अयोध्या । रामनगरी में इस समय त्रेतायुगीन वैभव जैसे लौट अया है। यहां की हर गली को सजाया जा रहा है। अवध की हर दुकान और मकान में  जय श्रीराम-सीताराम की धुन बज रही है। राम नगरी में पौष मास, शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि से श्रीराम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा अनुष्ठान का शुभारंभ हो गया। इस समय तो अयोध्या की हर दुकान, हर मकान, हर सड़क, हर रास्ते पर सिर्फ जय श्रीराम की आध्यात्मिक अनुभूति महसूस की जा रही है तो विरासत और आधुनिकता का समावेश बैठाती नव्य अयोध्या भी दिख रही है। एक तरफ आधुनिक अयोध्या त्रेतायुगीन वैभव सी सजने लगी है तो वहीं रामपथ की दुकानों पर फहरा रही राम पताका बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। महज पांच दिन और बचे हैं, जब श्रीरामलला अपने दिव्य-भव्य मंदिर में विराजमान होंगे। तब तो यकीनन दृश्य बेहद भव्य होगा, इस भाव रामभक्तों का रोम-रोम पुलकित हो रहा है। यहां तक की विंटेज आर्टिस्टिकली क्राफ्टेड स्ट्रीट लाइट लैंप पोल पर भी राम की पताका फहरा रही है। जैसे दीपावली के पहले रंगते-पुतते घरों की साज-सज्जा की जाती है, वैसी ही अयोध्या को सजाया गया है।
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में पांच दिन शेष हैं। सरयू के तटों पर मकर संक्रांति की रौनक ने जैसे प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का मंगलाचरण कर दिया है। यहां घाटों पर श्रीराम की स्तुतियां, भजन और मंदिर निर्माण के लिए हुए अथक संघर्ष के विजय गीत गूंज रहे हैं। रामघाट से अयोध्या में प्रवेश करते समय दिख रही रौनक दीवाली का एहसास करा रही है। अयोध्या अब सजने लगी है, अयोध्या के राजा भारत हैं आपका-महलों में आओ, स्वागत है आपका आदि सुमधुर गीत श्रद्धालुओं के अंतस को पुलकित कर रहे। विरासत और आधुनिकता का समावेश बैठाती नव्य अयोध्या में विंटेज आर्टिस्टिकली क्राफ्टेड स्ट्रीट लाइट लैंप पोल लगाया जा रहा है। यह देखने में आकर्षक तो है ही, इस पर भी श्रीराम का धनुष बाण अलग ही सौंदर्य की अनूभू‎ति करा रहा है। 
यहां पर किसी मकान के दरवाजे पर श्रीराम तो किसी पर गजानन महराज की फोटो लगी है। रामनगरी में ठहरने वालों के लिए बनाए गए होम स्टे-गेस्ट हाउस आदि पर भी इसी तरह की आकृति से आगंतुकों का स्वागत हो रहा है। मकर संक्रांति पर स्नान करने आईं बस्ती की मनोरमा हों या गोरखपुर की गीता बाई, सभी के ‎लिए राममयी वातावरण मिल रहा है। देवरिया से आए रामप्रसाद भी सरयू स्नान के पश्चात मंदिर दर्शन करने जा रहे थे। वहीं काफी वर्षों बाद यहां आए रामप्रसाद रामपथ पर दीवारों का एक सा रंग देख अलग ही अनुभूति कर रहे हैं कि त्रेतायुगीन अयोध्या ऐसी ही कभी रही होगी।