नई दिल्ली । सूर्य की खोज के लिए भारत के पहले पीएसएलवी-सी57/आदित्य-एल1 मिशन को शनिवार को श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से सफलता पूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इससे पहले श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारत के तीसरे चंद्रयान मिशन को लांच किया गया था। 1971 से अब तक ज्याखदातर रॉकेट्स यहीं से लांच हुए हैं, इसके बाद सवाल यह उठता है कि इसरो श्रीहरिकोटा पर इतना भरोसा क्यों करता है। इसका जबाव हम आपकों दे रहे हैं। सबसे पहले श्रीहरिकोटा की लोकेशन। दरअसल इक्वेटर से इसकी करीबी इस जियोस्टेशनरी सैटलाइट के लिए उत्तम लांच साइट बनाती है। दक्षिण भारत में बाकी जगह की तुलना में श्रीहरिकोटा इक्वेटर यानी भूमध्यक रेखा के ज्यादा पास है। पूर्वी तट पर स्थित होने से इस अतिरिक्त 0.4 किलोमीटर /प्रतिसेंकड की वेलोसिटी मिलती है। ज्यादातर सैटलाइट को पूर्व की तरफ ही लांच किया जाता है। 
इस जगह में आबादी नहीं है। यहां इसरो के लोग रहते हैं या फिर स्थाहनीय मछुआरे। इसलिए ये जगह पूर्व दिशा की ओर की जाने वाली लॉन्चिंग के लिए बेहतरीन मानी जाती है। इसके अलावा यहां तक पहुंचने वाले उपकरण बेहद भारी होते हैं, इन्हें दुनिया के कोने-कोने से यहां लाया जाता है। जमीन, हवा और पानी हर तरह से यहां पहुंचना बेहतर है और मिशन की लागत भी कम हो जाती है। श्रीहरिकोटा की स्थापना 1971 में हुई थी। इसमें दो लॉन्च पैड हैं जहां से पीएसएलवी और जीएसएलवी के रॉकेट लॉन्चिंग ऑपरेशन किए जाते हैं। आंध्रप्रदेश के तट पर बसे इस द्वीप को भारत का प्राइमरी स्पेस पोर्ट भी कहा जाता है यह नेशनल हाइवे 5 पर स्थित है। नजदीक के रेलवे स्टेशन से 20 किलोमीटर और चेन्नई के इंटरनेशनल पोर्ट से 70 किलोमीटर दूर है। 
यहां से रॉकेट लांच करने का एक कारण ये भी है कि ये आंध्र प्रदेश से जुड़ा एक द्वीप है, जिसके दोनों ओर समुद्र है। इसके बाद लॉन्चिंग के बाद किसी रॉकेट के अवशेष सीधे समुद्र में गिरते हैं। इसके अलावा अगर मिशन को किसी तरह का खतरा होता है, तब उस समुद्र की ओर मोड़कर जनहानि से बचा जा सकता है। रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन ऐसी जगह पर होनी चाहिए जो रॉकेट के इंटेंस वाइब्रेशन को झेल सके। श्रीहरिकोटा इस क्राइटेरिया को बखूबी निभाता है। मौसम की दृष्टी से भी श्रीहरिकोटा सही है, क्योंकि ये जगह साल के दस महीने सूखी रहती है। यही कारण है कि इसरो रॉकेट लॉन्चिंग के लिए इस जगह का चुनाव करता है।