बेंगलुरु । चांद की सतह पर सो रहे भारत के विक्रम लैंडर को पिछले दिनों भूकंप के झटके का सामना करना पड़ा था। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने बताया था कि विक्रम लैंडर ने चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर प्राकृतिक घटना को दर्ज किया है। इससे संकेत मिला कि चांद पर भूकंप आया था। विक्रम लैंडर पर भूकंप का पता लगाने के लिए आईएलएसए उपकरण लगाया गया है। इस उपकरण ने प्रज्ञान रोवर और अन्‍य उपकरणों की हलचल का भी पता लगाया था। वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती पर जहां कुछ मिनट तक भूकंप आते हैं, वहीं चांद पर भूकंप के झटके आधे घंटे तक आते रहते हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक इन्‍हें अर्थक्‍वेक नहीं बल्कि मूनक्‍वेक कहा जाता है। चांद पर भूकंप धरती के गुरुत्‍वीय प्रभाव के कारण आता है। उन्‍होंने बताया कि जहां धरती पर भूकंप कुछ म‍िनट तक आता है, वहीं चांद पर यह आधे घंटे तक आता है। हालांकि चांद पर आने वाला भूकंप का झटका हल्‍का होता है। चांद पर भूकंप अक्‍सर आता रहता है। अमेरिका के अपोलो मिशन के दौरान भूकंप का पता लगाने के लिए चांद पर भूकंप मापने का उपकरण स्‍थापित किया गया था।
नासा के उपकरण ने साल 1969 से लेकर 1977 के बीच चांद पर आने वाले भूकंप की माप की। आंकडे से खुलासा हुआ कि चांद बेहद सक्रिय है। इससे पहले माना जाता था कि चांद केवल न‍िर्जीव पत्‍थर का टुकड़ा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती के गुरुत्‍वीय प्रभाव के अलावा उल्‍कापिंड के गिरने की वजह से भी चांद पर भूकंप आते हैं। हालांकि सीमित डेटा की वजह से वैज्ञानिक पूरी तरह से सुनिश्चित नहीं हैं कि चांद पर यह भूकंप आखिर क्‍यों आता है और उसका व्‍यवहार क्‍या होता है।
वैज्ञानिक चाहते हैं कि चांद के आसपास भूकंप को मापने वाले वैश्‍विक नेटवर्क के उपकरण स्‍थापित किए जाए इससे चांद पर आने वाले भूकंप का पूरा तंत्र और उसका कारण समझ में आ जाएगा। इस नेटवर्क की मदद से ठीक-ठीक यह पता चल सकेगा कि ये घटनाएं आखिर कब होती हैं और उनका केंद्र कहां होता है। साथ ही किसी एक जगह आए भूकंप का चांद के अन्‍य इलाकों में क्‍या असर होता है।