29जून 2025/शिव बाबा की मुरली (परमात्मा की वाणी) आज की प्रातः मुरली मधुबन से

“नये वर्ष में अपने पुराने संस्कारों को योग अग्नि में भस्म कर ब्रह्मा बाप समान त्याग, तपस्या और सेवा में नम्बरवन बनो''
आज बापदादा चारों ओर के चाहे सम्मुख हैं, चाहे दूर बैठे दिल के समीप हैं, सर्व को तीन मुबारक दे रहे हैं। एक नव जीवन की मुबारक है, दूसरी नव युग की मुबारक है और तीसरी आज के दिन वर्ष की मुबारक है। आप सभी भी नये वर्ष की मुबारक देने और मुबारक लेने आये हो। वास्तव में सच्ची दिल के खुशी की मुबारकें आप ब्राह्मण आत्मायें लेते भी हो, देते भी हो। आज के दिन का महत्व है। विदाई भी है और बधाई भी है। विदाई और बधाई का संगमयुग है। आज के दिन को कहेंगे संगम का दिन है। संगम की महिमा बहुत बड़ी है। आप सभी जानते हो कि संगमयुग की महिमा के कारण आजकल पुराने और नये वर्ष के संगम को कितना धूमधाम से मनाते हैं। संगमयुग की महिमा के कारण ही इस पुराने नये वर्ष के संगम की महिमा है। जहाँ दो नदियां मिलती हैं, संगम होता है, उनकी भी महिमा है। जहाँ नदी सागर का संगम होता है उसकी भी महिमा है। लेकिन सबसे बड़ी महिमा इस संगम-युग की, पुरुषोत्तम युग की है, जहाँ आप ब्राह्मण भाग्यवान आत्मायें बैठे हो। यह नशा है ना! अगर आपसे कोई पूछे आप किस समय पर हो? क्या कलियुग में रहते हो या सतयुग में रहते हो? तो क्या फ़लक से कहेंगे? हम इस समय पुरुषोत्तम संगमयुग में रहते हैं। आप कलियुगी नहीं हो, संगमयुगी हो। और इस संगमयुग की विशेष महिमा क्यों है? क्योंकि भगवान और बच्चों का मिलन होता है। मेला होता है, मिलन होता है, जो किसी भी युग में नहीं होता। तो मेला मनाने आये हो ना! आप मिलन मेला मनाने के लिए कहाँ-कहाँ से आये हो। कभी स्वप्न में भी सोचा था कि ड्रामा में मुझ आत्मा का ऐसा भी भाग्य नूंधा हुआ है। आत्मा का परमात्मा से मिलने का भाग्य था और है। बाप भी हर एक बच्चे के भाग्य को देख हर्षित होते हैं। वाह! भाग्यवान बच्चे वाह! अपने भाग्य को देख दिल में अपने प्रति वाह! मैं वाह! वाह! मेरा भाग्य वाह! वाह! मेरा बाबा वाह! वाह! मेरा ब्राह्मण परिवार वाह! यह वाह, वाह के गीत ऑटोमेटिक दिल में गाते रहते हो ना!
तो आज इस संगम के समय अपने अन्दर सोच लिया है कि किस-किस बातों को विदाई देनी है? सभी ने सोचा है? सदाकाल के लिए विदाई देनी है क्योंकि सदाकाल के लिए विदाई देने से सदाकाल की बधाईयां मना सकेंगे। ऐसी बधाई दो जो आपके चेहरे को देख जो भी आत्मा सामने आये वह भी बधाईयां प्राप्त कर खुश हो जाए। जो दिल से बधाई देते वा लेते हैं वह सदा ही कैसे दिखाई देते हैं? संगमयुगी फरिश्ता। सभी का यही पुरुषार्थ है ना ö ब्राह्मण सो फरिश्ता और फरिश्ता सो देवता! क्योंकि बाप को सब प्रकार के संकल्प वा जो भी कुछ प्रवृत्ति का, कर्म का बोझ है वह दे दिया है ना! बोझ दिया है या थोड़ा सा रह गया है? क्योंकि थोड़ा भी बोझ फरिश्ता बनने नहीं देगा और जब बाप बच्चों का बोझ लेने के लिए आये हैं तो बोझ देना मुश्किल है क्या! मुश्किल है या सहज है? जो समझते हैं बोझ दे दिया है वह हाथ उठाओ। दे दिया है? देखना सोच के हाथ उठाना। बोझ दे दिया है? अच्छा, दे दिया है तो बहुत मुबारक हो। और जिन्होंने नहीं दिया है वह किसलिए रखा है? बोझ से प्रीत है क्या? बोझ अच्छा लगता है? देखो, बापदादा हर बच्चे को क्या कहते हैं? ओ मेरे बेफिकर बादशाह बच्चे। तो बोझ का फिकर होता है ना! तो बोझ लेने के लिए बाप आये हैं क्योंकि 63 जन्म से बाप देख रहे हैं बोझ उठाते-उठाते सभी बच्चे बहुत भारी हो गये हैं इसलिए जब बाप बच्चों को प्यार से कह रहे हैं बोझ दे दो। फिर भी क्यों रख लिया है? क्या बोझ अच्छा लगता है? सबसे सूक्ष्म बोझ है - पुराने संस्कार का। बापदादा ने हर बच्चे के इस वर्ष का, क्योंकि वर्ष पूरा हो रहा है ना, तो इस वर्ष का चार्ट देखा। आप सबने भी अपना-अपना वर्ष का चार्ट चेक किया होगा? तो बापदादा ने देखा कि कई बच्चों को इस पुराने संसार की आकर्षण कम हुई है, पुराने सम्बन्ध की भी आकर्षण कम हुई है लेकिन पुराने संस्कार, उसका बोझ मैजारिटी में रहा हुआ है। किसी न किसी रूप में चाहे मन्सा अशुद्ध संकल्प नहीं लेकिन व्यर्थ संकल्प का संस्कार अभी भी परसेन्ट में दिखाई देता है। वाचा में भी दिखाई देता है। सम्बन्ध-सम्पर्क में भी कोई न कोई संस्कार अभी भी दिखाई देता है।
तो आज बापदादा सभी बच्चों को मुबारक के साथ-साथ यही इशारा देते हैं कि यह रहा हुआ संस्कार समय पर धोखा देता भी है और अन्त में भी धोखा देने के निमित्त बन जायेगा इसीलिए आज संस्कार का संस्कार करो। हर एक अपने संस्कार को जानता भी है, छोड़ने चाहता भी है, तंग भी है, लेकिन सदा के लिए परिवर्तन करने में तीव्र पुरुषार्थी नहीं हैं। पुरुषार्थ करते हैं लेकिन तीव्र पुरुषार्थी नहीं हैं। कारण? तीव्र पुरुषार्थ क्यों नहीं होता? कारण यही है, जैसे रावण को मारा भी लेकिन सिर्फ मारा नहीं, जलाया भी। ऐसे मारने के लिए पुरुषार्थ करते हैं, थोड़ा बेहोश भी होता है संस्कार, लेकिन जलाया नहीं तो बेहोशी से बीच-बीच में उठ जाता है। इसके लिए पुराने संस्कार का संस्कार करने के लिए इस नये वर्ष में योग अग्नि से जलाने का, दृढ़ संकल्प का अटेन्शन रखो। पूछते हैं ना इस नये वर्ष में क्या करना है? सेवा की तो बात अलग है लेकिन पहले स्वयं की बात है - योग लगाते हो, बापदादा बच्चों को योग में अभ्यास करते हुए देखते हैं। अमृतवेले भी बहुत पुरुषार्थ करते हैं लेकिन योग तपस्या, तप के रूप में नहीं करते हैं। प्यार से याद जरूर करते हैं, रूहरिहान भी बहुत करते हैं, शक्ति भी लेने का अभ्यास करते हैं लेकिन याद को इतना पावरफुल नहीं बनाया है, जो जो संकल्प करो विदाई, तो विदाई हो जाए। योग को योग अग्नि के रूप में कार्य में नहीं लगाते इसलिए योग को पावरफुल बनाओ। एकाग्रता की शक्ति विशेष संस्कार भस्म करने में आवश्यक है। जिस स्वरूप में एकाग्र होने चाहो, जितना समय एकाग्र होने चाहो, ऐसी एकाग्रता संकल्प किया और भस्म। इसको कहा जाता है योग अग्नि। नामनिशान समाप्त। मारने में फिर भी लाश तो रहता है ना! भस्म होने के बाद नामनिशान खत्म। तो इस वर्ष योग को पावरफुल स्टेज में लाओ। जिस स्वरूप में रहने चाहो मास्टर सर्वशक्तिवान, आर्डर करो, समाप्त करने की शक्ति आपके आर्डर से नहीं माने, यह हो नहीं सकता। मालिक हो। मास्टर कहलाते हो ना! तो मास्टर आर्डर करे और शक्ति हाजिर नहीं हो तो क्या वह मास्टर है? तो बापदादा ने देखा कि पुराने संस्कार का कुछ न कुछ अंश अभी भी रहा हुआ है और वह अंश बीच-बीच में वंश भी पैदा कर देता है, जो कर्म तक भी काम हो जाता है। युद्ध करनी पड़ती है। तो बापदादा को बच्चों का समय प्रमाण युद्ध का स्वरूप भाता नहीं है। बापदादा हर बच्चे को मालिक के रूप में देखने चाहता है। आर्डर करो जी हजूर।
तो सुना इस वर्ष स्व के प्रति क्या करना है? शक्तिशाली, बेफिकर बादशाह क्योंकि सभी का लक्ष्य है, किसी से भी पूछो तो क्या कहते हैं? हम विश्व का राज्य प्राप्त करेंगे, राज्य अधिकारी बनेंगे। अपने को राजयोगी कहलाते हैं। प्रजायोगी हैं क्या? कोई है सारी सभा में जो प्रजायोगी हो? है? जो प्रजा योगी हो राजयोगी नहीं हो। टीचर्स कोई है? आपके सेन्टर पर कोई प्रजायोगी है? कहलाते तो सब राजयोगी हैं। प्रजायोगी में हाथ कोई नहीं उठाता। अच्छा नहीं लगता है ना! और बाप को भी फ़खुर है। बापदादा फ़खुर से कहते हैं कि संगम पर भी हर बच्चा राजा बच्चा है। कोई बाप ऐसे फ़लक से नहीं कह सकता कि मेरा एक-एक बच्चा राजा है। लेकिन बापदादा कहते हैं कि हर एक बच्चा स्वराज्य अधिकारी राजा है। प्रजायोगी में तो हाथ नहीं उठाया ना, तो राजा हो ना! लेकिन ऐसा ढीलाढाला राजा नहीं बनना जो आर्डर करो और आवे नहीं। कमजोर राजा नहीं बनना। पीछे वाले कौन हो? जो समझते हैं राजयोगी हैं वह हाथ उठाओ। ऊपर भी बैठे हैं, (गैलरी में बैठे हुए हाथ हिला रहे हैं, आज हॉल में 18 हजार भाई-बहनें बैठे हैं) बापदादा देख रहे हैं, हाथ उठाओ ऊपर वाले।
तो अभी यह लास्ट टर्न में शुरू हो जायेगा। तो तीन मास बापदादा देते हैं, ठीक है देवें? होमवर्क देंगे क्योंकि यह बीच-बीच का होमवर्क भी लास्ट पेपर में जमा होगा। तो तीन मास में हर एक अपना चार्ट चेक करना कि मैं मास्टर सर्वशक्तिवान होकर किसी भी कर्मेन्द्रिय को, किसी भी शक्ति को जब आर्डर करें, जो आर्डर करें वह प्रैक्टिकल में आर्डर माना या नहीं माना? कर सकते हो? पहली लाइन वाले कर सकते हो? हाथ उठाओ। अच्छा। तीन मास कोई भी पुराना संस्कार वार नहीं करे। अलबेले नहीं बनना, रॉयल अलबेलापन नहीं लाना, हो जायेगा...। बापदादा से बहुत मीठी मीठी बातें करते हैं, कहते हैं बाबा आप फिकर नहीं करो, हो जाऊंगा। बापदादा क्या करेगा? सुन-कर मुस्कुरा देता है। लेकिन बापदादा इन तीन मास में अगर ऐसी बात की तो मानेगा नहीं। मंजूर है तो हाथ उठाओ। दिल से हाथ उठाना, सभा के कारण हाथ नहीं उठाना। करना ही है, चाहे कुछ भी सहन करना पड़े, कुछ छोड़ना पड़े, कोई हर्जा नहीं। करना ही है। पक्का? पक्का? पक्का? टीचर्स करना है?
अच्छा, यह ताज वाले बच्चे क्या करेंगे? (छोटे बच्चे ताज पहनकर सामने बैठे हैं) ताज तो अच्छा पहन लिया है? करना पड़ेगा। अच्छा। देखना बच्चे हाथ उठा रहे हैं। अगर नहीं करेंगे तो क्या करें? वह भी बता दो। फिर बापदादा की सीजन में एक बार आने नहीं देंगे क्योंकि बापदादा देख रहे हैं कि समय आपका इन्तजार कर रहा है। आप समय का इन्तजार करने वाले नहीं हो, आप इन्तजाम करने वाले हो, समय आपका इन्तजार कर रहा है। प्रकृति भी, सतोप्रधान प्रकृति आपका आह्वान कर रही है। तो तीन मास में अपनी शक्तिशाली स्टेज में रहे हुए संस्कार को परिवर्तन करना। अगर तीन मास अटेन्शन रखा ना तो उसका आगे भी अभ्यास हो जायेगा। एक बारी परिवर्तन की विधि आ गई ना तो बहुत काम में आयेगा। समय का आप इन्तजार नहीं करो, कब विनाश होगा, कब विनाश होगा, सब रूहरिहान में पूछते हैं, बाहर से नहीं बोलते लेकिन अन्दर बात करते हैं पता नहीं कब विनाश होगा, दो साल में होगा 10 साल में होगा, कितना साल में होगा? आप क्यों समय का इन्तजार करो, समय आपका इन्तजार कर रहा है। बाप से पूछते हैं तारीख बता दो, थोड़ा सा वर्ष बता दो, 10 वर्ष लगेंगे, 20 वर्ष लगेंगे, कितना वर्ष लगेंगे?
बापदादा बच्चों से प्रश्न पूछते हैं कि आप सब बाप समान बन गये हो? पर्दा खोलें कि पर्दा खोलेंगे तो कोई कंघी कर रहा है, कोई फेस को क्रीम लगा रहा है, अगर एवररेडी हो, संस्कार समाप्त हो गये तो बापदादा को पर्दा खोलने में क्या देरी लगेगी। एवररेडी तो हो जाओ ना! हो जायेंगे, हो जायेंगे कहके बाप को बहुत समय खुश किया है। अभी ऐसा नहीं करना। होना ही है, करना ही है। बाप समान बनना है इसमें तो सभी हाथ उठा देते हैं, उठाने की जरूरत नहीं। ब्रह्मा बाप को देखो, साकार में तो ब्रह्मा बाप को फालो करना है ना! ब्रह्मा बाप ने त्याग, तपस्या और सेवा लास्ट घड़ी तक साकार रूप में प्रैक्टिकल दिखाया। अपनी ड्यूटी, शिव बाप द्वारा महावाक्य उच्चारण की ड्यूटी लास्ट दिन तक निभाई। लास्ट मुरली याद है ना? तीन शब्द का वरदान, याद है? (निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी बनो) जिसको याद है वह हाथ उठाओ। अच्छा सभी को याद है, मुबारक हो। त्याग भी लास्ट दिन तक किया, अपना पुराना कमरा नहीं छोड़ा। बच्चों ने कितना प्यार से ब्रह्मा बाप को कहा लेकिन बच्चों के लिए बनाया, स्वयं नहीं यूज़ किया। और सदा अढ़ाई तीन बजे उठकर स्वयं प्रति तपस्या की, संस्कार भस्म किये तब कर्मातीत अव्यक्त बने, फरिश्ता बने। जो सोचा वह करके दिखाया। कहना, सोचना और करना तीनों समान। फालो फादर। लास्ट तक अपने कर्तव्य में पूर्ण रहे, पत्र भी लिखे, कितने पत्र लिखे? सेवा भी नहीं छोड़ी। फॉलो फादर। अखण्ड महादानी, महादानी नहीं, अखण्ड महादानी का प्रैक्टिकल रूप दिखाया, अन्त तक। लास्ट तक बिना आधार के तपस्वी रूप में बैठे। अभी बच्चे तो आधार लेते हैं ना, बैठने का। लेकिन ब्रह्मा बाप ने आदि से अन्त तक तपस्वी रूप रखा। आंखों में चश्मा नहीं डाला। यह सूक्ष्म शक्ति है। निराधार। शरीर पुराना है, दिनप्रतिदिन प्रकृति हवा पानी दूषित हो रहा है इसलिए बापदादा आपको कहते नहीं हैं, क्यों आधार लेते हो, क्यों चश्मा पहनते हो, पहनो भले पहनो, लेकिन शक्तिशाली स्थिति जरूर बनाओ। सारी विश्व का कार्य समाप्त किया है? बापदादा आपसे प्रश्न पूछता है, आप सभी सन्तुष्ट हो कि विश्व कल्याण का कार्य पूरा हो गया है? जो समझते हैं कि विश्व कल्याण का कार्य समाप्त हो गया है, वह हाथ उठाओ। एक भी नहीं? तो कैसे कहते हो विनाश होगा? काम तो पूरा किया नहीं। अच्छा।
चारों ओर के सदा उमंग-उत्साह में आगे बढ़ने वाले, सदा हिम्मत से बापदादा की पदमगुणा मदद के पात्र बच्चों को, सदा विजयी रत्न हैं, हर कल्प में विजयी बने थे, अब भी हैं और हर कल्प में विजयी हैं ही हैं। ऐसे विजयी बच्चों को सदा एक बाप दूसरा न कोई, न संसार की आकर्षण, न संस्कार की आकर्षण, दोनों आकर्षण से मुक्त रहने वाले, सदा बाप समान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:-सदाकाल के अटेन्शन द्वारा विजय माला में पिरोने वाले बहुत समय के विजयी भव
बहुत समय के विजयी, विजय माला के मणके बनते हैं। विजयी बनने के लिए सदा बाप को सामने रखो - जो बाप ने किया वही हमें करना है। हर कदम पर जो बाप का संकल्प वही बच्चों का संकल्प, जो बाप के बोल वही बच्चों के बोल - तब विजयी बनेंगे। यह अटेन्शन सदाकाल का चाहिए तब सदा-काल का राज्य-भाग्य प्राप्त होगा क्योंकि जैसा पुरुषार्थ वैसी प्रालब्ध है। सदा का पुरुषार्थ है तो सदा का राज्य-भाग्य है।
स्लोगन:-सेवा में सदा जी हाज़िर करना - यही प्यार का सच्चा सबूत है। कार्यालय:-राजयोगभवन,E-5 अरेरा कॉलोनी भोपल मध्यप्रदेश/संपर्क:-9691454063,9406564449