ग्वालियर ।  प्रदेश विधानसभा के लिये चुनाव आचार संहिता लागू होते ही चौथ सूची आ गई। इस सूची में ग्वालियर विधानसभा क्षेत्र से ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर व ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से उद्यानिकी राज्य मंत्री भारत सिंह कुशवाह को चुनाव मैदान में उतारकर विश्वास जताया है। प्रद्युम्न सिंह तोमर का यह चौथा और भारत सिंह कुशवाह का तीसरा चुनाव है। अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में दोनों उम्मीदवारों के सामने चुनौतियां कम नहीं है। प्रद्युम्न सिंह तोमर को भाजपा के मूल दावेदारों से भितरघात की आशंका है तो भारत सिंह को सिंधिया के साथ भाजपा में आये नेता टांग खीचने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। प्रद्युम्न सिंह व भारत सिंह के टिकिट पहले से तय माने जा रहे थे। इसलिये लंबे समय से वे भी भितराघात से निपटने की रणनीति बनाने में लगे हुये थे। जिले की छह विधानसभा सीटों में से तीन में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की पसंद को संगठन ने महत्व दिया है।

भाजपा के मूल दावेदारों से भितरघात की आशंका

ग्वालियर विधानसभा क्षेत्र से प्रद्युम्न सिंह तोमर के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने से पहले पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया परंपरागत रूप से दावेदारी मानी जाती थी। यह सीट प्रद्युम्न सिंह तोमर के नाम पर हो जाने के बाद पवैया नये क्षेत्र की तलाश में घूम रहे हैं। भाजपा का मूल कार्यकर्ता पर प्रद्युम्न को पुरी तरह से भरोसा नहीं है। ग्वालियर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा में भितराघात की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।

भारत सिंह के सामने सिंधिया समर्थक चुनौती

कांग्रेस में जिले के छह विधानसभा सीटों पर टिकिट का फैसला सिंधिया की सहमति पर होता था। सिंधिया के साथ ग्रामीण विधानसभा की जड़ से जुड़े इसी क्षेत्र से विधायक रहे रामवरन सिंह गुर्जर, और मदन सिंह कुशवाह भी आये हैं। हालांकि रामवरन ने टिकिट की दौ़ड़ में शामिल नहीं थे। मदन कुशवाह अवश्य टिकिट के लिये हाथ-पैर मार रहे थे। इसके अलावा पूर्व ीबीज निगम के अध्यक्ष महेंद्र सिंह यादव से भारत सिंह की गुटी नहीं बैठती है। इसलिए ग्रामीण विधानसभा में भारत सिंह के आंतरिक रूप से विरोध करने के मूल भाजपा नेता और कांग्रेस से आये नेताओं के बीच नये समीकरण बन सकते हैं। जो कि भाजपा के परंपरागत उम्मीदवार के सामने बड़ी चुनौती बन सकते हैं।

ग्वालियर पू्व व दक्षिण कांग्रेस के कब्जे में

ग्वालियर पूर्व विधानसभा क्षेत्र से जातीय हिंसा के बाद कांग्रेस के अभेद गढ़ के रूप में सामने आई है। पिछले दो चुनाव नतीजों से स्पष्ट है कि यहां का मतदाता केवल चुनाव चिंह देखता है। जबकि दक्षिण विधानसभा पिछले डेढ़ दशक से भाजपा का अभेद गढ़ था। इस किले को भेदने में कांग्रेस के प्रवीण पाठक कामयाब हुए थे। इन दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को टक्कर देने वाले नामों पर भाजपा में सहमति नहीं बन पा रही है।