परमात्मा अवतरण का पर्व महाशिवरात्रि
शिव के साथ क्या है रात्रि का संबंध.....? विश्व की सभी महान विभूतियों के जन्मोत्सव मनाए जाते हैं। लेकिन परमात्मा शिव की जयंती को जन्मदिन ना कह कर शिवरात्रि कहा जाता है आखिर क्यों ? इसका अर्थ है परमात्मा जन्म मरण से न्यारे हैं उनका किसी महापुरुष या देवता की तरह शारीरिक जन्म नहीं होता है वह अलौकिक जन्म लेकर अवतरित होते हैं उनकी जयंती कर्तव्य वाचक रूप से मनाई जाती है। जब जब इस सृष्टि पर पाप की अति, धर्म की ग्लानि होती है और पूरी दुनिया दुखों से गिर जाती है तो गीता में किए अपने वायदे अनुसार परमात्मा इस धरा पर अवतरित होते हैं ।वर्तमान में नई सृष्टि के सृजन का संधि काल चल रहा है। इसमें सृष्टि के सृजनकर्ता स्वयं नवसृजन की पटकथा लिख रहे हैं। वह इस धरा पर आकर मानव को देव समान स्वरूप में खुद को ढालने का गुरुमंत्र राजयोग सिखा रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात दुनिया की यह सबसे बड़ी और महान घटना बहुत ही गुप्त रूप में घटित हो रही है। वक्त की नजाकत को देखते हुए जिसने इस महापरिवर्तन को भाप लिया है वह निराकार परमात्मा की भुजा बनकर संयम के पथ पर बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या एक-दो नहीं बल्कि लाखों में है। इन्होंने न केवल परमात्मा की सूक्ष्म उपस्थिति को महसूस किया है वरन इस महान कार्य के साक्षी भी है। महापरिवर्तन और कल्प की पुनरावृति के संधि काल को स्पष्ट करती यह विशेष रिपोर्ट.... १.वर्तमान में सृष्टि के बदलाव का चल रहा है संधि काल २.परमात्मा शिव के निर्देशन में बदल रही है दुनिया ३.राजयोग की शिक्षा देकर परमात्मा रच रहे हैं नया संसार, ऐसे रखी जा रही है नवयुग की आधारशिला.... नवसृजन का कार्य एक प्रक्रिया के तहत ईश्वरी संविधान के अनुसार होता है जैसे एक विद्यार्थी विद्याज्ञान की शुरुआत पहली कक्षा से करता है और फिर वह साल दर साल आगे बढ़ते हुए एक दिन विशेष योग्यता प्राप्त कर न्यायधीश, आईएएस, सीए, पायलट, शिक्षक, वैज्ञानिक, और पत्रकार बनता है। इसी तरह निराकार परमात्मा ईश्वरीय संविधान के तहत शिक्षा देकर स्वर्गीय दुनिया, नवयुग के स्थापना की आधारशिला रखते हैं। स्वयं परमात्मा ही नर से श्री नारायण और नारी से श्रीलक्ष्मी बनाने के लिए राजयोग ध्यान सिखाते हैं। राजयोग को चार मुख्य विषय (ज्ञान, योग, सेवा और धारणा) में बांटा गया है। ईश्वरी विश्वविद्यालय में आज लाखों लोग अपना दाखिला करा कर पढ़ाई को पूरी लगन, मेहनत त्याग, और तपस्या के साथ पढ़ रहे हैं। इसके परिणाम स्वरूप मानव के व्यक्तित्व में दिव्यगुण, विशेषताएं और दिव्य शक्तियां स्वाभाविक रूप से झलकने लगती है। चार विषयों में प्रवीण होने के बाद आत्मा अपनी संपूर्णता की स्थिति को प्राप्त कर उड़ जाती है।