भोपाल 28जनवरी/ प्रयागराज महाकुंभ में हुए संत समागम में तीन प्रस्ताव पारित
श्रृंगेरी शंकराचार्य की अध्यक्षता में 03 प्रस्ताव पारित: चार धाम, चार पीठ और 21 राज्यों से 17 हजार किमी की निकलेगी एकात्म यात्रा,अद्वैत के लोकव्यापीकरण हेतू केरल से केदारनाथ तक 17 हजार किमी की दिग्विजय एकात्म यात्रा निकलेगी।
भारत की कालजयी मृत्युंजयी सनातन वैदिक हिन्दू संस्कृति एवं उसमें समाहित दिव्य जीवन मूल्यों की अप्रतिम अभिव्यक्ति महाकुम्भ 2025 प्रयागराज के अंतर्गत प्रभु प्रेमी संघ कुम्भ शिविर प्रयागराज में संत समागम का आयोजन जगद्गुरु शंकराचार्य श्री श्री विधुशेखर भारती (दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी श्री शारदापीठम्) की अध्यक्षता में किया गया। समागम में जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि महाराज,आचार्य सभा के संयोजक स्वामी परमात्मानन्द सरस्वती, स्वामी मित्रानन्द सरस्वती चिन्मय मिशन, महामंडलेश्वर स्वामी चिदम्बरानन्द, स्वामी हरब्रह्मेन्द्रानन्द तीर्थ , प्रो. रामनाथ झा सहित संतजन उपस्थित रहे।
स्वामी अवधेशानन्द गिरि महाराज ने आचार्य शंकर के अद्वैत विचार और सनातन वैदिक हिन्दू धर्म-संस्कृति की पुनर्स्थापना हेतु उनके द्वारा किए गए महनीय कार्यों का विवेचन किया। समागम की प्रस्तावना जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रामनाथ झा रखी ।
इस समागम में आर्ष गुरूकुलम् राजकोट के स्वामी परमात्मानंद सरस्वती ने अपने संबोधन में संतों के बीच तीन प्रस्ताव रखे। वहां उपस्थित लोगों से कहा कि अगर आप इनसे सहमत हो जाएं तो ऊं का उच्चारण करें।
1. भारत में एकात्म बोध के जागरण हेतु नवंबर 2026 से अप्रेल 2027 तक शंकराचार्य के जन्म स्थान केरल के कालड़ी से शंकराचार्य के निर्वाण स्थान केदारनाथ तक 17000 किमी की शंकर दिग्विजय एकात्म यात्रा निकाली जाए।
2. आदि शंकराचार्य के जन्मोत्सव यानी वैशाख शुक्ल पंचमी के दिन को विश्व एकात्म दिवस के रूप में मनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव भेजा जाए।
3. 2025 से 2035 के दशक को एकात्म दशक के रूप में जाना जाए, इसके लिए भी संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव भेजा जाए।
परमात्मानंद जी ने जैसे ही सभा के समक्ष ये प्रस्ताव रखे, पूरा सभागार ओंकार से गुंजायमान हो उठा।
श्रृंगेरी शंकराचार्य बोले– तीनों प्रस्तावों पर हमारी सहमति
इनके पक्ष में श्रृंगेरी शंकराचार्य ने कहा कि यह एकात्म यात्रा होकर रहेगी। देशभर के संत समुदायों का इसमें पूरा योगदान होगा। अद्वैत के प्रसार के लिए हमें शंकराचार्य की दिग्विजय यात्रा को आवश्य निकालना चाहिए। जब तब पूरी दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ा दिखाई देता है। प्रस्ताव में दिग्विजय यात्रा की बात की गई है, यह यात्रा बिल्कुल निकलेगी और यह आदि गुरू शंकराचार्य की दिग्विजय यात्रा जैसे ही निकलेगी।
स्वामी अवधेशानंद ने कहा कि, "जूना अखाड़े के 15- 20 लाख साधू इस यात्रा में एकजुट होंगे और मैं दूसरे अखाड़ाें को भी इसमें शामिल होने के लिए मनाऊंगा।"
अद्वैत सिर्फ शंकराचार्य का मार्ग नहीं अपितु
आदिगुरू शंकराचार्य ने अद्वैत का जो मार्ग दिखाया वह सिर्फ उनका मार्ग नहीं है, वह संम्पूर्ण सनातन का मार्ग है। इसी मार्ग को प्रशस्त करने के लिए शंकराचार्य ने पूरे भारत की तीन बार पैदल दिग्विजय यात्रा की। भगवान के रूप में जन्म लेकर फिर से वैदिक परंपरा को पुनर्जीवित किया। भारत की दिग्विजय पैदल यात्रा में वैदिक परंपरा का प्रसार किया। देश को जाना इसका परिणाम पंचायतन पूजा पद्धति की शुरूआत की। 4 पीठों की स्थापना कर सारे समुदायाें को एक धागे में पिरोने का काम किया।
मध्यप्रदेश सरकार का आभार जताते हुए कहा कि अद्वैत के प्रसार के लिए जो काम सरकार कर रही है, वह हमने आज तक नहीं देखा। सरकार का काम जनमानस की भलाई करना है और शंकराचार्य जी के मार्ग को प्रसारित करना जनता की भलाई ही है।
आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास के साथ अखिल विश्व गायत्री परिवार, आर्ष विद्या गुरूकुलम, चिन्मय मिशन, आर्ट ऑफ लिविंग, रामचंद्र मिशन आदि ने प्रस्तावों का समर्थन किया। अनुराग उइके/बीके इंजी नरेश बाथम