वाराणसी । यहां रामनगर की ऐतिहासिक रामलीला में धनुष यज्ञ का प्रसंग साकार हुआ। यह प्रसंग श्रीराम के प्रति अनुराग बढ़ाने वाला रहा। हजारों लीला प्रेमी परंपरागत लीला के साक्षी बने। लीला में राम के विवाह को देखने तैयार होकर पहुंचे थे।
राजा जनक से आमंत्रण मिलने पर राम-लक्ष्मण मुनि विश्वामित्र के साथ रंगभूमि पहुंचे। उन्हें आमंत्रित राजाओं में सबसे उच्च स्थान दिया। यह देख अन्य राजा आश्चर्यचकित थे। राजा जनक भाट के जरिए सभी को अपना प्रण बताते हैं। सभी राजा धनुष उठाने का प्रयास करते हैं लेकिन कोई उसे हिला भी नहीं पाता है।
तब जनक कहते हैं कि यदि जानता पृथ्वी वीरों से खाली हो गई है तो मैं यह प्रण कभी न करता। यह सुन लक्ष्मण क्रोधित हो उठे। वे कहते हैं कि मैं चाहूं तो पृथ्वी को घड़े की भांति उठा कर चुटकी में फोड़ दूं यह धनुष क्या चीज है। उनको क्रोधित देख मुनि विश्वामित्र राम को धनुष तोड़ने का संकेत देते हैं। गुरु को मन ही मन प्रणाम कर राम धनुष उठाते हैं। उनके स्पर्श मात्र से प्रत्यंचा टूट जाती है। तब जानकी श्रीराम के गले में जयमाल डालती हैं। लीला स्थल पर प्रभुराम धनुष उठाने के लिए झुके उधर ऊंचाई पर खड़े मशालची ने हवा में मशाल लहराई। यह देख कर पीएसी मैदान में खड़े तोपची ने गोला दागा। समय का प्रबंधन इतना सटीक था कि जैसे ही श्रीराम ने धनुष को स्पर्श किया। जोर का धमाका हुआ। हजारों की भीड़ भगवान राम का जयकारा लगाने लगी। शिव धनुष टूटने का समाचार पा क्रोध से व्याकुल परशुराम राजा जनक के पास पहुंचे। उन्हें भला-बुरा कहने लगे। यह देख लक्ष्मण उनसे उलझ गए। राम ने हस्तक्षेप किया। परशुराम अपना धनुष देकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ाने को कहते हैं। राम के ऐसा करते ही परशुराम को विश्वास हो जाता है कि राम के रूप में पृथ्वी पर भगवान का अवतार हो चुका है। वह  भगवान श्रीराम से क्षमा मांग कर लौट जाते हैं। फिर जनकपुर में राम और सीता के विवाह की तैयारी शुरू हो जाती है। यहीं आरती के बाद लीला को विश्राम मिला।