श्राद्ध पक्ष की शिवरात्रि पर बनेंगे कईं शुभ योग
धर्म ग्रंथों के अनुसार, हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत और भी खास हो गया है क्योंकि ये श्राद्ध पक्ष में आ रहा है।
(October 2023 Mai Shivratri Kab hai) साथ ही इस दिन कईं शुभ योग भी बन रहे हैं, जिसके चलते इसका महत्व और भी बढ़ गया है। इस दिन किए गए व्रत-पूजन से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। आगे जानिए इस व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें…
ये शुभ योग बनेंगे इस दिन (Masik Shivratri 2023 Shubh Yog)
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 12 अक्टूबर, गुरुवार की रात 07:54 से 13 अक्टूबर, शुक्रवार की रात 09:51 तक रहेगी। चूंकि मासिक शिवरात्रि व्रत में पूजा रात में की जाती है, इसलिए ये व्रत 12 अक्टूबर, गुरुवार को ही किया जाएगा। गुरुवार को पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र होने से गद और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र होने से मातंग नाम के 2 शुभ योग बनेंगे। साथ ही इस दिन शुक्ल और ब्रह्म नाम के 2 अन्य शुभ योग भी रहेंगे।
इस विधि से करें शिव चतुर्दशी की पूजा विधि (Masik Shivratri Puja Vidhi)
12 अक्टूबर, गुरुवार की सुबह उठकर स्नान करें और व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर निराहार रहें। ऐसा करना संभव न हो तो एक समय फलाहार कर सकते हैं। रात्रि के पहले प्रहर में शिवजी की पूजा शुरू करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। शिवलिंग का पंचामृत और फिर शुद्ध जल से अभिषेक करें। अबीर, गुलाल, रोली, बिल्व पत्र, धतूरा, भांग आदि चीजें चढ़ाएं। इस प्रकार अन्य तीन प्रहर में भी शिवजी की पूजा करें। चौथे प्रहर की पूजा के बाद आरती करें भोग लगाएं। इस व्रत को करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।
भगवान शिव की आरती (Shiv ji Ki aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥