राहुल सांस्कृत्यायन स्पष्ट कहते थे- बुद्ध और ईश्वर साथ-साथ नहीं रह सकते। समस्त सनातनी देवी-देवताओं के हाथों में शास्त्र और शस्त्र दोनों है। बुद्ध के विचार में शस्त्र की कोई जगह नहीं। एक विचार है, जो शांति की दिशा की ओर चलता है। लेकिन बिना शस्त्र उठाये आप शास्त्र की रक्षा कैसे कर सकते है, शांति कैसे स्थापित कर सकते हैं ? हिंसा का प्रतिकार नहीं करना इस देश को सैकड़ों साल की गुलामी की गर्त में ढकेल चुका है। अब सरकार आई है, जिसने ये साहस दिखाया। संकल्प लिया। हिंसा का प्रतिकार करना शुरू किया।
सम्राट अशोक द्वारा आरंभिक कलिंग युद्ध में लाखों कलिंग सैनिकों की मृत्यु हो गई, जिससे सम्राट अशोक को बहुत ग्लानि और पछतावा हुआ। और वह प्रायश्चित करने के प्रयत्न में बौद्ध विचारधारा की ओर आकर्षित हुआ। ये वहीं दौर है, जब सैन्य दिग्विजय का युद्ध समाप्त हुआ और आध्यात्मिक विजय का युग आरंभ हुआ। और अशोक क्रूर चंडशोक से धर्माशोक बन गया। शांति और अहिंसा का बड़ा प्रचारक बन गया। यदि सम्राट अशोक बुद्ध के साथ युद्ध को भी अपनाते, तो आज देश का वर्तमान विश्व का सबसे स्वर्णिम काल होता। अहिंसा ने हमारी प्रतिकार की क्षमता को खत्म किया। नतीजे सामने हैं, कि आज देश आपे्रशन सिंदूर लेकर दुनिया के सामने अपनी सेना को शौर्य और पराक्रम को प्रस्तुत कर रहा है।
गंगा-जमुनी संस्कृति जैसी तहजीब इस भारत में कभी नहीं रही। जिसने इस तहजीब का नारा दिया, ये एक तरह से प्रहार था हम पर। जो गंगा को नहीं मानते, वो उसकी तहजीब को क्यों मानेंगे? गंगा-जमुना सनातनियों के लिये पूजनीय है। पर जिन्होंने तहजीब का नारा दिया, उसके लिए गंगा-जमुना एक नदी है। दुनिया समझौते से चलती है, एडजस्टमेंट से चलती है, एक-दूसरे के सम्मान से चलती है। कभी कोई दूसरी संस्कृति स्थापित संस्कृति पर अपने लुभावने नारों से शासन नहीं कर सकती। पता नहीं ये बात देश कब समझेगा?

अहिंसा का सिद्धांत समृद्ध सनातनी परंपरा है। भारत अहिंसा का समर्थक रहा है। भारत ने विस्तार-नीति को कभी प्रोत्साहन नहीं दिया। भारत ने कभी किसी देश पर हमला नहीं किया। अहिंसा का पालन करते-करते हम हिंसा का प्रतिकार करना भूल गये। महान अत्याचारी शासक और युद्ध-प्रेमी शासक हुआ सम्राट अशोक। उसने सैकड़ों युद्ध लड़े। लाखों लोगों की युद्ध में जाने गईं, लेकिन जब सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के प्रभाव में आया, तो वह अहिंसक हो गया। एक तरह से सन्यास, जिसको युद्ध, लोगों की मौत से भारी घृणा हो गई। युद्ध-प्रेमी अशोक महान हो गया। ये स्थिति कमोवेश भारत के साथ संग-संग चलती हुई वर्तमान तक परिलक्षित हो रही है।
नालन्दा विश्वविद्यालय में हजारों छात्र पढ़ते थे। ये अहिंसा के प्रतीक माने जाते थे। इन छात्रों को इस बात का ज्ञान नहीं दिया गया, कि यदि उनके ऊपर हिंसा हो, तो उसका प्रतिकार कैसे करेंगे ? अगर उनको आत्मरक्षा में युद्ध के सिद्धांत और प्रतिकार में हिंसा के सिद्धांत भी सिखाया गया होता, तो आक्रमणकारी उनको काट कर नहीं फेंकते। यदि ये छात्र चंद मुस्लिम घुड़सवार आक्रमणकारियों पर अपने लोटा, ग्लास और थाली के साथ लाठी लेकर हमला कर देते, तो कुछ लोग मारे जाते पर विश्व को संदेश जाता। कोई भारत की तरफ आंख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं करता। बुद्ध के शांति और अहिंसा के सिद्धांत ने न केवल देश की कायरता दिखाई, बल्कि विश्व के सबसे बड़े शिक्षाविद् संस्थान- नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया। मुगल, यवन, अंग्रेज और पुर्तगाली हम पर राज करते चले गए। हम खुद को अहिंसावादी, बुद्ध पे्रमी के रूप में शांति का संदेश देते रहे। जबकि बुद्ध का अहिंसा का संदेश इस देश को कायर बना गया। इन्हीं के अनुयायी हुए महात्मा गांधी। कहते रहे अहिंसावादी, हिंसा से दूर रहा। अंग्रेजों के खिलाफ हिंसा नहीं करना। ये अहिंसा का जो सिद्धांत है, यह इतनी विसंगतियों से भरा हुआ है, जितना शायद दूसरा और सिद्धांत नहीं है।

अगर आपको बुद्ध चाहिये, तो आपको युद्ध की ओर जाना चाहिए। श्रीरामचरितमानस में भी तुलसी दास जी ने लिखा है- भय बिनु होहिं न प्रीत...। समुद्र भगवान राम की प्रार्थना, विनय, अनुनय के सामने अपना विकराल और गरजता हुआ स्वरूप दिखा रहा था। लेकिन जैसे ही राम ने धनुष उठाया, समुद्र हाथ जोडक़र राम के चरणों में आ गया। यही सिद्धांत आज भारत की वर्तमान परिस्थिति पर लागू होता है।
हम पाकिस्तान को उसके स्थापना काल के छह महीने बाद से ही बर्दाश्त करते आ रहे हैं। चाहे कबायली हमला हो या 1965 की लड़ाई हो, 1971 की लड़ाई हो या कारगिल की लड़ाई हो, कश्मीर में नरसंहार हो या दिल्ली सहित देश के अन्य हिस्सा में बम की वर्षा और आतंकी हमले हों। हर हमले में हम अहिंसावादी बने रहे। हम भारतीयों ने इजराइल जैसे छोटे से देश से कुछ नहीं सीखा। 2014 में जब मोदीजी के नेतृत्व में भाजपा सरकार आई और पुलवामा अटैक हुआ, मोदी सरकार ने 13 दिन के अंदर पाकिस्तान में घुसकर आतंकी कैंपों में एयर स्ट्राइक की। पाकिस्तान की संसद में बहुत बवाल मचा। उससे दुगना बवाल भारत के विपक्षी दलों ने मचाया। भारत के विपक्षी दलों की जो भाषा थी, वो पाकिस्तान के प्रवक्ताओं जैसी थी। पुन: पहलगाम में 28 नागरिकों  का नरसंहार इन्हीं आतंकियों द्वारा किया गया। पूरे देश का विपक्ष (वोट के चक्कर में) सरकार के साथ पाकिस्तानी कार्यवाही के लिए कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हो गया। ‘‘अब तक जो हुआ सो हुआ, अब और नहीं’’ और इस अहिंसक देश की जनता आतंक के खिलाफ अटक से कटक तक, कश्मीर से कन्याकुमारी तक उग्रतम रूप में सामने आ गई। कोई भी सरकार अपने जनमानस की सोच के परे जाने का साहस नहीं कर सकती, वो भी तब जब देश के ही धर्मों पंथों के बीच जहर बोने वाला विपक्ष बैठा हो। जनता की गर्जना ने विपक्ष को भी दहला दिया। फाइनली पाकिस्तान के अंदर 100 किलोमीटर अंदर तक घुसकर मोदी सरकार ने एयर स्ट्राइक की और तमाम आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया।
मैं भी मानती हूं, चरखा चलाकर आजादी नहीं मिली थी। आजादी मिलने के पीछे हजारों-लाखों भारतीयों का बलिदान, भगतसिंह चंद्रशेखर सरदार ऊधम सिंह जैसे देशप्रेमियों का सर्वस्व बलिदान ही था, जिसने उन गोरों को भारत से भागने पर मजबूर कर दिया। पाकिस्तान की आतंक परस्त नीति का एकमात्र इलाज है, कि उसके साथ युद्ध किया जाये। हो सके तो उसे धरती के हिस्से से बेदखल किया जाये। इसकी शुरुआत तीन दिन पहले आपे्रशन सिंदूर के तहत शुरू हो चुकी है। आरंभ तो प्रचंड है। प्रहार के दौर चल रहे हैं। जिन्होंने इस आतंक को नहीं भुगता है, वही शांति के गीत गा रहे हैं। भारत के पास एक बड़ा अवसर है, पाक अधिकृत कश्मीर वापस लेने का। बलूचिस्तान को पाकिस्तान से मुक्त करने का। सिन्धियों को सिन्ध के साथ अपने में मिलाने का। हम जो अखंड भारत का सपना देखते हैं, वह बहुत आसानी से आज की परिस्थितियों में हम पूरा कर सकते हैं। मोदी सरकार में संकल्प और इच्छाशक्ति दोनों है। बस निर्णय लेना है। हम जब तक पाकिस्तान जैसे देशों को पैरों तले नहीं ले आयेंगे, तब तक चीन, तुर्की हमको आंखें दिखाते रहेंगे। आज बुद्ध की नहीं, युद्ध की आवश्यकता इसलिए भी है, कि सारी दुनिया विनाश के कगार पर खड़ी है। परमाणु शक्ति संपन्न देश इस धरती को मिटाने का पावर रखते हैं। बुद्ध के सिद्धांत में कमजोर पर शक्तिशाली को शासन करना सिखाया। बुद्ध ने असमानता की एक बड़ी दीवार कमजोर और ताकतवर के बीच खड़ी की।
अहिंसा को मानने वाले गुलामों की हैसियत में आ गये, क्योंकि वे अहिंसक थे, हिंसा का प्रतिकार करना नहीं जानते थे। दूसरे, ताकतवर आ गये, जो शासक बनगये। उनके जीवन में अहिंसा का कोई मोल नहीं। उन्होंने कमजोर से अपनी बात मनवाई हिंसा के जरिये। चाहे वो औरंगजेब हो, जो तलवार के दम पर इस्लाम को फैलाया। या अंग्रेज हो, जिन्होंने तोप से बांधकर अहिंसावादियों को उड़ा दिया। भारत, पाकिस्तान को लेकर बड़े
भाई जैसी फीलिंग रखता है। जैसा पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारें मानती रही हैं। यह फीलिंग रखने वालों में अभी-अभी अखिलेश यादव और ममता बनर्जी जैसे लोग भी शामिल हो गये हैं। वो ये भूल जाते हैं, कि पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल मुनीर ने बहुत स्पष्ट शब्दों में इनकी सोच को खारिज किया और टू-नेशन थ्योरी को नकारा है, खारिज किया है। ये बात कि हमारी परंपरायें अलग, हमारी सोच, धर्म, पहनावा, भाषा, संस्कृति और ईश्वर भी अलग है। फिर ये टू नेशन कैसे हुआ ? इस सोच ने दुनिया को चौंकाया और भारत में इस सोंच से पे्ररणा लेकर निर्दोष लोगों पर प्रहार करके उनकी हत्यायें की। मोदीजी के साथ एक अच्छी बात है, वो इस ‘तकनीक’ को जानते हैं, कि जो जिस भाषा को समझता है, उसको उसकी भाषा में जवाब दो। ये तकनीक बेमिशाल है, विशेषकर भारत के लिए।
एक गृहमंत्री हुए पाटिल साहब। बॉम्बे में बड़ा आतंकवादी हमला हुआ। वो नहीं गये देखने कि हमले में क्या हुआ। हाँ, दिन में तीन बार पे्रस कांफे्रंस ले रहे थे और तीनों बार वो नये-नये कपड़े पहनकर मीडिया के सामने आ रहे थे। उसी बीच एक राज्य का मुख्यमंत्री था, जो कसाब को निर्दोष बताकर भारत की ही संस्थाओं पर अनर्गल आरोप लगा रहा था। इस दौर में एनआईए का बड़ा दुरुपयोग हुआ। भगवा आतंकवाद जैसा शब्द इन्हीं मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया था। इन्होंने कोशिश नहीं की, कि सर्वदलीय बैठक बुलाकर पाकिस्तान की भाषा में उसका जवाब दिया जाये। बल्कि उसके कुकृत्य के लिये पाकिस्तान पर कोई कार्यवाही न हो, इसके लिए कसरत की गई। देश कभी भूलता नहीं है। इतिहास चीजों को दर्ज करता है आने वाली पीढिय़ों के लिए, कि वो जाने कि शांति तभी आती है, जब युद्ध हो। प्रतिकार के बिना अहिंसा जीवित नहीं रह सकती। शांति चाहिये, तो अशांति फैलाने वालों को कुचलो। अपने आप शांति आ जायेगी। इसलिए शांति के लिए बुद्ध नहीं, युद्ध जरूरी है।
मन करे तो प्राण दे
जो मन करे तो प्राण ले
वही तो एक सर्वशक्तिमान है
कृष्ण की पुकार है
भागवत का सार है
युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है
कौरवों की भीड़ हो या
पांडवों का नीड हो
जो लड़ सका है
वो ही तो महान है
*वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल।

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