलते अव्यक्त स्थिति का अनुभव करते हो, सेकण्ड में दिल से बापदादा कहा और समर्थी स्वत: ही आ जाती है इसलिए ओ समर्थ आत्मायें अब अन्य आत्माओं को अपनी समर्थी से समर्थ बनाओ। उमंग है ना! है उमंग, असमर्थ को समर्थ बनाना है ना! बापदादा ने देखा कि चारों ओर कमजोर आत्माओं को समर्थ बनाने का उमंग अच्छा है।

शिव रात्रि के प्रोग्राम धूमधाम से बना रहे हैं। सबको उमंग है ना! जिसको उमंग है बस इस शिवरात्रि में कमाल करेंगे, वह हाथ उठाओ। ऐसी कमाल जो धमाल खत्म हो जाए। जय-जयकार हो जाये वाह! वाह समर्थ आत्मायें वाह! सभी ज़ोन ने प्रोग्राम बनाया है ना! पंजाब ने भी बनाया है ना! अच्छा है। भटकती हुई आत्मायें, प्यासी आत्मायें, अशान्त आत्मायें, ऐसी आत्माओं को अंचली तो दे दो। फिर भी आपके भाई-बहिने हैं। तो अपने भाईयों के ऊपर, अपनी बहिनों के ऊपर रहम आता है ना! देखो, आजकल परमात्मा को आपदा के समय याद करते लेकिन शक्तियों को, देवताओं में भी गणेश है, हनुमान है और भी देवताओं को ज्यादा याद करते हैं, तो वह कौन हैं? आप ही हो ना! आपको रोज़ याद करते हैं। पुकार रहे हैं - हे कृपालु, दयालु रहम करो, कृपा करो। जरा सी एक सुख शान्ति की बूंद दे दो। आप द्वारा एक बूँद के प्यासी हैं। तो दु:खियों का, प्यासी आत्माओं का आवाज हे शक्तियां, हे देव नहीं पहुंच रहा है! पहुंच रहा है ना? बापदादा जब पुकार सुनते हैं तो शक्तियों को और देवों को याद करते हैं। तो अच्छा प्रोग्राम दादी ने बनाया है, बाबा को पसन्द है। स्मृति दिवस तो सदा ही है लेकिन फिर भी आज का दिन स्मृति द्वारा सर्व समर्थियां विशेष प्राप्त की, अब कल से शिवरात्रि तक बापदादा चारों ओर के बच्चों को कहते कि यह विशेष दिन यही लक्ष्य रखो कि ज्यादा से ज्यादा आत्माओं को मन्सा द्वारा, वाणी द्वारा वा सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा किसी भी विधि से सन्देश रूपी अंचली जरूर देना है। अपना उल्हना उतार दो। बच्चे सोचते हैं अभी विनाश की डेट तो दिखाई नहीं देती है, तो कभी भी उल्हना पूरा कर लेंगे लेकिन नहीं अगर अभी से उल्हना पूरा नहीं करेंगे तो यह भी उल्हना मिलेगा कि आपने पहले क्यों नहीं बताया। हम भी कुछ तो बना देते, फिर तो सिर्फ अहो प्रभू कहेंगे इसलिए उन्हें भी कुछ-कुछ तो वर्से की अंचली लेने दो। उन्हों को भी कुछ समय दो। एक बूंद से भी प्यास तो बुझाओ, प्यासे के लिए एक बूंद भी बहुत महत्व वाली होती है। तो यही प्रोग्राम है ना कि कल से लेके बापदादा भी हरी झण्डी नहीं, नगाड़ा बजा रहे हैं कि आत्माओं को, हे तृप्त आत्मायें सन्देश दो, सन्देश दो। कम से कम शिवरात्रि पर बाप के बर्थ डे का मुख तो मीठा करें कि हाँ हमें सन्देश मिल गया। यह दिलखुश मिठाई सभी को सुनाओ, खिलाओ। साधारण शिवरात्रि नहीं मनाना, कुछ कमाल करके दिखाना। उमंग है? पहली लाइन को है? बहुत धूम मचाओ। कम से कम यह तो समझें कि शिवरात्रि का इतना बड़ा महत्व है। हमारे बाप का जन्म दिन है, सुनके खुशी तो मनायें।

बापदादा ने देखा कि अमृतवेले मैजारिटी का याद और ईश्वरीय प्राप्तियों का नशा बहुत अच्छा रहता है। लेकिन कर्म योगी की स्टेज में जो अमृतवेले का नशा है उससे अन्तर पड़ जाता है। कारण क्या है? कर्म करते, सोल कॉन्सेस और कर्म कॉन्सेस दोनों रहता है। इसकी विधि है कर्म करते मैं आत्मा, कौन सी आत्मा, वह तो जानते ही हो, जो भिन्न-भिन्न आत्मा के स्वमान मिले हुए हैं, ऐसी आत्मा करावनहार होकर इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाली हूँ, यह कर्मेन्द्रियाँ कर्मचारी हैं लेकिन कर्मचारियों से कर्म कराने वाली मैं करावनहार हूँ, न्यारी हूँ। क्या लौकिक में भी डायरेक्टर अपने साथियों से, निमित्त सेवा करने वालों से सेवा कराते, डायरेक्शन देते, ड्यूटी बजाते भूल जाता है कि मैं डायरेक्टर हूँ? तो अपने को करावनहार शक्तिशाली आत्मा हूँ, यह समझकर कार्य कराओ। यह आत्मा और शरीर, वह करनहार है वह करावनहार है, यह स्मृति मर्ज हो जाती है। आप सबको, पुराने बच्चों को मालूम है कि ब्रह्मा बाप ने शुरू शुरू में क्या अभ्यास किया? एक डायरी देखी थी ना। सारी डायरी में एक ही शब्द - मैं भी आत्मा, जसोदा भी आत्मा, यह बच्चे भी आत्मा हैं, आत्मा है, आत्मा है.... यह फाउण्डेशन सदा का अभ्यास किया। तो यह पहला पाठ मैं कौन? इसका बार-बार अभ्यास चाहिए। चेकिंग चाहिए, ऐसे नहीं मैं तो हूँ ही आत्मा। अनुभव करे कि मैं आत्मा करावनहार बन कर्म करा रही हूँ। करनहार अलग है, करावनहार अलग है। ब्रह्मा बाप का दूसरा अनुभव भी सुना है कि यह कर्मेन्द्रियाँ, कर्मचारी हैं। तो रोज़ रात की कचहरी सुनी है ना! तो मालिक बन इन कर्मेन्द्रियों रूपी कर्मचारियों से हाल-चाल पूछा है ना! तो जैसे ब्रह्मा बाप ने यह अभ्यास फाउण्डेशन बहुत पक्का किया, इसलिए जो बच्चे लास्ट में भी साथ रहे उन्होंने क्या अनुभव किया? कि बाप कार्य करते भी शरीर में होते हुए भी अशरीरी स्थिति में चलते फिरते अनुभव होता रहा। चाहे कर्म का हिसाब भी चुक्तू करना पड़ा लेकिन साक्षी हो, न स्वयं कर्म के हिसाब के वश रहे, न औरों को कर्म के हिसाब-किताब चुक्तू होने का अनुभव कराया। आपको मालूम पड़ा कि ब्रह्मा बाप अव्यक्त हो रहा है, नहीं मालूम पड़ा ना! तो इतना न्यारा, साक्षी, अशरीरी अर्थात् कर्मातीत स्टेज बहुतकाल से अभ्यास की तब अन्त में भी वही स्वरूप अनुभव हुआ। यह बहुतकाल का अभ्यास काम में आता है। ऐसे नहीं सोचो कि अन्त में देहभान छोड़ देंगे, नहीं। बहुतकाल का अशरीरीपन का, देह से न्यारा करावनहार स्थिति का अनुभव चाहिए। अन्तकाल चाहे जवान है, चाहे बूढ़ा है, चाहे तन्दरूस्त है, चाहे बीमार है, किसका भी कभी भी आ सकता है इसलिए बहुतकाल साक्षीपन के अभ्यास पर अटेन्शन दो। चाहे कितनी भी प्राकृतिक आपदायें आयेंगी लेकिन यह अशरीरीपन की स्टेज आपको सहज न्यारा और बाप का प्यारा बना देगी इसलिए बहुतकाल शब्द को बापदादा अण्डरलाइन करा रहे हैं। क्या भी हो, सारे दिन में साक्षीपन की स्टेज का, करावनहार की स्टेज का, अशरीरीपन की स्टेज का अनुभव बार-बार करो, तब अन्त मते फरिश्ता सो देवता निश्चित है। बाप समान बनना है तो बाप निराकार और फरिश्ता है, ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता स्टेज में रहना। जैसे फरिश्ता रूप साकार रूप में देखा, बात सुनते, बात करते, कारोबार करते अनुभव किया कि जैसे बाप शरीर में होते न्यारे हैं। कार्य को छोड़कर अशरीरी बनना, यह तो थोड़ा समय हो सकता है लेकिन कार्य करते, समय निकाल अशरीरी, पावरफुल स्टेज का अनुभव करते रहो। आप सब फरिश्ते हो, बाप द्वारा इस ब्राह्मण जीवन का आधार ले सन्देश देने के लिए साकार में कार्य कर रहे हो। फरिश्ता अर्थात् देह में रहते देह से न्यारा और यह एक्जैम्पुल ब्रह्मा बाप को देखा है, असम्भव नहीं है। देखा अनुभव किया। जो भी निमित्त हैं, चाहे अभी विस्तार ज्यादा है लेकिन जितनी ब्रह्मा बाप की नई नॉलेज, नई जीवन, नई दुनिया बनाने की जिम्मेवारी थी, उतनी अभी किसकी भी नहीं है। तो सबका लक्ष्य है ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता बनना। शिव बाप समान बनना अर्थात् निराकार स्थिति में स्थित होना। मुश्किल है क्या? बाप और दादा से प्यार है ना! तो जिससे प्यार है उस जैसा बनना, जब संकल्प भी है - बाप समान बनना ही है, तो कोई मुश्किल नहीं। सिर्फ बार-बार अटेन्शन। साधारण जीवन नहीं। साधारण जीवन जीने वाले बहुत हैं। बड़े-बड़े कार्य करने वाले बहुत हैं। लेकिन आप जैसा कार्य, आप ब्राह्मण आत्माओं के सिवाए और कोई नहीं कर सकता है।

तो आज स्मृति दिवस पर बापदादा समानता में समीप आओ, समीप आओ, समीप आओ का वरदान दे रहे हैं। सभी हद के किनारे, चाहे संकल्प, चाहे बोल, चाहे कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क कोई भी हद का किनारा, अपने मन की नईया को इन हद के किनारों से मुक्त कर दो। अभी से जीवन में रहते मुक्त ऐसे जीवनमुक्ति का अलौकिक अनुभव बहुतकाल से करो। अच्छा।

चारों ओर के बच्चों के पत्र बहुत मिले हैं और मधुबन वालों की क्रोधमुक्त की रिपोर्ट, समाचार भी बापदादा के पास पहुंचा है। बापदादा हिम्मत पर खुश है, और आगे के लिए सदा मुक्त रहने के लिए सहनशक्ति का कवच पहने रखना, तो कितना भी कोई प्रयत्न करेगा लेकिन आप सदा सेफ रहेंगे।

ऐसे सर्व दृढ़ संकल्पधारी, सदा स्मृति स्वरूप आत्माओं को, सदा सर्व समर्थियों को समय पर कार्य में लाने वाले विशेष आत्माओं को, सदा सर्व आत्माओं के रहमदिल आत्माओं को, सदा बापदादा समान बनने के संकल्प को साकार रूप में लाने वाले ऐसे बहुत-बहुत-बहुत प्यारे और न्यारे बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

डबल फारेनर्स:-डबल फारेनर्स को डबल नशा है। क्यों डबल नशा है? क्योंकि समझते हैं कि हम भी जैसे बाप दूरदेश के हैं ना, तो हम भी दूरदेश से आये हैं। बापदादा ने डबल विदेशी बच्चों की एक विशेषता देखी है कि दीप से दीप जगाते हुए अनेक देशों में बापदादा के जगे हुए दीपकों की दीवाली मना दी है। डबल विदेशियों को सन्देश देने का शौक अच्छा है। हर ग्रुप में बापदादा ने देखा 35-40 देशों के होते हैं। मुबारक हो। सदा स्वयं भी उड़ते रहो और फरिश्ते बनकरके उड़ते-उड़ते सन्देश देते रहो। अच्छा है, आप 35 देश वालों को बापदादा नहीं देख रहा है और भी देश वालों को आपके साथ देख रहे हैं। तो नम्बरवन बाप समान बनने वाले हो ना! नम्बरवन कि नम्बरवार बनने वाले हो? नम्बरवन? नम्बरवार नहीं? नम्बरवन बनना अर्थात् हर समय विन करने वाले। जो विन करते हैं वह वन होते हैं। तो ऐसे हो ना? बहुत अच्छा। विजयी हैं और सदा विजयी रहने वाले। अच्छा और सभी को, जहाँ जहाँ जाओ वहाँ यह स्मृति दिलाना कि सभी डबल फारेनर्स को वन नम्बर बनना है।

अच्छा -बापदादा सभी माताओं को गऊपाल की प्यारी माताओं को बहुत-बहुत दिल से यादप्यार दे रहे हैं और पाण्डव चाहे यूथ हो, चाहे प्रवृत्ति वाले हो, पाण्डव सदा पाण्डवपति के साथी रहे हैं, ऐसे साथी पाण्डवों को भी बापदादा बहुत-बहुत यादप्यार दे रहे हैं।

दादी जी से:-आज के दिन क्या याद आता है? विल पॉवर्स मिली ना! विल पॉवर्स का वरदान है। बहुत अच्छा पार्ट बजाया है, इसकी मुबारक है। सभी की दुआयें आपको बहुत हैं। आपको देख करके ही सभी खुश हो जाते हैं, बोलो या नहीं बोलो। आपको कुछ होता है ना तो सब ऐसे समझते हैं हमको हो रहा है। इतना प्यार है। सभी का है। (हमारा भी सबसे बहुत प्यार है) प्यार तो है बहुत सभी से। यह प्यार ही सभी को चला रहा है। धारणा कम हो ज्यादा हो, लेकिन प्यार चला रहा है। बहुत अच्छा।

ईशू दादी से:- इसने भी हिसाब चुक्तू कर लिया। कोई बात नहीं। इसका सहज पुरुषार्थ, सहज हिसाब चुक्तू। सहज ही हो गया, सोते सोते। आराम मिला विष्णु के मुआफिक। अच्छा। फिर भी साकार से अभी तक यज्ञ रक्षक बने हैं। तो यज्ञ रक्षक बनने की दुआयें बहुत होती हैं।

सभी दादियां बापदादा के बहुत-बहुत समीप हैं। समीप रत्न हैं और सबको दादियों का मूल्य है। संगठन भी अच्छा है। आप दादियों के संगठन ने इतने वर्ष यज्ञ की रक्षा की है और करते रहेंगे। यह एकता सभी सफलता का आधार है। (बाबा बीच में है) बाप को बीच में रखा है, यह अटेन्शन बहुत अच्छा दिया है। अच्छा। सभी ठीक हैं।

वरदान:-सर्व सम्बन्धों से एक बाप को अपना साथी बनाने वाले सहज पुरुषार्थी भव
बाप स्वयं सर्व सम्बन्धों से साथ निभाने की ऑफर करते हैं। जैसा समय वैसे सम्बन्ध से बाप के साथ रहो और साथी बनाओ। जहाँ सदा साथ भी है और साथी भी है वहाँ कोई मुश्किल हो नहीं सकता। जब कभी अपने को अकेला अनुभव करो तो उस समय बाप के बिन्दू रूप को याद नहीं करो, प्राप्तियों की लिस्ट सामने लाओ, भिन्न-भिन्न समय के रमणीक अनुभव की कहानियाँ स्मृति में लाओ, सर्व संबंधों के रस का अनुभव करो तो मेहनत समाप्त हो जायेगी और सहज पुरुषार्थी बन जायेंगे।
स्लोगन:-बहुरूपी बन माया के बहुरूपों को परख लो तो मास्टर मायापति बन जायेंगे।                                                                                                                                                                                                                                                                                                       कार्यालय:- राजयोगभवन, E-5अरेराकॉलोनी भोपाल मध्यप्रदेश।                                                                  संपर्क:-9691454063,9406564449,https://youtu.be/qdD2v7Q0Ogc?

न्यूज़ सोर्स : madhuban/mp1news Bhopal