भोपाल । चुनावी साल में भी शहर सरकारों को आर्थिक रूप से राहत नहीं मिल पा रही है। यही वजह है कि अब शहर सरकारें भी कर्ज दर कर्ज लेने को मजबूर हो रही हैं। इनमें भी सबसे खराब स्थिति भोपाल और इंदौर नगर निगमों की है। इन दोनों नगर निगमों को हर माह बिजली का बिल आते ही जोर का झटका धीरे से लगता है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव में महज तीन माह रह गए हैं, ऐसे में अगर बिजली के बिलों का भुगतान नहीं किया जाता है तो फिर बिजली कंपनी कनेक्शन काट देगी, जिससे शहर अंधेरे में डूब जाएगा। इस स्थिति में सत्तारुढ़ दल को लेकर लोगों में नाराजगी बढ़ेगी। इस वजह से अब नगर निगमों को मजबूरी में बिजली का बिल भुगतान करने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। इसकी वजह से राज्य शासन नगरीय निकायों के लोन रीपेमेंट के लिए बनी मुद्रांक शुल्क निधि से चुका रहा है। यह बात अलग है कि इस मद से कर्ज का भुगतान तभी किया जा सकता है , कर्ज विकास कामों के लिए लिया गया हो। दरअसल वित्तीय कुप्रबंधन और फिजूलखर्ची पर रोक नहीं लगाने की वजह से प्रदेश के अधिकांश नगरीय निकायों की माली हालत खराब बनी हुई है। यह निकाय करों की वसूली में भी रुचि नहीं लेते हैं, जिससे आय में वृद्धि नहीं हो पाती है। भोपाल में करीब चार साल पहले बकाया अधिक होने की वजह से बिजली कंपनी ने सप्लाई बंद करना शुरू कर दी थी। स्ट्रीट लाइट्स की बिजली काट दी थी। फिर नगर निगम के कार्यालयों की बिजली बंद करना शुरू कर दी। इसके बाद शहर में जलप्रदाय करने वाले कोलार प्लांट की विद्युत आपूर्ति रोक दी गई। इससे घबराकर निगम प्रशासन ने कुछ राशि बिजली कंपनी के खाते में जमा करा दी।
कुछ दिन बाद कटौती का सिलसिला फिर शुरू हो गया। दो-तीन हफ्ते में ही शहर के 25 फीसदी इलाकों की स्ट्रीट लाइट्स की बिजली सप्लाई बंद कर दी गई। यह क्षेत्र अंधेरे में डूब गए। इसे लेकर रहवासी शिकायत करने लगे। राजनीतिक मुद्दा भी बनने लगा। ऐसे में नगरीय विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह को दखल देना पड़ा। उन्होंने बिजली कंपनी के अधिकारियों को बुलाकर स्पष्ट निर्देश दिए थे कि कलेक्टर से अनुमति लिए बगैर कहीं भी सप्लाई बंद नहीं की जाएगी। इसके बाद भी इस साल मई में स्ट्रीट लाइट्स की विद्युत आपूर्ति रोक दी गई थीं।
नगर निगम का हर माह औसतन बिजली का खर्च दस करोड़ रुपए है। इसमें से केवल आठ करोड़ रुपए तो जलप्रदाय का होता है। इस हिसाब से हर साल बिजली बिल भुगतान के लिए नगर निगम को एक अरब रुपए की जरुरत होती है। निगम इसका भुगतान नहीं करता है, लिहाजा शासन द्वारा इस बिल के भुगतान के लिए चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि में कटौती कर बिजली कंपनी को देने के लिए मजबूर बना हुआ है। इस वजह से निगम को अब हर महीने छह करोड़ रुपए कम मिल पा रहे हैं। चुंगी क्षतिपूर्ति से ही अधिकारियों, कर्मचारियों की सैलरी दी जाती है। यह पिछले कई महीनों से समय पर नहीं मिल पा रही है। इंदौर समेत कई निकायों की चुंगी क्षतिपूर्ति पर भी शासन की कैंची चल रही है।