ज्योतिर्लिंग की महिमा सभी धर्मों में किसी ना किसी रूप में ज्योति लाइट प्रकाश नूर ओंकार कह कर परम सत्ता निराकार परमात्मा की सत्ता स्वीकारी।

विश्व के प्रायः सभी धर्मों के लोग परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास करते हैं। सभी मानते। है परमात्मा एक है। सर्वशक्तिमान परमात्मा के बारे में एक बात सर्वमान्य है कि परमात्मा ज्योतिबिन्दु स्वरूप है। इस संबंध में केवल भाषा के स्तर पर ही मतभेद हैं, स्वरूप के संबंध में नहीं शिवलिंग का कोई शारीरिक रूप नहीं है क्योंकि यह परमात्मा का ही स्मरण चिंह्न है। शिव का शाब्दिक अर्थ है 'कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है प्रतिमा अथवा चिंह्न अतः शिवलिंग का अर्थ हुआ कल्याणकारी परमपिता परमात्मा की प्रतिमा। प्राचीन काल में शिवलिंग हीरो (जो कि प्रकृतिक रूप से ही प्रकाशवान होते हैं) के बनाए जाते थे, क्योंकि परमात्मा का रूप ज्योतिबिन्दु है। सोमनाथ के मंदिर में सर्वप्रथम संसार के सर्वोत्तम हीरे कोहिनूर से बने शिवलिंग की स्थापना हुई थी। विभिन्न धर्मों में भी परमात्मा को इसी आकार में मान्यता दी गई है।
रावण को हराने श्रीराम ने की पूजा: परमात्मा शिव की पूजा स्वयं श्रीराम ने भी की है, जो वर्तमान समय में रामेश्वरम के रूप में पूजा जाता है। परमात्मा शिव श्री राम के भी आराध्य है। यदि श्रीराम भगवान होती तो उन्हें ज्योतिलिंग की पूजा करने की क्या आवश्यकता हुई? वह जानते थे रावण को अपनी जिस शक्ति का अभिमान है उसने परमात्मा शिव की तपस्या करके ही प्राप्त की थी।

शंकरजी भी लगाते हैं ध्यान: हम शंकरजी को हमेशा ध्यान की मुद्रा में देखते है। इससे स्पष्ट है उनके भी कोई आराध्य या देव है, जिनका वह स्मरण करते रहते हैं। परमात्मा शिव शंकर के भी रचयिता है। वह शंकर द्वारा इस आसुरी सृष्टि का विनाश कराते है। शंकर जी की ध्यान मुद्रा में योग की वह अवस्था बताई है। अर्ध नेत्र खुले और अर्थ पद्मासन या सुखासन का आसन जिसमें वह निराकार परमात्मा का ध्यान लगाते हैं।

श्रीकृष्ण ने पांडवों से करवाई पूजा: महाभारत युद्ध के पहले कुरुक्षेत्र के मैदान मैं श्रीकृष्ण ने भी ज्ञानेश्वर सर्वेश्वर की स्थापना कर उस परमपिता सर्वशक्तिमान, निराकार, शिव की पूजा-अर्चना की और उस शक्तियों के दाता से शक्ति प्राप्त कर युद्ध के मैदान में उतरे। श्री कृष्ण ने पांडवों से भी शिव की पूजा करवाई इसके बाद युद्ध के मैदान में उतरे और कौरवों पर विजय प्राप्त की शिव को भोलेनाथ भी कहा गया है क्योंकि वह सहज प्रसन्न होने वाले हैं।

विश्व के सभी धर्मा में किसी न किसी रूप में सर्वशक्तिमान परमात्मा शिव की महिमा गाई है। जहां श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के पहले ज्ञानेश्वर के रूप में तो श्रीराम ने भी रावण से युद्ध के पहले रामेश्वरम् में शिवलिंग की पूजा की। गुरुवाणी में कहा है- एक ओंकार निराकार तो मुस्लिम धर्म में अल्लाह को नूर कहा जीजस ने कहा गॉड इज लाइट। इस तरह निराकार ज्योतिलिंग परमात्मा का यादगार और स्मरण सभी धर्मों में किया गया है। क्योंकि सारी सृष्टि के रचनाकार, सृजनहार, पालनहार वही परमसत्ता परमात्मा ही हैं।

न्यूज़ सोर्स : शिव आमंत्रण, आबू रोड