मुरली mp1news के माध्यम से पढ़ सकते हैं।YouTube की लिंक को क्लिक कर सुन भी सकते है,साथ ही वरिष्ठ राजयोगी बीके सूरज भाईजी से Mplive के चेनल हेड अजय सिसोदिया से खास बातचीत YouTube की लिंक पर क्लिक कर सुन सकते हैं।                                                                                                                                                                     “मीठे बच्चे - अपना स्वभाव बहुत ही मीठा और शान्त बनाओ, बोल चाल ऐसा हो जो सब कहें यह तो जैसे देवता है''
प्रश्नः-तुम बच्चों को कौन सा सर्टीफिकेट संगम पर बाप से लेना है?
उत्तर:-अपने दैवी मैनर्स का सर्टीफिकेट। बाप जो श्रृंगार कर रहे हैं, बच्चों की इतनी सेवा कर रहे हैं तो जरूर उसका रिटर्न देना है। बाप का मददगार बनना है। मददगार बच्चे वह जिनका स्वभाव देवताई हो। ईश्वरीय सर्विस में कभी थके नहीं। यज्ञ सेवा से स्नेह हो। ऐसे बच्चों को बाप भी इज़ाफा देते हैं, खातिरी करते हैं। ऐसे सर्विसएबुल स्नेही बच्चों को देख-देख बाप हर्षित होते हैं।
गीत:-तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है.........

ओम् शान्ति। भक्तों प्रति भगवानुवाच, जबकि भक्त सम्मुख हैं और भक्त जानते हैं कि भगवान बैठकर हमको ज्ञान के गीत सुनाते हैं वा ज्ञान की डांस कराते हैं। अच्छा, इनसे फिर क्या होगा? कहते हैं वह देवताओं मुआफिक सदा सुखी और हर्षित रहेंगे। भगवान को ही बेहद का बाप वा विश्व का रचयिता कहा जाता है। वह है स्वर्ग का रचता। विश्व पहले-पहले स्वर्ग है फिर बाद में नर्क बनती है। तो अब है नर्क। मनुष्य भक्ति मार्ग में धक्के खाते रहते हैं। भक्त भगवान को याद करते हैं। आत्मा समझती है बाप हमारे लिए स्वर्ग की सौगात ले आयेंगे। वही रचयिता है। स्वर्ग का मालिक बनाने लिए आकर राजयोग सिखाते हैं। कहते हैं बाप को और विश्व के मालिकपने को याद करो। जब विश्व का रचयिता बुद्धि में आता है तो समझा जाता है परमपिता परमात्मा नई विश्व रचते हैं। यह विश्व मनुष्य मात्र के रहने का स्थान है। बाप बेहद का मालिक है तो जरूर बेहद की बड़ी दुनिया ही रचेंगे। कोई छोटा घर तो तुम्हारे लिए नहीं बनायेंगे। वह तो लौकिक बाप बनाते रहते हैं। यह तो नया विश्व बनाते हैं। तुम बच्चों के लिए विश्व घर है अर्थात् पार्ट बजाने का स्थान है। तुम जानते हो हम भारतवासी हैं तो घर के हुए ना। अब भारतवासी अपने को हद के मालिक समझते हैं, परन्तु भारतवासी बेहद दुनिया के वासी थे। बाप बहुत अच्छी रीति समझाते हैं, परन्तु तुम बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। शुक्रिया भी नहीं मानते हो। बेहद का बाप आकरके बेहद का विश्व अथवा घर बनाते हैं। वह है स्वर्ग। ऐसे नहीं बेहद का नर्क रचने वाला बाप है। बाप तो आकर स्वर्ग रचते हैं और उस स्वर्ग का फिर बच्चों को मालिक बनाते हैं। गोया नई दुनिया, नये विश्व का मालिक तुमको बनाते हैं। इस विश्व के मालिक लक्ष्मी-नारायण भारत में थे। उस समय और कोई धर्म नहीं था, सिर्फ भारत ही था। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। परन्तु बच्चों को वह नशा नहीं चढ़ता है। बच्चे हद के नशे में रहते हैं। आत्मा को नशा रहता है ना। आत्मा का शरीर बड़ा होता है तो इन आरगन्स से सब वर्णन कर सकते हैं। छोटा बच्चा तो नहीं कहेगा कि मैं विश्व का मालिक हूँ वा फलाना हूँ। बालिग अवस्था में आने से समझते हैं हम मालिक हैं। तुम कोई छोटे तो नहीं हो, तुम तो बड़े हो। बाप ने भी बुजुर्ग शरीर लिया है। समझते हैं बाप विश्व का रचयिता है। मालिक नहीं बनते हैं। अक्षर कहने में भी कहाँ-कहाँ भूल हो जाती है। बाप है विश्व का रचयिता। कहते हैं मैं विश्व की राजाई नहीं करता हूँ। सारे सृष्टि का रचयिता मैं एक हूँ। अक्षर अक्षर रिफाइन कर समझाना पड़ता है। बाप विश्व का रचता डायरेक्ट समझा रहे हैं। हम तुमको विश्व का मालिक बनाने आया हूँ। ऐसे नहीं सिर्फ भारत का मालिक बनाने आया हूँ। इस समय जो भारत के मालिक हैं उन्हें वह सुख थोड़ेही है। अभी सब कब्रदाखिल होने हैं, इसको कहा जाता है कयामत का समय। विश्व का रचता जरूर गॉड को कहा जायेगा। वही न्यु वर्ल्ड का क्रियेटर है। न्यु वर्ल्ड को स्वर्ग, पुरानी वर्ल्ड को नर्क कहेंगे। तुम बच्चों में भी नम्बरवार समझते हैं। जिनमें ज्ञान कम है, उनको इतनी खुशी नहीं रहती है। माया खुशी में रहने नहीं देती है। बच्चे देही-अभिमानी होते नहीं। देह-अभिमान आने से ही फिर सब विकार सामना करते हैं। तुम बच्चे जानते हो हम आत्माओं का बाप वह है, भक्त सब बुलाते हैं। आकर हमको कुछ सुनाओ। लिखा हुआ है - भगवानुवाच, मैं आया हूँ तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने, तुमको लायक बनाता हूँ। तुमको सारे विश्व की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाता हूँ। इस बेहद के ड्रामा में कौन-कौन मुख्य एक्टर्स हैं। तुम्हारी बुद्धि चली जाती है बेहद में। ड्रामा में मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन सब आ जाते हैं। तुम्हारे में भी कोई हैं जो इन बातों को अच्छी रीति समझते हैं। कोई को धारणा नहीं होती है क्योंकि अनेक जन्मों से अजामिल हैं। वह संस्कार हैं। ऐसे गर्म तवे हैं जो बिल्कुल धारणा नहीं होती है। उनका भी उद्धार होता है। कम से कम स्वर्ग में तो जाते हैं। दास दासी बनते हैं। प्रजा में जाते हैं। उद्धार का मतलब है स्वर्ग में तो ले जाते हैं ना। बाकी पद तो पुरुषार्थ अनुसार ही मिलता है। यदि धारणा नहीं करते हैं तो स्वर्ग में तो जायेंगे परन्तु दास दासी का पद मिलेगा। बच्चों को कितना भी समझाते हैं परन्तु जैसे गर्म तवे पर पानी। तो समझा जाता है उस वासना (संस्कार) वाले हैं। संन्यासी भी वासना (संस्कार) ले जाते हैं ना। जन्म लेंगे फिर संन्यास करने का ख्याल होगा। यह बातें भी यहाँ समझाई जाती हैं। सतयुग में तो विकार की बात ही नहीं। वहाँ जन्म-जन्मान्तर निर्विकारीपने का संस्कार रहता है, माया ही नहीं है। यहाँ तो बच्चों को सुधारने की बहुत कोशिश करते हैं। कोई तो बिल्कुल ही मैले कपड़े हैं। थोड़ी ही सोटी लगाई जाती है तो एकदम फट पड़ते हैं। धोबी भी कपड़े की सम्भाल करते हैं। परन्तु कोई सड़ा हुआ कपड़ा होता है तो फट पड़ता है फिर आश्चर्यवत भागन्ती हो जाते हैं। बाप कितनी मेहनत करते हैं! राजयोग सिखला रहे हैं। वही रहमदिल है जो सब पर रहम करते हैं। बाबा रहमदिल है। माया बेरहम है। माया ने सत्यानाश कर दी है इसलिए कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता हूँ। बाप है पतित-पावन, पतितों को ही वापिस ले जाने आना पड़ता है। त्रेता में कोई पतित थोड़ेही है जो त्रेता में आकर पावन बनाऊं। भगवान तो है ट्रूथ, वही सत्य सुनाते हैं।

तुम बच्चे अब जानते हो बरोबर विश्व का रचयिता शिवबाबा ब्रह्मा तन से हमको विश्व का मालिक बनाने पुरुषार्थ कराते हैं। बाप कहते हैं अगर हमारी मेहनत व्यर्थ गंवायेंगे, अपनी चलन से बहुतों को धोखा देंगे तो पद भ्रष्ट हो पड़ेंगे। कहेंगे इनसे तो भूत निकला नहीं है। बच्चों की चलन ऐसी होनी चाहिए जो सब समझें यह तो जैसे देवता है। देवतायें नामीग्रामी हैं। कहते हैं इनका स्वभाव एकदम देवताई है। तो बाकी का अन्डरस्टुड आसुरी हुआ ना। कई बच्चे बड़े फर्स्टक्लास देवताई, गुणवान हैं। बिल्कुल मीठे शान्त स्वभाव के हैं। तो ऐसे बच्चों को बाप देख खुश होते हैं। बच्चे समझते हैं बाप हम बच्चों के लिए मकान बनवा रहे हैं तो हमको भी सेवा करनी चाहिए। तो ऐसे बच्चे बहुत दिल पर चढ़ते हैं। जो बिगर कहने से काम करे वह देवता, कहने से करे वह मनुष्य। कहने से भी न करे तो वह मनुष्य से भी बदतर हुआ। बाबा भी कहते हैं बच्चे अगर योग में नहीं रहेंगे तो माया की धूल में खत्म हो जायेंगे। बाबा बार-बार समझाते हैं श्रीमत पर चलते रहो। आसुरी कर्तव्य नहीं करो। बोलना, चलना बड़ा मीठा रखना है। देवतायें कितने मीठे स्वभाव के हैं! भारत में राज्य करते थे, यथा राजा रानी तथा प्रजा दैवी स्वभाव के थे। बाप आता है स्वर्ग का मालिक बनाने तो बाप के साथ कितना मददगार बनना चाहिए। सर्विस में आपेही काम में लग जाना चाहिए। ऐसे नहीं, मैं थक गया हूँ, फुर्सत नहीं है। समय पर सब काम करने में कल्याण है। यज्ञ सर्विस का इज़ाफा शिवबाबा देते हैं। यह बाबा करके बाहर से थोड़ी खातिरी करेंगे, दिल लेंगे। वह बाबा है बेहद की दिल लेने वाला, यह है हद की दिल लेने वाला। बच्चों की दैवी चलन देखते हैं तो फिर कुर्बान जाते हैं। बिगर कहे जो बच्चे सर्विस में तत्पर रहते हैं, उनको कहा जाता है देवता। देवताओं को कुछ कहने की दरकार नहीं होती। वहाँ आसुरी स्वभाव होता नहीं। यहाँ कई बच्चे मात-पिता की मत पर नहीं चलते हैं तो अपना ही नुकसान करते हैं।

बाप कहते हैं मैं परमधाम से आता हूँ बच्चों की सेवा में। मेरी मत पर नहीं चल कितने को दु:ख देते हैं। कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। अमृत पीते-पीते फिर पतित बन पड़ते हैं। एक कहानी भी है - लक्ष्मी ने अमृत पिलाया तो भी असुर बन गये। तो कभी भी किसको दु:ख देने का प्रयत्न नहीं करना है। नहीं तो सारा राज्य-भाग्य गंवाए डन्डे खाने लायक बन पड़ेंगे। बाबा ने समझाया है - मैं धर्मराज हूँ। इनडायरेक्ट कुछ करते थे तो हद की अल्पकाल की सजा भोगते थे। अब डायरेक्ट आकर फिर भी बाबा की मेहनत बरबाद करते हो तो बहुत सजा खानी पड़ेगी। हम तुमको देवता बनाते हैं। माया फिर आकर तुमको असुर बनाती है। बाप बार-बार समझाते हैं दैवीगुण धारण करो। गाया भी हुआ है रामराज्य में जानवर भी एक दो को प्यार करते थे। इकट्ठे एक तलाव पर जल पीते थे। यहाँ तो अमृत पीकर फिर असुर बन ट्रेटर बन पड़ते हैं। ब्राह्मण कुल भूषणों को फिर तकलीफ देते हैं। उनकी फिर कितनी दुर्गति होती होगी। बाप आते हैं सद्गति देने। तो तुम बच्चों को दैवीगुण वाला बनना है। आपेही सर्विस करनी है। बाप भी सर्टीफिकेट देंगे। जो निश्चयबुद्धि अच्छे हैं वह सदैव बाप को याद करते रहेंगे। उनको ख्याल रहता है - नाम बदनाम नहीं करेंगे, आसुरी गुण नहीं दिखायेंगे। अभी तो सब नम्बरवार पुरुषार्थी हैं। सिर्फ यह निश्चय रहना चाहिए हम गॉड फादरली स्टूडेन्ट्स हैं। भगवानुवाच बच्चों प्रति कि मैं तुमको पढ़ाकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। तुमको योग और ज्ञान सिखलाता हूँ। तुम देही-अभिमानी बनो, मैं तुमको ले जाने के लिए आया हूँ। तुम आत्मायें मच्छरों सदृश्य मेरे को फालो करेंगी। बरोबर महाभारत लड़ाई लगी है तो मच्छरों सदृश्य फालो किया है पण्डे को। बाबा पण्डा है, कहते हैं मैं लिबरेट करने आया हूँ।

तुम माया के फंदे में बड़े दु:खी हो। एक तो गर्भ जेल में जाते हो, दूसरा फिर उस जेल में जाना भी मनुष्यों के लिए बड़ा सहज हो गया है। बड़ी खुशी से जेल में जाते हैं। एक दो को देख भूख हड़ताल आदि भी करने लग पड़ते हैं। अपनी आत्मा को दु:ख देने लिए क्या-क्या करते हैं। इनको आत्मघात कहा जाता है। शरीर तन्दरुस्त है तो आत्मा कहती हैं मैं सुखी हूँ। तन्दरुस्त नहीं है तो आत्मा कहती है मैं दु:खी हूँ। बाप आते हैं सदा सुखी स्वर्ग का मालिक बनाने। विश्व का मालिक कहते हैं - मैं नये विश्व का रचयिता हूँ, इसलिए मुझे मालिक कहते हैं। परन्तु मैं राज्य नहीं करता हूँ। सब भक्त मुझे पूजते हैं। कहते हैं - हे भगवान आओ, आकर हमको इस कलियुगी दु:खों से छुड़ाओ, निर्वाणधाम वा स्वर्गधाम में भेज दो। बाप पहले सुखधाम में भेज देते हैं फिर माया दु:खधाम बनाती है। ऐसे यह चक्र फिरता है। बाप कहते हैं बच्चे अब ग़फलत छोड़ो। माया बहुत अकर्तव्य कार्य कराती है, जिससे पद भ्रष्ट हो पड़ेगा। बाप को जान पहचान उनकी मत पर चलने से तुम श्रेष्ठ बन सकेंगे। नहीं तो बहुत सजायें खायेंगे। जैसे ईश्वर की महिमा अपरमअपार है वैसे सजा खाने की दुर्दशा भी अपरमअपार है। कयामत का समय है। बाबा सबका हिसाब-किताब चुक्तू कराते हैं। सजायें खाने वाले इस माला में नहीं आयेंगे। बाप कहते हैं सिर्फ इतना याद करो विश्व का रचयिता नॉलेजफुल गॉड फादर हमको पढ़ाते हैं। वह जरूर विश्व के मालिकपने का वर्सा देंगे, इतना याद रखे तो भी हंसते खेलते रहेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अपना बोल-चाल बहुत मीठा रखना है। कोई आसुरी कर्तव्य नहीं करना है। दैवी मैनर्स धारण करने हैं।

2) बाप की सर्विस में बिगर कहे मददगार बनना है। बाप की मेहनत का रिटर्न अवश्य देना है। ग़फलत नहीं करनी है।

वरदान:-बुद्धि रूपी विमान द्वारा सेकण्ड में तीनों लोकों का सैर करने वाले सहजयोगी भव
बापदादा बच्चों को निमंत्रण देते हैं कि बच्चे संकल्प का स्विच आन करो और वतन में पहुंच कर सूर्य की किरणें लो, चन्द्रमा की चांदनी भी लो, पिकनिक भी करो और खेलकूद भी करो। इसके लिए सिर्फ बुद्धि रूपी विमान में डबल रिफाइन पेट्रोल की आवश्यकता है। डबल रिफाइन अर्थात् एक निराकारी निश्चय का नशा कि मैं आत्मा हूँ, बाप का बच्चा हूँ, दूसरा साकार रूप में सर्व संबंधों का नशा। यह नशा और खुशी सहजयोगी भी बना देगी और तीनों लोकों का सैर भी करते रहेंगे।
स्लोगन:-श्रेष्ठ कर्म का ज्ञान ही श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींचने का कलम है।                                                                                                  कार्यालय:- राजयोग भवन, ई-5,अरेरा कॉलोनी, मेन रोड भोपाल मध्यप्रदेश                                                                                   सम्पर्क:-9691454063,9406564449,                                                                                                                    https://youtu.be/iKtCxa1kRiI,                                                                                                                     https://youtu.be/Fk1WXFSM6AY

न्यूज़ सोर्स : madhuban