10 अप्रैल 2025/ माउंट आबू दादी रतनमोहिनी पंचतत्व में विलीन

दादी रतनमोहिनी पंचतत्व में विलीन,अंतिम यात्रा में देश-विदेश से पहुंचे हजारों लोग हुए शामिल,26 साल की उम्र में माउंट आबू आईं थीं दादी
आबूरोड, राजस्थान। मानवता की सेवा में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर लाखों लोगों को सद्मार्ग, शांति, अध्यात्म और मूल्यों का पाठ पढ़ाकर श्रेष्ठ चरित्र निर्माण करने वालीं ब्रह्माकुमारीज़ की मुख्य प्रशासिका 101 वर्षीय दादी रतनमोहिनी की पार्थिक देह गुरुवार को सुबह 10 बजे पंचतत्व में विलीन हो गईं। हजारों लोगों ने नम आंखों से दादी का अंतिम विदाई दी। युवाओं की दादी के नाम प्रसिद्ध आपने पूरे जीवन में लाखों युवाओं को नशामुक्त कर जीवन में नई राह दिखाई। मुख्यालय शांतिवन के दादी निवास के सामने गार्डन में अंतिम संस्कार किया गया।
दादी को संस्थान की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मोहिनी दीदी, संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी दीदी, राजयोगिनी बीके संतोष दीदी, अतिरिक्त महासचिव बीके करुणा, अतिरिक्त महासचिव बीके डॉ. मृत्युंजय, दादी की निज सचिव बीके लीला दीदी सहित वरिष्ठ अन्य भाई-बहनों ने मुखाग्नि दी। इसके पूर्व हजारों लोगों ने ऊं ध्वनि की और ओम शांति मंत्र का उच्चारण कर व मौन रहकर श्रद्धासुमन अर्पित किए।
बता दें कि 8 मार्च को रात्रि 1.20 बजे अहमदाबाद के जॉइडिस हॉस्पिटल में दादी ने अंतिम सांस ली थी। उनकी पार्थिव देह को अंतिम दर्शन के लिए शांतिवन के कॉन्फ्रेंस हॉल में रखा गया था। 9 मार्च को माउंट आबू के लिए बैकुंठी यात्रा निकाली गई।
अंतिम यात्रा में पहुंचे जालौर-सिरोही सांसद लुंबाराम चौधरी ने कहा कि दादी का जाना पूरे जिले के लिए अपूर्णीय क्षति है। दादी ने अपने जीवन से लाखों लोगों को संदेश दिया। आपके सेवाकार्यों को भुलाया नहीं जा सकता है। गृहमंत्री अमित शाह, उप्र के सीएम योगी आदित्यनाथ, दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता ने भी शोक संदेश भेजकर दुख जताया है।
26 साल की उम्र में पहली बार माउंट आबू आईं थीं-
दादी रतनमोहिनी 26 साल की युवावस्था में पहली बार ब्रह्मा बाबा के साथ माउंट आबू आईं थीं। विश्व सेवा और युवाओं को सद्मार्ग पर लाने की ऐसी धुन लगी कि सदा के लिए यहीं की होकर रह गईं। आपने अपना पूरा जीवन युवा सशक्तिकरण, युगा जागृति में लगा दिया। युवाओं से विशेष प्रेम, स्नेह के चलते आपको सभी युवाओं की दादी कहकर पुकारते थे।
34 साल की उम्र में जापान में दिया संबोधन, विद्वान रह गए अचंभित-
दादी जब मात्र 34 साल की थीं तो जापान में आयोजित विश्व शांति सम्मेलन में दादी प्रकाशमणि के साथ ब्रह्माकुमारीज़ का प्रतिनिधित्व किया था। जब आपने सम्मेलन में अपना उद्बोधन देना शुरू किया और भारतीय संस्कृति की महिमा बताई तो चारों ओर सन्नाटा छा गया। इतनी कम उम्र में आध्यात्मिक गहराई की बातें सुनकर वहां मौजूद विद्वान अचंभित रह गए। इस दौरान एक साल तक एशिया देशों में अध्यात्म और योग का परचम लहराया।
भोजन बनाने से लेकर हर काम में बंटाया हाथ-
1950 का वह दौर जब ब्रह्माकुमारीज़ का स्थानांतरण माउंट आबू हुआ था। उस वक्त दादी की आयु मात्र 26 साल थी। संस्थान में मात्र 350 लोग थे। तब सभी मिल-जुलकर भोजन आदि की सेवा करते थे। ऐसे में दादी रतनमोहिनी ने भी साफ-सफाई से लेकर भोजन की सेवा में हाथ बंटाया। यहां तक कि दादी 80 साल की उम्र तक अपने सारे निजी कार्य स्वयं करती रहीं।
एकांत, अध्ययन और अध्यात्म में रही रुचि-
अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मोहिनी दीदी ने दादी के साथ के अनुभव बताते हुए कहा कि दादी में बचपन से ही भक्तिभाव के संस्कार थे। वह छोटी उम्र में ही खेलने-कूदने की जगह ध्यान में अपना वक्त बिताती थीं। पढ़ाई में होशियार होने के साथ धीर-गंभीर स्वभाव रहा। क्लास में समय पर जाना और होमवर्क समय से करने के कारण अपने शिक्षकों की सबसे प्रिय विद्यार्थियों में शामिल रहीं। इस दौरान बीजेपी जिलाध्यक्ष रक्षा भंडारी, पूर्व विधायक जगसीराम कोली, विश्व हिन्दू परिषद के प्रदेश प्रमुख राजाराम, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश चौधरी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश प्रमुख हीराराम बारड़, पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष सुरेश कोठारी, पूर्व जस्टिस वी. ईश्वरैय्या, ग्वालियर से आए सिविल जज शिवकांत कुशवाहा सहित देश-विदेश से आए पांच हजार से अधिक लोगों ने दादी को मुखाग्नि दी।
बीके इंजी नरेश बाथम