भोपाल। नर्मदा नदी के किनारे बसा मध्य प्रदेश का ऐतिहासिक शहर मंडला। इसके शौर्य और बलिदानों की गाथा इतिहास के पन्नों में दर्ज है। मुगल काल से लेकर अंग्रेजों तक से लोहा लेने में यहां के शासक और लोग पीछे नहीं रहे। आदिवासियों की बहुलता वाली सुरक्षित सीट मंडला सबसे चर्चित सीटों में से एक है। छह बार के सांसद केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते सातवीं जीत के लिए पीएम नरेंद्र मोदी के करिश्मे के दम पर ताल ठोक रहे हैं।
वहीं, कांग्रेस के युवा आदिवासी नेता और चार बार के विधायक ओंकार सिंह मरकाम पार्टी व राहुल गांधी की गारंटी के बूते टक्कर दे रहे हैं। लड़ाई इसलिए दिलचस्प है, क्योंकि नवंबर में कुलस्ते विधानसभा चुनाव हार गए थे। पर, राहत की बात यह है कि उन्होंने मरकाम पर 2014 के आम चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की थी।
मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में कांग्रेस की अच्छी पकड़ है। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत के बावजूद मंडला की आठ में से पांच सीटों- डिंडोरी, बिछिया, निवास, केवलारी और लखनादौन में कांग्रेस ने परचम लहराया था। निवास में कुलस्ते को उलटफेर का सामना करना पड़ा और भाजपा मंडला, गोटेगांव, शहपुरा सीट ही जीत पाई। हालांकि, कुलस्ते आदिवासियों का बड़ा चेहरा हैं। वह सात बार सांसदी का चुनाव इसी सीट से लड़ चुके हैं। केवल 2009 में हारे हैं।
आम चुनाव में जबलपुर जोन की कमान संभाले दिग्गज मंत्री कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं कि आदिवासी समाज के लिए किए गए काम को जनता के बीच रखा जा रहा है। मुख्यमंत्री मोहन यादव खुद यहां चुनावी सभाएं कर सरकार की उपलब्धियां गिना चुके हैं। वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी मरकाम भी आदिवासी समाज में अच्छी पैठ बना रहे हैं। चार बार विधायकी का चुनाव जीत चुके हैं। कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे। राहुल के करीबी माने जाते हैं। भाजपा का तिलिस्म तोड़ने के लिए खूब मेहनत कर रहे हैं। क्षेत्र में राहुल की सभा भी करा चुके हैं।
मंडला सीट की सियासत तीन नेताओं कांग्रेस के मगरू गनु उइके, मोहनलाल झिकराम और भाजपा के फग्गन सिंह कुलस्ते के इर्द-गिर्द ही रही है। 1952 से 1971 तक उइके जीतते रहे। पहली बार बदलाव 1977 में आपातकाल के बाद दिखा, जब भारतीय लोकदल के श्यामलाल धुर्वे ने कांग्रेस का किला ध्वस्त किया था। 1980 से 1991 तक सीट कांग्रेस के कब्जे में बनी रही। झिकराम 4 बार जीते। 1996 से अब तक कुलस्ते छह बार जीते। हालांकि 2009 में एक बार कांग्रेस के बसोरी सिंह से हार गए थे।

एतिहासिक- बलिदानियों की भूमि रही है मंडला

मंडला में गोंड राजाओं का शासन रहा। राजा संग्राम शाह, हृदय शाह ने लंबे समय तक शासन किया। मुगलों ने यहां तीन बार आक्रमण किया। पति के मरने के बाद मंडला की सत्ता रानी दुर्गावती ने खुद संभाली थी। मुगलों की रानी दुर्गावती से जंग हुई। हाथी घायल होने के चलते उन्हें लगा कि वह मुगलों से पराजित हो जाएंगी तो हार स्वीकार न कर, खुद को कटार मारकर सर्वोच्च बलिदान दे दिया।

मंडला की छोटी रियासत रामगढ़ की एक और वीरांगना रानी अवंती बाई लोधी ने 1857 में अंग्रेजों से लोहा लिया था। युद्ध में अवंती बाई वीरगति को प्राप्त हुई थीं। गोंड राजाओं के अंतिम शासकों राजा शंकर शाह व रघुनाथ शाह ने आजादी में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। अंग्रेजों ने पिता-पुत्र को तोप से बांधकर उड़ा दिया था। इन वीरों के बलिदान की ये गाथाएं आज भी लोगों की जुबान पर हैं।

60% वोटर एसटी

मंडला में 60 फीसदी से ज्यादा आबादी आदिवासियों की है। दूसरा बड़ा वर्ग ओबीसी का है। सामान्य और अनुसूचित जाति की भी अच्छी आबादी है, पर निर्णायक आदिवासी मतदाता ही हैं। यही वजह है कि भाजपा और कांग्रेस का पूरा ध्यान आदिवासी मतदाताओं को अपनी-अपनी ओर करने पर केंद्रित है।

नक्सलियों की शरणस्थली

मंडला नक्सलियों की शरणस्थली भी रही है। छत्तीसगढ़ और आसपास के राज्यों में वारदात को अंजाम देने के बाद अक्सर नक्सली मंडला और बालाघाट के जंगलों में आकर छिप जाते हैं। हालांकि, धीरे-धीरे इलाके में उग्रवादियों का प्रभाव अब सिमट रहा है।  


2019 भाजपा का दबदबा

उम्मीदवार                  दल                   मत         मत%
फग्गन कुलस्ते             भाजपा               7.37 लाख     48.6
कमल मरावी               कांग्रेस               6.39 लाख     42.2